Here is a compilation of Essays on ‘Republic Day’ for the students of the class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12 as well as for teachers. Find paragraphs, long and short essays on ‘Republic Day’ (National Festival) especially written for Teachers and School Students in Hindi Language.

List of Essays on Republic Day


Essay Contents:

  1. गणतन्त्र दिवस । Essay on Republic Day in Hindi Language (National Festival)
  2. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी) | Paragraph on Republic Day: 26th of January, for School Students in Hindi Language (National Festival)
  3. गणतंत्र दिवस-छब्बीस जनवरी । Essay on Republic Day for Teachers in Hindi Language (National Festival)
  4. गणतंत्र दिवस (छब्बीस जनवरी) । Essay on Republic Day – 26th January, for School Students in Hindi Language (National Festival)
  5. गणतंत्र दिवस | Essay on Republic Day for Teachers in Hindi Language (National Festival)

1. गणतन्त्र दिवस । Essay on Republic Day in Hindi Language (National Festival)

1. प्रस्तावना ।

2. गणतन्त्र दिवस का महत्त्व ।

3. मनाने की रीति ।

4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

हमारे देश में सामाजिक एवं धार्मिक त्योहारों के साथ-साथ कुछ ऐसे त्योहार भी हैं, जो हमारे राष्ट्रीय संघर्ष, राष्ट्रीय चेतना एवं जागरण के प्रतीक हैं । इन त्योहारों को हम राष्ट्रीय त्योहार कहते हैं ।

हमारे देश के दो प्रसिद्ध त्योहार हैं 15 अगस्त और जनवरी  26 जनवरी को हम गणतन्त्र दिवस के नाम से पुकारते हैं । यह पर्व हम अपने देश में अत्यन्त उल्लास, उमंग एवं उत्साह से मनाते हैं । प्रत्येक भारतवासी को इस दिवस पर बेहद गर्व है ।

2. गणतन्त्र दिवस का महत्त्व:

15 अगस्त, 1947 को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ था, किन्तु हमें वास्तविक आजादी मिली थी 26 जनवरी, 1950 को; क्योंकि इस दिन हमारे देश में लागू हुआ था-हमारा अपना कानून और हमारा अपना संविधान । इस संविधान में भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न लोकरान्त्रात्मक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य घोषित किया गया था ।

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26 जनवरी का दिन ही संविधान के लिए क्यों चुना गया ? इस दिन का विशेष महत्त्व है । इसके पीछे स्वतन्त्रता प्राप्ति के दृढ़ संकल्प की एक महान् घटना छिपी हुई है । 26 जनवरी, 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पण्डित नेहरू के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के समक्ष पूर्ण स्वराज्य की मांग रखी गयी थी ।

जब तक पूर्ण स्वराज्य प्राप्त नहीं कर लेंगे, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, ऐसा संकल्प लिया गया था । 26 जनवरी, 1930 को राष्ट्रीय झण्डा फहराकर पूर्ण स्वराज्य प्राप्ति की प्रतिज्ञा के दिन को ही देश का संविधान लागू करने के लिए चुना गया था ।

26 जनवरी, 1930 में रविवार के दिन सारे भारत में राष्ट्रध्वज हाथ में लेकर जुलूस निकाले गये, सभाएं की गयीं और इस बात की प्रतिज्ञा की गयी कि जब तक पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होगी, आन्दोलन चलता

रहेगा । यह 26 जनवरी सभी के लिए प्रेरणा तिथि व राष्ट्रीय संघर्ष की तिथि बन गयी ।

26 जनवरी, 1950 को लागू हुए संविधान के अनुसार-पण्डित नेहरू ने प्रधानमन्त्री का पद संभाला । डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति बने । भारत की संसद ने इसी दिन अपना सही रूप पाया और प्रान्तों में विधानसभाओं का महत्त्व संसदीय प्रणाली में हो गया ।

भारतीय नागरिकों को सर्वप्रमुख मानते हुए लोकतान्त्रिक सरकार, अर्थात् जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की सरकार बनायी गयी तथा संसदीय प्रणाली के तहत न्यायपालिका, व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका की स्थापना की गयी ।

