वाद-विवाद समिति के लाभ और हानियां पर अनुच्छेद | Paragraph on Benefit and Loss of a Debating Society in Hindi

प्रस्तावना:

वाद-विवाद समिति एक ऐसी संस्था होती है । जिसमें किसी निर्दिष्ट विषय पर वाद-विवाद किया जाता है । कुछ सदस्य विषय के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तथा अन्य उसके विरोध में अपना मत व्यक्त करते हैं ।

इस प्रकार एक के बाद एक सदस्य एक-दूसरे के विचारो को तब तक काट प्रस्तुत करते जाते हैं, जब तक सभी सदस्य नहीं बोल चुकते । अन्त में, समिति का अध्यक्ष अपने विचार प्रस्तुत करता है और विषय के दोनो पक्षों के विचारों का निचोड़ पेश करके वाद-विवाद समाप्त घोषित कर देता है ।

वाद-विवाद समितियों के लाभ: हमें दूसरों के सामने बोलना आता है:

वाद-विवाद समिति एक प्रकार का ऐसा प्रशिक्षण केन्द्र है, जहाँ विद्यार्थियों को यह सिखाया जाता है कि वे कैसे भाषण दें तथा अपनी बात को तर्कपूर्ण ढंग से पेश कर सकें । इसमे भाग लेकर हम दूसरों के सामने बोलकर अपनी झिझक मिटा सकते हैं और इस प्रकार भाषण-कला और तर्क-बुद्धि से पारगत हो सकते हैं ।

इससे हमारी सोई हुई शक्ति जागृत होती है, जो इसके बिना सदैव सुप्त ही रहती है । इससे विचार-शक्ति इतनी प्रखर हो जाती है कि आगे चलकर जीवन की कठिन समस्याओं रो जूझना आसान हो जाता है ।

अधिकांश बालकों को एक नए जीवन की गहन समस्याओं के सम्बन्ध में बातचीत में हिस्सा लेना ही पड़ेगा । अत: यह प्रशिक्षण जो वाद-विवाद समिति द्वारा मिलता है, उससे भावी जीवन में हमें बड़ी सहायता मिलती है ।

सफल बहसकर्त्ता बनाती है:

वाद-विवाद समिति से हमें बहस करना आता है । वाद-विवाद में अपने विरोधी के विचारों में से किसी कमजोर तर्क द्वारा काटने की आवश्यकता होती है । ऐसा करने के लिए हमें दूसरो के द्वारा दिए गए भाषण को ध्यान से सुनना पड़ता है, जिससे धैर्यपूर्वक दूसरों की बात ध्यान से सुनने की आदत पड़ जाती है । इससे हमें अच्छे ढंग से उत्तर देना भी आ जाता है ।

मस्तिष्क का विकास और खीझ तथा गुस्से पर नियन्त्रण:

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वाद-विवाद समिति से हमारे मस्तिष्क का विकास होता है । इसमें भाग लेकर हमें यह अच्छी तरह समझ में आ जाता है कि जो व्यक्ति हमारे विचारों से सहमत नहीं हैं, उनकी राय का भी महत्त्व है । ऐसा हो जाने पर हम विषय के दोनों पक्षों पर विचार करना सीख लेते हैं ।

जिससे बुद्धि प्रखर होती है । इससे हमें अपने गुस्से और खीझ पर अपने नियत्रण रखना भी आ जाता है, क्योंकि हम रेयष्ट रूप से देखते है कि जो वक्ता अपने विचारों को तनिक भी गुरसे या खीझ से प्रस्तुत करता है, वह दूसरों पर तनिक भी प्रभाव नहीं डाल पाता और व्यर्थ में अपना पक्ष कमजोर कर लेता है ।

हानियाँ:

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यह सच है कि वाद-विवाद समिति के अनेक लाभ हैं, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है । एक तो इससे लोगों में व्यर्थ की बहस करने की आदत बन सकती है, जौ उन्हें झगड़ालू प्रवृति का बना सकती है । दूसरे परस्पर विरोधी विचारों को लेकर आपस में तनाव पैदा हो सकता है ।

मित्रों के बीच लम्बी बहस कभी-कभी एक-दूसरे को अपने ही पक्ष में अड़े रहने पर मजबूर करके उनके बीच दुश्मनी तक पैदा कर देती है । इसके अलावा, कभी-कभी वे अर्थ की बहस में पड़कर बहुत-सा समय और शक्ति नष्ट कर देते है । ऐसी आदत बन जाने पर भावी जीवन दुःखमय बन सकता है ।

उपसंहार:

वाद-विवाद में भाग लेने वालों को बड़ा सावधान रहना चाहिए । उन्हे स्वस्थ भावना से वाद-विवाद में भाग लेना चाहिए । उनके विचार-विमर्श का उद्देश्य सदैव यह होना चाहिये कि वे विषय के दोनों पक्षों पर भलीभाँति विचार करके सचाई तक पहूँच जायें । हमे व्यर्थ की बहस में पड़कर दुश्मनी मोल नहीं ले लेना चाहिए ।