ग्रामीण जीवन का आनन्द पर अनुच्छेद | Paragraph on The Pleasure of Life in the Village in Hindi

प्रस्तावना:

अति प्राचीनकाल से कवि, विद्वान् तथा साधारण व्यक्ति सभी ग्रामीण जीवन के आनन्द के गुण गाते रहे है, फिर भी ससार के हर देश में आज भीड़भाड़ से भरे शहरों और नगरों की ओर दौड़ रहे हैं । ऐसा लगता है कि इन लोगों के लिए ग्रामीण जीवन में कोई आकर्षण नहीं रह गया है । वस्तुस्थिति कुछ भी क्यों न हो, ग्रामीण जीवन का अपना विशेष आनन्द है, जिसकी शहरों में कल्पना तक नहीं जा सकती ।

प्रकृति के असली रूप का दर्शन:

गांवों में ही प्रकृति के असली रूप और सौन्दर्य के दर्शन हो सकते हैं । किसी कवि ने बिल्कुल ठीक कहा है कि ”ईश्वर ने गांवों की रचना की और आदमियों ने शहरों की” । गांवों का नैसर्गिक सौन्दर्य, वहाँ की सरलता और कृत्रिमता का अभाव हमें यह मनाने पर मजबूर करता है कि गांव ईश्वर की रचना है ।

शहरों में हमें हर तरफ कृत्रिमता ही दिखाई देती है । शहरों के उद्यागों में प्रकृति का रूप हमे ऐसा लगता है, जैसे पिंजड़े में बन्द पक्षी या जानवर लगते हैं । इसमें भी मानव जनित कृत्रिमता अवश्य लक्षित होती है । प्रकृति का असली रूप देखकर हमें बड़ा आनन्द आता है ।

जितनी साफ और निर्मल वायु हमें गांवो में मिलती है, शहरो में चिमनियों से उठते धुए और मनुष्यों की भीड़भाड़ में उसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती । सुबह और शाम पक्षियों के मधुर कलरव को सुनकर शहरों का कृत्रिम संगीत फीका पड़ जाता है । यही पेड़ों के पीछे उगते और ढ़लते हुए सूरज की निराली छटा निराली ही दीख पड़ती है । नदियो का कलकल, बैलों गले की घंटियों की मधुर आवाज मन मोह लेती हैं ।

सीधा-सादा निष्कपट जीवन:

गांवों का जीवन सरल, सीधा-सादा और निष्कपट होता है । यही के लोग शान्तिप्रिय और सरल हृदय के होते हैं । छल-प्रपच और चालबाजियों से परे भोले-भाले ग्रामीण हमारा हृदय जीत लेते हैं । यही कारण है कि लोग शहर की भीडभाड से उकता कर इन्हीं के बीच जीवन बिताना पसन्द करते हैं ।

गांवों के निवासियों के व्यवसाय भी बड़े सरल होते हैं, जिनके लिए किसी लम्बी चौड़ी शिक्षा अथवा प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती । यही के अधिकांश लोग खेती करते हैं । बचपन से सभी बच्चे खेती के काम स्वत: ही जान जाते हैं ।

जिन लोगों के पास खेती की जमीन नहीं होती, वे दूसरे के खेतों में मजदूरी करके गुजारा करते हैं । यहा सभी लोग कुछ-न-कुछ काम करते हैं । कोई व्यक्ति बेकार या निठल्ला नहीं दिखाई देता । कुछ लोग गाय आदि पशु चराने का काम करते हैं । केवल थोड़े-से लोग बढ़ईगीरी, लोहारगीरी, धोबी, नाई, दर्जी जैसे काम करते हैं । आमतौर पर यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आते है, इसलिए उन्हें करने के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं करनी पडती ।

ADVERTISEMENTS:

छोटे-छोटे बच्चों तक अपने मां-बाप के कामो में सहायता करते हैं । पके अनाज के खड़े खेतों से चिड़ियाँ उडाने या खरपतवार हटाने का काम बच्चे आसानी से कर डालते हैं । स्त्रियाँ घरों में लीपने-पोतने, खाना बनाने, आटा परनीने, गायों की देखभाल करने और उनका दूध आदि निकालने का काम करती हैं ।

स्वास्थ्यप्रद वातावरण:

ADVERTISEMENTS:

गांवों की स्वच्छ हवा और प्राकृतिक वातावरण और शुद्ध जल बड़ा स्वास्थ्यवर्द्धक होता है । हरे-भरे खेतों में दिनभर स्वच्छ वायु में सास लेने के कारण ग्रामीण बड़े सशक्त होते हैं और प्राय: नीरोग रहते हैं । चिडियों की चहचहाहट और बच्चों की किलकारियां अनायास ही उनकी सारी थकान दूर कर देती हैं । दिनभर थक कर लौटने पर समूचा परिवार उनका हार्दिक स्वागत करता है ।

भाईचारे दहा व्यवहार:

गावों के सभी लोग मिल-जुलकर रहते हैं । उन्नें भाई-चारे का व्यवहार होत हे । गाव की लडकी, रानी की लडकी समझो जाती र्हे । उसके ब्याह पर सभी ग्रामवासी यथायोग्य सहयोग देते हैं । अतिथियों का स्वागत पै दिल खोलकर करते हैं । बच्चों सभी बडों और वृद्धो का आदर करते है भोर उक्त चाचा, ताऊ, बाबा जैसे आदरसूअक सम्बोधनों से पुकारते है ।

शुद्ध और सात्विक भोजन:

गांवों के लोग शुद्ध और सात्विक भोजन करते है । शहरो में खाने-पीने की वस्तुओं में तरह-तरह की मिलावट एक आम बात है, लेकिने देहातो में सादा और शुद्ध तथा ताजा भोजन मिलता है ।

उपसंहार:

इन्हीं सब कारणों से ग्रामीण जीवन बडा शान्तिपूर्ण होता है । यहा के लोग बडे संतोषी होते हैं, इसलिए शहरों की तुलना में वे अधिक सुखी रहते हैं । लेकिन ग्रामीण जीवन की अनेक बुराइयाँ भी है । यही अलान, अधविश्वास, बीमारियों और गरीबी का भी नग्न प्रदर्शन दिखाई देता है । यदि ग्रामीण जीवन से इन कुछ बुराइयों को दूर किया जा सके तो यह मानव-जीवन का सर्वोत्तम स्थान हो जायेगा ।

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