नागरिकों के लिए कुछ मौलिक अधिकारों एवं कर्तव्यों का प्रावधान किया गया । राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के साथ केन्द्र एवं राज्य के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया । भारतीय संघ-व्यवस्था स्थापित की गयी । कठोर एवं लचीली संवैधानिक व्यवस्था ने भारतीय लोकतन्त्र को और अधिक मजबूती प्रदान की ।

इस दिन का महत्त्व हमारे लिए इसलिए भी है; क्योंकि लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी सूझबूझ एवं दूरदर्शिता से लगभग सात सौ रियासतों को भारतीय संघ में विलय करने को तैयार कर लिया । देश का सर्वोच्च शासक एवं तीनों सेनाओं का सेनापति राष्ट्रपति माना जाता है ।

3. मनाने की रीति:

26 जनवरी को हम एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं । राजधानी दिल्ली में यह पर्व विशेष समारोह के साथ मनाया जाता है । पूरे भारत से लाखों की संख्या में लोग इस उत्सव को देखने के लिए एकत्रित होते हैं ।

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कुछ लोग तो इतने उत्साही होते हैं कि 25 जनवरी की रात से राजपथ के दोनों ओर आकर बैठ जाते हैं, ताकि राजपथ से होकर गुजरने वाली परेड को वह प्रारम्भ से देख सकें । विजय चौक से प्रारम्भ होकर लालकिले तक जाने वाली परेड इस समारोह का मुख्य आकर्षण होती है । राष्ट्रपति आठ घोड़ों की बग्घी में बैठकर विजय चौक पधारते हैं । वहां सेना के तीनों अंगों की सलामी स्वीकार करते हैं ।

इसके पश्चात् तीनों सेनाओं द्वारा प्रस्तुत की गयी शोभायात्रा का निरीक्षण करते हैं । सेनाओं की टुकड़ियां मार्च पास्ट करती हुईं राष्ट्रपति का अभिवादन करती हैं । इसी क्रम में युद्ध विषयक विविध सामग्रियों, अस्त्र-शस्त्रों का भव्य प्रदर्शन होता है तथा विभिन्न प्रदेशों द्वारा शानदार झांकियां निकाली जाती हैं ।

इन झांकियों में प्रत्येक प्रदेश अपने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक विकास व प्रगति का आकर्षक प्रदर्शन करते हैं । केन्द्रशासित प्रदेशों द्वारा राष्ट्र के विकास, विज्ञान, कला एवं संस्कृति की विभिन्न उपलब्धियां दिखाई जाती हैं । फिर बच्चों के साथ राज्यों के कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए निकलते हैं ।

सैनिक सलामी का अन्तिम चरण अत्यन्त ही विमोहित कर देने वाला होता है । वायुसेना के 21 विमान आकाश में तिरंगा धुआ फेंकते हुए विभिन्न करतब दिखाते हैं । इस उत्सव का आनन्द उठाने के लिए विदेशी मेहमान भी आते हैं । इस दिन सायंकाल रामलीला मैदान में आतिशबाजी का प्रदर्शन होता है । सायकाल सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है । सभी प्रदेशों के सरकारी कार्यालयों में तिरंगा फहराया जाता है ।

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स्कूलों तथा कॉलेजों में विद्यार्थी देशभक्तिपूर्ण गीत, भाषण, नृत्य आदि का रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं । 26 जनवरी का दिन हमें याद दिलाता है कि उन अमर शहीदों-मंगलपाण्डे, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु बिस्मिल, खुदीराम बोस, चन्द्रशेखर आजाद, वीर सावरकर, सुभाषचन्द्र बोस जैसे अमर सेनानियों की; गांधी, नेहरू, तिलक, पटेल की राष्ट्रीय आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका रही है, जिनके प्रयत्नों से हमें ब्रिटिश उपनिवेशवादी शक्तियों से आजादी मिली ।

हम अनाम शहीदों को भी याद करते हैं । 26 जनवरी का दिन हमें यह प्रेरणा देता है कि राष्ट्र के प्रति हमें अपने हर कर्तव्य को पूरी ईमानदारी के साथ पूर्ण करना चाहिए । आवश्यकता पड़े, तो अपना सर्वस्व बलिदान करने से भी नहीं आना चाहिए । राष्ट्रहित ही सर्वोपरि है । वस्तुत: यह दिन हमारे लिए अत्यन्त पवित्र एवं महान है ।

