पिकनिक का आनन्द पर अनुच्छेद | Paragraph on A Picnic I have Enjoyed in Hindi

प्रस्तावना:

कुछ दिन हुए हमारे स्कूल ने एक पिकनिक का आयोजन किया । इसमें मेरे सहित पच्चीस विद्यार्थी थे । हमारे प्रिंसिपल तथा पाँच अन्य अध्यापक भी साथ थे ।

हमें यह पिकनिक एक गाँव में मनानी थी, जो लगभग सोलह किलोमीटर दूर था । उस गांव की पचायत का प्रधान हमारे प्रिंसिपल का पुराना विद्यार्थी था और उनका बड़ा सम्मान करता था । उसे पहले से ही पिकनिक की सूचना दे दी गई थी ।

दोपहर का भोजन:

दिसम्बर का महीना था और रविवार का दिन । गाँव से आधी किलोमीअर दूरी पर एक रेस्ट हाउस था । हमने तय किया कि हम रेस्ट हाउस तक पैदल जायेंगे और वही साथ में खाने का सामान ले जायेंगे, उसे खाकर आगे की यात्रा बैलगाडियों में करेगे ।

अपने साथ हमने एक चपरासी लिया । खाने के लिए बिस्कुट, केक, चाय, कॉफी, दूध, केले व सरे ले लिए । कुछ डबल रोटी और मक्खन भी रख लिया । चपरासी को सारा सामान देकर उसे हमने साइकिल से रेस्ट हाउस के लिए रवाना कर दिया, ताकि हमारे वहाँ पहुँचने के पूर्व वह चाय, कॉफी व दूध गर्म करने का इतजाम कर दे ।

हम लोग अपने स्कूल से ठीक दस बजे रवाना हुए । दिसम्बर मास के सूरज की हल्की धूप में पैदल यात्रा बड़ी सुखद लग रही थी । हंसते-बोलते हम लोग लगभग एक बजे रेस्ट हाउस पहुंच गए । रेस्ट हाउस पहुँचते ही प्रिसिपल साहब ने चपरासी को फौरन गाँव के प्रधान के पास हमारे आने की सूचना देने और बैलगाडियाँ भेजने के लिए रवाना कर दिया ।

हम लोगों ने कुछ देर आराम किया और हाथ-मुँह धोकर डबल रोटी, केक, बिस्कुट आदि खाये । किसी ने चाय, तो किसी ने कॉफी पी । इसके बाद सतरे और केले खाए । हमारा पेट पूरा भर गया । अब हम लोग इधर-उधर घूमने लगे । अब तक तीन बज गए थे ।

इतने में हमे दूर से बैलगाडियो की खड़खड़ाहट व बैलों की घंटियाँ सुनाई देने लगीं । हम सब रेस्ट हाउस के पास एकत्र हो गए । इतने में हमारे लिए बैलगाडियाँ आ गईं । कुल आठ बैलगाडियाँ थीं । एक बैलगाड़ी में आठ व्यक्ति बैठे और शीघ्र ही बैलगाडियाँ गाँव की ओर चल पड़ी ।

गाँव की ओर प्रस्थान:

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बैलगाडियों में बड़े मजबूत बैल जुते हुए थे । वे बड़े तेजी से गाँव की ओर भाग पड़े । हिचकोले खाती बैलगाड़ी की यात्रा बड़ी रोमांचक रही । लगभग एक घटे में हम गाँव पहुच गए ।

पिकनिक का वर्णन:

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गाँव में हमारे ठहरने के लिए वहां के स्कूल की इमारत में प्रबन्ध किया गया । आटा, दाल, चावल, सब्जी, ईंधन और बर्तनो आदि की व्यवस्था थी । पास में ही एक नलकूप लगा हुआ था । स्कूल की इमारत के सामने एक सुन्दर उद्यान था, जिसमें एक बड़ा घास का मैदान था । हम लोगों ने मिल-जुलकर रचय खाना बनाने का निर्णय कर रखा था ।

हमारे चपरासी ने हमारी बड़ी मदद की । उसने फौरन चूल्हा जलाकर दाल चढा दी । एक दूसरे चूल्हे पर चावल चढ़ा दिए । इतने में कुछ लड़कों ने सख्ती काट ली । चावल जल्दी पक गए । उसे उतार कर उसी चूल्हे पर सब्जी छौंक दी । कुछ लडके प्याज, टमाटर आदि काटकर सलाद तैयार करने लगे । एक अध्यापक ने आटा सानने का काम कर दिया । तब तक दाल पक गई । अब चूल्हे पर तवा चढा दिया गया और रोटियाँ बनने लगीं ।

कुछ लोगों ने ट्‌यूबवैल के पानी में स्नान किया । अन्य लोग पास के खेतों का दृश्य देखने निकल गए । सात बजे रात तक हमारा खाना तैयार हो गया । वहीं घास के मैदान पर ढाक के पत्तों की बनी पत्तलों और दोनों में हम लोगों ने खाना खाना शुरू किया । उस खाने में हम सभी को बडा स्वाद आया ।

उपसंहार:

खाना खाते-खाते आठ बज गये । ग्राम-प्रधान ने हमें रात को रुकने का आग्रह किया, लेकिन हम लोग रुकने की व्यवस्था करके नहीं आये थे । अत: हमने लौटने का निर्णय किया । ग्राम-प्रधान ने हमें शहर तक बैलगाड़ियों से पहुंचा देने की व्यवस्था कर दी । इस तरह बैलगाड़ियों में हंसते-बोलते और गाना गाते लगभग दस बजे हम वापस शहर पहुंच गए ।

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