List of twenty popular Nibands for CBSE Students in hindi language!

Contents:

  1. समारोह का आँखों देखा हाल पर निबन्ध | Essay on An Eye Witnessed Function in Hindi

  2. राष्ट्रीय एकता पर निबन्ध | Essay on National Unity in Hindi

  3. रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of Railway Station in Hindi

  4. भीड़ भरे बाजार का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of a Crowded Market in Hindi

  5. हमारे पड़ोसी देश पर निबन्ध | Essay on Our Neighboring Country in Hindi

  6. एक रेल दुर्घटना का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Railway Accident in Hindi

  7. अग्निकांड का एक दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Fire in Hindi

  8. रेलवे प्लेटफॉर्म का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of Railway Platform in Hindi

  9. ADVERTISEMENTS:

    एक मैच का आँखों देखा हाल पर निबन्ध | Essay on An Eye Witnessed Match in Hindi

  10. सड़क दुर्घटना का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Road Accident in Hindi

  11. वीरता पर निबन्ध | Essay on Heroism in Hindi

  12. सच्चरित्रता पर निबन्ध | Essay on Good Conduct in Hindi

  13. समय का महत्त्व पर निबन्ध |Essay on Importance of Time in Hindi

  14. बाढ़ का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Flood in Hindi

  15. एक अद्भुत दृश्य पर निबन्ध | Essay on A Wonderful Scene in Hindi

  16. देश-सेवा पर निबन्ध | Essay on Service to Country in Hindi

  17. अनुशासन पर निबन्ध | Essay on Discipline in Hindi

  18. ADVERTISEMENTS:

    शिष्टाचार पर निबन्ध | Essay on Etiquette / Good Manner in Hindi

  19. श्रम का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Labour in Hindi

  20. देश-प्रेम पर निबन्ध | Essay on Patriotism in Hindi


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 1

समारोह का आँखों देखा हाल पर निबन्ध | Essay on An Eye Witnessed Function in Hindi

ADVERTISEMENTS:

हमारे शहर का टाउन हॉल समारोह स्थल के रूप में प्रसिद्ध है । पिछले दिनों यहाँ तुलसी जयंती समारोह आयोजित किया गया । इस समारोह में शहर के विशिष्ट नागरिकों को आयोजन समिति की ओर से आमंत्रित किया गया था ।

इस अवसर पर टाउन हॉल को आकर्षक ढंग से सजाया गया था । आमंत्रित अथिति तथा अन्य नागरिक यथास्थान बैठ गए । मंच पर तुलसीदास जी का एक बड़ा सा चित्र रखा हुआ था जो पुष्पमाला से सुसज्जित था । अपराह्न दो बजे समारोह आरँभ किया गया ।

सर्वप्रथम आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ अशोक कुमार ने मुख्य अतिथि श्री दिवाकर साहू का स्वागत किया जो शहर के जाने-माने साहित्यकार एवं शिक्षाविद् थे । तत्‌पश्चात अन्य उपस्थित अतिथियों का स्वागत करते हुए अध्यक्ष महोदय ने तुलसी जयंती समारोह के महत्त्व की चर्चा करते हुए अपने विचार व्यक्त किए । फिर उन्होंने समारोह की रूप-रेखा प्रस्तुत की ।

सरस्वती वंदना के साथ समारोह विधिवत् आरभ हो गया । स्कूल की छात्राओं ने ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे’ का सस्वर गायन कर दर्शकों का मन मोह लिया । इसके बाद मेरे विद्यालय के विद्यार्थियों की ओर से तुलसीदास के बचपन की झाँकी को एक एकांकी नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया ।

ADVERTISEMENTS:

नाटक का प्रस्तुतिकरण बहुत ही सहज और प्रभावशाली था । पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा । अब विभिन्न विशिष्ट वक्ताओं के भाषण की बारी थी । सभी वक्ताओं ने हिंदी साहित्य के महानतम कवि रामभक्त तुलसीदास जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की प्रसंशा की ।

मुख्य अतिथि ने तुलसी को हिंदी साहित्य के आकाश के सूर्य की संज्ञा देकर इनकी प्रसिद्ध रचना ‘रामचरितमानस’ में व्यक्त आदर्शों की चर्चा की । उन्होंने कहा कि तुलसी के राम एक आदर्श पुरुष थे । वे धीर वीर और मर्यादा पुरुषोत्तम थे ।

तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने युग को ही नहीं अपितु कई युगों को प्रभावित किया है । विभिन्न वक्ताओं का भाषण समाप्त होने पर एक छात्रा ने तुलसी द्‌वारा ‘रचित कवितावली’ के एक भजन का गायन किया । फिर छात्राओं ने रामचरितमानस के कुछ अंशों का सस्वर पाठ किया ।

हॉल में बैठे सभी दर्शकों ने भक्ति रस का भरपूर आनंद उठाया । अंत में अध्यक्ष महोदय ने संध्या पाँच बजे समारोह की समाप्ति की घोषणा की । सभी हॉल के मुख्य द्वार से बारी-बारी से बाहर आ गए ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 2

राष्ट्रीय एकता पर निबन्ध | Essay on National Unity in Hindi

ADVERTISEMENTS:

किसी भी देश के विकास में उस देश के लोगों की आपसी एकता का बहुत महत्त्व है । राष्ट्र की एकता के बगैर राष्ट्र का तीव्र गति से विकास सभव नहीं है । राष्ट्रीय एकता के अभाव में राष्ट्र पराधीन और पंगु हो जाता है ।

भारत के इतिहास से हमें जानकारी मिलती है कि हमारे ऊपर लगातार कई विदेशी हमले हुए । मौर्यकाल में भारत में एकता थी इसीलिए हम भारत को इन हमलों से बचाने में सफल रहे । परंतु गुप्त वंश की समाप्ति के बाद हमारी राष्ट्रीय एकता कमजोर पड़ गई ।

मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर भारत के एक बड़े भाग में अपना अधिकार जमा लिया । इसके बाद से ही भारत में विदेशी आकर अपना शासन करते रहे । मुगलों ने लंबे समय तक भारत पर राज्य किया । फिर अँगरेजों ने भारत को गुलाम बना लिया क्योंकि भारत के शासकों में आपसी एकता नहीं थी ।

हमने भारत की प्राचीन गरिमा को समझा तथा उससे प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय एकता स्थापित की । स्वतंत्रता संग्राम के वर्षों में हमने पूरी एकजुटता का प्रदर्शन किया । इसी एकता का परिणाम था कि हमें आजादी प्राप्त हुई । आजाद भारत के लोगों ने आपसी एकता एवं एकजुटता प्रदर्शित कर कई विदेशी हमलों को नाकाम कर दिया ।

हमने मिल-जुलकर राष्ट्र की उन्नति के लिए कार्य किया । इसी का नतीजा है कि हम आज सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं । हम गरीबी, बेकारी, अशिक्षा आदि समस्याओं को समाप्त करने की दिशा में प्रयत्नशील हैं । हमने विज्ञान और तकनीकी विकास के द्वारा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की है ।

अंतरिक्ष, कृषि, संचार, यातायात, शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार, उद्योग आदि क्षेत्रों में हमारी उपलब्धियाँ सराहनीय हैं । हमने इक्कीसवीं सदी में भारत को एक विकसित एवं खुशहाल राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया है । हम राष्ट्रीय एकता की भावना से ओत-प्रोत होकर यह गीत गाते हैं:

“ये नदियाँ, ये पर्वत, शिखर ऊँचे नीचे, ये रेती, ये खेती, ये जंगल बगीचे चमन एक ही है, अमन एक ही है, हमारा तुम्हारा वतन एक ही है ।

दूसरी ओर हमारी राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुँचाने वाले भी कम नहीं हैं । आतंकवादी भारत में आतंक फैलाकर हमारी एकता को कमजोर करने के प्रयत्न में जी-जान से लगे हुए हैं । वे विभिन्न धर्म के लोगों को एक-दूसरे के विरुद्ध उकसाने के प्रयास में लगे हैं ।

जाति-ति ऊँच-नीच सांप्रदायिकता अलगाववाद आदि राष्ट्रीय एकता को नष्ट करने वाले तत्व हैं । हमें इनसे सावधान रहना चाहिए । हमें धर्म के आधार पर नफरत फैलाने वालों के प्रयासों को नाकाम करना होगा । हमें हिंसा का रास्ता छोड़कर आपसी प्रेम एवं भाईचारे के आधार पर नए समाज की रचना करनी होगी ।

भारत विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों का देश है । यहाँ अनेक मत एवं परंपराएँ हैं । यहाँ विभिन्न भाषाओं एवं बोलियों के लोग निवास करते हैं । अत: आवश्यक है कि लोग अपने-अपने धर्म एवं मत पर दृढ़ रहते हुए भी राष्ट्र की एकता के लिए कार्य करें ।

इसी स्थिति में हम राष्ट्र के दुश्मनों का मुकाबला कर सकते हैं । हम भ्रष्टाचार मिटाकर तथा सार्वजनिक जीवन को पारदर्शी बना कर भी राष्ट्रीय एकता स्थापित करने का कार्य कर सकते हैं । यदि लोकसेवकों में ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ की भावना हो तो इससे राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में सहायता मिलती है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 3

रेलवे स्टेशन का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of Railway Station in Hindi

रेलवे स्टेशन यानि एक ऐसा स्थान जहाँ रात-दिन यात्रियों का ताँता लगा रहता है । यात्रियों, कुलियों, किराए पर बहिन उपलब्ध कराने वालों तथा यात्रा से संबंधित उपयोगी वस्तुएँ बेचने वालों की भीड़ हर समय लगी रहती है ।

पिछले माह मुझे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जाने का अवसर प्राप्त हुआ । मैं गरमी की द्यी में अपने परिवार वालों के साथ उत्तर प्रदेश में स्थित अपने पैतृक गाँव जा रहा था । तिपहिया ऑटो से हम लोग नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचे । वहाँ काफी भीड़ एवं गहमागहमी थी ।

स्टेशन से बाहर बसें, कारें तथा तिपहिया वाहन बड़ी संख्या में खड़े थे । कार एवं ऑटो वाले स्टेशन से बाहर निकल रहे यात्रियों को अपने वाहन से चलने का आग्रह कर रहे थे । कुछ लोग शीघ्रता से स्टेशन की ओर भाग रहे थे क्योंकि उनकी टेरन खुलने का समय हो रहा था ।

