Hindi Story on the Shepherd Boy and the Wolf’s Child!

चरवाहा बालक और भेड़िए का बच्चा |

एक चरवाहा था । एक दिन वह हरे-भरे मैदान में अपनी भेड़ें चरा रहा था । तभी उसकी नजर एक भेड़िए के बच्चे पर पड़ी । उसे उस भेड़िए के बच्चे पर दया आ गई । वह उसे उठा कर अपने घर ले लाया और उसे किसी बच्चे की तरह पालने-पोसने लगा ।

जल्दी ही भेड़िए का बच्चा बड़ा होकर जवान भेड़िया बन गया । अब चरवाहा भेड़िए को अपनी भेड़ों की रक्षा करने के लिए रखवाली पर छोड़ देता और स्वयं जंगल में लकड़ियां बीनने चला जाता । यह सब वह अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए करता ।

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परंतु कुछ दिनों पश्चात उसने देखा कि शाम को जब भेड़ों का झुण्ड घर वापस आता है तो प्रतिदिन उनमें से एक भेड कम हो जाती है । इस तरह भेडों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती चली जा रही थी । चरवाहे को इसका कारण समझ में नहीं आया ।

मगर जब धीरे-धीरे भेड़ों की संख्या घटने लगी तो उसने छुपकर भेड़िए का पीछा करने का निश्चय किया । वह इस रहस्य से परदा उठाने का दृढ़ निश्चय कर चुका था । उसने एक कुल्हाड़ी ली और भेड़िए का दूर से पीछा करने लगा । भेड़ों का झुण्ड चरागाह पहुंच गया ।

चरवाहा वहीं एक पेड़ पर चढ़ कर पत्तों की आड़ में छुप गया । दोपहर के समय भेड़िए ने एक भेड को गरदन से पकड़ा और घसीटता हुआ उसी पेड़ के नीचे लाया, जिस पर चरवाहा छुपा हुआ बैठा था । ‘तो यह है रहस्य!’ चरवाहा धीमे स्वर में बड़बड़ाया ।

जल्दी ही वह पेड़ से नीचे कूद पड़ा और इसके पहले कि भेड़िया भेड़ को मार डाले, चरवाहे ने कुल्हाड़ी से एक ही वार में उसका गला काट दिया । फिर वह क्रोध भरे स्वर में बोला : ”मैंने तुझे भेड़ों की रखवाली के लिए रखा था, उन्हें खाने के लिए नहीं ।”

निष्कर्ष: दुष्ट से भलाई की आशा नहीं करनी चाहिए ।

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