भरत-पाकिस्तान संबंधों की असलियत पर निबन्ध |Essay on Reality of Indo-Pak Relations in Hindi!

राजनीतिक दृष्टि से भारत और पाकिस्तान अलग-अलग राष्ट्र हैं, किंतु भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से दोनों की साझी भू-राजनीतिक पहचान है, जिसको नकारा नहीं जा सकता; किंतु दोनों के पृथक् अस्तित्व के बावजूद भारत और पाकिस्तान न तो सहज मित्र की तरह अब तक रह पाए हैं और न ही एक प्रबल शत्रु की तरह, क्योंकि दोनों की परस्पर प्रतिस्पर्धा और वैमनस्य में समानता से कहीं अधिक असमानता और अस्वाभाविकता नजर आती है ।

भारत और पाकिस्तान का समाज साझी विरासत को धारण करता है । दोनों का एक समान इतिहास है, लेकिन दोनों के बीच परस्पर सहयोग और सद्‌भावना का अभाव है । दोनों देशों के रिश्ते पड़ोसियों की तरह सहज नहीं हैं और कश्मीर समस्या से शुरू होकर एक-के-बाद-एक अनेक मुद्‌दे दोनों देशों के संबंधों को तनावपूर्ण बनाते रहे हैं ।

आज भी पहले से कहीं अधिक कटुता, परस्पर अविश्वास और एक-दूसरे के विरुद्ध घृणा अंतरराष्ट्रीय मैचों पर स्पष्ट देखी जा सकती है । वस्तुत: माइकेल ब्रेकर ने ठीक ही लिखा है कि स्वतंत्र राज्यों के अपने संक्षिप्त इतिहास में तीव्रता की भिन्न-भिन्न मात्राओं में भारत और पाकिस्तान अघोषित युद्ध की स्थिति में रहे हैं ।

यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि दोनों देश तीन युद्धों को झेल चुके हैं, किंतु दोनों का राजनीतिक नेतृत्व इन युद्धों से कोई सबक नहीं सीख सका है । भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद के प्रमुख मुद्‌दों को इस संदर्भ में देखना उपयुक्त होगा ।

विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं, किंतु कश्मीर समस्या अभी भी पारस्परिक संबंधों को प्रभावित कर रही है । शरणार्थियों की समस्या, नदी जल बँटवारे की समस्या, जूनागढ़-हैदराबाद की समस्या आदि सभी कालांतर से इतिहास का अंग बन चुकी हैं, किंतु कश्मीर समस्या पूर्व से कहीं अधिक जटिल बन गई है ।

इसी से जुड़ा हुआ है सीमा-विवाद, जिसके कारण पाकिस्तानी सत्ता भारत से १००० वर्ष तक संघर्ष करने की चेतावनी देती है । उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह की माँग करता है और भारत को सुरक्षा परिषद् में दिए गए अपने आश्वासन की याद दिलाता है, जबकि भारत सन् १९५७ में ही घोषणा कर चुका है कि परिवर्तित स्थितियों में जनमत संग्रह संभव नहीं है और वह दो राष्ट्रों का सिद्धांत अस्वीकार करते हुए कश्मीर को अपना अभिभाज्य अंग मानता है, क्योंकि कश्मीर की संविधान सभा पूर्व में ही भारत के साथ विलय का निर्णय कर चुकी है ।

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वर्तमान स्थिति यह है कि कश्मीर का एक बहुत बड़ा भाग अभी भी पाकिस्तान के कब्जे में है और पाकिस्तान प्रे कश्मीर को स्वतंत्र कराने के लिए सदैव प्रयास करता रहा है । पाकिस्तान कश्मीर मुद्‌दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की बार-बार विफल कोशिश करता रहा है तथा संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत ‘आत्मनिर्णय के सिद्धांत’ की दुहाई देता है, जबकि भारत का मानना है कि मसले को द्विपक्षीय आधार पर शिमला समझौते के तहत सुलझाया जाना चाहिए ।

पाकिस्तान के आचरण से यह स्पष्ट है कि वह शिमला समझौते को या तो प्रासंगिक नहीं मानता या फिर उसमें राजनीतिक सदाशयता का अभाव है, जिसके कारण अभी तक आतंकवादियों को सहायता देना जारी है और अमेरिका के स्वर-में-स्वर मिलाकर कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन की शिकायत करता रहता है ।

