प्रदर्शनी की सैर पर अनुच्छेद | Paragraph on A Visit to an Exhibition in Hindi

प्रस्तावना:

दिल्ली भारत की राजधानी है । यही हर दूसरे-तीसरे साल कोई-न-कोई राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी लगती रहती है । 1955 में यहाँ विश्व अन्तर्राष्ट्रीय मेला के नाम से एक विशाल प्रदर्शनी लगी थी ।

तब से मथुरा रोड़ पर एक विशाल भूखण्ड विशेष रूप से प्रदर्शनियों के लिए ही सुरक्षित कर दिया गया है । प्रदर्शनियों के आयोजन के लिए अलग से एक स्वतन्त्र विभाग गठित किया गया है, जिसे ट्रेड फेयर अथॉरिटी कहते हैं । इसके तत्वावधान में अनेक विशाल प्रदर्शनियाँ लगाई जा चुकी हैं । 1972 में यहीं ‘एशियाड 1972’ के नाम से एक बड़ी प्रदर्शनी लगाई गई थी ।

प्रदर्शनी का उद्‌घाटन:

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‘एशियाड 1972’ नामक प्रदर्शनी भी एजीविशन मैदान में ही आयोजित की गई थी । तत्कालीन प्रधानमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 3 नवम्बर, 1972 को इस प्रदर्शनी का उद्‌घाटन किया था । समारोह बड़ा सीधा-सादा, किन्तु आकर्षक था । समारोह का प्रारंभ बिसमिल्ला खां के शहनाईवादन से शुरू हुआ ।

इसके बाद प्रदर्शनी में भाग ले रहे देशों के प्रधानमंत्रियों के संदेश ईधं पढ़कर सुनाए गए । इसके बाद प्रधानमंत्री ने सक्षिप्त भाषण दिया जिसमें उन्होंने सैकडों मजदूरों को बधाई दी, जिनकी रात-दिन की कड़ी मेहनत से प्रदर्शनी का समय पर उद्‌घाटन संभव हुआ ।

विभिन्न मण्डपों का वर्णन:

प्रदर्शनी में विभिन्न देशों के अलग-अलग मण्डप थे । इनमें रूस, इटली, उत्तरी कोरिया, जापान और कनाड़ा के मण्डप विशेष दर्शनीय थे । प्रत्येक मण्डप मे अपने देश की आर्थित्त और औद्योगिक प्रगति की झाकी दिखाई गई थी । उनमें तरह-तरह की वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया था ।

रूसी मण्डप में वहाँ बनी बड़ी-बड़ी मशीनें दिखाई गई थीं । जापान मण्डप में बच्चों के आकर्षण की अनेक वस्तुयें थीं । इसमें वहाँ हुई इलेक्ट्रॉनिक प्रगति दिखाई गई थी । यही खिलौनों की छोटी कारे थी, जिनमें बच्चो को बैठने की अनुमति थी । बच्चे बड़ी संख्या में इनमें बैठकर आनन्द ले रहे थे ।

भारत की औद्योगिक और आर्थिक प्रगति का प्रदर्शन करने वाले अनेक मण्डप थे । इनमें रेलवे विभाग, रक्षा विभाग, उद्योग विभाग के मण्डप विशेष आकर्षण के केन्द्र थे । अनेक राज्यों ने अपने-अपने अलग मण्डप बनाये हुए थे, जिनमे राज्य की चहुँमुखी प्रगति दिखाई गई थी ।

शाम ढ़लते ही प्रदर्शनी रथल प्रकाश से जगमगा उठा । प्रदर्शनी का आकर्षण रग-बिरंगी रोशनी से और भी बढ़ गया । प्रदर्शनी स्थल के बीच में एक बड़ी झील बनाई गई थी, जिसका नाम मानसरोवर झील रखा गया था । इसमें बिजली के रंगीन बच्चों की रोशनी के साथ-साथ अनेक फत्यारे भी चालू हो गए । रोशनी से जगमताती झील बडी चित्ताकर्षक लगने लगी ।

अन्य स्टाल:

प्रदर्शनी में बड़े-बड़े निजी तथा सरकारी उद्योगों के अनेक स्टाल थे । उनमे अनेक उत्पादको की झांकी दिखाई गई थी । एक स्टाल में कृषि के काम आने वाली अनेक वस्तु, दिखाई गई थीं ।

कृषि मण्डप:

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भारत के कृषि मंत्रालय ने इस प्रदर्शनी में एक भव्य मण्डप लगाया था । इसमें आजादी के बाद से देश में कृषि की प्रगति दिखाई गई थीं । इसमें ताजे फल और सब्जियाँ थीं । एक मूली इतनी बड़ी थी कि आदमी के कद की लगती थी । उसका वजन 30 किलोग्राम था ।

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इसी तरह बड़ी परात के आकार की गोभी, अनेक प्रकार के आम, एक-एक किलो के लाल-लाल टमाटर देखकर हम सभी को अपने देश पर बडा गर्व हुआ । इसी मण्डप में कृषि अनुसंधान की झाँकी दिखाई गई थी । इसमें उनत किस्म के बीज, कीटनाशक पदार्थ विभिन्न प्रकार के कृषि औजार आदि दिखाए गए थे । इस मण्डप के बाहर उन्नत किस्म पशुओ का प्रदर्शन श्री किया गया था ।

वही करनाल डेरी र्कों एक भैंस से भी बडे उगकार की गाय प्रदर्शित की गई थी, जिसके बारे में लिखा था कि वह दिन में 30 किलो दूध देती है । खाद्य संरक्षण की विभिन्न विधियो का अलग से प्रदर्शन दिखाया जा रहा था । एक कोने में नेफेड का एक स्टाल था, जिसमें उनके द्वारा बनाए गए विभिन्न प्रकार के अचार, जैम, साँस आदि बेचे जा रहे थे । बड़ी संख्या में लोग इन वस्तुओं को खरीद रहे थे ।

सबसे बड़ी प्रदर्शनी:

यह भारत में अब तक लगी सभी प्रदर्शनियों से बड़ी थी । इतनी विशाल प्रदर्शनी को एक दिन में समूचा देखना संभव नहीं था । हम लोग थकने लगे और मण्डपों से बाहर निकल आए ।

साँस्कृतिक कार्यक्रम:

तभी हमें साँस्कृतिक प्रदर्शनी का एक मण्डप दिखा । इसमें बैठने की सीटें लगी हुई थीं । कुछ देर इसमें बैठकर कोरियाई और राजस्थानी लोक-मूल्यों का मनोहारी प्रदर्शन देखा ।

उपसंहार:

लगभग नौ बजे हम लोग प्रदर्शनी से बाहर निकल आए । बाहर बसो की बडी अच्छी व्यवस्था थी । हम लोग प्रदर्शनी की चर्चा करने अपनी बस की लाईन में खडे हो गए । लगभग दरर मिनट बाद हमें बस में बैठने की जगह मिल गई और लघु ससार की एक झाँकी देख लौट आए ।

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