Wise does not Cheat (With Picture)!

बुद्धिमान धोखा नहीं खाता |

एक जंगल में एक सांड था । वह खूब तगड़ा और मजबूत था । उसके सींग लम्बे और नुकीले थे । वह निर्भय होकर चरता फिरता रहता था । शेर जब भी उस सांड को देखता । उसके मुंह में पानी आ जाता । वह उसे मारकर खा जाना चाहता था, परंतु उसके सींग देखकर उसे डर भी लगता था ।

वह सोचता कि कहीं वह सांड सींगों से उसके ही प्राण न ले ले । सांड भी तो कम शक्तिशाली नहीं था । अंत में उसने एक उपाय सोचा । वह सांड के पास पहुचा । ”कहो मित्र कैसे हो?” शेर ने कहा । ”अच्छा हूं सिंहराज । कहिए, कैसे आना हुआ?” सांड ने कहा ।

”इधर से गुजर रहा था । तुम दिखाई पड़ गए । मैंने आज एक महाभोज का आयोजन किया है । सभी पशुओं को निमंत्रण दे आया हूं । तुम भी पधारना । अति कृपा होगी ।””अवश्य! भोजन में क्या है? मैं शाकाहारी हूं ।””मैंने बड़े अच्छे व्यंजन बनाए हैं ।

इनमें कुछ तो बड़े ही स्वादिष्ट हैं । आप अवश्य पधारिए । दो घंटे बाद, मैं प्रतीक्षा करूंगा ।” शेर चला गया । सांड फिर चरने लगा । दो घंटे बाद वह शेर की गुफा की तरफ चल दिया । कुछ ही देर में वह वहां पहुंच गया ।वहां वह क्या देखता है कि सामने कई थाल रखे थे ।

कुछ में दूब, दाने आदि रखे थे । कुछ खाली थे । ”सिंहराज, यह कैसा महाभोज है! यहां तो कोई तैयारी नहीं है ।” सांड ने शंकित होकर पूछा । ”तैयारी तो अंदर है, यह तो मुख्य द्वार पर स्वागत हेतु हैं । सभी मेहमान आ चुके हैं । अंदर भोजन कर रहे हैं । मैं आपकी प्रतीक्षा में था ।

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आप स्वागत-सामग्री खाइए और अंदर पधारिए । अंदर विभिन्न प्रकार के पदार्थ आपकी प्रतीक्षा में हैं ।”सांड समझ गया कि यह सब षड्‌यंत्र है । वह जैसे ही भोजन के लिए झुकता, शेर उसकी गरदन तोड़ देता । सांड बुद्धिमान था । वह क्यों धोखे में आता । वह उल्टे पांव वहां से वापस चल पड़ा । शेर घबरा गया । उसका शिकार जा रहा था ।

”अरे… रे… रे… यह आप क्या करते हैं । मैंने आपकी खातिर करने के लिए इतनी तैयारी की है । आप हैं कि भाग रहे हैं ।” शेर बोला । ”क्षमा करना वनराज! मैं आपका षड्यंत्र समझ गया हूं । आपने कोई महाभोज नहीं किया । अंदर कुछ भी नहीं है ।

आप मेरा मांस खाने को लालायित हैं । मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं, अभी मेरी बुद्धि इतनी क्षीण नहीं हुई कि मैं छली का छल न ताड़ सकूं, इसलिए मैं चला, राम-राम ।” इतना कहकर सांड चला गया । शेर लज्जित होकर खड़ा रह गया ।

सीख:

बच्चो! इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए । बुद्धिमान कभी धोखा नहीं खाता । छली का छल ताड़ लेना ही बुद्धिमानी है ।


Hindi Story # 2 (Kahaniya)

जो बोया वही काटा |

एक गीदड़ था । उसकी मित्रता एक सारस से थी । गीदड़ बहुत चालाक था, वह बड़ा पेटू भी था । खाने के लिए हर समय ललचाता रहता था । एक दिन उसने अपना जन्मदिन मनाया । उसने जगल के कई पशु-पक्षियों को निमंत्रण दिया । उनमें सारस भी था । सारस बड़ी खुशी से अपने मित्र के घर आया ।

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वह उपहारस्वरूप गीदड़ के लिए कुछ मछलियां भी पकड़कर लाया । गीदड़ बड़ा ही प्रसन्न था । सभी उसके लिए कुछ-न-कुछ लेकर आए थे । गीदड़ ने सब उपहार ले लिए । मोमबत्ती बुझाकर उसने जन्मदिन मनाया । अब खाने की बारी थी ।

”मेरे प्रिय दोस्तो!” गीदड़ ने कहा- ”मैंने आप लोगों के लिए बड़ी स्वादिष्ट खीर बनाई थी, परंतु एक छिपकली उसमें गिर पड़ी । अब वह खीर जहरीली हो गई है । यदि आप कहें तो परोसूं ।” जहरीली खीर कौन खाता? सबने मना कर दिया । उसके बाद एक-एक करके सब मेहमान चले गए ।

अंत में सारस जाने को हुआ । ”तुम रुको मित्र ।” गीदड़ बोला- ”यह सत्य है कि खीर स्वादिष्ट थी, परंतु वह थोड़ी थी । इतने लोगों के लिए पर्याप्त नहीं थी । आओ हम दोनों पेट भरकर खीर खाएं ।” ”क्या कह रहे हो! खीर में तो छिपकली गिर पड़ी थी!” सारस आश्चर्य से बोला ।

