मिलावट का जहर, स्वास्थ्य पर कहर | Essay on Adulteration: Its effect on health in Hindi!

आज जनसामान्य के बीच एक आम धारणा बनती जा रही है कि बाजार में मिलने वाली हर चीज में कुछ न कुछ मिलावट जरूर है । जनसामान्य की चिंता स्वाभाविक ही है ।

आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है । संपूर्ण देश में मिलावटी खाद्य-पदार्थों की भरमार हो गई है । आजकल नकली दूध, नकली घी, नकली तेल, नकली चायपत्ती आदि सब कुछ धड़ल्ले से बिक रहा है । अगर कोई इन्हें खाकर बीमार पड़ जाता है तो हालत और भी खराब है, क्योंकि जीवनरक्षक दवाइयाँ भी नकली ही बिक रही हैं ।

एक अनुमान के अनुसार बाजार में उपलब्ध लगभग 30 से 40 प्रतिशत समान में मिलावट होती है । खाद्य पदार्थों में मिलावट की वस्तुओं पर निगाह डालने पर पता चलता है कि मिलावटी सामानों का निर्माण करने वाले लोग कितनी चालाकी से लोगों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं और इन मिलावटी वस्तुओं का प्रयोग करने से लोगों को कितनी कठिनाइयाँ उठानी पड़ रही हैं ।

सबसे पहले आजकल के सबसे चर्चित मामले कोल्ड ड्रिंक्स को लेते हैं । हमारे देश में कोल्ड ड्रिंक्स में मिलाए जाने वाले तत्वों के कोई मानक निर्धारित न होने से इन शीतल पेयों में मिलाए जाने वाले तत्वों की क्या मात्रा होनी चाहिए, इसकी जानकारी सरकार तक को नहीं है । दरअसल कोल्ड ड्रिंक्स में पाए जाने वाले लिडेन, डीडीटी मैलेथियन और क्लोरपाइरिफॉस को कैंसर, स्नायु, प्रजनन संबंधी बीमारी और प्रतिरक्षित तंत्र में खराबी के लिए जिम्मेदार माना जाता है ।

कोल्ड ड्रिंक्स के निर्माण के दौरान इसमें फॉस्फोरिक एसिड डाला जाता है । फॉस्फोरिक एसिड एक ऐसा अम्ल है जो दांतों पर सीधा प्रभाव डालता है । इसमें लोहे तक को गलाने की क्षमता होती है । इसी तरह इनमें मिला इथीलिन ग्लाइकोल रसायन पानी को शून्य डिग्री तक जमने नहीं देता है । इसे आम भाषा में मीठा जहर तक कहा जाता है ।

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इसी प्रकार कारबोलिक, एरिथारबिक और बेंजोइल अम्ल मिलकर कोल्ड ड्रिंक्स को अति अम्लता (लगभग 2.4 पीएच) प्रदान करते हैं, जिससे पेट में जलन, खट्‌टी डकारें, दिमाग में सनसनी, चिड़चिड़ापन, एसिडिटी और हड़िडयों के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है । इसी प्रकार प्रत्येक कोल्ड ड्रिंक्स में 0.4 पी.पी.एस सीसा डाला जाता है जो स्नायु, मस्तिष्क, गुर्दा, लीवर और मांसपेशियों के लिए घातक है । इसी तरह इनमें मिली कैफीन की मात्रा से अनिद्रा और सिरदर्द की समस्या उत्पन्न होती है ।

सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण के अनुसार, पेप्सी के सभी ब्राण्डों में औसतन प्रति लीटर द्रव्य में 0.0180 मिलीग्राम व कोका कोला में 0.0150 मिलीग्राम कीटनाशकों की मात्रा मिली थी जबकि ईसीई द्वारा प्रति लीटर द्रव्य में 0.005 मिलीग्राम कीटनाशकों की मात्रा स्वीकृत है । मिलावटी खाद्य पदार्थों के मामले में दूध की हालत भी कोल्ड ड्रिंक्स जैसी ही हो गई है ।

आजकल दूध भी स्वास्थ्यवर्धक द्रव्य न होकर मात्र मिलावटी तत्वों का नमूना होकर रह गया है जिसके प्रयोग से लाभ कम हानि ज्यादा है । हालत यह है कि लोग दूध के नाम पर यूरिया, डिटर्जेंट, सोडा, पोस्टर कलर और रिफाइंड तेल पी रहे है । उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग की जांच से यह चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है कि राज्य के 25 प्रतिशत लोग घटिया, मिलावटी और हानिकारक दूध पी रहे हैं ।

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उत्तर प्रदेश जैसे विशाल प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर मिलावटी दूध की आपूर्ति से पता चलता है कि यह धंधा कितनी गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुका है । ध्यातव्य है कि हाल ही में जी न्यूज ने भी सिंथेटिक दूध के कारोबार का पर्दाफाश किया था और इसके खिलाफ लगातार छ: दिनों तक अभियान चलाया था कि किस तरह सुरक्षित समझे जाने वाले मदर डेयरी के दूध में भी सिंथेटिक दूध की मिलावट हो रही है ।

