Hindi Essay on a Wolf and a Lion!

भेड़िया और सिंह |

एक बार की बात है कि एक भेड़िया और एक सिंह शिकार की तलाश में साथ-साथ घूम रहे थे । एक प्रकार से भेड़िया शेर का मंत्री था । वह उसकी चापलूसी और जी-हुजूरी में लगा रहता । उसकी यही कोशिश होती कि शेर प्रसन्न रहे और शिकार करने पर उसे मोटा हिस्सा इनाम में दे ।

शेर मूडी था । वह कभी खुश हो जाता, कभी नहीं, मगर एक बात अवश्य थी कि वह भेड़िये की सलाह पर गौर अवश्य करता था । घूमते समय अचानक भेड़िये को भेड़ों के मिमियाने की आवाज सुनाई पड़ी । ”आपने भेड़ों के मिमियाने की आवाज सुनी महाराज?” भेड़िए ने पूछा, फिर बोला:

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”आप यहीं ठहरिए । मैं जाकर देखता हूं और यदि हो सका तो एक मोटी-ताजी भेड़ मारकर आपके भोजन का प्रबंध करता हूं ।” ”ठीक है ।” सिंह बोला: ‘मगर अधिक समय मत लगाना । मैं भूखा हूं ।’ भेड़िया भेड़ की तलाश में निकल पड़ा ।

कुछ सौ गज आगे जाकर वह भेडुबाड़े के पास जा पहुंचा । मगर यह देखकर भेड़िये का मुंह लटक गया कि भेड़बाड़े के सभी दरवाजे मजबूती से बंद थे तथा बड़े-बड़े खूंखार कुत्ते भी भेडूबाड़े की निगरानी कर रहे थे । भेड़िया समझ गया कि वहां उसकी दाल नहीं गलने वाली ।

अब वह क्या करे ? उसने सोचा कि जान जोखिम में डालने से तो बेहतर है कि लौट कर सिंह से कोई बहाना बना दिया जाए । यह सोच भेड़िया लौट आया और सिंह से बोला : ”महाराज ! उन भेड़ों का शिकार करना बेकार है । वे बहुत दुबली-पतली और बीमार सी लगती हैं ।

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उनके शरीर पर जरा भी मांस नहीं है ।  उन्हें तो उनके हाल पर ही छोड़ देना अच्छा है । जब उनके शरीर पर चर्बी चढ़ जाए तभी उन्हें खाना ठीक रहेगा और वैसे भी मोटी-ताजी भेड़ों को खाकर ही हमारी भूख मिट सकती है ।”

निष्कर्ष : डरपोक व्यक्ति खतरे से बचने के लिए कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेता है ।

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