होस्टल का जीवन पर निबन्ध | Essay on Hostel Life in Hindi!

ADVERTISEMENTS:

हौस्टल का जीवन बहुत ही अलग किस्म का होता है घरवालों से दूर रहना पड़ता है । घरवालों का कोई नियंत्रण नहीं रेहता । उनकी ओर से पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है । बचपन के दिये हुए संस्कार बहुत ही प्रबल होते हैं ।

घरवालों से दूर रहकर घरवालों के अनुदेशों का पूर्ण रूप से पालन करते हैं । अपने पर अनुशासन स्वयं ही लागू करते हैं । ऐसा करके उनसे दूर रहते हुए भी हम उनसे जुड़े रहना चाहते हैं । उनका सान्निध्य प्राप्त करते हैं ।

शिक्षा सत्र के बीच में ही मेरे पिताजी का स्थानान्तरण हो गया था । मेरे स्कूल से स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र लेना सम्भव न था । अत: यह निर्णय किया गया कि मुझे होस्टल में प्रवेश करवा दिया जाए । प्रिंसिपल मे बात की गई । मुझे होस्टल में कमरा मिल गया । मैं अपनी पुस्तकें, बिस्तर, वर्तन और आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ लेकर होस्टल पहुँच गया ।

मुझे लगा कि मैं अल्प आयु में ही घरवालों से स्वतंत्र तथा आत्मनिर्भर हो गया हूँ । मुझे बहुत अजीब लगा । जब मेरे मम्मी-पापा मुझे होस्टल में छोड़ने आए तो होस्टल के आस-पड़ोस के लड़के उनसे मिले । मेरे मम्मी-पापा उदास हो रहे थे ।

उन्होंने मेरे मम्मी-पापा को विश्वास दिलाया कि अब वे मेरी चिन्ता न करें । मेरा वे पूर्ण ध्यान रखेंगे । मम्मी-पापा के चले जाने के बाद मैं उदास हो गया । मेरी आँखों में आँसू भी आ गए । उन्होंने मुझे सांत्वना दी और काफी देर तक मेरे पास बैठे रहे ।

अगले दिन जब मैं सोकर उठा तो यह पहला अवसर था, जब कोई भी घरवाला मेरे पास नहीं था । वहाँ क्या, वे तो शहर में ही नहीं थे । वे रात की गाड़ी से जा चुके थे । पिताजी को नये शहर के कार्यालय में ड्‌यूटी ग्रहण करनी थी । मुझे मम्मी बहुत याद आई । माताजी मुझे छ: बजे जगा दिया करती थी । घड़ी देखी ।

छ: बजने में दस मिनट थे । मैं उठ खड़ा हुआ । मैं मम्मी से बहुत प्यार करता था । मुझे लगा कि उनकी अनुपस्थिति में उठकर मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया है । तभी होस्टल के दो तीन लड़के आ गए । उनके हाथों में ब्रश, साबुन तथा वस्त्र थे ।

वे नहाने जा रहे थे और मुझे बुलाने आए थे । वे सामूहिक स्नानघर जा रहे थे और उनका कहना था सुबह-सुबह नहा लिया जाए । देर होने पर वहाँ भीड़ हो जाएगी । मैं उनके साथ चल दिया । वहाँ बिकुल भी भीड़ नहीं थी और हम शीघ्र ही नहा धोकर अपने कमरों में लौट आए ।

ADVERTISEMENTS:

ADVERTISEMENTS:

होस्टल की सुबह बहुत सुहावनी लग रही थी । कुछ लड़के अभी उठे नहीं थे । एक दो कमरों में हल्के-हल्के टेप रिकार्डर बजने की आवाज आ रही थी । बाहर पार्क में एक-दो लड़के व्यायाम कर रहे थे । एक-दो लड़के हमें सुबह के सुहावने मौसम में पढ़ते नजर आ रहे थे ।

कमरे में पहुंचकर तनिक उपासना की । अभी मैंने वस्त्र पहने ही थे कि वे लड़के पुन: आ गए । नाश्ते का समय हो गया था । हम विद्यालय के भोजनालय पहुँच गए । बड़ा हॉल कमरा था । कुर्सियां मेज लगे थे । हमें मक्खन के साथ आलू के पराठे परौसे गये । मुझे घर में आलू के पराठे अच्छे नही लगते थे किन्तु विद्यालय के होस्टल में नए मित्रों के संग वही पराठे स्वादिष्ट लगे । नाश्ता करके हम अपने- अपने कमरों में आ गए । स्कूल का समय नहीं हुआ था । मैं पढ़ने बैठ गया । एक डेढ़ घंटा पढ़ा होगा । फिर लड़के बुलाने आ गए । स्कूल का समय हो गया था ।

मुझे घरवालों का अभाव जरूर हो रहा था किन्तु होस्टल में सब कुछ रोचक था । दोपहर का भोजन हम जल्दी – जल्दी करते क्योंकि भोजन के समय के बाद भी कक्षाएँ लगतीं । स्कूल से वापस कमरे में आकर हम तनिक विश्राम करते । तदुपरांत उठने पर हम होस्टल के मनोरंजन कक्ष में चले जाते । वहाँ टी.वी. देखते । इस बीच रात के भोजन का समय हो जाता ।

हम हँसी खुशी फिर भोजन करते । रविवार अथवा छुट्टी वाले दिन खूब खेलते अथवा घूमने निकल आते । तीज-त्योहार हम मिलकर मनाते । यदि किसी के घर से कोई खाने वाली वस्तु आती तो हम मिलकर खाते । कभी-कभार होस्टल में झगड़ा भी हो जाता । दूसरे लड़के मेल-मिलाप करा देते । यदि कोई बीमार पड़ता सभी उसकी देखभाल करते । अधिकतर लडुकों में स्नेह और सहयोग की भावना थी । यदि रात को बात करने बैठते तो सारी रात बातों में ही गुजर जाती ।

होस्टल में खूब दिल लगा । एक दो बार मैं बीच में घर भी गया । घर पहुँचकर मेरा मन जल्दी होस्टल पहुँचने के लिए करता । होस्टल के दिन आज भी बहुत याद आते हैं ।

Home››Life››