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”अरे नहीं! वह तो मैंने झूठ बोला था । उन लोगों को टरकाया था ।” गीदड़ ने हंसते हुए कहा- ”तुम जानते ही हो कि खाने में मैं जरा कच्चा हूं ।” सारस को यह बात बुरी लगी, परंतु उसने कुछ नहीं कहा । गीदड़ तुरंत खीर से भरी थाली ले आया । वह थाली बहुत चौड़ी थी ।

”आओ मित्र, मिलकर खीर खाएं ।” गीदड़ ने कहा । वे दोनों खीर खाने लगे । गीदड़ तो चपर-चपर करके खूब खीर खा रहा था, परंतु चौड़ी थाली के कारण सारस की चोंच में खीर का एकाध दाना ही आ पा रहा था । देखते-देखते गीदड़ सारी खीर खा गया । सारस समझ गया । उसका पेटू मित्र चालाकी से सारी खीर स्वयं खा चुका था । वह टुकुर-टुकुर गीदड़ का मुंह देखता रहा ।

”खीर बड़ी स्वादिष्ट थी ।” गीदड़ जीभ चाटता हुआ बोला- ”इसी कारण तो मैंने अन्य दोस्तों को टरका दिया ।” सारस भूखा-प्यासा घर से आया था । गीदड़ ने भी उसे कुछ नहीं खाने दिया । उसे अपने मित्र से ऐसी आशा नहीं थी, परंतु वह करता क्या । बस, अपने घर चुपचाप लौट आया ।

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कुछ दिन बाद सारस ने अपने घर पर जलसा किया । उसने भी अपने मित्रों को बुलाया । गीदड़ को भी निमंत्रण दिया । गीदड़ खुश हो गया । उसने सोचा कि आज भरपेट सारस के यहां अच्छा-अच्छा भोजन खाऊगा । वह खुशी से झूमता हुआ सारस के घर पहुच गया ।

”आओ मित्र ।” सारस ने उसका स्वागत किया- ”मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था । देखो, कितनी रौनक है यहां ।” ”वह तो ठीक है मित्र, परंतु खाने में क्या-क्या है?” गीदड़ ने पूछा । ”खाने की तो पूछो ही मत! मैंने पके आमों का रस और संतरे का रस इकट्‌ठा किया है ।

इतना खट्ठा-मीठा रस तुमने कभी नहीं पिया होगा ।” ”तो लाओ न मित्र । तुम तो जानते ही हो कि मुझमें धैर्य नहीं है ।” गीदड़ बोला ”अभी तो नाच-गाना होगा, उसके बाद रस पीना ।” गीदड़ मन मारकर रह गया । आम और संतरे का रस उसे विशेष प्रिय था ।

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उसकी लार टपकने लगी, वह प्रतीक्षा करने लगा कि कब वह रस उसके सामने आए । अंत में नाच-गाना शुरू हुआ । कोयल ने गाना गाया । बंदर ने सुंदर नाच दिखाया । सब मस्ती में झूम रहे थे, लेकिन गीदड़ का मन तो रस में ही उलझ चुका था ।

वह नाच-गाने का भी आनन्द नहीं ले सका । नाच-गाना खत्म हुआ । सभी चले गए, केवल गीदड़ और सारस ही वहां रह गए । गीदड़ ने उससे रस लाने को कहा । सारस एक बड़ी सुराही उठा लाया । उसमें से बड़ी अच्छी सुगंध आ रही थी । गीदड़ अपने होंठों पर भी फिरने लगा ।

”इसमें है वो सुगंधित और स्वादिष्ट रस । आओ पिएं ।” सारस ने अपनी लम्बी चोंच सुराही में डाल दी । गीदड़ का चौड़ा मुंह सुराही में कैसे जाता! वह मन मसोसकर रह गया । सारस बड़े चटखारे लेकर रस पी रहा थ । उसकी चोंच से गिरती बूंदें गीदड़ चाटने लगा । रस वास्तव में बड़ा ही स्वादिष्ट था ।

”क्या बात है मित्र! तुम धरती क्यों चाट रहे हो?” सारस उसकी हंसी उड़ाकर बोला- ”सुराही में मुंह डालो और रस पियो । बड़ा ही मीठा और स्वादिष्ट रस है । अहा, बड़ा स्वाद है ।” गीदड़ सारस का व्यंग्य समझ गया । वह लज्जित होकर रह गया । उसके मित्र ने उससे बदला ले लिया था ।

”मानता हूं मित्र कि मैं चालाक नहीं हूं ।” गीदड़ धीरे-से बोला- ”तुम ही चालाक हो । खैर, मैंने जो बोया, वही काटा है । जैसे को तैसा मिलना ही चाहिए । जैसे करनी वैसी भरनी ।” इस तरह गीदड़ को सबक मिल गया ।

सीख:

बच्चो! यह कहानी हमें संदेश देती है । हमें किसी से वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जैसा हम अपने साथ होने की अपेक्षा नहीं रखते हैं । अन्यथा जैसे को तैसा ही मिलता है ।

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