अंतरिक्ष में भारत पर अनुच्छेद | Paragraph on India in Space in Hindi

हमारे देश ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं । अंतरिक्ष में विज्ञान के आविष्कार के लिए छोड़े गए उपग्रह विश्व को चकित करने वाले हैं ।

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विश्व में अतरिक्ष यात्रा की शुरुआत रूस ने 4 अक्टूबर, 1957 को ‘स्पुतनिक-1’ कृत्रिम उपग्रह छोड़कर की थी । यह अंतरिक्ष में तीन महीने तक पृथ्वी के चक्कर लगाता रहा । इसके एक माह बाद रूस ने ‘स्पुतनिक-2’ छोड़ा । अमेरिका ने भी इस क्षेत्र में पदार्पण किया और उसने 21 जनवरी, 1958 को अपना पहला उपग्रह ‘एक्सप्लोरर-1’ छोड़ा ।

इसके करीब दो माह बाद रूस ने 17 मार्च 1958 को ‘बैनगार्ड-1’ उपग्रह छोड़ा, जो अभी अंतरिक्ष में पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है । भारत ने सर्वप्रथम 1974 में भारत ने अंतरिक्ष में अपना पहला उपग्रह आर्यभट्‌ट स्थापित किया था ।भारत का अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत सराहनीय प्रयास है ।

19 जून, 1981 में भारत ने फ्रांस की भूमि से छोड़ा गया एप्पल नामक उपग्रह अब भी अंतरिक्ष की परिक्रमा कर रहा है । 1 नवम्बर, 1981 में छोड़ा गया भास्कर द्वितीय भी इसी क्रम में अनुसंधान कर रहा है । अहमदाबाद, मंगलूर, कोटा, तिरूवनन्तपुरम के अनेक भारतीय वैज्ञानिक अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित अनुसंधान कार्य में सलग्न हैं ।

16 अप्रैल, 1983 को रोहिनी श्रुंखला का तीसरा उपग्रह 11 बजकर 13 मिनट और 7 सेकेण्ड में पृथ्वी की कक्षा में पहूंच गया था । उपग्रह प्रक्षेपण वाहन एल.वी. 3 के रोहिणी उपग्रह बी 2,11 बजकर 6 मिनट पर श्री हरिकोटा से अंतरिक्ष में भेजा गया । 23 मीटर ऊँचा चार चरणों का यह राकेट नारंगी और सफेद रंग का धुआं छोड़ते हुए ऊपर उठकर 1 मिनट 15 सेकेण्ड बाद आंखों से ओझल हो गया । यह उपग्रह 17 टन वजन का था ।

सन् 1978 में भारत ने अमेरिकी फोर्ड एस्पेस एण्ड कम्यूनिकेशन कारपोरेशन के साथ इन्सेट का निर्माण के लिए समझौता किया था । इसके परिणामस्वरूप 10 अप्रैल, 1982 में अमेरिकी अंतरिक्ष केन्द्र से इन्सेट 1ए (इंडियन नेशनल सैटेलाइट) अंतरिक्ष अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने किया था, लोकन 150 दिन अंतरिक्ष में रहने के बाद जब यह समाप्त हो गया, तब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के वैज्ञानिक इससे निराश नहीं हुए और पुन: उत्साहित होकर अमेरिकी अंतरिक्ष यान चैलेंजर से बहुद्देशीय और बहुआयामी उपग्रह इन्सेट 1-बी को अंतरिक्ष में भेजने में सफल हो गए ।

3 अप्रैल 1984 को सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक राकेश शर्मा ने रूस के अंतरिक्ष यान में जाकर अंतरिक्ष में अभूतपूर्व अनुसंधान संबंधित विज्ञान प्राप्त किए और प्रयोग भी किए । भारत का नवीनतम अंतरिक्ष यान इनसेट 1-सी 22 जुलाई, 1988 को फ्रेंच गुयाना के स्थान से एक विदेशी कम्पनी फोर्ड ए अरोस्पेश एण्ड कम्युनिकेशन कारपोरेशन के द्वारा तैयार किया गया । इस यानको यहीं से छोड़ गया, लेकिन दुर्भाग्य का विषय रहा है कि इसमें कुछ खराबी आ गई ।

भारत अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर कदम बढ़ाता जा रहा है । इसी तरह 18 अप्रैल, 2001 को श्री हरिकोटा हाई एल्टीट्‌यूड रेंज से भारतीय समयानुसार उपराहन 3 बजकर 43 मिनट पर जी.एस.एल.वी. प्रेक्षण यान छोड़ा गया । भारत को अब अपने दूर संवेदी उपग्रहों को छोड़ने के लिए विदेशी अंतरिक्ष एजेसियों पर निर्भर नहीं रहना पडेगा ।

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10 अप्रैल, 2003 को सुबह 4 बजकर 20 मिनट पर एरियन स्पेश सेटर फ्रेंच गुयाना से इन्सेट 3 ए नामक बहुउद्देशीय उपग्रह कक्षा में स्थापित कर दिया गया । इससे द्वारा निर्मित भारत का यह सबसे बडा उपग्रह है । इसका प्रयोग दूरसचार, दूरदर्शन, प्रसारण, मौसम विज्ञान और उपग्रह से की जाने वाली खोज तथा अन्य सेवाओं मे किया जाएगा ।

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7 मई को श्री हरिकोटा से भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी डी-2) के जरिए एक संचार उपग्रह को अतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजकर भारत उन देशों की कतार में खड़ा हो गया है जो उपग्रह प्रक्षेपण में विशेषज्ञ माने जाते है । जीएसएलवी ने बंगाल की खाडी के प्रायद्वीप श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से 7 मई को साय 4:50 बजे प्रक्षेपित होने के लगभग 17 मिनट बाद 1800 किलो वजन के जी सेट-2 परीक्षण संचार उपग्रह को भूस्थैतिक अंतरण कक्ष में स्थापित कर दिया ।

वर्तमान संचार युग में अंतरिक्ष प्रक्षेपण के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिको और तकनीशियनों के अथक प्रयास ने भारत को यह महारत हासिल करवाई है । अब तक के अट्‌ठारह प्रक्षेपणों मैं चार बार की असफलता और एक बार की अर्द्ध सफलता से वैज्ञानिक और तकनीशियन निराश नही हुए ।

आखिर उन्हें तेरह बार सफलता तो मिली ही । भारतीय वैज्ञानिक और तकनीशियनों की प्रतिभा दुनिया में किसी से कम नहीं है । क्रायोजनिक इंजन का जिस खूबी से इस्तेमाल किया गया है बस अब जीएसएलवी के व्यवसायिक तौर पर संचालन की घोषणा भर का इंतजार है । वह दिन दूर नहीं अब भारतीय उपग्रह चांद तक पहुंचने में सफल हो जाएगा ।

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारतीय अनुसंधान की उपलब्धियों की आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत जल्द ही इस क्षेत्र के शीर्षस्थ देशो की पंक्ति मे आ खड़ा हुआ । इसके लिए यह भी आवश्यक है कि राजनैतिक नेतृत्व सहयोग का अपना यही रवैया भविष्य में भी बनाये रखे ।

भारतीय अंतरिक्ष, अनुसंधान विज्ञान की प्रगति से भारतीय वैज्ञानिकों की अद्‌भुत प्रतिभा, साहस, धैर्य, क्षमता और जिज्ञासा की भावना प्रकट होती ही है । इसके साथ ही हमें अपने देश के इस अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपूर्व योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को पाकर अत्यंत गर्व और स्वाभिमान होता है ।

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