स्टेशन से बाहर आरक्षित एवं अनारक्षित श्रेणी की टिकटों की बिक्री अनेक काउंटरों पर हो रही थी । सभी टिकट खिड़कियों के सामने लोगों का समूह पंक्तिबद्ध खड़ा था । हमने पूछताछ काउंटर पर जाकर अपनी टेरन के प्लेटफार्म नंबर का पता किया । ज्ञात हुआ कि हमारी टेरन आधा घंटा विलंब से खुलेगी ।

हम लोग अपना सामान उठाकर रेलवे स्टेशन के बाहरी हॉल में आ गए । यहाँ पर इलैक्ट्रानिक बोर्ड लगा था जिस पर विभिन्न टेरनों के बारे में लिखित सूचना उभर रही थी । हॉल में बड़ा-सा बोर्ड लगा था जिसमें नई दिल्ली स्टेशन से खुलने वाली रेलगाड़ियों की समय-सारणी दी गई थी ।

साथ ही इस स्टेशन पर आने वाली गाड़ियों से संबंधित तालिका भी दी गई थी । कुछ लोग इस तालिका को ध्यान से पड़ रहे थे । उसी हॉल में एक रेलवे बुक स्टॉल भी था । कुछ लोग समाचार-पत्र, घूम-घूम कर बेच रहे थे । यहाँ पर शरीर का वजन मापने वाली स्वचालित मशीन भी लगी थी । कुछ लोग सिक्का डालकर अपने वजन का पता कर रहे थे ।

मैंने भी अपना वजन ज्ञात किया । पिताजी ने बुक स्टाल से एक पत्रिका खरीद कर मेरे हाथ में थमा दिया । फिर हम लोग सामान उठाकर स्वचालित सीढ़ी से स्टेशन के भीतर दाखिल हुए । स्टेशन के ऊपरी गलियारे से पूरे स्टेशन का दृश्य दिखाई दे रहा था । प्राय: सभी प्लेटफॉर्मों पर ट्रेनें खड़ी थीं । यात्री भाग-दौड़ कर रहे थे । कुली उन यात्रियों के पास जमा हो जाते थे जिनके पास अधिक सामान होता था ।

कुछ लोग कुलियों से मोल-भाव कर रहे थे । रेलयात्रियों की सुविधा के लिए विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्रसारित की जा रही थीं । हम लोग धीरे-धीरे चलते हुए अपने नियत प्लेटफार्म पर पहुँच गए । प्लेटफार्म पर हमारी टेरन बस आने ही वाली थी । हम लोग ट्रेन आने की प्रतीक्षा करने लगे ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 4

भीड़ भरे बाजार का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of a Crowded Market in Hindi

होली का त्योहार आने वाला था । इस अवसर पर सभी बाजारों और दुकानों पर काफी चहल-पहल देखी जा सकती है । मैं अपनी माँ के साथ निकटवर्ती बाजार में गया । बाजार में काफी रौनक थी । अँधेरा घिर आया था इसलिए दुकानों की बत्तियाँ जली हुई थीं ।

आकर्षक रंगीन बत्तियाँ झिलमिलाकर बाजार के दृश्य को अत्यंत मनोरम बना रही थीं । सभी आकर्षक पोशाक पहने खरीदारी करने निकले थे । भीड़ इतनी थी कि सभी धीरे-धीरे और सँभलकर चल रहे थे । रंग-अबीर और पिचकारी बेचने वाले दुकानदार बहुत व्यस्त थे ।

बच्चे दुकानदारों से रंग-बिरंगी पिचकारियाँ खरीद रहे थे । मिठाई फल और कपड़े की दुकानों पर भी भीड़ लगी हुई थी । फल वाले ठेले पर फल लादकर बाजार में घूम-घूमकर बेच रहे थे । जनरल स्टोर पर भी खासी भीड़ थी । हमने सबसे पहले जनरल स्टोर पर जाकर खरीदारी की ।

आज विभिन्न वस्तुएँ महँगी बिक रही थीं । फल वाले भी अवसर का लाभ उठाकर दुगनी कीमत पर फल बेच रहे थे । हमने सेब और केले खरीदे । इसके बाद हम लोग सब्जी मंडी की तरफ बढ़ गए । रास्ते में गाय और कुत्ते भी स्वच्छंद विचरण कर रहे थे ।

सब्जी मंडी में तिल रखने की भी जगह न थी । हरी सब्जियों के भाव त्योहार के कारण आसमान छू रहे थे । परंतु खरीदना तो सबों को था इसलिए महँगी कीमत होने के बावजूद सब्जियाँ खूब बिक रही थीं । महिलाएँ मोल-भाव कर रही थीं लेकिन सब्जी विक्रेता आज उनकी सुनने के लिए तैयार नहीं थे ।

यहाँ से निकलकर हम लोग हलवाई की दुकान में गए । यहाँ तरह-तरह की मिठाइयों को सजाकर रखा एका था । कुछ लोग सपरिवार दुकान में बैठकर गुलाबजामुन 9 रसगुल्ले जलेबी समोसे पकौड़े आदि का मजा ले रहे थे । हमने यहाँ बैठकर रसमलाई का आनद उठाया । फिर हम लोग बरफी और गुलाबजामुन डब्बे में बँधवाकर दुकान से बाहर आ गए ।

बाजार में फेरीवालों की भी अच्छी तादाद थी । फेरीवाला आवाजें दे-देकर ग्राहकों को आकर्षित कर रहा था । गुब्बारे वाला रंग-बिरंगे गुब्बारों का प्रदर्शन कर बच्चों को लुभा रहा था । सड़क के किनारे कुछ लोग खिलौने बेच रहे थे । कुछ महिलाएँ सड़क के किनारे बैठे मेहँदी वाले से मेहँदी लगवा रही थीं ।

इस प्रकार पूरे बाजार में सभी अपनी-अपनी धुन में मस्त थे ।हम लोग अपनी खरीदारी पूरी कर घर लौटने का उपक्रम करने लगे । देखते ही देखते बाजार का दृश्य हमारी आँखों से ओझल हो गसा ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 5

हमारे पड़ोसी देश पर निबन्ध | Essay on Our Neighboring Country in Hindi

हमारे देश के निकट स्थित देश हमारे पड़ोसी देश हैं । चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यानमार, श्रीलंका, भूटान, मालदीव और नेपाल हमारे पड़ोसी देश हैं । भारत के संबंध इन देशों से प्राय: अच्छे हैं । हमारा देश अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रखना चाहता है ।

चीन हमारा सबसे बड़ा पड़ोसी देश है । जनसंख्या के मामले में यह विश्व का सबसे बड़ा देश है । यह एक विकासशील देश है परंतु अपनी आर्थिक नीतियों के कारण यह शीघ्र ही एक विकसित देश बन सकता है । यहाँ की अधिकांश जनता बौद्ध मत मानती है ।

चीन की राष्ट्र-भाषा चीनी है जो दुनिया में सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है । चीन के साथ हमारे संबंध बहुत पुराने हैं । स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प. नेहरू ने चीन की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया । पंचशील के सिद्धांतों पर आधारित दोनों देशों के मित्रतापूर्ण संबंधों को उस समय एक बड़ा धक्का लगा जब चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया ।

‘हिंदी चीनी भाई-भाई’ का नारा खोखला सिद्ध हो गया । चीन ने हमारे देश के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार जमा लिया । चीन और भारत के बीच सीमा विवाद अब भी बने हुए हैं । परंतु पिछले एक दशक से चीन के साथ भारत के संबंध फिर से अच्छे होने लगे हैं ।

चीन की साम्यवादी सरकार भारत से अच्छे पड़ोसी जैसे संबंध बनाने के लिए प्रयास कर रही है । पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हुआ । इस राष्ट्र का उदय भारत विभाजन का परिणाम था जो धर्म के आधार पर किया गया था ।

पाकिस्तान के संबंध भारत से आरंभ से ही अच्छे नहीं रहे हैं । पाकिस्तान और भारत के बीच कई युद्ध हो चुके हैं । प्रत्येक युद्ध में पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी । फिर भी पाकिस्तान जम्यू एवं कश्मीर प्रांत के कुछ हिस्से पर कब्जा जमाए बैठा है ।

वह कश्मीर को हथियानै के लिए आतंकवाद का सहारा ले रहा है । परंतु धीरे-धीरे पाकिस्तान के शासकों की समझ में यह बात आ रही है कि उनकी भलाई भारत के साथ अच्छे संबंध रखने में ही है । दोनों देश आपसी संबंधों को सुदृढ़ बनाने के प्रयासों में लगे हुए हैं ।

बांग्लादेश पहले पाकिस्तान के अधिकार में था । सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद बांग्लादेश स्वतत्र राष्ट्र बना । बांग्लादेश की आजादी में भारत का बहुत बड़ा योगदान था । परतु यहाँ भी पाकिस्तान की तरह कुछ कट्टरपंथी लोग हैं जो भारत के साथ मित्रता नहीं रखना चाहते ।

बांग्लादेश एक निर्धन राष्ट्र है । यहाँ के एक करोड़ से अधिक नागरिक भारत में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं । भारत के लिए यह भारी चिंता का विषय है । श्रीलंका, भूटान, नेपाल, म्यानमार, मालदीव और नेपाल के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध हैं ।

नेपाल और भारत की सीमाएँ खुली हुई हैं । दोनों देशों की संस्कृति भी एक जैसी है । भारत ने समय-समय पर अपने पड़ोसी देशों की मदद की है । श्री लंका नेपाल आदि हमारे पड़ोसी भी हमारी तरह उग्रवाद और आतंकवाद के शिकार हैं ।

भारत चाहता है कि उसके पड़ोस में शांति और सुव्यवस्था हो । हम अपने सभी पड़ोसियों की उन्नति चाहते हैं । भारत एक विशाल देश होने के बावजूद अपने छोटे पड़ोसियों के साथ समानता पर आधारित मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने का आकांक्षी है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 6

एक रेल दुर्घटना का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Railway Accident in Hindi

