भारत-बांग्लादेश संबंधों के नए आयाम पर निबंध | Essay on New Relationship Between India and Bangladesh in Hindi!

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 6-7 सितंबर, 2011 की दो दिवसीय पहली बांग्लादेश यात्रा के दौरान हुए ऐतिहासिक करारों को द्विपक्षीय समझौतों का महत्वपूर्ण मोड़ बताते हुए दोनों देशों ने इस बात पर बल दिया कि वे अपनी धरती का उपयोग किसी भी ऐसी गतिविधि के लिए नहीं होने देंगे जो एक-दूसरे के प्रतिकूल हो ।

दोनों देशों ने किसी भी तरह के आतंकवाद के खिलाफ समझौता न करने का भी फैसला किया । मनमोहन सिंह और शेख हसीना ने दोनों देशों के बीच एक प्रत्यर्पण संधि की जरूरत को भी रेखांकित किया । इसके अलावा उन्होंने इस बात पर संतुष्टि जताई कि आपराधिक मामलों पर पारस्परिक कानूनी सहायता समझौता, सजायाफ्ता व्यक्तियों का स्थानांतरण संबंधी समझौता और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, संगठित अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी से लड़ने संबंधी समझौता, जिस पर साल 2010 के जनवरी महीने में हस्ताक्षर किया गया था, अब प्रभाव में है । 

दोनों देशों ने जिस बात पर सबसे ज्यादा संतुष्टि जताई है वह साल 1974 के भूमि सीमा समझौते के प्रोटोकॉल का पूरा होना है । इसके पूरा होने के बाद अब दोनों देशों के बीच गैर सीमांकित क्षेत्र, प्रतिकूल अधिकार वाले क्षेत्रों और इलाकों सहित लंबे समय से लंबित पड़े सीमा मुद्दे के निपटारे का रास्ता साफ हो गया है ।

प्रधानमंत्री के बांग्लादेश दौरे के दौरान नदी जल बंटवारे पर समझौता न हो पाना निराशाजनक रहा । तीस्ता नदी के जल बंटवारे को लेकर पश्चिम बंगाल में मतैक्य नहीं है । एक वर्ग का मानना है कि इससे बांग्लादेश को अधिक जल मिल जाएगा । मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे मुद्दा बना दिया है ।

भारत-बांग्लादेश के बीच नदी जल बंटवारा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि यहां छोटी-बड़ी 54 साझा नदियां हैं । तीस्ता इनमें से विशेष महत्व रखती है । तीस्ता समझौता न होने के कारण बांग्लादेश ने फेनी नदी संबंधी समझौते को भी टाल दिया ।

सीमा समझौता प्रधानमंत्री की यात्रा का कूटनीतिक केन्द्रक माना जा सकता है जिसमें 162 प्रतिकूल इलाकों के हजारों निवासियों को नागरिकता का अधिकार मिला । नागरिकता न मिलने से वे लोग तकनीकी तौर पर राज्यविहीन थे । उन्हें कोई नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं थे । शिक्षा और स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाओं से वंचित तथा हमेशा पुलिस व सुरक्षा बलों की आशंकाओं का शिकार होने वाले इन लोगों के लिए प्रधानमंत्री की यात्रा मुक्ति का आधार कायम करने वाली साबित होगी ।

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ये इलाके भौगोलिक संरचना के कारण एक-दूसरे का भाग होते हुए भी अपने देश से कटे हुए हैं । असम के सांसदों ने कुछ क्षेत्र सौंपने पर आपत्ति उठाई है, इससे लगता है कि सभी निपटारे में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन बांग्लादेश की मुक्ति के बाद पहली बार दोनों देशों की भू-सीमा का स्पष्ट रेखांकन कर दिया गया है ।

समस्यामूलक इलाकों का मामला बहुत हद तक हल हो गया है । बांग्लादेश घुसपैठियों या अप्रवासियों की समस्या भी अत्यंत गंभीर है जिनका संबंध पूर्वोतर राज्यों से ज्यादा है । उम्मीद है भविष्य में इसका भी कोई निदान अवश्य निकलेगा ।

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लेकिन इससे इस यात्रा का महत्व कम नहीं होता । इसका कारण यह है कि यह दक्षिण एशिया में भारत की नई पहल व नई सोच को रेखांकित करती है । जिसके माध्यम से भारत इस क्षेत्र में क्षेत्रीय एकीकरण व पारस्परिक लाभकारी विकास साझेदारी को व्यावहारिक रूप देने का प्रयास कर रहा है । बांग्लादेश के साथ घनिष्ठ साझेदारी का समकालीन विकास उसका एक पड़ाव मात्र है ।