4. उपसंहार:

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किसी ने ठीक ही कहा है कि आजादी पाने की अपेक्षा उसकी रक्षा करना सबसे कठिन एवं चुनौतीपूर्ण कार्य है । भारतीय गणतन्त्र अपने महान उद्देश्यों एवं संकल्पों के साथ जनता के लिए अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखे हुए है । हमारे गणतन्त्र को खतरा है उन आतंकवादी गतिविधियों से, देशद्रोहियों से, सम्प्रदायवाद से, धार्मिक संकीर्णता से, भष्ट्राचार से ।

हम भारतवासियों का यह कर्तव्य है कि देश की रक्षा एवं अखण्डता के लिए हम अपना सब कुछ बलिदान कर दें । हमें प्रत्येक परिस्थिति में देश की रक्षा करनी ही है । यह सत्य है कि विभिन्नता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है । यही हमारे लोकतन्त्र के चिरस्थायी होने का महत्वपूर्ण आधार भी है ।


2. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी) | Paragraph on Republic Day: 26th of January, for School Students in Hindi Language (National Festival)

हमारे राष्ट्रीय त्योहारों में गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) का स्थान स्वाधीनता दिवस (15 अगस्त) के बाद महत्त्वपूर्ण है । आज ही के दिन हमने अपने राष्ट्र के विकास के एक विशेष संविधान को तैयार करके इसे कार्य-रूप में लागू करने के लिए सब प्रकार की तैयारी और योजना पूरी की थी ।

यह संविधान महामतिमान बाबा डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर की अपार बुद्धि और विवेक के द्वारा तैयार हुआ था । इस संविधान को लागू करके हमने अपने राष्ट्र को पूर्ण स्वायत्त गणतन्त्र का स्थान दिया था । इसलिए 26 जनवरी को ‘गणतंत्र दिवस’ कहा जाता है ।

ADVERTISEMENTS:

26 जनवरी का दिन हमारी स्वाधीनता के लिए एक अत्यन्त महत्त्व एवं हर्ष का दिन है । 26 जनवरी, 1930 को रावी नदी के तट पर नेहरू जी की अध्यक्षता में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रस्ताव काँग्रेस अधिवेशन में पास हुआ । संघर्ष चलता रहा ।

निरीह जनता स्वतंत्रता की बलिवेदी पर चढ़ती रही । अंतत: शहीदों का खून रंग लाया और देश स्वतंत्र हुआ । लौह पुरुष सरदार पटेल की योग्यता और साहस ने भारत की सात सौ रियासतों को मिलाकर तिरंगे झण्डे के नीचे ला दिया ।

26 जनवरी को रावी-तट पर किए गए ऐतिहासिक निर्णय की याद में 26 जनवरी, 1950 को अखण्ड भारत का संविधान लागू कर दिया गया । इस दिन भारत को सर्वोच्च सम्पूर्ण प्रभुता गणराज्य घोषित किया गया । राष्ट्रपति को देश का सर्वोच्च शासक माना गया । तभी से 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में माना जाता है ।

26 जनवरी को हम एक महान राष्ट्रीय पर्व के रूप में मानते हैं । राजधानी दिल्ली में यह पर्व विशेष समारोह के साथ मनाया जाता है । विजय चौक से प्रारम्भ होकर लाल किले तक जाने वाली परेड इस समारोह का मुख्य आकर्षण होती है ।

इस  परेड़ को देखने के लिए लोग बहुत सबेरे से ही इकट्‌ठे हो जाते हैं । लगभग प्रात: आठ बजे राष्ट्रपति की सवारी विजय चौक पर पहुँच जाती है । प्रधानमंत्री उनकी अगवानी करते हैं । इसके बाद तीनों सेनाओं के सैनिक राष्ट्रपति को सलामी देते हैं ।

सैनिकों के बाद स्कूलों के बच्चों की टोलियां आती हैं, जो तरह-तरह के आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं । बच्चों की ये क्रियाएँ दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर देती हैं । इसके बाद विभिन्न प्रदेशों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों की आकर्षक झाँकिया निकलती हैं ।

