भूमंडलिकरण एवं उदरवाद पर निबंध | Essay on Globalization and Liberalization in Hindi!

साठ के दशक में ही कनाडा के दार्शनिक मार्शल मक्लूहन ने कहा था कि संचार व्यवस्था में अभूतपूर्व प्रगति के कारण दुनिया एक ‘वैश्विक गांव’ में बदल जायेगी ।

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वर्तमान भूमंडलीकरण मक्लूहन की इस भविष्यवाणी का कार्यान्वयन लगता है । उल्लेखनीय है कि भूमंडलीकरण का वर्तमान प्रयोग मूलरूप से इंटरनेट से प्रेरित है और यही इसे अतीत में भूमंडलीकरण की दिशा में किये गये अन्य प्रयोगों से भिन्न कर देता है ।

वर्तमान भूमंडलीकरण एक ऐसी घटना साबित हुई है, जिसे समझने के लिए दुनिया की विभिन्न भाषाओं में अब तक कुल सात हजार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । हालांकि अभी भी इस परिघटना के बारे में अंतिम रूप से कुछ कहना मुश्किल माना जाता है । केवल एक ही बात पर आम सहमति है कि यह एक पेचीदा और बहुआयामी विकास प्रक्रिया है ।

आम तौर पर भूमंडलीकरण पर तीव्र और आक्रामक बहसें होती रही है और जनमत दो खेमों में बंटा हुआ है । कुछ लोग इसे महान परिवर्तन मानते है तो कुछ लोग इसे पश्चगामी यानी संपूर्ण बुराई के रूप में देखते है । लेकिन इसके पक्षधरों और विरोधियों दोनों की दलील समझना जरूरी है वरना इस पर कोई संतुलित नजरिया विकसित करना असंभव हो जायेगा ।

भूमंडलीकरण के पक्षधर इसे समूची दुनिया को एक साथ जोड़ने की प्रक्रिया मानते है और उनकी मान्यता है कि इसके कारण ही दुनिया पहली बार सही मायने में एक हो रही है । उनका तर्क है कि दुनिया के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-सी हो रही हैं क्योकि एडम स्मिथ का तथा-कथित ‘अदृश्य हाथ’ ही सर्वत्र सक्रिय है । बाजारीकरण एक व्यापक और सार्वभौम प्रक्रिया के रूप में चारों तरफ दिखाई देने लगी है ।

बाजार को पूंजीवाद के एक अपूर्व देन के रूप में भी देखा जा सकता है जो सामाजिक-आर्थिक विकास को एक अद्‌भुत आयाम देता है । इस दलील के मुताबिक, यह मानवीय सौहार्द्र, सहमति और मैत्रीपूर्ण समाधान को प्रोत्साहित करता है ।

अर्थशास्त्र के आधुनिक विद्यार्थी इसे आर्थिक संसाधनों का सबसे सुंदर और प्रभावी विनियोजन मानते हैं और दुनिया में संपन्नता की वर्तमान लहर के लिए भी जिम्मेदार मानते हैं । इतना ही नहीं, कुछ लोगों की राय में तो भूमंडलीकरण के कारण दुनिया से युद्ध के खतरे भी मिट जायेंगे, क्योंकि देशों के बीच पारस्परिक व्यापार की जड़ें गहरी होने से उनमें युद्ध के प्रति आकर्षण खत्म हो जायेगा ।

दुनिया में प्रतिष्ठा हासिल करने के प्रतिमान बदल रहे हैं और देशों की पहचान सैनिक उपलब्दियों के बजाए आर्थिक सफलताओं से होने लगी है । युद्ध का स्थान आर्थिक प्रतियोगिता ने ले लिया है । इस दलील के मुताबिक तो परिवर्तन मानव जाति को उसके खूरेंज से भी मुक्ति दिलाता है ।

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लेकिन भूमंडलीकरण के विरोधी इसे यूरोपीय अमेरिकी विकास मॉडल का महज एक आरोपण मानते है । उनका मानना है कि भूमंडलीकरण दुनिया को पश्चिमी देशों के हितों के अनुरूप ढालने की कोशिश है । पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिपादित यह एक नयी किस्म की बाजार विचारधारा है जो निष्ठुर, सर्वग्रासी और निरंकुश है और जिसकी इतिहास में कोई मिसाल नहीं है । यह यूरोप और अमेरिका के दुनिया के संसाधनों पर स्थायी नियंत्रण स्थापित करने की पहल है ।

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भूमंडलीकरण के जरिए पश्चिम के देश तीसरी दुनिया के देशों का अनियंत्रित दोहन करने के लिए एक वैध और आसान व्यवस्था हासिल करने की कोशिश में हैं । इसी पश्चिमी षड़यंत्र की वजह से मानव जाति द्वारा हासिल की गयी अब तक की सभी उपलब्धियां, जो सामूहिक विरासत रही हैं, महज धनी देशों के हाथ में एक अजूबा हथियार बन कर रह जायेंगी ।

भूमंडलीकरण गैर-बराबरी को अचानक रूप से प्रोत्साहित करता है और धन के बंटवारे जैसी बातें अव्यावहारिक बना दी गयी हैं । यह आदमी की आदिम आस्थाओं को भी उत्प्रेरित करता है क्योंकि आदमी इससे राहत पाने की कोशिश में संकुचित सांस्कृतिक पहचान, सभ्यताओं के बीच संघर्ष और धार्मिक उन्माद जैसे विकल्प की तरफ भागता है । यही कारण है कि आज विश्व शांति खतरे में है और उदार एवं सहनशील दृष्टिकोण एकदम कमजोर हो गया है ।

भूमंडलीकरण के ये नतीजे अगर कभी अभीष्ट नहीं थे तो ‘लॉं ऑफ अनइनटेनमेड कनस्किवेनसेज’ (अनहोनी के नियम) काम करते दिख रहे हैं । यदि यह सही है तो भूमंडलीकरण के प्रक्षेप-पथ को संशोधित करने की जरूरत है । भूमंडलीकरण के इसी आवश्यक संशोधन के संदर्भ में उदारवाद और महात्मा गांधी प्रासंगिक लगने लगते हैं ।

मानवीय समाज को न्याय, बराबरी और सहनशील विचारों पर आधारित एक उदार दृष्टिकोण की सख्त जरूरत है ताकि वर्तमान समय की कठिन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया जा सके । गांधी इस उदारवादी दृष्टिकोण की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति थे । गांधी अपने विचारों को किसी पर भी थोपते नहीं थे अक्सर वे हर वक्त सहमति के जरिए ही समस्याओं का हल ढूंढ़ते थे ।

गांधी का मानना था कि अनुदार दृष्टिकोण वैमनस्य और पराए भाव से ही पनप सकता है, इसलिए आदमी को दूसरों के विचारों का आदर करना चाहिए । इसलिए भूमंडलीकरण के मुद्दे पर मध्यम मार्ग या यों कहें गांधीवादी दृष्टिकोण की जरूरत है जिसमें इसकी बुराइयों और अच्छाइयों को खाते में लेकर एक संतुलित नजरिया अख्तियार किया जा सके ।

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