रेलयात्रा प्राय: सुखद एवं आरामदेह होती है । खासकर लंबी दूरी की यात्रा के लिए वायुमार्ग अथवा रेलमार्ग का ही प्रयोग किया जाता है । कम आय वाले व्यक्तियों के लिए रेलमार्ग की उपयोगिता कहीं अधिक होती है ।

परंतु कभी-कभी रेलयात्रा जानलेवा भी हो जाती है जब किसी कारणवश रेलें दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं । पिछले वर्ष मैं अपने परिवारवालों के साथ लखनऊ से पटना की यात्रा पर गया था । हमारा आरक्षण श्रमजीवी एक्सप्रेस में था । हमारे डब्बे में सभी यात्री रात्रिकालीन भोजन समाप्त कर सोने रहे थे ।

कुछ लोग सो भी चुके थे । मैं भी खाना खाकर सोने की तैयारी में था । अचानक हमारी टेरन के कुछ डब्बे पटरी से उतर गए । विचित्र आवाज करती हुई टेरन रुकी तो हमारे डब्बे के यात्री सकते में आ गए । रात्रि के इस अंधकार में पता नहीं चल रहा था कि असल में हुआ क्या था यात्रियों ने टेरन से उतरकर देखा तो पता चला कि बीच के तीन डब्बे पटरी से लुढ़ककर निकट के खेत में गिर चुके थे ।

हमारा डब्बा आगे होने के कारण सही-सलामत था । सभी यात्री उन तीन डब्बों की ओर बड़े । वहाँ चीख-पुकार मची हुई थी । रेलवे सुरक्षा बल के जवानों ने अन्य यात्रियों के सहयोग से डब्बों में फँसे यात्रियों को निकालने का कार्य शुरू किया ।

यह कार्य टार्च की रोशनी में हो रहा था । इस घटना में कितने मारे गए थे और कितने घायल हो गए थे र इसका तत्काल पता नहीं चल पा रहा था । वास्तव में इस अँधेरे में राहत कार्य चलाना भी एक कठिन कार्य था । परंतु थोड़ी देर में निकट के ग्रामीण चीख-पुका उनकर लालटेन, टार्च, पैट्रोमैक्स आदि लिए वहाँ आ गए । दो घंटे के भतर ही निकटवर्ती रेलवे स्टेशन से सहायता दल भी वहाँ उपस्थित हो गया ।

इसके बाद डब्बे में से जीवित बचे सभी यात्रियों को बाहर निकाल लिया गया । घायल यात्रियों को निकटवर्ती रेलवे अस्पताल तथा अन्य अस्पतालों में पहुँचा दिया गया । घटनास्थल पर ही कुछ यात्रियों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई ।

यह कार्य रेलवे सहायता दल के साथ आए चिकित्सकों ने किया । बाद में ज्ञात हुआ कि इस दुर्घटना में छब्बीस यात्री मारे गए थे जिनमें कई महिलाएँ एवं बच्चे भी थे । लगभग पैंतालीस यात्रियों को गंभीर चोटें आईं थीं जिनमें से पाँच ने अस्पताल में दम तोड़ दिया ।

पूरा दृश्य दिल दहला देने वाला था । दुर्घटना के समय टेरन लगभग एक सौ दस किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी, इसीलिए इतना बड़ा हादसा हुआ । बाद में शेष यात्रियों को दूसरी ट्रेन से गंतव्य तक पहुँचा दिया गया । इस अशुभ यात्रा को भुला पाना हमारे लिए अत्यत कठिन है ।

हालांकि हताहत हुए यात्रियों के परिजनों को भारी रकम मुआवजे के तौर पर देने की घोषणा की गई थी परंतु जान की कीमत धन से अदा करना संभव नहीं था । फिर भी जिस तरह से अन्य यात्रियों तथा ग्रामीणों ने तत्परतापूर्वक दुर्घटनाग्रस्त पीड़ितों की मदद की, वह सराहनीय है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students  (Essay) # 7

अग्निकांड का एक दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Fire in Hindi

आग का आविष्कार मानव इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है । मानव सभ्यता आग के प्रयोग के बिना कभी इतनी विकसित नहीं हुई होती । परंतु यही आग कभी-कभी विकराल रूप धारण कर धन और जन की अपार क्षति पहुँचा देती है ।

इस वर्ष दीपावली के अवसर पर मैं अभिभावकों के साथ खरीदारी करने बाजार गया हुआ था । बाजार में काफी गहमा-गहमी थी । सभी दुकानें धजी-धजी हुई थीं । रेडीमेड कपड़ों, मिठाइयों, पटाखों आदि की दुकानों पर खासी भीड़ थी । हम लोग अभी बाजार में गए ही थे कि अचानक कई बमों के एक साथ फटने का शोर सुनाई दिया ।

सभी लोग चौकन्ने हो गए । हमारे मन में यह विचार उठा कि शायद किसी आतंकवादी ने बम विस्फोट किया हो । परंतु यह आशंका निर्मूल सिद्ध हुई जब हमने देखा कि लगभग पचास मीटर की दूरी पर स्थित एक पटाखे की दुकान में भयंकर आग लग गई है । वहाँ से लगातार बम फूटने की आवाजें आ रही थीं और धुएँ का गुबार उठ रहा था ।

देखते ही देखते अग्नि की लपटें उठने लगीं । पटाखे की दुकान में काम करने वाले लोग उन लपटों में घिर गए । आग आस-पास की दुकानों को भी जलाने लगी । बाजार में दहशत का माहौल था । जहाँ पर आग लगी थी वहाँ से लोग बेतहाशा भागने लगे । सभी को अपनी जान की पड़ी थी ।

हम लोग भी असहाय स्थिति में दूर से ही इस अग्निकांड का भीषण नजारा देख रहे थे । वह बाजार जहाँ कुछ देर पहले रौनक छाई थी वहाँ का दृश्य बड़ा ही खौफनाक था । लोग चीख-पुकार मचा रहे थे । जिनके सगे-संबंधी आग की लपटों में घिर गए थे वे दहाड़ मारकर रो रहे थे ।

इतने में वहाँ अग्निशामक दस्ता आ गया । शायद किसी ने इस दस्ते को अग्निकांड की सूचना दे दी थी । इस दस्ते ने लगभग दो घंटे में आग पर काबू पा लिया परंतु तब तक करोड़ों की संपत्ति जल कर राख हो चुकी थी । इस अग्निकांड में ग्यारह व्यक्ति हताहत हुए तथा लगभग दो दर्जन व्यक्ति झुलसकर घायल हो गए ।

घायलों को शीघ्र ही एंबुलेंस में डालकर निकटवर्ती अस्पताल में पहुँचाया गया । बाद में पता चला कि पटाखे की दुकान में आग सिगरेट के अनबुझे टुकड़े फेंकने के कारण फैली थी । मानव की इस छोटी सी भूल ने एक बहुत बड़ी दुर्घटना को अंजाम दे दिया ।

जिनके सगे-संबंधी व मित्र इस अग्निकांड में मारे गए थे उन्हें दो-दो लाख का मुआवजा दिए जाने की घोषणा की गई । साथ ही घायलों को भी पच्चीस-पच्चीस हजार रुपए मुआवजे के तौर पर दिए गए । परंतु क्या मुआवजे से मरे हुए इंसानों को लौटाया जा सकता है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है ।

यदि हम सावधानियाँ बरतें तो इस तरह की बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं । दो घंटे तक यह खौफनाक दृश्य देखने के बाद हम लोग शोक युक्त दशा में अपने घर लौट आए । इस बार हमने दीपावली नहीं मनाई ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 8

रेलवे प्लेटफॉर्म का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of Railway Platform in Hindi

पिछले महीने मेरे चाचा जी हमारे घर आए हुए थे । उन्हें विदा करने मैं अपने बड़े भाई के साथ भोपाल रेलवे स्टेशन गया था । हमने प्लेटफॉर्म टिकट खरीदा और हम प्लेटफॉर्म नं. पाँच की ओर बढ़ चले । इसी प्लेटफॉर्म से चाचा जी की गाड़ी खुलने वाली थी ।

हम लोग ट्रेन खुलने के आधा घंटा पूर्व ही प्लेटफॉर्म पर पहुंच गए थे । प्लेटफॉर्म पर काफी चहल-पहल थी । यहाँ बहुत से यात्री अपने-अपने बैग, अटैची और सामान के साथ टेरन के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे । यहाँ ऐसे लोगों की भी काफी बड़ी संख्या थी जो अपने सगे-संबंधियों को विदा करने या लेने आए थे । कुछ लोग प्लेटफॉर्म पर लगे पानी के नल से पेय जल भर रहे थे । बहुत से लोग वहाँ जमा थे जहाँ आरक्षण तालिका लगी हुई थी ।

प्लेटफॉर्म पर लाल कपड़ा पहने कुली लोगों की भी अच्छी संख्या थी । कुछ कुली यात्रियों का सामान ढो-ढोकर प्लेटफॉर्म पर ला रहे थे । वास्तव में यात्रियों का सामान लाने तथा ले जाने में कुलियों का योगदान सराहनीय होता है ।

प्लेटफॉर्म पर खाने-पीने की कुछ दुकानें भी लगी थीं । कुछ लोग चाय पी रहे थे तो कुछ लोग कॉफी की चुस्कियाँ ले रहे थे । गरमी काफी थी अत: कई लोग शीतल पेय का आनंद उठा रहे थे । कहीं गरमागरम पूरियाँ और समोसे तले जा रहे थे तो कहीं फल वाले आवाजें लगा-लगाकर यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे ।

एक दुकानदार वहाँ दहीबड़े बेच रहा था । मूँगफली वाला प्लेटफॉर्म पर घूम-घूम कर ग्राहकों की तलाश कर रहा था । कुछ व्यक्ति रेलवे बुक स्टाल पर पत्र-पत्रिकाओं को उलट-पुलट कर देख रहे थे । मैंने यहाँ से बाल-पत्रिका ‘चंपक’ खरीदी ।

इतने में प्लेटफॉर्म पर एक लोकल ट्रेन आ गई । प्लेटफॉर्म जो पहले से ही काफी भरा था खचाखच भर गया । ट्रेन से यात्रियों के उतरने के पहले ही कुछ यात्री इसमें सवार हो जाना चाहते थे । ऐसे में थोड़ी-बहुत धक्का-मुक्की हो गई । उतरने वाले यात्रियों के चेहरे पर झुँझलाहट साफ दिखाई दे रही थी । जब लोकल टेरन खुल गई तो प्लेटफॉर्म पर सामान्य स्थिति शीघ्र बहाल हो गई ।