उनमें राष्ट्र के विकास के प्रमाण चिह्न विज्ञान, कला, संस्कृति की विभिन्न उपलब्धियाँ दिखाई जाती हैं । पंक्ति बद्ध बैठे हुए दर्शक सामने से गुजरती हुई इन झांकियों को देखकर विशेष गर्व का अनुभव करते हैं । 26 जनवरी के दिन विभिन्न स्थलों पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम  अपनाएं और आयोजित किए जाते हैं ।

इस देश के प्राय: सभी नागरिक इस महत्त्वपूर्ण त्योहार का विशेष आनन्द लेने के लिए अनेक प्रकार की कार्यविधियों को स्वतंत्रतापूर्वक अपनाया करते हैं । स्कूलों के बच्चे अपनी रंग-बिरंगी पोशाकों में अपने कौशल दिखाते हुए जलूस में भाग लेते हैं ।

देश की राजधानी दिल्ली में प्रदर्शित झाँकियों में विभिन्न हथियारों, टैंकों तथा प्रक्षेपास्त्रों का प्रदर्शन किया जाता है । राज्यों की प्रगति झाँकियों के रूप में दिखाई जाती है, जिससे भारत की उन्नति तथा समृद्धि का अनुभव होता है । ‘विभिन्नता में एकता छिपी है’ की उक्ति से भारत की एकता का ज्ञान होता है ।

इस दिन प्रत्येक प्रान्त की राजधानी में गणतंत्र दिवस बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता  है । झाँकियों आदि के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं । कवि सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं । देश के सभी सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है ।

जगह-जगह राष्ट्रीय झण्डों को फहराया जाता है । भारतीय गणतंत्र की वर्षगांठ के साथ हमारा कर्त्तव्य है कि हम प्रण करें कि भारत की स्वतंत्रता तथा संविधान की मर्यादा रखने के लिए जीवन बलिदान कर देंगे, परन्तु इस पर आँच नहीं आने देंगे ।

देश की समृद्धि के लिए हम तन, मन और धन से जायेंगे । इस प्रकार से हमें गणतंत्र दिवस के विशेष महत्त्व पर पूरा ध्यान देते हुए इस परम सौभाग्यपूर्ण दिवस को एक संकल्प में लेकर देशोत्थान में लग जाना चाहिए ।


3. गणतंत्र दिवस-छब्बीस जनवरी । Essay on Republic Day for Teachers in Hindi Language (National Festival)

राष्ट्रीय पर्वों में 26 जनवरी का विशेष महत्व है । स्वतंत्रता से पूर्व इस दिन स्वतंत्र होने की प्रतिज्ञा दोहरायी जाती थी । लेकिन अब स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इस दिन हम अपनी प्रगति पर दृष्टि डालते हैं । अखिल भारतीय कांग्रेस के लाहौर में 26 जनवरी, 1929 को हुए अधिवेशन में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया था कि ”पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करना ही हमारा मुख्य ध्येय है ।”

अखिल भारतीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पं॰ जवाहर लाल नेहरू ने रावी नदी के तट पर घोषणा की थी कि यदि ब्रिटिश सरकार औपनिवेशिक स्वराज्य देना चाहे तो इसके लागू होने की घोषणा 31 दिसम्बर, 1929 तक कर दे । अन्यथा 1 जनवरी, 1930 से हमारी मांग पूर्ण स्वाधीनता की होगी । इस घोषणा के बाद कांग्रेस द्वारा तैयार किया गया प्रतिज्ञा पत्र पढ़ा गया ।

पूर्ण स्वतंत्रता के समर्थन में देश भर में 26 जनवरी, 1930 को तिरंगे ध्वज के साथ जुलूस निकाले गये और सभायें की गईं । इनमें प्रस्ताव पास कर प्रतिज्ञा की गयी जब तक हम पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हो जाते हमारा स्वतंत्रता आंदोलन जारी रहेगा । कोई कितनी बड़ी बाधा उत्पन्न क्यों न हो जाये लेकिन हमारा यह आंदोलन अब थमने वाला नहीं ।

इस आंदोलन के तहत स्वतंत्रता की वेदी पर अनेक लालों का रक्त चढ़ा, कइयों ने लाठी व गोली खाई और जेलों में जाना पड़ा । अंतत: पन्द्रह अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हो गया । भारतीयों का स्वतंत्रता का सपना आखिरकार साकार हो गया ।

