नागरिकता पर निबन्ध | Essay on Citizenship in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

मनुष्य अकेला नहीं रह सकता । वह एक सामाजिक प्राणी है और दूसरे मनुष्यों के साथ मिलकर रहता है । इस प्रकार नगरीय जीवन एक सहकारी उद्यम जैसा है जो पारस्परिक सहयोग पर निर्भर करता है ।

विभिन्न संबंधों के आपस में जुड़े होने की प्रक्रिया तथा एक दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्था से संबंध होना ही नागरिक जीवन की आधारशिलाएं है । आज विश्व का प्रत्येक प्राणी किसी न किसी पर आश्रित है । शिक्षा, स्वास्थ्य आदि कार्यों को सामाजिक स्तर पर नियोजित किया जाता है ।

पूरा समुदाय इस बात के लिए प्रयत्नशील होता है कि सबके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले । किसी स्थान कुए स्वास्थ्य और सफाई संबंधी कार्यों का प्रबन्ध भी सहकारी स्तर पर होता है । इस प्रकार प्रत्येक नागरिक के लिए यह अनिवार्य सा हो जाता है कि वह अपने स्थान के आस-पास के वातावरण को साफ सुथरा रखे ताकि गंदगी दूसरों के लिए नुकसानदेह साबित न हो ।

यहां तक कि आर्थि, सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमों में भी हमें नागरिकों को सहयोग देना चाहिए, जिनके मध्य हम अपना जीवन-यापन करते हैं । कोई भी अपनी जरूरत की चीजों को अकेला पैदा नही कर सकता । उसे वस्तुओं के लिए समाज पर निर्भर रहना होता है । समाज में रह वह जरूरी वस्तुओं का आदान-प्रदान करता है ।

शहरी जीवन खुद सामान्य कल्याण के सिद्धांत पर टिका हुआ है । किसी वर्ग विशेष के कल्याण की भावना से भिन्न सार्वजनिक कल्याण का उद्देश्य इसमें निहित है । नगरीय जीवन सिर्फ प्रबोधन पर निर्भर नही रहता । चरित्र को सामाजिक परिवेश के अनुरूप होने के साथ-साथ इसकी मर्यादा बनाए रखने में भी सफल होना चाहिए ।

दूसरों की खुशी व कल्याण के लिए स्वैच्छिक सम्मान की भावना इसके लिए आवश्यक है । शहरी जीवन पारस्परिक सौहार्दपूर्ण संबंधों को दर्शाता है, जिसमें व्यक्तिगत का प्रदर्शन व उसका विकास तथा सामाजिक जीवन साथ-साथ जुडे हुए है । नागरिक को अपक्षपाती, स्वतंत्र विचारों वाला तथा उसमें सार्वजनिक कल्याण के लिए बलिदान करने की भावना होनी चाहिए ।

संक्षेप में उसे सामाजिक होना चाहिए । लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण मानव शांति और समृद्धि के इस युग में अभी भी उन तरीकों से अपने को अनभिज्ञ-सा बनाए हुए हैं । प्रथम विश्व युद्ध में मानव सभ्यता का संहार हुआ । इस प्रकार विज्ञान ने हमें अपनी दोहरी भूमिका से अवगत कराया । पहली, युद्ध में संहार व दूसरी विकास में कला की उन्नति में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

इस प्रकार इस विचार पर ध्यान देना होगा कि क्या इस विश्व में मानव दृष्टिकोण में सुधार नहीं लाया जा सकता, इसका उपचार तभी संभव है यदि परिवर्तनवादी दृष्टिकोण के अन्तर्गत मानव संबंध के विचार को नागरीय कर्तव्य के रूप में समझा जाए । मानव की मौजूदा विप्लव लालसा, कष्टों व अभिलाषाओं से ही पनपी है ।

ADVERTISEMENTS:

ADVERTISEMENTS:

ये रोग पूर्ण रूप से न सिर्फ आर्थिक कारणों से नही है । मुख्यत: नैतिक व राजनीतिक कारण इसकी पृष्ठभूमि में निहित है । संबंधों की रेखा का निर्धारण करते समय एक सूक्ष्म दृष्टिकोण को ध्यान में रखना अति आवश्यक सा हो गया है । एक रास्ता शांति और सुरक्षा का तथा दूसरा युद्ध और विनाश की ओर ले जाने वाला है ।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह सिर्फ समाज के दायरे में रहकर इस उपहार को लाभदायक तरीकों से सफलता की चरम सीमा तक विकसित कर सकता है । नैतिकता की भावना के अन्तर्गत निजी कर्तव्यों का स्वार्थ रहित ढंग से संपादन ही नैतिकता की निश्चित धूरी हैं । ऐसी नैतिकता नगरीय जीवन के आधार का निर्माण करती है ।

नागरिक को इस बात की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए कि स्वतंत्रता सिर्फ व्यक्तिगत मामला न होकर एक सामाजिक संविदा है । नागरिक को दूसरे की स्वतंत्रता का हनन न करते हुए इस महान स्वाधीनता का सही अर्थो में उपभोग करना चाहिए ।

जहां तक व्यक्तिगत और निजी जीवन का प्रश्न है वह एक सीमा तक उसमें स्वतंत्र है लेकिन उन विषयों में, जहां पर सार्वजनिक हित-निहित है, उसे दूसरे की भावनाओं और सुख सुविधा का ध्यान रखना चाहिए ।  सार रूप में नगरीय जीवन लेन-देन पर टिका हुआ है ।

यह एक सामाजिक चेतना है जो सामाजिक प्रबुद्धता पर टिकी है । ”दूसरों के लिए जिओ” यह तभी संभव है जब एक दूसरे के लिए जिया जाए । यदि नागरिक अपनी सामर्थ्य के अनुरूप वह सब कुछ समाज को देता है जो उसमे अपेक्षित है, तब क्या समाज उसे और कुछ देने को कह सकता है ?

Home››India››Citizens››