मेरे शहर की मण्डी का एक दृश्य पर अनुच्छेद | Paragraph on Market of My City in Hindi

प्रस्तावना:

मेरे शहर के आसपास चारों ओर अनेक गाँव हैं । गाँव के लोगो को अपनी आवश्यकता की सभी वस्तुये यहाँ मिल जाती हैं । यह शहर बहुत-से गांवो के सबसे नजदीक है ।

इसलिए इस शहर में बहुत बिक्री होती है । यही के बाजारों में शहर के ग्राहक तो कम दीखते हैं, अधिकतर ग्राहक आस-पास के से आते हैं । इस दृष्टि से हमारा शहर विशेष महत्वपूर्ण है । यह अनाज की भी बड़ी मण्डी है । इसलिए आसपास के अधिकांश किसान अपनी उपज बेचने के लिए भी हमारे शहर में आते हैं ।

मण्डी की स्थिति:

मुख्य मण्डी हमारे शहर के लगभग बीच में स्थित है । यह चारों ओर से सीधी सड़कों से जुड़ी हुई है । शहर के सभी महत्त्वपूर्ण बाजारों से गुजर कर मण्डी की ओर सडकें आती हैं । मण्डी एक बड़े मैदान में बनी हुई है । एक वर्गाकार बहुत बड़ा चबूतरा है । इसके चारों ओर अनाज की बड़ी-बड़ी दुकानें और गोदाम है । बीच मे खुला स्थान है, जिसमे मण्डी लगती है । अधिकांश दुकानदार आढ़तियें है ।

वे अन्य स्थानों के व्यापारियों के लिए अनाज खरीदते या बेचते हैं और बीच में अपनी दलाली लेते हैं । बीच-बीच में कुछ दुकानें खाने-पीने की वस्तुमें और चाय-पान या सिगरेट-बीड़ी की भी हैं, जो मण्डी में आने वाले लोगों की तात्कालिक जरूरतें पूरी करती हैं ।

मण्डी में भीड़ का दृश्य:

मण्डी में बड़े सवेरे से ही चहल-पहल शुरू हो जाती है । गाँव के किसान अपनी-अपनी बैलगाडियों, घोड़ागाडियों और ट्रेक्टरों आदि पर समान लाते हैं । किसान सुबह-सुबह ही मण्डी की ओर जाते दिखाई पड़ते हैं । कुछ ऊट, गधे, घोड़े या खच्चरों पर ही अपना सामान लाद लाते हैं ।

इनमें किसानों की विभिन्न उपज होती है, जैसे गेहूँ दाल अन्य अनाज, कपास, गुड़, तिलहन, आलू प्याज और सब्जिया आदि । आमतौर से मण्डी में आकर वे अपने पशुओ को गाडियों से खोलकर दृरु बाध देते हैं और गाडियाँ टेढी करके अपने लाये हुए माल का ढेर लगा देते हैं । आमतौर से सभी किसान किसी-न-किसी आढ़तिये से सम्बन्धित होते हैं, जो उनके माल की बिक्री में मदद करती है ।

मण्डी में वस्तुओं की बिक्री का दृश्य:

दिन निकलते ही मण्डी में खरीददार आने लगते हैं । दो-तीन की टोलियों में खरीददार इन विक्रेताओं के माल की परख करते हैं और भाव मालूम करते हैं । यहां बिक्री का ढंग कुछ अजीब-सा होता है । ग्राहक, दुकानदार या उसके आढ़तिये से मोल-भाव करता है, जो आमतौर पर इशारों में होता है । भाव तय हो जाने के बाद उसे माल बेच दिया जाता है ।

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अक्सर पूरी गाड़ी के माल का सौदा होता है । माल को तौल कर बोरों में भर दिया जाता है और ग्राहक उस माल को ठेलों पर लाद कर ले जाता है । कभी-कभी वह माल खरीदकर आढ़तिये के पास ही छोड़ देता है और बाद में उठाता है । कहीं-कहीं अनाज के एक ढेर को या सब्जियों के ढेर को नीलामी करके भी बेचा जाता है ।

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जो ग्राहक सबसे ऊंची बोली लगाता है, उसे माल बेच दिया जाता है । बहुत-सा व्यापार टेलीफोन या तार के जरिये भी होता है । कुछ बाहर के व्यापारी आढतियों को टेलीफोन द्वारा अनाज खरीदने का आदेश दे देते हैं, जो उनकी तरफ से माल खरीदकर सूवना भेज देता है । मण्डी में फुटकर सामान नहीं बिकता ।

मण्डी में बड़ी भीड़-भाड़ होती है तथा शोर बहुत मचता है । बीच-बीच में कई खोमचे वाले भीड़ और भी बढ़ा देते हैं । वे चिल्ला-चिल्ला कर अपनी वस्तुओं की ओर ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करते हैं । दोपहर तक मण्डी की चहल-पहल कम होने लगती है ।

किसान अपना-अपना माल बेचकर बाजार से अपनी जरूरत की वरतुयें खरीदकर तीसरे पहर तक लौट आते है और गाडियो में बैल या घोड़े जोतकर वापसी यात्रा प्रारम्भ कर देते हैं । वे रात होने से पहले ही घरों को पहुंच जाना चाहते हैं, क्योंकि उनके पास रकम होती है । लौटते समय अधिकांश किसान बड़े प्रसन्न दिखाई देते हैं ।

उपसंहार मेरे शहर की मण्डी पुराने समय की मण्डी से भिन्न है । यहाँ गन्दगी बिल्कुल नहीं है । इसकी प्रतिदिन सफाई की जाती है । न तो यहा कीचड़ होती है और न किसी प्रकार की बदबू ही । मण्डी के बीच एक कुंआ है । इसमें एक चरही है, जहा पशु पानी पीते हैं । हमारे शहर की मण्डी दूर-दूर तक विख्यात है ।

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