Never Do Friendship with Selfish (With Pictures)!

स्वार्थी से मित्रता नहीं |

दो मित्र थे । एक का नाम मोहन और दूसरे का नाम सोहन था । एक दिन वे दोनों किसी कार्य से कहीं जा रहे थे । रास्ते में एक जंगल पड़ा । वे जंगल से गुजर रहे थे । ”बड़ा भयानक जंगल है मित्र ।” मोहन ने कहा- ”इसमें तो बड़े भयंकर जीव रहते होंगे ।”

”और क्या जीवों के मकान होते हैं ।” सोहन हंसा- ”तुम भी मित्र बड़े भोले हो । अरे, सबको ईश्वर ने बनाया है । उसी ने सबके रहने-खाने की व्यवस्था की है ।” ”कहीं कोई जंगली पशु मिल गया तो हमें खा जाएगा ।” ”यदि हमारी मृत्यु आज लिखी है, इसी जंगल में लिखी है, तो हमें कोई नहीं बचा सकता ।

मृत्यु से क्या डरना मित्र । इसे तो एक दिन आना ही है । डरने से मृत्यु नहीं टलती । बहादुर वही होता है जो आगे बढ़कर मृत्यु का स्वागत करता है । सीमा पर तैनात जवान हँसकर मृत्यु का आलिंगन करता है । वह बहादुर होता है । तभी तो उसकी स्मृति में स्मारक बनाए जाते हैं ।

उसे सदैव नमन किया जाता है ।” ”तुम्हें तो संत होना चाहिए था ।” मोहन हंसकर बोला- ”उपदेश देने में तुम्हारा कोई सानी नहीं है ।” ”ठहरो!” सोहन बोला- ”सामने देखो ।” सामने से एक भयंकर रीछ आ रहा था । दोनों उसे देखकर घबरा गए ।

मोहन ने आव देखा न ताव, वह लपककर एक पेड़ पर चढ़ गया । सोहन को अपने मित्र से यह आशा नहीं थी । वह स्वयं इतनी शीघ्रता से पेड़ पर नहीं चढ़ सकता था । उसने एक उपाय सोच लिया । वह मृतक बनकर जमीन पर लेट गया ।

उसने सुन रखा था कि मरे हुए व्यक्ति को रीछ नहीं खाता । वह सांस रोककर लेटा रहा । रीछ उसके पास आ गया । रीछ ने सोहन को सूंघा । रीछ ने उसे मृत समझा और वहां से चला गया । काफी देर बाद मोहन पेड़ से नीचे उतरा । सोहन भी उठकर बैठ गया ।

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”वाह मित्र, मित्रता करना तो कोई तुमसे सीखे ।” मोहन बोला- ”रीछ भी तुम्हारा मित्र बन गया ।” ”बुद्धिमानी से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं ।” सोहन गम्भीरता से बोला । ”अच्छा यह तो बताओ कि रीछ ने तुम्हारे कान में क्या कहा?” ”यह न पूछो, मित्र! रीछ बड़े ही काम की बात कहकर गया है । ऐसी बात जो मैं स्वयं भी नहीं जानता था ।”

”तब तो मुझे भी बताओ ।” ”सुनो! रीछ ने कहा है कि जो विपत्ति में पड़े मित्र का साथ छोड़ देता है, वह मित्र नहीं होता । ऐसे मित्र पर विश्वास नहीं करना चाहिए । सच्चा मित्र वही है, जो विपत्ति में भी मित्र का साथ नहीं छोड़ता ।” सोहन ने कहा । यह सुनकर मोहन बहुत लज्जित हुआ ।

सीख:

बच्चो! मित्र का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए । सच्चा मित्र वही होता है, जो संकट में भी काम आता है । किसी ने कहा है, आपत्ति में ही मित्र की परख होती है ।

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