प्रस्तावना:

गर्मियों की छुट्टियों चल रही थीं । जून रहे एक रविवार का प्रात: काल था । उस दिन सुबह से ही बड़ी गर्मी थी । मैने सोचा कि क्यो न नदी की सैर की जाये । हमारे शहर से नदी चार किलोमीटर दृर है । मेंने अपनी साइकिल निकाली और नदी की ओर चल पड़ा ।

नदी के रास्ते में:

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अभी में कुछ ही दूर गया था कि मुझे अपना मित्र आलोक दिखाई पड़ा । मैं साइकिल से उत्तर रहर उससे बातें करने लगा । मैंने उससे नदी की सैर का प्रस्ताव किया । वह फौरन तैयार हो गया । उसका घर पास में ही था ।

वह अपने घर पर बताकर अपनी साइकिल लेकर फौरन आ गया और हम दोनों अपनी-अपनी साइकिलों पर हंसते-गाते नदी की ओर चल पड़े । पंद्रह-बीस मिनट में हम नदी के किनारे पहुंच गए ।

नदी के किनारे:

नदी के किनारे पहुँचकर हमने दोनों साइकिलें एक जंजीर में बाधकर ताला लगा दिया और एक पड़े को बताकर हम घाट पर आ गए । नदी का दृश्य बड़ा सुहावना लग रहा था । रविवार का दिन था, इसलिए घाट पर अनेक पुरुष, रत्री और बच्चे थे ।

वे नदी में किल्लोल कर रहे थे । कुछ लोग गहरे में तैर रहे थे और जो लोग तैरना नहीं जानते थे, वे किनारे ही पानी में डुबकियाँ लगा रहे थे और एक-दूसरे पर पानी के छींटे मार-मार हंस-खेल रहे थे । थोड़ी दूर पर ही कुछ लोग फींच-फींच कर साबुन से कपड़े धो रहे थे ।

छोटे-छोटे बच्चे अपने माँ-बाप की गोद में थे, जो उन्हें पानी में डुबकी लगवा रहे थे और उछाल-उछाल कर आनंदित हो रहे थे । कुछ बच्चे नदी के किनारे की ठंडी बालू में खेल रहे थे । एक ओर कुछ लड़कियों बालू के घरौंदे बना रही थीं । नदी पर अनेक नावें तैर रही थीं । कॉलेज के कुछ विद्यार्थी रचर्य नाव चला रहे थे । नावें नदी की धारा में बहती हुई बड़ी सुन्दर दिख रही थीं ।

थोडी दूर पर धोबी घाट दिखाई दे रहा था । वही बहुत-से धोबी नदी किनारे पत्थर के पाट पर कपड़े पीट रहे थे और धो-धो कर निचोड़ते और अपनी पत्नी तथा बच्चों को पकड़ाते जाते थे । वे उन्हें बालू पर सूखा रहे थे । दूर हमें कुछ मछुआसे की पाल लगी नावें दिख रही थीं । वे नाव से घुमा कर नदी में जाल फेंक देते थे और मछलियों के फंसने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।

नदी तट का मंदिर:

घाट पर नदी के किनारे पीपल के वृक्ष के नीचे एक छोटा-सा मंदिर था । नहा-धोकर, कपड़े पहनकर लोग घाट के पंडों से तिलक लगवा कर मंदिर में जा रहे थे । वे मंदिर में जाकर पूजा करते और मन्दिर परिक्रमा लगाते थे । पास में ही एक वृद्ध भिखारी बैठा ध्या मंदिर में आने-जाने वालों को दुआयें देकर भीख मांग रहा था । निकट ही एक फूलवाला बैठा था । अधिकांश लोग उससे फूल खरीद कर मंदिर जाते थे । वहीं पर हमे तरबूज, ककड़ी और आम बेचते हुए फेरीवाले भी दिखे ।

हमारा कार्यक्रम:

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नदी का दृश्य देखने के बाद हम लोगो ने भी नहाने का फैसला किया । हम लोगों ने काफी देर तक नदी में स्नान किया और ठंडे पानी को एक-दूसरे पर उछाल कर बड़ा आनन्द लिया । नदी से निकलकर हम लोगों ने सोचा कि कुछ देर नाव की सैर की जाये ।

हमने एक नाव 2 घंटे के लिए किराए पर ले ली । हम दोनों ने पतवार अपने हाथ में ले ली और नाव खेने लगे । नदी के दूसरे किनारे तक पहुँचते-पहुँचते हम लोग थक गए थे । कुछ देर नाव का लंगर डालकर हम लोग नदी तट पर घूमे और वही खेत से तुडवाकर एक तरबूज खरीदा ।

नाव पर आकर हम दोनों ने तरबूज खाया । तरबूज एकदम लाल और मीठा था । इसके बाद हम लोग फिर नाव से किनारे पर आ गए । लौटते में नाव मल्लाह ने चलाई । अब तक बारह बज गए थे । हम लोगों ने मल्लाह को मजदूरी के रुपये दिए और अपनी साइकिलों का ताला खोलकर घर के लिए चल पड़े ।

उपसंहार:

नदी तट के दृश्य का आनन्द लेकर लगभग एक बजे हम प्रसन्न मन से घर लौटे । रास्ते में बड़ी गर्मी थी । घर आते-आते हम पसीने में तर हो गए । हम थक भी गए थे । भूख भी जोरों से लग आई थी । अत कपड़े उतार कर कूलर के सामने भोजन करने के बाद हम सो गए ।

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