आदतें-मनुष्य की कमजोरी पर निबन्ध | Essay on All Habits Are Bad in Hindi!

मनुष्य अपने गुणों के कारण प्रशंसा का पात्र बनता है, जीवन की कसौटी पर उन गुणों का खरा उतरना आवश्यक होता है । मात्र प्रशंसा तो बार-बार बजने वाले ग्रामोफोन रिकार्ड के संगीत की भांति नीरस होती हैं, उसमें गलियों में सुनाई देने वाले गीत जैसी उन्मुक्तता, ताजगी नहीं होती ।

पिंजरे में बंद चिड़िया की चहचहाहट विस्तृत आकाश में विचरण करने वाली चिड़िया की चहचहाहट से भिन्न होगी । आदतों से मजबूर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता और मुक्त व्यवहार को तिलांजलि देनी पड़ती है । उसका मन तो स्वतंत्रता को चाह करता है, लेकिन अपने मन की आवाज के विरुद्ध आदतों को ढोना मानव की प्रकृति बन गई हैं ।

आदत एक कठोर अधिकारी के समान होती है, उसके आदेश का पालन मनुष्य की नियति है अच्छी आदतों के पालन में हमें नीरसता और उदासीनता का शिकार होना पड़ता है । प्रतिदिन भोर के तारे के साथ उठने की आदत वाला व्यक्ति यदि उस समय वायुयान में बैठा होगा तो यह उसके लिए बहुत असह्य होगा ।

इसी प्रकार कठोर शारीरिक श्रम की आदत वाले व्यक्ति को छुट्‌टी के दिन घर में बैठना अरुचिकर लगता है । ‘आदत से ही कार्य में गति आती है’ इस उक्ति की सार्थकता आज के युग में समाप्त हो गई है । सुविधा की कामना सभी करते हैं, लेकिन प्रयत्नपूर्वक किसी वस्तु को प्राप्त करने का आनंद कुछ और ही होता है ।

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आदत और अभ्यास के कारण मनुष्य के जीवन में यांत्रिकता आ जाती है, जबकि साहसिक कार्यो के लिए साहस की आवश्यकता होती है । अपनी आदतों के कारण मनुष्य सदैव व्यस्त रहता है, यहाँ तक कि वह स्वयं को भी भूल जाता हैं ।

कुछ लोगों को विचार है कि आदतों से जीवन में एकान्तप्रियता आ जाती है । इनके बिना युवकों की स्थिति तूफान में घिरी बिना पतवार की नाव के समान हो जाती है । इस प्रकार का व्यक्ति कब क्या व्यवहार करेगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है ।

लेकिन आदतों से बद्ध व्यक्ति स्थिर, स्पन्दनहीन पानी के समान होता है । इस अतिपरिवर्तनशील जगत में प्रत्येक व्यक्ति को समाज द्वारा मान्य आदतें भी असंगत और निरर्थक लगने लगी हैं । किसी ने ठीक ही कहा है कि अच्छी परम्पराएँ भी समाज को बिगाड़ देती हैं । एक ही सामाजिक परम्परा में बद्ध समाज प्रगति की संभावनाएँ क्षीण हो जाती हैं ।

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आदतें कट्‌टरता में बदल जाती हैं और हमारे विचारों और प्रवृत्तियों को प्रभावित करती हैं । लेकिन कार्य को निश्चित समय में करने की आदत से समय, ऊर्जा की बचत होती है । मनुष्य अपनी आदतों का गुलाम होता है । आदत एक प्रकार का मानसिक प्रशिक्षण होता है, जिसका बाह्य प्रभाव भी दृष्टिगत होता है, जैसे टंकक और सितारवादक की अंगुलियाँ सदैव चलती रहती है और उनको इसका भान भी नहीं होता ।

इस प्रकार सभी प्रकार की आदतें मनुष्य की कमजोरी होती हैं, लेकिन जीवन नियंत्रित करने वाली आदतें जीवन के उत्थान में सहायक होती हैं ।

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