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स्वयं पाकिस्तानी शासक ने भी राष्ट्रकुल सम्मेलन में इस मुद्‌दे को बोस्निया और सोमालिया के समान बताते हुए और जोर-शोर से उठाया था । पाकिस्तान द्वारा कश्मीर और पंजाब में आतंकवादी और उग्रवादी तत्त्वों को दिया जानेवाला समर्थन और सैन्य सहायता अब सुस्थापित तथ्य बन चुका है, बल्कि मुंबई-विस्फोटों से लेकर अनेक कट्‌टरपंथी तत्त्वों को प्रश्रय और प्रोत्साहन देने में पाकिस्तान की भूमिका विश्वविदित है ।

यही नहीं, पाकिस्तान नेतृत्व समय-समय पर उत्तेजक और भड़काऊ टिप्पणियाँ करने से भी नहीं चूकता है, विशेषकर अयोध्या विवाद और हजरत बल संकट के समय पाकिस्तानी नेतृत्व ने अवांछित और भड़कानेवाली टिप्पणियाँ की थीं, जिसे भारत अपने घरेलू मामले में दखलंदाजी मानता है ।

विवाद का एक दूसरा मुद्‌दा है-पाकिस्तान की सामरिक गतिविधियाँ और परमाणु बम । बहुत पहले पाकिस्तानी बम के बारे में अटकलें लगाई जाती थीं, किंतु अब कोई संदेह नहीं रहा कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम मौजूद हैं और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा पाक-अधिकृत कश्मीर की एक जनसभा में यह तथ्य खुलेआम स्वीकार किया गया था ।

इसी आधार पर अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी जानेवाली आर्थिक और सैन्य सहायता सन १९९० से बंद कर दी गई थी । पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम और कश्मीर केंद्रित भारत-विरोधी विदेश नीति दक्षिण एशिया में तनाव का मुख्य कारण है ।

इसके अतिरिक्त, कुछ वर्षों पहले पाकिस्तान ने एम- ११ प्रक्षेपास्त्र चीन से प्राप्त किए थे । दोनों देश प्रक्षेपास्त्र विकास में भी सहयोग कर रहे हैं । पाकिस्तान प्रारंभ से ही अपनी सेना को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की मदद से अधिकाधिक आधुनिक सैन्य-सामग्री से सज्जित करने का प्रयास करता रहा है ।

हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने पुन: पाकिस्तान को ३८ एफ- १६ विमानों की आपूर्ति को हरी झंडी दिखा दी है, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ना निश्चित है । सियाचिन ग्लेशियर विवाद का एक और बिंदु है । यह हिमालय के लद्‌दाख क्षेत्र में ८,००० किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित ७६ किलोमीटर लंबा और २ से ८ किलोमीटर चौड़ा लगभग ४,००० वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है ।

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सन् १९८४ में पाकिस्तानी सेनाओं ने इसपर अधिकार करने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय सेना ने विफल कर दिया, इसके बाद भी पाकिस्तान इस क्षेत्र पर गिद्ध-दृष्टि लगाए बैठा है और येन-केन-प्रकारेण इस क्षेत्र को हथियाने के सपने देख रहा है ।

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वस्तुत: पाकिस्तान जब तक द्विपक्षीय आधार पर कश्मीर समस्या पर विचार करने के लिए तत्पर नहीं होता तब तक संबंधों में कोई सुधार हो पाना संभव नहीं है । इसके अतिरिक्त पाकिस्तान को आतंकवादी और उग्रवादियों के समर्थन से भी अपना हाथ खींचना होगा ।

यद्यपि सार्क जैसे क्षेत्रीय सहयोग संगठन के रहते आर्थिक, सांस्कृतिक व शैक्षणिक क्षेत्रों में दोनों राष्ट्रों के बीच सहयोग की व्यापक संभावनाएँ विद्यमान हैं, किंतु कश्मीर विवाद को एक तरफ रखकर ही अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए ।

भारत-पाक विवाद में अमेरिका की ऐतिहासिक नकारात्मक भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और दोनों देशों को सामंजस्य एवं सद्‌भाव की भावना से परस्पर विचार-विमर्श कर अपने विवादों को सुलझाना चाहिए क्योंकि अमेरिका या संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता से इस क्षेत्र में तनाव और अविश्वास बढ़ेगा ।

आवश्यकता इस बात की है कि दोनों देश पड़ोसियों की तरह जीना सीखें, न कि आपस में विवादों को प्रचारित कर बाहरी शक्तियों को अपने यहाँ हस्तक्षेप के अवसर प्रदान करें । बाहरी ताकतों को किसी बहाने आमंत्रित करना न तो दोनों पड़ोसी राष्ट्रों के हित में है और न ही इसे क्षेत्रीय हित में उचित माना जा सकता है ।

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