कुछ मिनट बाद ही चाचा जी की ट्रेन धड़धड़ाती हुई प्लेटफॉर्म पर आ लगी । ट्रेन आने की सूचना प्लेटफॉर्म पर लगे ध्वनिविस्तारक यंत्र से कई बार दी गई । यात्रियों को पॉकेटमारों से सावधान रहने बिना टिकट यात्रा न करने तथा कुछ अन्य टेरनों के विलंब से आने की सूचना भी लगातार दी जा रही थी ।

‘कृपया ध्यान दें’, ‘धन्यवाद’, ‘आपकी यात्रा मंगलमय हो’ आदि शब्दों का बार-बार प्रयोग किया जा रहा था । हम दोनों भाइयों ने चाचा जी का सामान उठाया और बोगी नं. एस- 9 की ओर चल पड़े । हमने चाचा जी को टेरन पर यथास्थान बिठाया । अन्य यात्री भी अपनी-अपनी बोगियों में स्थान ग्रहण करने लगे ।

कुछ ही देर में गार्ड ने हरी झंडी दिखाई टेरन की सीटी भी बज उठी । चाचा जी के पैर छूकर हम लोग शीघ्रता से बोगी से उतर गए । देखते ही देखते ट्रेन हमारी आँखों से ओझल हो गई । प्लेटफॉर्म पर इस समय हलचल काफी कम हो गई थी । हम लोग प्लेटफॉर्म की सीढ़ियाँ चढ़कर स्टेशन से बाहर आ गए ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 9

एक मैच का आँखों देखा हाल पर निबन्ध | Essay on An Eye Witnessed Match in Hindi

हमारे विद्यालय में प्रत्येक वर्ष अंतरीवद्यालय स्तर पर हॉकी मैच का आयोजन किया जाता है । इसमें जिले भर की कुल छह विद्यालयों की टीमें भाग लेती हैं । लीग मैचों की अपेक्षा फाइनल मैच का आकर्षण अधिक होता है ।

इस बार फाइनल में हमारे विद्यालय ‘मॉडल स्कूल’ और ‘डी.ए.वी. उच्च माध्यमिक विद्यालय’ की टीमों के बीच भिडंत होनी थी । ये दोनों ही टीमें लीग मैचों में शानदार प्रदर्शन कर फाइनल में पहुँची थीं । आज फाइनल मैच खेला जाना था ।

हमारे विद्यालय की टीम के प्रशिक्षक अपने खिलाड़ियों के साथ मैदान में खड़े होकर बातें कर रहे थे । दूसरी ओर कुछ दूरी पर डी.ए.वी. विद्यालय की टीम भी खड़ी थी । उनके प्रशिक्षक खिलाड़ियों को कुछ निर्देश दे रहे थे । यहाँ दर्शकों की भी खासी भीड़ थी ।

दर्शकों में से अधिकतर दोनों विद्यालयों के विद्‌यार्थीगण तथा अध्यापकगण थे । कुछ अन्य विद्यालयों के विद्यार्थी और आम नागरिक भी वहाँ खड़े थे । दर्शकों में मैच के नतीजे के प्रति काफी उत्सुकता थी । हमारी टीम नीले रंग की पोशाक तथा विपक्षी टीम सफेद रग की पोशाक पहने थी । निर्धारित समय अपराह्न 3 बजकर 35 मिनट पर रैफरी ने सीटी बजाई ।

दोनों ही टीमों के खिलाड़ी गोल घेरा बनाकर अंतिम रणनीति तैयार करने लगे । फिर सभी खिलाड़ियों ने अपनी-अपनी पोजीशन सँभाल ली । रेफरी की सीटी के साथ मैच आरंभ हुआ । दर्शकों ने तालियाँ बजाकर मैच शुरू होने का स्वागत किया ।

डी.ए.वी. टीम ने आरंभ से ही आक्रामक मुद्रा अपनाई । उनके सेंटर फारवार्ड खिलाड़ियों ने दोनों तरफ से गति करते हुए हमारी टीम पर धावा बोल दिया । परंतु हमारी टीम की रक्षा-पंक्ति काफी चौकस थी । हमारी रक्षा-पंक्ति ने प्रतिपक्षी टीम के प्रत्येक आक्रमण को नाकाम बना दिया । लगभग पंद्रह मिनट के खेल के बाद हमारी टीम के फारवर्ड स्थान के खिलाड़ियों ने आपस में पास देकर आगे बढ़ते हुए डी.ए.वी. टीम की रक्षा-पंक्ति पर आक्रमण कर दिया ।

हमारी टीम को इस प्रयास में पहले कार्नर फिर पेनल्टी कार्नर प्राप्त हुआ । हमारी हॉकी टीम के पेनल्टी कार्नर विशेषज्ञ रणधीर कुमार ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया और हमने सधे हुए तरीके से एक गोल कर दिया । दर्शक दीर्घा ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ इस गोल का स्वागत किया ।

हॉफ टाइम तक के खेल में हमारी टीम एक गोल से आगे रहीं । हालांकि उस समय तक प्रतिपक्षी टीम को गोल करने के कई अवसर प्राप्त हुए परंतु भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया । हॉफ टाइम में खिलाड़ियों ने लेमन जूस और शीतल पेय का लुल्क उठाया । मैच पुन: आरभ हुआ ।

प्रतिपक्षी टीम ने इस बार पूरा दमखम लगा दिया । उनकी मेहनत ने सौ दिखाया और वे सीधे गोल करने में सफल रहे । मैच बराबरी पर आ गया । परंतु अभी लगभग नौ मिनट का समय शेष था । हमारी टीम ने बढ़त प्राप्त करने के लिए फिर से कमर कस ली ।

हमें फिर से दो पेनल्टी कार्नर मिले । पहला पेनल्टी कार्नर बेकार चला गया । दूसरे पेनल्टी कार्नर को हमारी टीम गोल में बदलने में सफल रही । प्रतिपक्षी टीम फिर से बराबरी कर पाती इतने में खेल का समय पूरा हो गया । रेफरी ने एक लंबी सीटी बजाई ।

इस प्रकार हॉकी मैच में हमारी टीम ने विजयश्री का वरण किया । हमारे टीम के खिलाड़ी एवं समर्थक दर्शक खुशी से झूम उठे । वहीं प्रतिपक्षी टीम के खिलाड़ियों तथा उनके समर्थकों के चेहरे कुछ जुटे-जुटे से थे । इसके बाद पुरस्कार वितरण समारोह हुआ । हमारी टीम को प्रथम पुरस्कार तथा विपक्षी टीम को द्वितीय पुरस्कार प्रदान किया गया । इसके बाद हम लोग मैच के बारे में चर्चा करते हुए वापस घर लौट आए ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 10

सड़क दुर्घटना का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Road Accident in Hindi

हमारे देश में प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में सड़क दुर्घटनाएँ हुआ करती हैं । इनमें हजारों लोगों की जानें चली जाती हैं तथा हजारों घायल हो जाते हैं । अधिकतर सड़क दुर्घटनाएँ मानवीय भूलों के कारण होती हैं ।

सड़क दुर्घटनाओं के कड़े बताते हैं कि इनमें पैदल यात्री सबसे अधिक संख्या में मारे जाते हैं । मुझे वह दिन याद है जब मैं बस द्वारा दिल्ली से रुड़की की यात्रा पर था । साथ में मेरे माता-पिता भी थे । बस पूरी भरी हुई थी । लगभग आधे रास्ते में एक मोड़ आया ।

चालक ने मोड़ पर बस घुमाते समय सामने से तेज गति से आ रहे टूक पर ध्यान नहीं दिया । हमारी बस जोरदार आवाज के साथ टूक से टकरा गई । यह सब इतनी शीघ्रता से हुआ कि किसी को कुछ पता ही नहीं चला । बस के सभी यात्रियों को गंभीर चोटें आईं । बस और टूक के शीशे चकनाचूर हो गए ।

दोनों वाहनों के चालकों सहित कई लोग घटनास्थल पर ही मारे गए । मुझे सिर पर चोट लगी थी तथा वहाँ से खून बह रहा था । मेरे माता-पिता को भी चोट लगी थी परंतु वे अपना कष्ट भूलकर मेरी सेवा में लग गए । माँ ने मेरे सिर पर कपड़ा बाँधकर बहते खून को रोकने की असफल चेष्टा की ।

घटनास्थल पर सभी शोकाकुल थे । सभी चीख-पुकार मचा रहे थे । मृत व्यक्तियों के परिजन अत्यंत दुखी थे । शीघ्र ही वहाँ आस-पास के लोग आ गए । उन्होंने मृत तथा घायल यात्रियों को बस से उतारा । घायल यात्रियों में से कुछ की दशा अत्यंत गंभीर थी ।

कुछ दयालु लोगों ने तत्काल उन्हें अपनी कार में लादकर अस्पताल पहुँचाया । परंतु बहुत से लोग केवल तमाशाई थे उन्होंने घायल यात्रियों र्र्का मदद के लिए कुछ भी न किया । मेरी तरह कई यात्री जमीन पर लेटकर दर्द से कराह रहे थे । किसी की पैर की हड्डी टूटी थी तो किसी के सिर पर चोट लगी थी ।

कई यात्रियों को हल्की चोटें आई थीं । ऐसे यात्रियों ने घायलों को पानी पिलाया । थोड़ी देर में निकटवर्ती शहर से प्रशासन की ओर से भेजा गया सहायता दल आ गया । इस दल में तीन चिकित्सक भी थे । उन्होंने घायल यात्रियों की घटनास्थल पर ही मरहम-पट्टी की ।

मेरे सिर पर भी फी बाँधी गई । इससे खून बहना रुक गया । राहतकर्मियों ने मुझे तथा अन्य घायल यात्रियों को निकट के अस्पताल में पहुँचाया । मुझे तीन दिन बाद अस्पताल से की मिल गई परंतु घाव भरने में लगभग एक महीने का समय लग गया ।

मैं अब पूरी तरह स्वस्थ हूँ । परंतु जब भी मुझे इस सड़क दुर्घटना की याद आती है मैं सिहर उठता हूँ । दुर्घटनास्थल का खौफनाक दृश्य मेरे स्मृति पटल पर सजीव हो उठता है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 11

