भारत की खाद्य समस्या पर अनुच्छेद | Paragraph on Food Problem of India in Hindi

प्रस्तावना:

भारत के सामने बहुत-सी कठिन समस्यायें हैं, जिन्हें दूर करना आवश्यक है । इनमें से खाद्य समस्या सबसे महत्त्वपूर्ण है । हमारे प्रिय भूतपूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री के शब्दों में, ”भोजन लोगों के जीवन-मरण का प्रश्न है । हमें उन्हें पर्याप्त भोजन देना ही चाहिए ।”

खाद्य की वर्तमान स्थिति:

भारत में खाद्य समस्या ब्रिटिश काल से ही बड़ी गंभीर रही है । अक्सर देश में भीषण अकाल पड़ते रहे हैं । 1937 में बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, जहाँ से प्रतिवर्ष लाखों टन चावल भारत को मिलता था । 1943 में बगाल में भीषण अकाल पड़ा जिसमें लाखों लोगों की जानें गईं । 1947 में भारत का विभाजन हो गया, जिसके फलस्वरूप चावल और गेहूं पैदा करने वाले बंगाल और पंजाब के अति उपजाऊ क्षेत्र पाकिस्तान को मिल गए । लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आए ।

अत: स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही भारत को खाद्य सकट का सामना करना पड़ रहा है । भारत कृषि प्रधान देश होते हुए भी अपने निवासियों के लिये पूरा खाद्यान्न उत्पन्न नहीं कर पाता । लाखों टन अनाज का आयात करके किसी तरह भुखमरी पर अंकुश लगाया जा सका है ।

तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या ने समस्या को अधिक गंभीर बना दिया है । हमारी योजनाओं के निर्माताओ और वैज्ञानिकों ने इस समस्या को हल करने का भरसक प्रयत्न किया है, किन्तु आज तक वे इसका पूरा निराकरण नहीं कर पाये हैं ।

खाद्यान्नों की कमी के कारण:

भारत में खाद्यान्नो की कमी के अनेक कारण हैं । इनमें से एक बडा कारण देश की बढ़ती हुई जनसख्या है । देश में खाद्यान्नों के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है, किन्तु बढ़ती हुई जनसख्या की दर उससे अधिक रही है ।

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इसके अलावा हमारे देश की प्रति एकड़ उपज ससार में सबसे कम है । हमारे यही आज भी अधिकांश खेती परम्परागत ढंग से होती है, जिसमें उपज की वृद्धि की कम गुँजाइश है । भारतीय खेती अधिकतर वर्षा पर निर्भर करती है । स्वतत्रता के बाद सिंचाई सुविधाओं का विस्तार अवश्य हुआ है, लेकिन अभी भी आधे से अधिक खेत वर्षा पर ही निर्भर करते हैं ।

एक तो हमारे देश में विशेष ऋतु में ही अधिकाश वर्षा होती है, दूसरे देश के किसी भाग में सूखा पड़ जाता है और दूसरे भागों में अधिक वर्षा के कारण भारी बाढ़ उघ जाती है । दोनों ही से फसल की हानि होती है । वर्षा का जल बहकर समुद्र में चला जाता है । उसके बहुत कम भाग का उपयोग हो पाता है ।

कृषि की दिशा में नये-नये आविष्कार हुए हैं और खेती के लिए उन्नत बीज, रासायनिक खाद तथा ट्रैक्टर जैसे यत्र आदि बन गये है लेकिन हमारे किसान अशिक्षित तथा गरीब होने के कारण वैज्ञानिक खेती के तरीके नहीं अपना पाये हैं । इसके अलावा हमारे किसानों की जोत भी बहुत छोटी है, जिस पर यान्त्रिक खेती आसानी से की नहीं जा सकती ।

अनेक किसान अपनी उपज से बड़ी कठिनता से पेट भर पाते है और वे कर्ज के बोझ में दबे रहते है । आधुनिक खेती के लिये वे पूंजी कही से जुटा पायेंगे और खाद्यान्नों की कमी का एक अन्य कारण यह भी है कि देश मे समुचित वितरण व्यवस्था नहीं है ।

