हॉकी मैच | Hockey Match in Hindi!

विद्यार्थी जीवन में खेलों का विशेष महत्त्व है । इससे शारीरिक व्यायाम तो होता ही है साथ ही चतुरता, मित्रता, खेल की भावना और बुद्धि की एकाग्रता भी बढ़ती है । आलस्य के स्थान पर फुर्ती आती है ।

भारत में अनेक खेल खेले जाते हैं उनमें से हॉकी भी एक है । भारत के ही ‘मेजर ध्यानचंद’ हाँकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध हुए । उन्होंने इस खेल में सन् 1956 तक लगातार खेलते हुए ऑलम्पिक खेलों में अपना विशेष स्थान बनाया और विदेशों में भी सम्मान प्राप्त किया ।

हॉकी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं विद्यालय स्तर पर भी खेली जाती है । इसी वर्ष फरवरी में डी.ए.वी. स्कूल पीतम पुरा और महाराजा अग्रसेन विद्यालय के छात्रों के बीच हॉकी मैच की प्रतियोगिता आर.डी.कॉलेज के मैदान में प्रारम्भ हुई ।

मैदान बड़ा और साफ होने के साथ-साथ इसमें दर्शकों के बैठने की भी पर्याप्त जगह है । दोनो टीमें, स्कूलों के छात्र और दर्शक निश्चित समय पर मैदान में पहुँच गए । दोनों टीमों में 11-11 खिलाड़ी थे । खिलाड़ी मैदान में आए । दोनों टीमों के सदस्यों का परिचय एक-दूसरे से कराया गया । इसके अतिरिक्त दो निर्णायक भी थे ।

दोनों टीमों के कप्तानों के सामने सिक्का उछालकर टॉस किया गया । टॉस महाराजा अग्रसेन विद्यालय ने जीता और गेंद पर पहली स्टिक मारी और अपने ही दूसरे साथी की ओर बढ़ा दी । इसी तरह गेंद आगे बढ़ती गई । थोड़ी देर बाद गेंद विरोधी टीम के पास पहुंच गई ।

धीरे-धीरे मैच तेज होता गया । दोनों टीमें एक-दूसरे पर गोल करने के लिए हावी होने लगीं । खेल प्रारम्भ होने के लगभग 15 मिनट बाद अग्रसेन विद्यालय के छात्रों को पहली सफलता मिली । उन्होंने डी.ए.वी. स्कूल पर पहला गोल कर दिया । डी.ए.वी. वालों पर दबाव बढ़ गया और वे गोल उतारने के लिए विरोधी टीम की ‘डी’ के आसपास मंडराने लगे । लेकिन मध्यान्तर तक उन्हें सफलता नहीं मिली ।

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मध्यान्तर का समय समाप्त होने के पश्चात्‌ डी.ए.वी. स्कूल के एकछात्र की ‘स्टिक’ हुई और उन्हें ‘कॉर्नर’ मिल मिला । इस अवसर का उन्होंने लाभ उठाया और गोल कर दिया । दोनों टीमें बराबरी पर पहुँच गई । दर्शकों की तालियों से मैदान गूंज उठा ।

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दर्शक खिलाड़ियों द्वारा शॉट लगाने पर बिना भेदभाव के तालियां पीट-पीटकर उन्हें जीत के लिए उत्तेजित कर रहे थे । बराबरी तक पहुँचने पर डी.ए.वी. स्कूल के छात्रों में उत्साह बढ़ गया और वे जीतने के लिए लालायाचित हो उठे । छात्रों में आत्मविश्वास संगठन और एक-दूसरे की समझने की अच्छी योग्यता होने के कारण डी.ए.वी. ने दूसरा गोल महाराजा अग्रसेन विद्यालय पर दाग दिया ।

खेल युद्ध का मैदान बन गया और एक-दूसरे पर गेंद से आक्रमण होने लगे लेकिन महाराजा अग्रसेन विद्यालय अपना गोल उतारने में असफल रहा । समय समाप्त होने की सीटी बज गई और डी.ए.वी. विद्यालय विजयी घोषित हुआ ।

दूसरी टीम ने खेल भावना का परिचय देते हुए डी.ए.वी. के खिलाड़ियों और कप्तान को बधाई दी । जीती हुई टीम को ट्राफी और दूसरी टीम को प्रोत्साहन पुरस्कार वितरित किए गए । अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों को अलग से पुरस्कार दिए गये ।

जीती हुई टीम के बाहर आते ही उस विद्यालय के छात्रों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया औ अपनी प्रसन्नता व्यक्त की । अगले दिन प्रार्थना स्थल पर प्रिसिंपल ने सारे स्कूल के सामने उन्हें बधाई और प्रशस्ति पत्र दिए । उनके द्वारा स्कूल के लिए जीता गया कप भी छात्रों को दिखाया गया ।

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