वीरता पर निबन्ध | Essay on Heroism in Hindi

वीरों की अपनी एक अलग जाति होती है । इस मृत्यु लोक में वही व्यक्ति वास्तविक अर्थों में जीता है जो वीर एवं साहसी होता है । साहस, धैर्य, बलिदान, त्याग, आत्मविश्वास आदि वीरोचित लक्षण हैं ।

बिना डरे, बिना रुके साहसपूर्वक जीवन-पथ पर अग्रसर होने का नाम वीरता है । वीर व्यक्ति निर्भीक होता है । डरकर जीने वाले वीरता का मूल्य नहीं समझ सकते । युद्ध के मैदान में वे ही बाजी मारते हैं जो निर्भीक और साहसी होते हैं । शत्रु वीर व्यक्ति के सम्मुख आने से डरता है ।

वीरों का नाम सुनते ही शत्रुओं के शरीर में कपन होने लगता है । वीरांगना लक्ष्मीबाई ने अंगरेजों के छक्के छुड़ा दिए थे क्योंकि वे निर्भीक थीं । शिवाजी साहसी थे इसलिए शक्तिशाली मुगल साम्राज्य का सामना कर सके ।

वीर कभी नहीं डरता क्योंकि वह हर समय सिर पर कफन बाँधे रहता है । जहाँ वीरता होती है वहाँ सभी प्रकार कीं आशंकाओं एवं दुविधाओं का समूल नाश हो जाता है । इसीलिए तो हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने यह गीत गाया था:

”सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

वीरता का सीधा संबंध आत्मविश्वास से है । जिसे अपने ऊपर भरोसा नहीं, वह वीर कहलाने का अधिकारी नहीं है । ”दैव-दैव आलसी पुकारा” ; हर समय ईश्वर के समक्ष वे ही गुहार लगाते हैं जो कायर होते हैं जो आत्म-विश्वास से रहित होते हैं ।

हमेशा भाग्यवादी बने रहना वीरों का लक्षण नहीं है । वीरों को अपने कर्म पर विश्वास होता है, उसे अपनी शक्ति पर पूरा भरोसा होता है । आत्मविश्वास से लबालब वीर किसी भी स्थिति में अपने स्वाभाविक धर्म का त्याग नहीं करता ।

वीरता कई प्रकार की होती है । कुछ लोग दानवीर तो कुछ कर्मवीर होते हैं । असुरराज बलि और कर्ण का नाम दानवीरों में सम्मान के साथ लिया जाता है । महर्षि दधीचि ने लोक कल्याणार्थ अपनी हड्डियाँ तक दान में दे दी थीं ।

आधुनिक युग में भी लोग दूसरों का जीवन बचाने के लिए अपने शरीर के अंगों एवं रक्त का दान करते हैं । ये सभी दानवीर ही हैं । कुछ लोग अपने कर्म के आधार पर वीरों की कोटि में स्थान प्राप्त करते हैं । लेनिन, मार्क्स, महात्मा गाँधी, राम, कृष्ण आदि कर्मवीर थे ।

उनके कर्म ही इतने प्रखर थे कि वे वीर बन गए । युद्ध क्षेत्र में प्रदर्शित की गई वीरता का भी विशेष महत्त्व है । जॉन ऑफ आर्क, शिवाजी, अर्जुन, नेपोलियन बोनापार्ट, महाराणा प्रताप, वीर कुँवर सिंह आदि युद्धवीरों का नाम इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है ।

मानवता की भलाई करने में अपना जीवन होम करने वाले भी वीर ही हैं । महात्मा बुद्ध, महावीर, संत कबीर, संत रविदास, मदर टेरेसा, सुकरात आदि धर्मवीरों का स्थान वीरों की कोटि में सबसे ऊपर है । वीरता मनुष्य का एक महान गुण है । परंतु लोगों को कष्ट देना वीरता नहीं है ।

शक्ति के बल पर कमजोर और असहाय लोगों को कुचलना वीरता नहीं है । सत्य के मार्ग पर दृढ़ रहते हुए तथा अपने निजी धर्म का निर्वाह करते हुए लोगों के काम आना ही सच्ची वीरता है । वीर हमेशा उचित-अनुचित का विचार करके ही कोई कार्य करते हैं ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 12

सच्चरित्रता पर निबन्ध | Essay on Good Conduct in Hindi

‘सच्चरित्रता’ शब्द का तात्पर्य है – चरित्र का अच्छा होना । यह गुण प्रत्येक व्यक्ति में होना चाहिए क्योंकि इसके बिना मनुष्य और पशु में कोई खास अंतर नहीं रह जाता । सच्चरित्रता एक ऐसा गुण है जो मनुष्य को केवल पशु से ही ऊपर नहीं उठाता अपितु उसे महामानव बना देता है ।

आदमी की पहचान उसके चरित्र से ही होती है । यदि उसका चरित्र अच्छा होता है तो वह समाज में सम्मानित होता है । सच्चरित्र व्यक्ति अपने रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को पार करके समाज के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत करता है ।

सबसे बढ़कर उसे स्वयं पर पूरा-पूरा भरोसा होता है वह प्रत्येक कार्य दुविधामुक्त होकर पूर्ण करता है । वह अपने अच्छे कार्यों एवं चरित्र के बल पर विरोधियों का दिल भी जीत लेता है । चरित्रवान् व्यक्ति किसी प्रकार के प्रलोभन में नहीं पड़ता । सच्चाई, ईमानदारी, दृढ़ निष्ठा, आत्मविश्वास आदि गुण ऐसे व्यक्ति में स्वाभाविक तौर पर होते हैं ।

वह मर्यादाओं का पालन इसलिए नहीं करता कि उसे लोगों की नजरों में ऊँचा उठना है बल्कि इसलिए कि उसे मर्यादाओं के पालन में आत्मिक खुशी होती है । चरित्रवान् व्यक्ति धन-संपत्ति की हानि सह सकता है विपत्तियों को सहर्ष स्वीकार कर सकता है परतु अपनी चारित्रिक विशेषताओं की तिलांजलि नहीं दे सकता ।

सच्चरित्रता के कई रूप हैं । कुछ लोग सदा सत्य बोलते हैं और इसे ही अपने चरित्र की विशेषता बदलाते हैं । कुछ लोग अत्यंत कठिन मौके पर झूठ भी बोलते हैं क्योंकि वे सच बोलकर दूसरों को विपत्ति में नहीं डालना चाहते । यह भी एक प्रकार का चारित्रिक गुण कहा जा सकता है ।

कुछ व्यक्ति चोरी न करने, पर स्त्री को बुरी नजर से न देखने, अभद्र भाषा का प्रयोग न करने, दूसरों के धन को तृणवत् समझने आदि को चरित्र का गुण मानते हैं । कई व्यक्तियों का मत है कि किसी प्रकार का अन्याय न सहना भी एक प्रकार का चारित्रिक गुण ही है ।

इस प्रकार सच्चरित्रता का दायरा कहाँ तक है, इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता । पर हम इतना जरूर कह सकते हैं कि चरित्र का बल सभी प्रकार के शारीरिक एवं मशीनी बलों से बढ़कर है । वह जो चरित्रवान् नहीं है, पतन के रास्ते पर शीघ्र चल पड़ता है । एक कहावत भी है कि धन चला गया तो समझो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य बिगड़ा तो कुछ बिगड़ गया परंतु चरित्र चला गया तो समझो सब कुछ चला गया ।

सच्चरित्र महापुरुषों को लोग हमेशा याद करते हैं । राम और कृष्ण अपने चरित्र-बल के कारण साधारण मनुष्य से करोड़ों लोगों के आराध्य देव बन गए । सत्य हरिश्चंद्र ने अपने चरित्र एवं सिद्‌धांतों की रक्षा के लिए क्या-क्या कष्ट नहीं सहे !

महात्मा गाँधी ने चारित्रिक गुणों को धारण कर विश्वव्यापी अँगरेजी साम्राज्यवाद की जड़ों को हिलाकर रख दिया । महाराणा प्रताप ने जीवन भर अपने चरित्र को नहीं छोड़ा । एक साधारण से जुलाहा कबीर अपने चारित्रिक विशेषताओं के कारण महान संत बन गए ।

अच्छा चरित्र सभी तरह की धन-संपत्ति से बढ़कर है । यह हमारा हृदय निर्मल बनाता है । यह कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है । यह हमारे दुर्दिनों का सबसे बड़ा संबल है । सच्चरित्रता मनुष्य की आत्मा की पुकार और उसका सर्वस्व है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 13

समय का महत्त्व पर निबन्ध |Essay on Importance of Time in Hindi

समय हमेशा गतिमान है । काल का चक्र हमेशा घूमता रहता है । यह कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसे कोई कैद करके रख सके । एक बार जो समय व्यतीत हो गया उसे लौटाया नहीं जा सकता ।

समय की प्रतीक्षा सभी करते हैं परंतु समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता । जिसने समय का महत्त्व समझ लिया, वह चतुर है; जो समय को नहीं समझ पाया, वह मूर्ख है । प्रत्येक क्षण का मूल्य है । क्षण-क्षण का उपयोग करने में ही समझदारी है । शिक्षा काल को मौज-मस्ती का समय मानने वाले विद्यार्थी बाद में हाथ मलते रह जाते हैं ।

आग लगने पर कुआँ खोदना व्यर्थ है । बीमारी समय पर पहचान में नहीं आई तो स्वास्थ्य का ईश्वर ही मालिक है । समय पर भोजन नहीं मिला तो स्वास्थ्य चौपट होना निश्चित है । फसलों की सिंचाई समय पर नहीं हो सकी तो अच्छी फसल नहीं प्राप्त की जा सकती । कहा भी गया है:

“का वर्षा जब कृषि सुखाने समय चूकि पुनि का पछिताने ।”

अत: प्रत्येक कार्य समय पर होना चाहिए । सोना-जागना, पढ़ना, खेलना, प्रार्थना, ध्यान, चिंतन-मनन सभी कार्यों का एक निश्चित काल होता है । समय क्य महत्व न समझने वाले पछताते और हाथ मलते रहते हैं । इसलिए जो कार्य आवश्यक है, उसे अभी और इसी वक्त कर लेना चाहिए ।

”काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होयगी, बहुरि करोगे कब ।”

काम को भविष्य पर टालना उचित नहीं । अभी आप हैं, आपके पास समय है । सब कुछ आपके वश में है अत: कोई काम करने क्य यही उचित समय है । आने वाले समय में पता नहीं क्य हो जाए, समय आपका साथ न दे, कुछ भी हो सकता है ।

समय बड़ा बलवान है । यह एक-सा कभी नहीं रहता । कब यह सुखमय य दु:खमय हो जाएगा, अनुमान नहीं लगाया जा सकता । समय बुरा से बुरा भी आ सकता है, इस लिए बुद्धिमान व्यक्ति बुरे समय के लिए पहले से ही कुछ धन क संचय कर रखते हैं । सयाना व्यक्ति हर तरह के समय के लिए तैयार रहता है ।

समय गर्व और अंहकार क्य शत्रु है । समय बड़े से बड़े अहंकारियों के गर्व को चूर-चूर कर देता है । रावण दुर्योधन आदि महा अहंकारियों को समय आने पर काल के गाल में समान पड़ा । सिकंदर का विश्वविजयी बनने का स्वप्न साकार न हो सका ।

हिटलर लाखों लोगों की हत्या करने के बावजूद परिस्थितियों को अपने अनुकूल न बना सका । समय एक उपचारक भी है । बड़े से बड़े जख्म भी समय के साथ-साथ भर जाते हैं । जो आज शत्रु है कल वह मित्र बन सकता है । आज जो गरीब और दीन-हीन है कल सर्वप्रभुत्व-संपन्न बन सकता है । समय अपराजेय है ।

अत: इसका महत्त्व समझकर इसे अपने अनुकूल बनाने का सदैव प्रयत्न करना चाहिए । दु:ख के समय धैर्य धारण करना चाहिए तथा सुख का समय आने पर इस समय को आत्मोद्धार के कार्यो में लगाना चाहिए ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 14

बाढ़ का दृश्य पर निबन्ध | Essay on Scene of A Flood in Hindi

मेरे पिताजी उस समय आसाम प्रांत के एक जिले में पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे । संध्या चार बजे उन्हें सूचना मिली कि ब्रह्मपुत्र नदी का तटबंध टूट जाने के कारण हमारे शहर में बाद का पानी किसी भी समय प्रवेश कर सकता है ।

पूरे शहर में यह सूचना प्रसारित कर दी गई । परंतु लोगों के पास किसी सुरक्षित स्थान में चले जाने के लिए पर्याप्त समय न था । इसलिए सभी ने आस-पड़ोस के किसी ऊँचे स्थान में या छत पर शरण ले ली । परंतु लगातार वर्षा होने के कारण यहाँ आश्रय लेना भी कठिन था । बाढ़ का पानी धड़धड़ाता हुआ शहर में प्रवेश कर गया ।

शहर भर में अफरातफरी मच गई । यहाँ के निचले हिस्से के सभी घरों में जलप्लावन की स्थिति हो गई । कई लोगों के कमजोर मकान गिर गए । इस कारण कई लोग मकान के मलबे में दबकर मर गए । जब मनुष्य ही सुरक्षित नहीं थे तो पालतू एवं घरेलू पशुओं की कौन देखभाल करता ।

अत: शहर के हजारों पशु बाढ़ के पानी में डूबकर मर गए । प्रशासन भी असहाय स्थिति में था । हमारे बँगले में भी दो फुट पानी आ गया । हम लोग घर की आवश्यक वस्तुओं को दराज आदि पर रखकर छत पर खड़े हो गए ।

पूरी रात हमने भूखे-प्यासे रहकर तथा जागते हुए बड़ी कठिनाई से बिताई । ऊपर से रह-रहकर हो रही वर्षा ने तो हमारी हालत और भी पतली कर दी । शहर के बच्चों तथा वृद्ध लोगों का तो बुरा हाल था । बीमार व्यक्तियों में से कई इस बाद में अपनी जान गँवा बैठे । सुबह होते-होते बाढ़ का पानी काफी उतर गया ।

बाद पीड़ितों ने कुछ राहत की साँस ली । प्रशासन सक्रिय हो उठा । कई स्थानों पर राहत शिविर खोल कर बाढ़ पीड़ितों को भोजन एवं स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई गईं । वायु सेना के हेलीकॉप्टरों ने शहर तथा आस-पड़ोस के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में भोजन दूध और पानी के पैकेट गिराए ।

शहर के निचले इलाकों में बाद का पानी अभी भी जमा हुआ था । लोग अभी भी बेहाल थे । यहाँ के कुछ लोगों को अस्थाई शिविरों में स्थानांतरित कर दिया गया । बहुत से व्यक्ति अपना घर-बार छोड्‌कर इन अस्थाई शिविरों में शरण लेने के लिए विवश थे । तीन दिन बाद बाद का पानी पूरी तरह उतर गया ।

लोग अपने-अपने घरों में चले गए । परंतु शहर की सामान्य स्थिति बहाल होने में लगभग दस दिनों का समय लग गया । गलियों में कीचड़ होने तथा गड्‌ढों में गंदे जल का जमाव होने के कारण संक्रामक बीमारियाँ फैल गईं ।

लोग बड़ी संख्या में बीमार पड़ने लगे । कई दिनों तक चारों ओर से दुर्गंध उठ रही थी । प्रशासन की ओर से लोगों की हरसंभव सहायता की गई । बाद पीड़ितों को नए घर बनाने क्षतिग्रस्त मकानों की मरम्मत करने आदि के लिए अनुदान दिए गए ।

शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं । इस भयंकर बाद में लगभग एक सौ व्यक्तियों की अमूल्य जानें गईं तथा अरबों की चल-अचल संपत्ति का नुकसान हुआ । ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में लगी फसलें पूरी तरह नष्ट हो गई ।

कई स्थानों पर पक्की सड़कों तथा पुलों के टूटने से यातायात व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा । बिजली तथा टेलीफोन जैसी आवश्यक सेवाएँ कई दिनों तक बाधित हो गईं । भीषण बाद का यह दृश्य अब भी स्थानीय नागरिकों के बीच चर्चा का विषय है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 15

एक अद्भुत दृश्य पर निबन्ध | Essay on A Wonderful Scene in Hindi

श्रावण मास में मुझे द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक झारखंड स्थित देवघर नामक स्थान की तीर्थयात्रा करने का अवसर प्राप्त हुआ । यहाँ रावणेश्वर महादेव का एक प्राचीन एवं भव्य मंदिर है ।

श्रावण मास में यहाँ गेरुआ वस्त्रधारी काँवरियों को बड़ी संख्या में देखा जा सकता है । सभी काँवरिए लगभग सौ किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए बाबा नगरी में आकर शिव को गंगाजल अर्पित करते हैं । शहर में चारों ओर अछूत दृश्य था । लाखों की संख्या में गेरुआ वस्त्रधारी तीर्थयात्री शहर की सड़कों, गलियों, चौराहों आदि स्थानों में दिखाई दे रहे थे ।

‘बोल बम’ के नारे से वातावरण भक्तिमय हो उठा था । धर्मशालाओं, होटलों तथा खुले स्थानों में तंबू ताने हुए, भजन-कीर्तन करते हुए तीर्थयात्रियों को देखकर मन रोमांचित हो उठा । कहीं भी तिल रखने की जगह नहीं थी । बाजार आकर्षक ढंग से सजे हुए थे । चूड़ियों, मिठाइयों, पूजा-अर्चना की वस्तुओं, फलों, प्रसाद सामग्रियों आदि की दुकानों पर सर्वत्र भीड़ लगी हुई थी ।

कई जगह यात्रियों को मुफ्त भोजन कराया जा रहा था । मंदिर परिसर तक जाने के मार्ग में कई किलोमीटर दूर से ही लोग दो पंक्तियों में खड़े थे । पुरुषों एवं महिलाओं के लिए अलग-अलग पंक्तियाँ थीं । सुरक्षाकर्मी बड़ी संख्या में इस अपार जन-समूह को नियंत्रित कर रहे थे ।

सभी श्रद्धालु महादेव को जल अर्पित करने की लालसा में घंटों पंक्तियों में धैर्यपूर्वक खड़े थे । मंदिर में प्रवेश करना सरल न था । लोग सादे वेश में पुलिस के जवानों की बेंत खाते हुए भी विचलित न हो रहे थे । पुजारी-पड़े भक्तों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे । बेल-पत्र, फूल बेचने वाले भी यहाँ काफी सख्या में थे । इस भव्य और अद्धत दृश्य को मैंने कैमरे में कैद कर लिया ।

इस धार्मिक मेले में दूर-दूर के तीर्थयात्री भी आए हुए थे । वे शिव की पूजा कर बाजार में खरीदारी करते थे तथा अगले दिन अपने घर लौट जाते थे । राज्य सरकार की ओर से इस श्रावणी मेले के लिए पुख्ता प्रबंध किया गया था ।

जगह-जगह सहायता कैंप लगे हुए थे । कई स्थानों पर खोए हुए व्यक्तियों के संबंध में सूचना प्रसारित की जा रही थी । विभिन्न स्थानों पर चिकित्सा सेवाएँ उपलब्ध कराई जा रही थीं । इस श्रावणी मेले का अछूत दृश्य शब्दों में पूरी तरह बयान नहीं किया जा सकता ।

लोगों की अपार श्रद्धा जब एक स्थान पर प्रकट होती है तो इसका दृश्य बड़ा ही मनभावन होता है । पूरे एक महीने तक चलने वाला यह मेला पूरे ससार में अनूठा कहा जा सकता है । अनुमानत: लगभग एक करोड़ श्रद्धालु पूरे श्रावण मास में यहाँ आकर धर्मप्राण देश भारत की संस्कृति को चरितार्थ करते हैं ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 16

देश-सेवा पर निबन्ध | Essay on Service to Country in Hindi

देश-सेवा का अर्थ है – देश के हित में कार्य करना । देश के लोगों के लिए काम करने में जो सुख और आनंद है वह किसी अन्य कार्य में नहीं । देश-सेवा बड़े ही पुण्य का काम है ।