1998 में गुजराल सिद्धान्त के तहत् यह माना गया कि दक्षिण एशिया भारत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अत: दक्षिण एशिया को भारतीय विदेश नीति के संचालन में आन्तरिक व प्रथम वृत्त की संज्ञा दी गई, जबकि अन्य क्षेत्रों को विदेश नीति के संचालन में बाह्य वृत्तों की संज्ञा दी गई । गुजराल सिद्धान्त की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस सिद्धान्त के अन्तर्गत पहली बार भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ सम्बन्ध विकसित करने में पारस्परिकता के सिद्धान्त पर न अड़े रहने की बात स्वीकार की ।

इसका तात्पर्य यह है कि चूँकि दक्षिण एशिया में भारत बड़ा देश है । अत: उसे सदैव इन देशों के साथ सहयोग करने में उनसे सदैव कुछ पाने की अपेक्षा करना उचित नहीं है । भारत के वैध सुरक्षा हितों की रक्षा की दृष्टि से इस सिद्धान्त में चार अन्य तत्वों को भी शामिल किया गया है । आन्तरिक मामलों में अहस्तक्षेप, एक-दूसरे की राजनीतिक अखण्डता व सम्प्रभुता का सम्मान, किसी बाह्य देश द्वारा दूसरे के विरुद्ध अपनी भूमि का प्रयोग न होने देना तथा द्विपक्षीय आधार पर आपसी विवादों का बातचीत द्वारा समाधान ।

इसके बाद वैश्वीकरण के युग में आर्थिक तत्व की विदेश नीति में प्रमुखता को स्वीकार करते हुए 2005 में भारत की नई पड़ोस नीति का घोषणा हुई । इस नई पड़ोस नीति में पड़ोसी देशों के साथ सम्पर्क तथा अन्त-क्रिया बढ़ाने व इन देशों व भारत की जनता के बीच संवाद व सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने पर बल दिया गया ।

इस उद्देश्य के लिए भारत द्वारा अपने सीमावर्ती क्षेत्रों व इन देशों के मध्य संचार व यातायात ढाँचे के विकास पर बल दिया गया । वर्तमान में भारत इसी नीति पर चलकर इस क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है । भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों में उभरती घनिष्ठता को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए ।

भारत की नई पड़ोस नीति तथा बांग्लादेश में अवामी लीग के शासन के चलते वर्तमान में दोनों देशों के सम्बन्धों में अत्यन्त निकटता देखी जा सकती है । जहाँ बांगलादेश भारत की सुरक्षा चिन्ताओं के प्रति संवेदनशील है, वहीं भारत आगे बढ्‌कर बांग्लादेश के व्यापार व आर्थिक विकास में अहम् साझीदार की भूमिका का निर्वाह कर रहा है ।

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ऐसा प्रतीत होता है कि बांग्लादेश भी यथार्थवादी नीति अपनाते हुए भारत की उभरती आर्थिक शक्ति से उत्पन्न अवसरों का लाभ उठाना चाहता है । बांग्लादेश के जनमानस में भारत-विरोधी रुख में कमी आई है । बांग्लादेश ने वहां शरण पाए उल्फा उग्रवादियों को भी भारत को सौंप दिया है । यह दोनों देशों के मध्य तनाव का मुख्य बिन्दु था।

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भारतीय प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा को ऐतिहासिक करार दिया गया । यह 1999 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली बांग्लादेश यात्रा थी । इस यात्रा की सफलता हेतु दोनों देशों ने विभिन्न मुद्दों पर सहमति विकसित करने का प्रयास किया ।

बांग्लादेश ने भी इस दिशा में दो सकारात्मक कदम उठाए । 2011 में ही बांग्लादेश के संविधान में संशोधन कर अल्पसंख्यकों के अधिकारों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया है । यद्यपि बांग्लादेश अब भी एक इस्लामिक राज्य है, लेकिन यह उसके धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को वापस लाने की दिशा में यह ठोस कदम है ।

पुन: बांग्लादेश ने अपने स्वतन्त्रता आन्दोलन में भारत की अहम् भूमिका को रेखांकित करते हुए जुलाई 2011 में ‘बांग्लादेश स्वतन्त्रता अवार्ड’ भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को प्रदान किया । दोनों देशों ने जुलाई में 40 सालों के अन्तराल के बाद मेघालय के तुरा व सीमावर्ती बांग्लादेश के मध्य सीमा-व्यापार को भी शुरू किया ।

इसके साथ ही सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक-दूसरे की सीमा में विपरीत कब्जे में स्थित क्षेत्रों का भी अध्ययन किया । दोनों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार में भी हाल के वर्षों में बढ़ोतरी के प्रयास किए गए हैं । इसके अतिरिक्त भारत ने बांग्लादेश के विकास में भी अपनी साझेदारी बढ़ाई है ।

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