सन् 1950 में भारतीय संविधान बनकर तैयार हो गया । डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा तैयार भारतीय संविधान को लागू करने की तिथि को लेकर काफी विचार विमर्श किया गया । अंतत: 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू कर दिया गया । इस दिन भारत में प्रजातांत्रिक शासन की घोषणा की गई ।

देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये गये । देश के लिए यह दिन अत्यंत महत्व रखता है । डॉ॰ अम्बेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान में 22 भाग, 7 अनुसूचियाँ तथा 395 अनुच्छे हैं । संविधान में स्पष्ट किया गया है कि भारत समस्त राज्यों का एक संघ होगा ।

जनता में उत्साह और प्रेरणा जागृत करने के उद्‌देश्य से गणतंत्र दिवस के अवसर पर केन्द्र सरकार सहित सभी राज्य सरकारों की ओर से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । देश की राजधानी में यह समारोह विशेष रूप से मनाया जाता है ।

गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले शाम को राष्ट्रपति देश के नाम संदेश देते हैं । गणतंत्र दिवस की सुबह इंडिया गेट स्थित अमर जवान ज्योति का अभिवादन कर इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम की शुरूआत होती है । अमर जवान ज्योति का अभिवादन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है ।

इसके कुछ देर बाद राष्ट्रपति इस अवसर पर सैनिकों द्वारा निकाले जाने वाली  परेड़ की सलामी लेने के लिए इंडिया गेट के पास ही स्थित मंच पर आते हैं । जहां उनका सेना के तीनों अंगों के सेनाध्यक्षों द्वारा स्वागत किया जाता है । इसके बाद वह मंच पर बना आसन ग्रहण करते हैं । इस अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा सैनिकों को उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित भी करते हैं ।

इसके बाद आरम्भ होती है गणतंत्र दिवस की  परेड़ । इसमें सबसे पहले जल, थल और वायु सेना के वे अधिकारी होते हैं, जिन्हें परमवीर चक्र, अशोक चक्र, शौर्य चक्र आदि से सम्मानित किया जाता है । इसके बाद सेना के तीनों अंगों की टुकड़ियां आती हैं ।

सीमा सुरक्षा बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल सहित अन्य अर्द्ध सैनिक बलों की टुकड़ियां भी परेड में शामिल होती हैं ।  परेड़ में सेना व अन्य अर्द्ध सैनिकों के बैंड भी शामिल होते हैं, जो राष्ट्रीय धुन बजाते हैं । इसके बाद सरकारी उपक्रमों सहित राज्यों की संस्कृति व उपलब्धि को दर्शाती झांकियां निकलती हैं । परेड के अंत में स्कूली बच्चे करतब दिखाते हैं ।

राजपथ से शुरू होने वाली यह  परेड़ पहले इंडिया गेट, कनाट प्लेस, मिन्टो रोड होते हुए लालकिले जाती है । लेकिन पिछले एक-दो वर्षों से आतंकवादी गतिविधियों एवं सुरक्षा कारणों से इसका रास्ता बदल दिया गया है । अब यह इंडिया गेट से बहादुरशाह जफर मार्ग होते हुए लाल किले पहुंचती है ।  परेड़ के अंत में वायु सेना के विमान तिरंगी गैस छोड़ते हुए विजय चौक के ऊपर से गुजरते हैं ।

कुछ विमानों द्वारा पुष्प वर्षा भी की जाती है । इस अवसर पर संसद भवन सहित प्रमुख भवनों पर विशेष प्रकाश व्यवस्था की जाती है । उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता है । इस दिन शाम को राष्ट्रपति द्वारा अपने निवास पर सांसदों, राजनीतिज्ञों, राजदूतों तथा अन्य गणमान्य लोगों को भोज दिया जाता है ।


4.  गणतंत्र दिवस (छब्बीस जनवरी) । Essay on Republic Day – 26th of January, for School Students in Hindi Language (National Festival)

देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले शहीदों का खून रंग लाया और भारत 15 अगस्त सन् 1947 के दिन अंग्रेजों की दासता की बेड़ियों से स्वतन्त्र हुआ परतंत्र भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा अपने स्वार्थ साधने के लिए बनाया गया संविधान ही चला करता था ।