देश-सेवा व्यापक अर्थो में जीव-मात्र की सेवा है । प्रत्येक देश की अलग-अलग समस्याएँ होती हैं । बदलते समय के साथ-साथ ये समस्याएँ भी बदल जाती हैं । जिस समय हमारा देश पराधीन था उस समय की तथा आज की परिस्थितियों में काफी भिन्नता है ।

पराधीनता काल में देश को स्वतत्र कराने के लिए काम करना देश-सेवा थी । उस समय हमारे देशवासियों ने देश-सेवा का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज देश की सेवा करने का उद्देश्य देश को हर प्रकार से उन्नत एव समृद्ध बनाना होना चाहिए । आज देशवासी देश के जिस किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों, वहीं से वे देश की सेवा कर सकते हैं ।

किसान, मजदूर, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक, अध्यापक, प्रशासक, साहित्यकार, सैनिक, खिलाड़ी, डॉक्टर, तकनीशियन आदि विभिन्न क्षेत्रों के लोग देश की उन्नति में अपना योगदान दे सकते हैं । कुछ लोग देश-सेवा का दिखावा करते हैं । देश-प्रेम की चिकनी-चुपड़ी बातें करना लंबे-चौड़े व्याख्यान देना आदि कार्य ऐसे व्यक्तियों को प्रिय होते हैं ।

परंतु जब कुछ करने की बारी आती है तो वे बगलें झाँकने लगते हैं । निजी स्वार्थ की भावना से कार्य करने वाले ऐसे देशसेवियों से किसी का भी भला नहीं हो सकता । देश-सेवक वे भी हैं जो निर्धारित वेतन लेकर देश को अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं ।

शिक्षक, कर्मचारी, क्लर्क, डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी आदि सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति भी देशसेवक हो सकते हैं, यदि उनका आचरण अच्छा हो तथा उनके मन में देश के लिए कुछ करने की भावना हो । परंतु सबसे बढ़कर देशसेवक वे हैं जो नि स्वार्थ भाव से देश के लिए कार्य करते हैं ।

देश-सेवा का व्रत लेकर काम करने वाले लोगों की संख्या बड़ी थोड़ी है । ऐसे व्यक्ति साक्षात ईश्वर के रूप होते हैं । वे दरिद्र नारायण की सेवा कर अपने को धन्य मानते हैं । मदर टेरेसा ने दीन-दुखियों की सेवा को परम धर्म मानकर अपना पूरा जीवन इसी कार्य में लगा दिया ।

जवाहर लाल नेहरू ने आराम को हराम मानकर पहले स्वतंत्रता यज्ञ में फिर राष्ट्र-निर्माण यज्ञ में अपनी आहुति दी । किसी समय सम्राट अशोक चद्रगुप्त मौर्य चाणक्य कालिदास आदि महान व्यक्तियों ने अपनी सेवा के द्वारा मातृभूमि का ऋण चुकाया था । आज भी हमारे देश के वीर सैनिक अपने मन में देश-सेवा का संकल्प लिए अपने क्षेत्र में डटे हुए हैं ।

देश-सेवा का कार्य आम नागरिक भी कर सकता है । वह प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित व्यक्ति की मदद कर सकता है । वह कोई रचनात्मक कार्य करके समाज को नई दिशा दे सकता है । वह आस-पड़ोस के स्थानों को साफ-सुथरा रखकर देश के सौंदर्य को बढ़ा सकता है ।

वह वृक्षारोपण करके पर्यावरण संकट को कम कर सकता है । वह साक्षरता अभियान में शामिल होकर अनपढ़ होने के कलंक को मिटा सकता है । खेल, पत्रकारिता, साहित्य, सृजन, गायन-वादन आदि अनेक क्षेत्र हैं जिसके माध्यम से देश-सेवा की जा सकती है । सरकार विभिन्न सेवाव्रती लोगों को भारत रत्न पद्‌म विभूषण आदि पुरस्कार देकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 17

अनुशासन पर निबन्ध | Essay on Discipline in Hindi

व्यवस्थित जीवन का नाम अनुशासन है । अपने को किसी नियम के अधीन रखना तथा ऐसे नियमों का पालन करना जो समाज के हित में हो, वह अनुशासन है ।

भाँति-भाँति के प्रलोभनों के बीच आत्म-नियंत्रण का प्रयास अनुशासन है । जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्त्व है । यदि सेना अनुशासित न हो तो देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है । यदि पुलिस के जवान अनुशासनहीन हों तो देश में आंतरिक अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।

यदि नौकरशाही देश के नियमों का उल्लंघन करे तो देश का विकास अवरुद्ध हो जाता है । विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता जब आम हो जाए तो शिक्षा-व्यवस्था तथा शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य अर्थहीन हो जाता है । अनुशासन का पालन तो निर्जीव भी करते हैं । ठोस द्रव और गैसीय पदार्थ अपने-अपने गुणधर्म का पालन करते हुए अनुशासन बरतते हैं ।

चंद्रमा पृथ्वी का तथा पृथ्वी सूर्य का परिक्रमण बड़े नियम से करती है । सूर्य नियम से उगता और अस्त होता है । ऋतु-चक्र समय पर आते हैं । आम्र-मंजरियाँ तथा फूल समय पर खिलते हैं । सूर्यमुखी सदा सूरज की ओर रुख किए खिलता है । जब प्रकृति इतनी अनुशासित हो तो मनुष्य इस नियम को कैसे अस्वीकार कर सकता है ।

अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा अपने भीतर से आनी चाहिए । जब अनुशासन एक बोझ लगे, जब अनुशासन व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खंडित करे तो यह अनुशासन नहीं है । देश और समाज के नियमों का पालन करना अनुशासन है परंतु जब कोई नियम व्यक्ति की गरिमा के प्रतिकूल हो तो अनुशासन लालफीताशाही और अंधविश्वास का रूप ले लेता है ।

पर ये बातें सज्जनों के लिए हैं, अपराधियों को तो उन्हीं की भाषा में समझाना पड़ता है । कुछ लोग धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर प्रचलित नियमों को तोड़ते हैं और नियम-कानूनों की दुहाई देते हैं । यह अनुशासनहीनता ही है । वर्तमान समय में अनुशासनहीनता समाज के प्रत्येक वर्ग में व्याप्त है ।

शिक्षा-संस्थानों में छात्र-छात्राओं के मध्य गुटबाजी मारपीट और चरित्रहीनता की घटनाएँ आम हो चली हैं । हमारे यहाँ बहुत से विद्यालय ऐसे हैं जहाँ शिक्षक हैं तो विद्यार्थी नहीं और यदि विद्यार्थी हैं तो शिक्षक नहीं । शिक्षा विद्यार्थियों पर एक बोझ बनती जा रही है । परिवारों में भी काफी अनुशासनहीनता है ।

मर्यादाओं का क्षरण हो रहा है परिवार कलह के अट्टे बनते जा रहे हैं । पिता-पुत्र, भाई-भाई, भाई-बहन आपस में लड़-झगड़ रहे हैं और पारिवारिक शांति भग्न हो रही है । इसका प्रभाव समाज पर पड़ रहा है । समाज में परस्पर सहयोग आपसी भाईचारा और सह-अस्तित्व की भावना घट रही है ।

हमारे चारों ओर जितनी भी अव्यवस्थाएं एवं बुराइयाँ हैं उन सबका मूल कारण अनुशासनहीनता है । इसलिए अनुशासन का पालन आवश्यक हो गया है । अनुशासन हमारे जीवन की आधारशिला होनी चाहिए । इसी पर सुख-समृद्धि और विकास का महल खड़ा हो सकता है । यदि हर जगह अनुशासन हो तो राष्ट्र की उन्नति का मार्ग पशस्त हो जाता है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 18

शिष्टाचार पर निबन्ध | Essay on Etiquette / Good Manner in Hindi

शिष्ट आचरण शिष्टाचार कहलाता है । सभी व्यक्तियों के साथ विनम्रता का बर्ताव करना, किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाना, छोटे-बड़े का लिहाज करना तथा हर प्रकार से मर्यादित आचरण करना शिष्टाचार है । शिष्टाचार व्यक्ति विशेष का आभूषण है ।

यह वह गुण है जिसे धारण करने से सामाजिक जीवन में ताजगी आती है हमारा व्यक्तित्व निखर उठता है । शिष्टाचार वाणी और हाव-भाव से प्रकट होता है । बड़ों के साथ ऊँची आवाज में बात करना एवं उनके साथ उपेक्षापूर्ण बर्ताव करना शिष्टाचार के विरुद्ध है ।

समूह में चल रहे हों तो बड़ों से आगे-आगे चलना असमय क्रोध करना बात-बात पर झुँझला उठना आदि कार्य शिष्टाचरण के खिलाफ हैं । हमारी वाणी में मधुरता होनी चाहिए । बातचीत में ‘हाँ जी’, ‘नहीं जी’ जैसे शब्दों का प्रयोग शिष्टाचार की परिधि में आता है । किसी की पीठ के पीछे बुराई न करना भी शिष्टाचार का एक अंग है ।

शिष्टाचार हमारे सार्वजनिक जीवन को सुखद एवं सहज बनाता है । टिकट खिड़की पर तथा बस-ट्रेन आदि पर चढ़ते-उतरते समय पंक्ति में खड़ा होना चाहिए । कोई यदि थोड़ी भी सहायता करें तो उन्हें ‘धन्यवाद’ या ‘शुक्रिया’ कहना चाहिए ।

पूजा स्थलों के अदर जूते-चप्पल उतार कर जाना चाहिए । महिलाओं एवं बुजुर्गो के लिए बस या ट्रेन की सीट खाली कर देना भी शिष्ट व्यवहार है । सार्वजनिक स्थानों में धक्का-मुक्की करते हुए आगे बढ़ना एक अशिष्ट व्यवहार है जिससे बचना चाहिए ।

सम्मानित व्यक्तियों के लिए ‘तुम’ के स्थान पर ‘आप’ का प्रयोग करना चाहिए । किसी के नाम के पूर्व श्री श्रीमान् श्रीमती आदि शब्दों का प्रयोग शिष्टता है । कटु वचन बोलना, चुगली करना, निंदा करना आदि शिष्टाचारहीन व्यक्तियों के लक्षण हैं । हमें व्यर्थ बोलने की अपेक्षा कम बोलना चाहिए अथवा मौन धारण करना चाहिए । हमें प्रिय बोलना चाहिए, अप्रिय सत्य कदापि नहीं बोलना चाहिए ।

