Hindi Story on Our Society!

अपना समाज |

स्व बार एक भूख-प्यास कौआ कहीं से उड़ता हुआ आया और एक घर की मुंडेर पर विश्राम करने के लिए बैठ गया । प्यास होने की वजह से उसे पानी की तलाश थी । पानी की तलाश में वह इधर-उधर देख ही रहा था कि उसकी नजर कबूतरों के दड़बे पर पड़ी, जिसमें बहुत से कबूतर बैठे थे ।

उन कबूतरों का रंग भूरा था । वे देखने में बहुत सुंदर थे और शारीरिक रूप से स्वस्थ भी । ‘मैं काल’ और भद्द हूं और ये कबूतर सुन्दर और आकर्षक हैं । काश मैं भी कबूतर होता !’ ऐसा सोचकर उस कौए ने एक योजना बनाई ।

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वह वहां से उड़ कर किसी दूसरे स्थान पर चला गया । वहां उसने अपने पंख भूरे रंग के रंगे और वापस आकर कबूतरों के साथ रहने लगा । परंतु उसने यह भी निश्चय कर लिया था कि जब तक वह कबूतरों के बीच रहेगा, तब तक वह किसी से कोई बात नहीं करेगा ।

वह अपनी इस योजना में सफल रहा । बहुत दिनों तक उसकी असलियत का किसी को भी पता नहीं चला । परंतु एक दिन-कुछ बाहर के कौए आकर मुंडेर पर बैठे और ‘कांव-कांव’ करने लगे । बेचारा कबूतर बना कौआ भी अपनी पैदाइशी आदत से मजबूर होकर ‘कांव-कांव’ का राग अलापने लगा ।

सभी कबूतर ऐसी कठोर और तेज आवाज सुनकर चौंक गए । वे समझ गए कि कबूतर बना पक्षी कबूतर नहीं कीअ है बस फिर क्य था, उन्होंने उस बहुरूपिए कौए को चोंचें मार-मार कर अपने दड़बे से निकाल दिया ।

अब इस बहुरूपिए कौए के लिए अपने परिजनों के पास जाने के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं था । मगर जब वह अपने पुराने मित्रों के झुंड में पहुंचा तो उसके बदले हुए हुलिए को देखकर उसे वहां से भी खदेड़ दिया गया । अब उस बेचारे क्य यह हाल हो गया कि न ही वह कबूतर बन सका और न ही कौवा बन सका ।

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निष्कर्ष: अपने समाज को तुच्छ और दूसरे को श्रेष्ठ समझने वालों क्य स्व दिन यही हश्र होता है ।

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