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कुछ राज्य तो अपनी उपज से अधिक अन्य उपजाते हैं, जबकि अनेक राज्यों मे खाद्यान्नों की आवश्यकता से कम उपज होती है । समुचित वितरण के अभाव में विभिन्न राज्यो में अनाजों की कीमतों में काफी अंतर होता है । हर स्तर पर खाद्यान्नों की जमाखोरी होती है और कमी वाले राज्यों मे दाम बहुत बढ़ जाते हैं ।

खाद्यान्नो की कमी का कारण लोगों के भोजन की आदतें हैं । चावल खाने वाले लोग गेहूँ से पेट नहीं भर पाते । इसी प्रकार मुख्यत: गेहूं खाने वालों का काम चावल से नहीं चलता । हमने हरित क्रांति द्वारा गेहूं की उपज में तो पर्याप्त वृद्धि कर ली है, किन्तु देश के अधिकतर राज्यों के लोग चावल खाने वाले हैं और उनके सामने खाद्यान्नों की कमी बनी रहती है ।

देश में खाद्यानों के समुचित भण्डारण की व्यवस्था भी नहीं है । चूहों तथा अन्य कीटों से देश के गोदामों में रखे अनाज की बड़ी मात्रा प्रतिवर्ष नष्ट हो जाती है । देश के एक भाग से दूसरे भाग को खाद्यान्न ले जाते समय भी वर्षा आदि से काफी अनाज सडकर व्यर्थ चला जाता है ।

हमारी धार्मिक वृत्ति भी खाद्यान्नों में कमी करती है । हवन और यज्ञों में काफी अनाज जला दिया जाता है । इसके अलावा गायों-बैलों आदि पशुओं और पक्षियों को रोटी तथा अनाज के दाने खिलाना पुण्य का काम माना जाता है । आज भी अनेक परिवारों में पहली रोटी गाय को खिलाने के लिये अलग रख ली जाती है । इस तरह समृद्ध लोग पशुओं को रोटी खिलाते हैं, जबकि गरीब भूखो मरते हैं ।

समस्या से निपटने के उपाय:

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इस समस्या से निपटने के लिए अनेक उपाय किये जा रहे हैं । हमारे पास खेती की अतिरिक्त भूमि बहुत कम है । इसलिये सघन खेती पर जोर देकर ही समस्या का हल हो सकता है । किसानों को आधुनिक खेती के लाभ बताने के लिये व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए तथा उन्हें इनके इस्तेमाल के लिये पर्याप्त धन दिया जाना चाहिये ।

सहकारी खेती को बढ़ावा देकर छोटी जीत को समस्या आसानी से हत्न की जा सकती है । सरकारी धन प्रदान करके उन्नत खेती को बढावा मिल सकता है । इन समितियों को दिये गये धन की वसूली भी आसान होगी ।

सरकार को जमाखोरी के खिलाफ व्यापक अभियान चलाना चाहिये और अन्न का थोक व्यापार अपने हाथ में लेकर एक राज्य से दूसरे राज्य में अनाज पहुँचाने की व्यवस्था करनी चाहिये, ताकि सारे देश में अनाज का न्यायोचित वितरण हो सके । अनाज के उचित भण्डारण के लिये बड़े-बड़े गोदाम बनाए जानी चाहिये जिनमें थोड़े-से किराये पर किसान अपने अतिरिक्त अनाज को सुरिक्षत रख सके और जरूरत पड़ने पर निकाल सकें ।

उपसंहार:

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उपर्युक्त उपायों को अपना कर खाद्य समस्या को दूर किया जा सकता है । इस, सरकार को पहल करनी पड़ेगी, लेकिन सभी लोगों के सक्रिय सहयोग के बिना इस समस्या का निराकरण नहीं हो सकता । जनता को सहकारिता अपनानी चाहिए ।

साथ ही हमें खाद्यानों के अलावा अण्डा, मछली, मांस आदि अन्य खाद्य-पदार्थों के उत्पादन पर जोर देकर इन्हें अपने भोजन में सम्मिलित करना चाहिए । इससे अनाज की माँग पर तो अकुश लगेगा ही, साथ-साथ जनता का स्वास्थ्य भी सुधरेगा ।

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