अपने घर की छत से एक दृश्य पर अनुच्छेद | Paragraph on A View from the Roof of My House in Hindi

प्रस्तावना:

मेरा मकान बड़ी अच्छी स्थिति में है । इसके पश्चिम की ओर कुछ ही दूरी पर गंगा बहती है तथा उत्तर की ओर ग्रांड ट्रंक रोड़ है । हमारा मकान चार मंजिला है । आस-पास इतना ऊँचा कोई और मकान नहीं है अत: छत पर से दूर-दूर तक का बड़ा मनोहारी दृश्य दिखाई पड़ता है ।

उगते हुए सूरज का दृश्य:

एक दिन जब मैं सोकर उठा, बड़ी सुहावना सुबह हो रही थी । हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी । मैं कुल्ला करके अपनी छत पर चला गया । पूर्व दिशा से सूरज ने निकलना शुरू ही किया था । मैं पूर्व दिशा की ओर देखने लगा ।

आसमान धीरे-धीरे लाल होता जा रहा था और उगते हुए सूर्य के दृश्य को देख मैं पुलकित हो रहा था । लम्बे-लम्बे हरे पेडों से छनती हुई प्रात: कालीन सूर्य की किरणें बडा मनोहारी दृश्य प्रस्तुत कर रही थी । थोड़ी ही देर में चिडियों की चहचहाट सुनाई देने लगी और आसमान में चिड़ियों के कई झुंड उड़ते दिखाई दिए । पेडों के पीछे सूरज की लुका-छिपी बड़ी सुन्दर लग रही थी ।

नदी का दृश्य:

पूर्व में सूर्य के कुछ निकल आने पर मुझे गंगा का ध्यान आया और मैं छत की पश्चिम की दिशा में देखने लगा । नदी के किनारे के वृक्षों पर पीछे से सूरज की किरणें पड़ रही थीं और उनकी लम्बी धुँधली छाया सामने दिखाई पड़ रही थी ।

एक ओर से वृक्षों पर रोशनी पड़ रही थी, पर दूसरी ओर से वे अंधेरे से में थे । नदी के घाट पर बहुत-से श्रद्धालु आ चुके थे । कुछ लोग रनान कर रहे थे और कुछ कपड़े उतार कर नदी में पूरनने की तैयारी कर रहे थे । कुछ दूर हमे कुछ लोग नदी के किनारे घुमते दिखाई दिए ।

ये लोग संभवत: सुबह की सैर को निकले थे । नदी में कुछ नावें इधर-उधर दिखाई दे रही थीं, जिनमें कुछ युवक और युवतियाँ बैठे नौका-विहार का आनन्द ले रहे थे । कुछ मल्लाह अपनी नौकाओं पर जाल आदि लाद कर मछली पकड़ने के लिए प्रस्थान की तैयारी करते दीख पडे ।

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नदी तट के मैदानो में चरने के लिए पशु भी आने लगे थे । इतनी ही देर में नदी पर बने पुल पर घरघराहट शुरू हुई और एक रेलगाड़ी घड़घड़ाती हुई गुजरने लगी । सीटी बजाती घड़घड़ाती रेलगाड़ी की आवाज ने वातावरण की निस्तब्धता भंग कर दी और मैंने भी छत की उत्तरी दिशा मे देखना प्रारभ किया ।

ग्रांड ट्रंक रोड का दृश्य:

अब मैं ग्रांड ट्रंक रोड देखने लगा । सड़क का दृश्य, नदी के दृश्य से एकदम भिन्न था । सड़क पर अनेक वाहन आ-जा रहे थे । सडक बड़ी व्यस्त थी । एक लाइन में एक के पीछे एक कई बैलगाडियों चल रही थीं । उनके बैलों की गर्दन में घंटियाँ बंधी थीं, जो बज रही थीं ।

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घटियों की आवाज एक लय से बड़ी सुन्दर लग रही थी । इन गाडियों पर सब्जियाँ तथा फल भरे थे । मुख्य सड़क पर अनेक ट्रक आ-जा रहे थे, जिनमे तरह-तरह के सामान लदे हुए थे । कभी-कभी कुछ कारे दिखाई दे जाती थीं जो ट्रकों के आगे निकलने के लिए कच्ची सड़क पर उतर कर खूब धूल उडाती सर्र से आगे निकल जाती थीं ।

बाजार का दृश्य:

हमारे मकान के दक्षिण में छोटा-सा बाजार है । अब मैंने नीचे झाँककर बाजार देखना शुरू किया । हलवाइयों और चाय वालों की दुकानें खुलने लगी थी । बाहर वातावरण में कसैला धुंआ उठ रहा था, क्योंकि सभी ने एक साथ भट्टियाँ और अंगीठियां जलानी शुरू कर दी । सड़क पर कुछ लोग आते-जाते दिखाई दे रहे थे । किसी के मुंह में दातुन दबी थी, तो कोई हाथ में छडी लिए था । कुछ रिक्शे वाले सडक के किनारे खड़े सवारियों का इंतजार कर रहे थे ।

उपसंहार:

मैं अपनी छत से इन दृश्यो को देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ । इतने में ही मुझे मां की पुकार सुनाई पड़ी । मन छत से उतरने को तो नहीं कर रहा था, किन्तु माँ की आवाज पर शक न सका और तुरंत नीचे उतर आया ।

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