यदि मैं श्रम संगठन का नेता होता (निबन्ध) | Essay on If I Were a Labour Union Leader in Hindi!

आधुनिक युग में श्रमिक वर्ग में व्याप्त असंतोष, हड़ताल, घेराव, हिंसा और आंतरिक लड़ाई-झगड़ों का दोष श्रम संगठनों को दिया जाता है । सर्वप्रथम मार्क्स और एन्गल्स ने श्रम संगठनों के विचार को प्रस्तुत किया था, लेकिन आज उनके कार्यो और उद्देश्यों में पर्याप्त अंतर आ गया है ।

आज श्रम संगठन के नेता का चयन मजदूरों की इच्छा से नहीं होता, नेता बनाने में मिल के मालिक अथवा राजनैतिक शक्तियों का हाथ होता हैं । उन्हें श्रमिकों की समस्याओं की जानकारी नहीं होती और न ही वे इस ओर ध्यान देते हैं । उनका मुख्य उद्देश्य तो स्वार्थ पूर्ति है । वे मिल मालिकों से मिले होते हैं, जहाँ उन्हें अधिक लाभ दिखाई देता प्रतीत होता है, उसी ओर चले जाते है । श्रम संगठन के नेता के आदर्शो से तो उनका दूर का भी वास्ता नहीं होता ।

यदि मैं श्रम संगठन का नेता होता, तो मैं अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के समर्थन अर्थात प्रत्यक्ष मतदान द्वारा अपने पद को संभालता । कर्मचारियों की सदभावनाएँ और शुभकामनाएं ही मेरे लिए पर्याप्त हैं । नेता बन जाने पर मैं मजदूरों की समस्याओं का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करता और उन्हें प्रबंधकों के सामने प्रस्तुत करता । प्रबन्धक समिति से बातचीत करने का मेरा तरीका नम्र किन्तु दृढ़ होता । निजी स्वार्थो के लिए मैं मजदूरों के हितों के साथ खिलवाड़ कदापि नहीं करता ।

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मेरे द्वारा किए गए सभी कार्य मजदूरों द्वारा समर्थित होते । मैं उनको अपने विश्वास में लेता और उनकी दशा को सुधारने के प्रयत्नों में उनकी सलाह भी शामिल करने की कोशिश करता । घेराव या हड़ताल मेरे अन्तिम उपाय होते ।

यदि मुझे लगता कि मजदूरों की मांगे प्रबंधक समिति से बातचीत और दबाव से पूरी हो सकती है, तो मैं एक घंटे के लिए भी कार्य को रोकने की सलाह नहीं देता । क्योंकि इससे राष्ट्रीय उत्पादन और अर्थव्यवस्था का बुरा असर पड़ता है, जिससे क्षति उठानी पड़ती हैं ।

मैं मजदूरों और मालिकों के संबंधों में संतुलन स्थापना का प्रयत्न करता । जिन गरीब मजदूरों ने मुझे अपने प्रतिनिधि के रूप में चुना है, उनकी सेवा में मैं अपना जीवन अर्पित करता । अपने एक लाभ अथवा प्रतिष्ठा के लिए मैं सैकड़ों मजदूरों के हितों की बलि चढ़ने नहीं देता ।

मैं प्रबंधकों से नम्रतापूर्वक बातचीत करने का प्रयत्न करता और सभी बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लेता । मजदूरों का हित ही मेरे जीवन का उद्देश्य होता । मैं अपने पद का लाभ उठाने या निजी स्वार्थ की पूर्ति के बारे में सोचता भी नहीं ।

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मेरे सभी अधीनस्थ मजदूरों को मुझसे किसी भी समय सम्पर्क स्थापित करने की छूट होती । मैं उनकी समस्याओं को आराम से सुनता और उनका उचित समाधान खोजने का प्रयत्न करता । यदि मैं ऐसा कर पाता तो मजदूर नेता के रूप में मेरा जीवन सफल हो जाता ।

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