लखनऊ की जन विश्लेषण प्रयोगशाला में पिछले दिनों दूध के करीब एक हजार नमूनों की जांच की गई । इनमें से 211 में मिलावट पाई गई । आठ नमूनों में सोडा और शैंपू मिलाया गया था । दो नमूनों में पोस्टर कलर मिला । महानगरों में भी दूध में मिलावट की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं ।

बाजार में उपलब्ध खाद्य तेल और घी की भी हालत बेहद खराब है । सरसों के तेल में सत्यानाशी बीज यानी आर्जीमोन और सस्ता पॉम आयल मिलाया जा रहा है । देशी घी में वनस्पति घी की मिलावट मानों आम बात हो गई है । मिर्च पाउडर में ईंट का चूरा, सौंफ पर हरा रंग, हल्दी में लेड क्रोमेट व पीली मिट्‌टी, धनिया और मिर्च में गंधक, काली मिर्च में पपीते के बीज मिलाए जा रहे हैं ।

फल और सब्जी में चटक रंग के लिए रासायनिक इंजेक्शन, ताजा दिखने के लिए लेड और कॉपर सोल्युशन का छिड़काव, सफेदी के लिए फूलगोभी पर सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग किया जा रहा है । चना और अरहर की दाल में खेसारी दाल, बेसन में मक्का का आटा, दाल और चावल पर बनावटी रंगों से पालिश की जा रही है ।

मिठाइयों में ऐसे रंगों का प्रयोग हो रहा है, जिससे कैंसर का खतरा रहता है और डीएनए में विकृति आ सकती है । दवाओं में मिलावट तो मिलावट की सब सीमाओं को पार कर गई है । इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नकली दवाओं की समस्या और औषधि विनियमन पर गठित माशेलकर समिति ने नकली दवाओं का धंधा करने वालों को मृत्युदण्ड देने की सिफारिश की है ।

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प्रश्न उठता है कि आखिर मिलावट के इस महारोग से निबटने के कानूनी रूप से क्या प्रावधान हैं? सच्चाई तो यह है कि समस्या की जड़ में देश में जरूरी मानकों का अभाव है । सुरक्षित भोजन के संबंध में भारत में मुख्य कानून है- 1954 का खाद्य पदार्थ अपमिश्रण निषेध अधिनियम (पीएफए) । इसका नियम 65 खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों या मिलावट का नियमन करता है । लेकिन ये नियम सजा दिलाने में लगभग नाकाम ही साबित हो रहे हैं ।

पिछले दिनों मिलावट के समाचारों की गूंज राज्यसभा में सुनाई दी । एक प्रश्न के उत्तर में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इसके लिए ‘दंतविहीन कानून’ को दोषी ठहराया । उन्होंने घोषणा की कि सरकार शीघ्र ही एक विधेयक लाएगी जिसमें मिलावट करने वालों के लिए मृत्युदण्ड की व्यवस्था होगी । यह मान भी लिया जाए कि सरकार वास्तव में ही ‘शीघ्र’ विधेयक लाएगी और वह कानून का रूप ले लेगा, तब भी सवाल पैदा होता है कि हमारे यहाँ अपराध और उसकी सजा देने की जो व्यवस्था है, उसके चलते क्या प्रस्तावित कानून कारगर हो पाएगा?

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मिलावट की रोकथाम के लिए वैसे तो हर राज्य में सरकारी विभाग हैं लेकिन जिस पैमाने पर मिलावट हो रही है उसमें कर्मचारियों की कमी निश्चित रूप से चिंता का कारण है । इसके अलावा जांच प्रयोगशालाओं में भी पूरी सुविधाएं नहीं है ।

यह निश्चित रूप से राज्य सरकारों की मिलावट रोकने के प्रति उपेक्षा को ही प्रतिबिम्बित करता है । एक बात जो पूरी तरह स्पष्ट है वह यह है कि आज जो सरकारी कार्य-संस्कृति विकसित हो गई है उसको बदले बिना हम मिलावट जैसी गम्भीर समस्या पर रोक नहीं लगा सकते हैं ।

चाहे जितने कठोर कानून बना दिए जाएं लेकिन जब तक कामचोरी या स्पष्ट अक्षमता, जान-बूझकर या गलती से जांच कार्य को कमजोर करना, मुकद्दमों का सही ढंग से नहीं चलना, धनशक्ति और राजनीतिक प्रभावों का इस्तेमाल तथा कछुए की चाल से चलती न्यायिक प्रक्रिया में परिवर्तन नहीं होता है, बात बनने वाली नहीं है । सरकार यदि वास्तव में मिलावट को रोकने के लिए दृढ़ संकल्प हो जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इस पर रोक न लग सके । आवश्यकता बस एक ठोस नीति और उसके उचित क्रियान्वयन की है ।

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