उस शोषक संविधान के बल पर ही अँग्रेज यहाँ राजकाज चलाया करते थे । अत: स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्काल बाद इस कटु तथ्य का अनुभव किया गया । साथ ही यह निर्णय भी किया गया कि भारत जैसे सांस्कृतिक दृष्टि से बहुआयामी देश में ऐसा संविधान लागू होना चाहिए कि जो सामूहिक स्तर पर सभी का हित साधन कर सके ।

भारत की सांस्कृतिक गरिमा और अनेकता के साथ-साथ एकता के तत्वों को भी उजागर कर सके । विशेषज्ञों को गठित समिति द्वारा स्वतत्र भारत का नया संविधान तैयार किया गया । वह संविधान ही छब्बीस जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है ।

26 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू किया गया । इसी दिन भारत संपूर्ण प्रभुतासंपन्न गणतंत्र घोषित किया गया । इसके साथ ही देश की सर्वोच्च-सत्ता जिस व्यक्ति के पास रहेगी उसे राष्ट्रपति कहा जाएगा पहला राष्ट्रपति कौन होगा यह घोषणा इसी दिन की गई । इन्ही कारणों से सारा भारत वर्ष छब्बीस जनवरी का दिन गणतन्त्र दिवस के रूप में राष्ट्रीय पर्व मानकर उत्साह और उल्लास से मनाया करता है ।

26 जनवरी को ही भारत के अपने संविधान लागू करने के पीछे ऐतिहासिक कारण है । 26 जनवरी, 1929 ई. को रावी नदी के तट पर कांग्रेस के अखिल भारतीय लाहौर अधिवेशन में पं॰ जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में यह प्रस्ताव पास किया गया था कि भारत का लक्ष्य पूर्ण स्वराज्य है तथा इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी शर्त पर अग्रेजों से समझौता नहीं हो सकता ।

इस प्रस्ताव के अनुरूप प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस मनाया जाने लगा । यही कारण है कि 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ । तब से इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता

है । गणतंत्र-दिवस पूरे भारत में तथा भारत से बाहर जहाँ भारतीय लोग रहते हैं वहां पर यह पर्व मनाया जाता है ।

एक तो दिल्ली भारत की राजधानी होने और राष्ट्रपति का निवास यहीं पर होने के कारण केन्द्रीय स्तर पर यह पर्व दिल्ली में ही मनाया जाता है । इसकी तैयारी महीनों पहले आरम्भ हो जाती है ।  वहाँ प्राय: प्रत्येक प्रांत के लोक सांस्कृतिक दल अपने-अपने प्रात की संपूर्णता प्रकट करने वाली झांकियाँ बनाने में लग जाया करते हैं ।

नृत्य-सगीत आदि लोक-कलाओं के प्रदर्शन की तैयारियों में जुट जाते हैं । समाचार पत्र इस तैयारी का जायजा तो करने ही लगते हैं लेकिन अपनी जानकारियों के आधार पर यह सब बता देते हैं कि इस बार गणतंत्र पर्व के अवसर पर राष्ट्रपति के साथ किस देश का व्यक्ति मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेगा ।

छब्बीस जनवरी की सुबह प्रधानमन्त्री तीनों सेनापतियों के साथ मिलकर पहले इंडिया गेट पर जल रही अमर जवान ज्योति पर पहुँचकर अज्ञात अमर शहीदों को सलामी-श्रद्धांजलि देते हैं, फिर राष्ट्रपति का स्वागत करने के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रपति भवन के सामने स्थित विजय चौक पर आ जाते हैं तब तक अन्य गणमान्य अतिथि दर्शक भी आ जाते हैं ।

इसके बाद विदेशी अतिथि के साथ राष्ट्रपति का आगमन होता है और जनता का अभिवादन करते हुए ध्वाजारोहण और फिर सेना के तीनों अंगों द्वारा इक्कीस तोपों की सलामी दी जाती है । अन्य सैनिक अर्द्धसैनिक बल भी एक-एक करके सलामी देते हुए मंच के सामने से गुजर जाते हैं ।

