राजधानी दिल्ली पर निबन्ध | Essay on Delhi : The Capital of India in Hindi!

1. भूमिका:

आज की दिल्ली कभी देहली कही जाती थी जिसका अर्थ है घर की चौखट । अर्थात् दिल्ली हिन्दुस्तान रूपी किले की चौखट मानी जाती थी । आज यह भारत की राजधानी और एक विशाल महानगर के रूप में पूरे विश्व में विख्यात है । आज दिल्ली भारत का पर्यायवाची (Synonym) बन गई है ।

2. इतिहास:

सबसे पहले 11 वीं शताब्दी में तोमरवंशी राजाओं ने दिल्ली को नगर का रूप दिया और वहाँ अपनी राजधानी बनायी । इससे पहले दिल्ली और उसके आसपास के इलाके हस्तिनापुर तथा इन्द्रप्रस्थ के नाम से जाने जाते थे ।

तोमरवंशी राजपूत राजाओं के हाथों से यह नगर चौहानवंश के राजपूत राजाओं के शासन में आ गया । पृथ्वीराज चौहान के समय से दिल्ली इतिहास के पन्नों पर एक महत्त्वपूर्ण नगर के रूप में छा गया । सन् 1192 ई. के तराइन युद्ध के बाद इस पर मुहम्मद गोरी का शासन हुआ ।

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फिर गुलामवंश के शासकों ने और बाद में मुगल शासकों ने इसे अपनी राजधानी बनायी । कुतुबुद्‌दीन ऐबक ने यहाँ कुतुब मीनार बनवाया तथा शाहजहाँ ने लाल किले और जामा मस्जिद का निर्माण कराया । सन् 1857 ई. तक यहाँ मुगल शासक बहादुर शाह जाफर (द्वितीय) का शासन रहा ।

सन् 1911 में ब्रिटिश शासकों की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली आ गई । अंग्रेज सरकार ने पहले वाली दिल्ली को छोड्‌कर पास ही नई दिल्ली में अपनी राजधानी बनाई । उन्होंने केंद्रीय सभा का निर्माण कराया जो आज का पार्लियामेंट या संसद भवन है ।

3. विकास:

प्राचीन काल से लेकर आज तक दिल्ली केस्वरूप में निरंतर परिवर्तन होता रहा है । दिल्ली का एक प्रमुख स्थल है- चांदनी चौक का बाजार । यहाँ की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ एक ही स्थान पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और जैनमंदिर स्थित हैं जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है ।

इसके अलावा निजामुद्‌दीन औलिया की मजार, हुमायूँ और रहीम का मकबरा, पाण्डवों का किला, लाल किला, मिर्जा गालिब का घर, चिड़ियाघर, फिरोजशाह कोटला, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, इण्डिया गेट, म्यूजियम, जन्तर-मंतर, कनाट प्लेस, कुतुबमीनार, लोदी गार्डन, बुद्ध जयंती पार्क, नेहरूबाल संग्रहालय, लोटस टेम्पल, जैन शांति पार्क, राजघाट, शक्तिस्थल, विजयघाट, बिड़ला मंदिर आदि अनेक दर्शनीय स्थल हैं ।

4. उपसंहार:

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यमुना नदी के तट पर बसे 1,483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल (Area) तथा करीब 1 करोड़ से अधिक की आबादी (Population) वाले इस महानगर में चाहे गुरुपर्व हो या निजामुद्‌दीन औलिया का उर्स, फूलवालों की सैर हो या जन्माष्टमी और रक्षाबन्धन का पर्व, दशहरा हो या दीपावली, स्वाधीनता दिवस हो अथवा गणतंत्र दिवस की परेड, हर अवसर पर सभी धर्मों और जातियों के लोग साथ मिलकर अपने दुख और खुशी बाँटते हैं । दिल्ली केवल महानगर ही नहीं, यह हमारे देश का दिल भी है ।

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