कबीरदास जी कहते हैं:

”ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय । आपन तन शीतल करें, औरन को सुख होय ।।”

अर्थात् ऐसी वाणी बोलिए जिससे अपना चित्त शांत रहता हो तथा दूसरों को सुख मिलता हो । हमें दूसरों के हित की बात अवश्य कहनी चाहिए परतु ऐसा न लगे कि आप किसी पर अपनी विद्वता झाड़ रहे हों । हर समय उपदेशात्मक शैली में बात करना शिष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता ।

वर्तमान समय में शिष्टाचरण एक बोझ बनता जा रहा है । स्त्रियों एवं बुजुर्गों का अपमान करना नवयुवक-नवयुवतियों के स्वभाव का अग बनता जा रहा है । बिना बात के झगड़ पड़ना दूसरों के धन को हड़पना बात-बात में अभद्र भाषा का प्रयोग करना हर समय आक्रामक शैली में बातें करना आदि बातें खूब चलन में हैं । आज शिष्ट व्यवहार की चिंता करने वाले बहुत थोड़े से हैं ।

शिष्टाचार को धारण करना शुभ लक्षण है । व्यवहार और आचरण की शुद्धता हमारे जीवन को उन्नत बनाती है । परंतु अति शिष्टाचार से बचना चाहिए । हमारे व्यवहार में एक प्रकार का संतुलन रहना चाहिए । शिष्टता हमारे भीतर से फूटनी चाहिए, यह कहीं से उधार लेने की वस्तु नहीं है ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 19

श्रम का महत्त्व पर निबन्ध | Essay on Importance of Labour in Hindi

आज के अर्थप्रधान युग में भी श्रम का महत्व उतना ही है जितना पहले हुआ करता था । यह मनुष्य का एक ऐसा हथियार है जिसका प्रयोग कभी भी निरर्थक नहीं होता है । मेहनत करने वाला इसान अपने भाग्य को झुठला सकता है, वह कर्मयोगी बन सकता है ।

गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि कर्म करना ही मनुष्य के अधिकार में है । जो मनुष्य सुख-दुख, हानि-लाभ की परवाह न कर अपने निर्धारित कर्म करता है वह पुण्यात्मा कहलाता है । वैसे कर्म अनेक हैं परंतु इसका एक रूप शारीरिक श्रम है जो सदैव हमें ऊँचा उठाता है ।

जो श्रम करता है उसे ही सच्चे सुख की प्राप्ति हो सकती है । स्वय श्रम करके धनोपार्जन करने में जिस प्रकार की संतुष्टि होती है वह देवदुर्लभ है । मेहनत करके खाने वाला मनुष्य उन मनुष्यों से श्रेष्ठ है जो मुफ्त की रोटियाँ तोड़ते हैं । इस संसार में जो कुछ अच्छा है वह श्रम का प्रतिफल है । ताजमहल बाईस हजार श्रमिकों के श्रम की गाथा बयान करता है । बड़े-बड़े बाँध मानवीय श्रम की दास्ताँ कहते हैं ।

सड़कें, अट्टालिकाएँ, महल, बाग-बगीचे, कल-कारखाने ये सभी श्रमिकों के खून-पसीने से बने हुए हैं । कुतुबमीनार, लाल किला, प्राचीन भव्य मंदिर आदि मानवीय प्रयत्नों के परिणाम हैं । किसानों के श्रम से अरबों लोगों का पेट भरता है । कल-कारखानों में उत्पादन औद्यौगिक श्रमिकों के बलबूते ही होता है ।

शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा गया है कि जो बिना श्रम किए खाता है वह चोर ही है । जो व्यक्ति बिना मेहनत किए जीता है वह व्यर्थ ही जीता है । कुछ लोग श्रम करें और कुछ लोग इनके श्रम से अपना जीवन सुखपूर्वक काटे यह नीति अत्यंत दोषपूर्ण है ।

बहुत से लोग कठिन श्रम करके भी अच्छी तरह अपना पेट नहीं भर सकते हैं तो दूसरी ओर कुछ लोग बैठे-बैठे ही सारी सुविधाएँ हासिल कर लेते हैं । यह श्रम का अपमान है । शारीरिक श्रम शरीर को तंदुरुस्त रखता है । श्रम करने वालों को खुलकर भूख और नींद लगती है ।

उनको व्याधियाँ कम सहनी पड़ती हैं । श्रम न करने वाले व्यक्ति कई असाध्य बीमारियों से पीड़ित रहते है । उन्हें गोलियाँ खाकर नींद लानी पड़ती है वे सच्ची भूख के लिए तरस जाते हैं । मोटापा, मधुमेह, कब्ज जैसी समस्याएँ श्रम के महत्त्व को कम करके आँकने के परिणाम हैं ।

किसी भी देश का विकास उनके मेहनती नागरिकों के बल पर ही संभव है । आज दुनिया में जितने भी विकसित राष्ट्र हैं उन सभी राष्ट्रों के नागरिकों ने जीतोड़ श्रम किया है । हमारे देश में भी मेहनती लोगों की कमी नहीं है परंतु हमारे बहुत से नागरिक श्रम को हेय दृष्टि से देखते हैं ।

भारत में बेकारी की समस्या भी इतनी विकट है कि अनेक व्यक्तियों को श्रम करने के स्वाभाविक अधिकार से वंचित रखा गया है । अनेक श्रमिक बेकार हैं । श्रम किसी भी प्रकार का हो, उसे छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए ।

ADVERTISEMENTS:

मोची, बढ़ई, लोहार, कुम्हार, किसान, रिकशाचालक, खेतिहर एवं औद्योगिक श्रमिक दरजी आदि सभी हमारे समाज के ऐसे मजबूत स्तंभ हैं जिनके बलबूते राष्ट्र रूपी विशाल महल खड़ा है । श्रम की महिमा को किसी भी तरीके से कम करके नहीं का जा सकता ।


Hindi Nibandh for CBSE Students (Essay) # 20

देश-प्रेम पर निबन्ध | Essay on Patriotism in Hindi

मनुष्य जिस देश में रहता है, उससे उसका लगाव स्वाभाविक रूप से हो जाता है । वह अपने परिवार, अपने गाँव, अपने शहर, अपने प्रातंग और अपने देश से प्रेम करने लगता है ।

ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं जो ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के अधीन पूरे संसार को ही अपना परिवार मानकर उससे प्रेम करते हैं । अत: देश-प्रेम मनुज का स्वाभाविक गुण है । साधारण अर्थो में देश के प्राय: सभी निवासी देश-प्रेमी होते हैं परतु वास्तविक अर्थो में देश-प्रेम का दायरा बहुत बड़ा है । सच्चा देश-प्रेमी अपने देश का मस्तक कभी भी नीचा होता नहीं देख सकता ।

वह अमीर-गरीब, जाति-पाति, धर्म-संप्रदाय आदि संकीर्णताओं से ऊपर उठकर देश की सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदा तत्पर रहता है । वह सामाजिक बुराइयों एवं अंधविश्वासों से लड़ता है । वह देश की समस्याओं से भली-भांति परिचित होता है ।

वह इन समस्याओं को समाप्त करने के लिए प्राणपन से कार्य करता है । वह भ्रष्टाचारियों, गुरुघंटालों और अपराधियों के विरुद्ध आवाज उठाता है । वह जब भी कोई कार्य करता है देश का हित-अहित देखकर करता है । एक प्रसिद्ध उक्ति है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है ।

जब बच्चे को कुछ भी कष्ट होता है तो वह अपनी माता की शरण में जाता है । देश के नागरिक भी अपने देश में रहकर जीवन के सुख भोगते हैं । देश की मिट्टी की भीनी खुशबू वनस्पतियाँ नदी, तट, झरने, सरोवर, बाग-बगीचे, फल-फूल आदि सभी पदार्थ उसे बड़े प्यारे लगते हैं ।

वह यहाँ बचपन में खेलता है । सीखता है अपने सपनों को साकार करता है । उसे सारे जहाँ से अच्छा अपना देश लगता है । अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, खान-पान, बोली, भाषा आदि से उसका जुड़ाव इतना अधिक होता है कि वह स्वप्न में भी स्वयं को देश से अलग नहीं कर पाता है ।

प्रवासी देशवासियों को भी अपने देश की खूब याद आती है । देश-प्रेम के रूप में वह देश के प्रति आभार प्रकट करता है । यह देश के प्रति असीम प्रेम ही है कि सैनिक अपने देश की रक्षा हेतु मरने-मारने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

कवि देशभक्ति की कविताएँ रचते हैं । कलाकार अथक श्रम कर लोकगीत, लोकनृत्य आदि का अभ्यास करते हैं ताकि देश की प्राचीन परंपराएँ जीवित रहें । कुम्हार जब मिट्टी के बरतन बनाता है तो वह अपने देश की फिाई का पूजक बन जाता है ।

किसान खाद्य पदार्थों को उगाकर देश के प्राणों को सिंचित करता है । मनुष्य ही क्यों, पशु-पक्षी भी अपने देश से प्रेम करते हैं । देश प्रेम के अधीन कोयल मधुर तान छेड़ती है । प्रवासी पक्षी घूम-फिर कर अपने देश लौट आते हैं । देश-प्रेम के वशीभूत एक पुष्प की इच्छा कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने इन पंक्तियों में व्यक्त की है:

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक । मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक ।।

प्रत्येक राष्ट्र अपने उन अमर देश-प्रेमियों का आभारी होता है जो देश हितार्थ अपने जीवन का त्याग कर देते हैं । भगत सिंह महाराणा प्रताप, महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, आदि देशभक्तों ने देश-प्रेम की एक नई परिभाषा लोगों को बतलाई ।

गाँधी जी देश-प्रेम को अपने निजी धर्म का एक मा मानते थे । प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से अपने देश-प्रेम को व्यक्त किया । देश-प्रेम के विविध रूप हैं । देश को हर प्रकार से उन्नत, सौंदर्य से परिपूर्ण तथा पर्यावरण की दृष्टि से शुद्ध एवं प्रदूषण मुक्त बनाए रखना देश-प्रेमी की अभिलाषा होनी चाहिए । हमें देश-प्रेम को अपने हृदय में धारण करना चाहिए ।

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