फिर आधुनिकतम शस्त्रों का प्रदर्शन, तरह-तरह के बैंड, प्रांतों की झांकियाँ और उनके साथ लोक-कलाओं के प्रदर्शन, स्कूलों की छात्र-छात्राओं द्वारा रंग-बिरंगे प्रदर्शन आदि का कार्यक्रम दोपहर तक चलता रहता है । दोपहर बाद परेड-प्रदर्शन करने वाले सभी जन जब मार्च करते लाल किले पर पहुँच जाते हैं । तब दो दिन बाद जब परेड राष्ट्रपति भवन तक पहुँच जाती है तभी गणतंत्र का समापन माना जाता है ।


5. गणतंत्र दिवस | Essay on Republic Day for Teachers in Hindi Language (National Festival)

भूमिका:

हमारे देश के राष्ट्रीय पर्वो में से स्वतंत्रता दिवस व गणतत्र दिवस अति महत्त्वपूर्ण पर्व है । इनमे गणतंत्र दिवस की भी अपनी विशेष गरिमा व महिमा है । इस पर्व में हमारा राष्ट्रीय व संवैधानिक गौरव निहित

है ।

तात्पर्य व स्वरूप:

गणतंत्र को लोकतंत्र, जनतंत्र व प्रजातंत्र भी कहते है जिसका अर्थ है प्रजा का राज्य या प्रजा का शासन । जिस दिन देश का संविधान लागू हुआ उस दिन को गणतंत्र दिवस कहते हैं । हमारे देश में सविधान 26 जनवरी, 1950 ई॰ से लागू हुआ इसलिए इस तिथि को गणतंत्र दिवस कहते हैं । हमारा देश 15 अगस्त, 1947 ई॰ को स्वतंत्र हुआ था, उससे पूर्व हमारे देश में राजाओं, सम्राटों व ब्रिटिश सरकार का शासन था ।

स्वतंत्रता के बाद हमारे देश के विद्वान नेताओं ने देश में प्रजातंत्र शासन पद्धति लागू करने के लिए संविधान बनाया जिसको बनाने में लगभग चार वर्ष लग गए । 1946 ई॰ से संविधान बनाना प्रारम्भ हो गया था और दिसम्बर 1949 ई॰ में बनकर यह तैयार हो गया था । इस संविधान को 26 जनवरी, 1950 ई॰ से लागू किया गया । तब से प्रतिवर्ष 26 जनवरी को हमारे देश मे गणतंत्र दिवस मनाया जाता है ।

ऐतिहासिक महत्त्व:

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हमारे लिए 26 जनवरी का बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व है । सन् 1950 से पूर्व भी इस तिथि को सन् 1930 से प्रतिवर्ष स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाता था । दिसम्बर 1929 ई॰ को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में रावि नदी के किनारे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा की थी, इसलिए हमारे उन नेताओं ने 26 जनवरी 1930 ई॰ को बसन्त पंचमी के पुण्य अवसर पर स्वाधीनता दिवस मनाने का निश्चय किया ।

तब से प्रति वर्ष 26 जनवरी को स्वा धीनता दिवस मनाया जाता रहा । 15 अगस्त, 1947 ई॰ को देश के स्वतंत्र हो जाने के कारण 15 अगस्त को ही स्वाधीनता या स्वतत्रता दिवस मनाया जाने लगा । लेकिन हमारे नेता 26 जनवरी की गरिमा को बनाये रखना चाहते थे इसलिए हमारे नेताओं ने 26 जनवरी की महिमा व गरिमा को बनाये रखने के लिए 26 जनवरी 1950 ई॰ की तिथि को संविधान लागू करने के लिए निश्चित किया । तब से हम 26 जनवरी को प्रतिवर्ष अपने संविधान का जन्म दिन या अपने गणतंत्र की वर्ष-गाँठ मनाते आ रहे हैं ।

मनाने की परम्परा राष्ट्रीय स्तर पर:

गणतंत्र दिवस समारोह प्रति वर्ष 26 जनवरी को भारत सरकार राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाती है । इसकी तैयारी भारत सरकार कई दिन पूर्व से करना आरम्भ कर देती है । गणतंत्र की पूर्व संध्या पर देश का राष्ट्रपति देश के नाम सन्देश देता है, जिसका प्रसारण सचार माध्यमो द्वारा किया जाता है ।

गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम उस दिन प्रात: शहीद ज्योति के अभिवादन से प्रारम्भ होता है, जिसे. देश के प्रधानमंत्री इण्डिया गेट पर प्रज्जलित शहीद ज्योति का अभिनन्दन कर देश के शहीदो को श्रद्धाजलि अर्पित करते हैं ।

तत्पश्चात् विजय चौक पर निर्मित सलामी मच पर राष्ट्रपति की सवारी शाही सम्मान के साथ पहुंचती है । वहाँ पर प्रधानमंत्री आदि गणमान्य जन उनका अभिनन्दन करते हैं । उसके बाद गणतंत्र दिवस की परेड़ का शुभारम्भ होता है जो नितान्त दर्शनीय होता है ।

सेना के तीनो अगो के जवानो की कई विभिन्न टुकड़ियों अपने-अपने बैंड की ध्वनियों के साथ पद सचालन करते हुए तथा राष्ट्रपति को अभिवादन करते हुए परेड़ प्रदर्शित करती हैं ।

इसके बाद युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्वो की ट्रालियों आती हैं जो सेना में प्रयुक्त विविध रक्षा साधनी से सुसज्जित होती हैं । उसके बाद भारत के विभिन्न प्रान्तो की विभिन्न सांस्कृतिक झाँकियाँ प्रस्तुत की जाती हैं जो भारत की भिन्नता में एकता प्रदर्शित करती हैं ।

तत्पश्चात्र देश के छात्र-छात्राओं की टुकडियाँ अपने विविध कौशल दिखाते हुई आगे बढती जाती है । अन्त में वायु सेना के लड़ाकू वायुयान भी अपना अनुपम व विचित्र कौशल दिखाते हुए आकाश मे विलीन हो जाते हैं ।

उक्त सारी सवारियाँ विजय चौक से प्रारम्भ होकर लाल किला पहुँचती हैं । उक्त लम्बे पथ पर अपार जनसमूह उमड़ता है जो देश के विभिन्न भागो से आकर गणतत्र दिवस की परेड देखने के लिए दिल्ली पहुंचते हैं ।

दिल्ली के विद्यालयों में:

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देश की राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी को गणतत्र दिवस राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के कारण, दिल्ली के विद्यालयो में एक दिन पूर्व ही गणतत्र दिवस का समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । उस दिन विद्यालय के प्रधानाचार्य सर्वप्रथम ध्वजारोहण के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हैं ।

तत्पश्चात् विद्यालय के छात्र विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं और विभिन्न प्रकार के खेल-कूदो का आयोजन होता है । अन्त में पुरस्कार वितरण व मिष्ठान वितरण के साथ उत्सव का समापन होता है ।

स्वदेश व विदेश में:

26 जनवरी को प्रतिवर्ष देश की प्रातीय राजधानियों में राज्यपाल व मुख्यमत्री ध्वजारोहण के साथ गणतत्र दिवस समारोह का शुभारम्भ करते हैं, फिर दिन भर विविध कार्यक्रम चलते रहते हैं । विद्यालयों व कालेजों में छात्र बड़े हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को मनाते हैं ।

शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमो  में  नाटक, प्रहसन, कवि सम्मेलन आदि सम्पन्न होते है । विदेशो में भी गणतत्र दिवस बडी धूम-धाम से मनाया जाता है । प्रत्येक देश में विद्यमान भारत के दूतावासो मे यह पर्व प्रवासी भारतीयों द्वारा बड़े उल्लास से मनाया जाता है । सम्बन्धित देशों के शासनाध्यक्ष भारत के राष्ट्रपति एवं प्रधानमत्री को बधाई सदेश भेजते हैं ।

उपसंहार:

प्रत्येक पर्व का जीवन में बहुत बड़ा महत्त्व होता है । गणतंत्र दिवस जो कि हमारे संविधान के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है, हमारे लिए बहुत बड़ा सदेश देता है । इसने देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्रदान किए हैं । देश को धर्म-निरपेक्ष, प्रभुता सम्पन्न राष्ट्र का स्वरूप प्रदान किया है इसलिए हमे इस पर्व की रक्षा के लिए सदैव कटिबद्ध रहना चाहिए जिससे हमारा लोकतंत्र सदैव अमर रहे ।