रत का अंतरिक्ष अभियान पर निबंध | Essay on India’s Space Mission in Hindi!

जोखिमों का सामना करना तथा अज्ञात की पते उधेड़ना मनुष्य का जन्मजात स्वभाव माना जाता है । अंतरिक्ष मानव के लिए आदि काल से ही एक अबूझ पहेली रही है फिर भी अनेक विद्‌वानों और वैज्ञानिकों ने तारों, ग्रहों, उपग्रहों आदि के बारे में गणनाएँ कीं परंतु उनके अनुमानों को मूर्त रूप न दिया जा सका क्योंकि न तो दूरबीन का आविष्कार हुआ था और न ही अंतरिक्ष यानों का ।

गैलीलियो ने दूरबीन का आविष्कार कर तथा राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार कर एक नए युग का सूत्रपात किया। दूरबीन की मदद से खगोलीय पिंडों तथा खगोलीय घटनाओं के अध्ययन में बहुत मदद मिली ।

फिर अंतरिक्ष यान एवं कृत्रिम उपग्रह बनाए गए तो अंतरिक्ष की दूरियाँ भी कम होती गईं । आज पृथ्वीवासी कई बार अंतरिक्ष का भ्रमण कर आए हैं, चंद्रमा पर कई बार मानव सहित यान उतर चुके हैं तथा दूरस्थ ग्रहों के अध्ययन के लिए मानव रहित अंतरिक्ष यान भेजे गए हैं ।

अंतरिक्ष कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में रूस अमेरिका जैसे देश दुनिया का नेतृत्व करते रहे हैं । परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत भी इस क्षेत्र में पिछड़ना नहीं चाहता था क्योंकि यह क्षेत्र वैज्ञानिक, सामरिक तथा संचार व्यवस्था की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना गया था ।

अत: साठ के दशक से ही भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में दिलचस्पी लेनी आरंभ की। 1957 में अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष के कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया गया तथा 1961 ई॰ में देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की जबावदेही परमाणु ऊर्जा विभाग को सौंपी गई ।

इसके अगले ही वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया गया एवं वर्ष 1963 में थुम्बा राकेट प्रक्षेपण केंद्र का संचालन आरंभ किया गया । पुन: 1967 में अहमदाबाद में प्रायोगिक उपग्रह संचार भू केंद्र की स्थापना की गई । साथ ही 1969 में बंगलौर में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन किया गया तथा 1971 ई॰ में श्री हरिकोटा रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र काम करने योग्य बना दिया गया ।

सन् 1972 में उठाए गए एक बड़े कदम के रूप में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को परमाणु ऊर्जा विभाग से पृथक कर नवसृजित अंतरिक्ष विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया । 1975 में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की लंबी छलांग लगाते हुए प्रथम उपग्रह आर्यभट्‌ट छोड़ा जिसने कई वर्षो तक सफलतापूर्वक काम किया ।

इसके बाद दो प्रायोगिक दूर संवेदी उपग्रह भास्कर-1 तथा भास्कर-2 क्रमश: जून 1979 तथा नवंबर 1981 में प्रक्षेपित किए गए इससे पूर्व रोहिणी की प्रथम प्रायोगिक उड़ान असफल रही थी तथा रॉकेट बंगाल की खाड़ी में गिरकर नष्ट हो गया था । पुन: रोहिणी की दूसरी प्रायोगिक उड़ान सफल रही तथा 18 जुलाई 1980 को इसे भारतीय रॉकेट एस.एल.वी.-3 द्‌वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया ।

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31 मई 1981 के दिन रोहिणी की एक अन्य उड़ान वांछित कक्षा तक पहुँचने में असफल रहने के कारण सप्ताह भर में गिरकर नष्ट हो गई । इसी वर्ष 19 जून को दूरसंचार उपग्रह ‘ एप्पल ‘ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एरियान रॉकेट द्‌वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया । 1982 ई॰ से इन्सैट श्रुंखला के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का सिलसिला आरंभ हुआ ।

इस वर्ष 10 अप्रैल के दिन इन्सैट-1 ए को अमेरिकी डेल्टा रॉकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया परंतु 8 सितंबर को यह अंतरिक्ष में ही जलकर नष्ट हो गया। 30 अगस्त 1983 ई० के दिन भारत का बहुउद्‌देशीय उपग्रह इन्सैट-1 बी चैलेंजर रॉकेट के माध्यम से पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया ।

30 अप्रैल 1984 का दिन अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की उपलब्धियों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है । इस दिन भारतीय वायु सेना के अधिकारी स्क्वाँड्रन लीडर राकेश शर्मा को प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त हुआ ।

सोयुज टी-11 नामक अतंरिक्ष यान से राकेश शर्मा ने दो रूसी यात्रियों यूरी मैलिशेव और गन्नाडी स्त्रौकालेव के साथ अंतरिक्ष में सफल उड़ान भरी तथा इन्होंने अंतरिक्ष में सफल उड़ान भरी तथा इनहोंने प्रयोगशाला ‘सेल्यूत-7’ में कई वैज्ञानिक प्रयोग किए ।

11 अप्रैल, 1994 को इनकी पृथ्वी पर सकुशल वापसी हुई । बाद में एक और भारतीय वैज्ञानिक कल्पना चावला ने भी कम उम्र में ही यह कारनामा कर दिखाया । अमेरिकी अंतरिक्ष यान कोलंबिया में अपने सहयोगी अमेरिकी यात्रियों के साथ जब कल्पना ने उड़ान भरी तो पूरा देश हर्ष से भर उठा । परंतु यान में कुछ तकनीकी खराबी आ गई और यह पृथ्वी पर उतरते समय नष्ट हो गया । इस तरह इस महान भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री ने मरकर भी अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा लिया ।

1987 ई॰ में भारत ने एस.आर.ओ.एस.एस. नामक उपग्रह एस.एल.वी.-3 रॉकेट से प्रक्षेपित असफल हो गया । पुन: 1988 ई॰ में आई.आर.एस.-2 नामक दूर संवेदी उपग्रह सोवियत संघ के अंतरिक्ष स्टेशन से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किय गया ।

एस.आर.ओ.एस.एस.-2 नामक उपग्रह जो कि श्रुंखला की दूसरी उड़ान थी, ए.एस.एल.वी. रॉकेट द्‌वारा 13 जुलाई 1988 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया । 29 अगस्त 1991 को आई.आर.एस.-1 बी नामक दूर संवेदी उपग्रह सोवियत संघ के अंतरिक्ष स्टेशन से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया ।

1992 ई॰ में श्रीहरिकोटा से भारत में विकसित रॉकेट ए.एस.एल.वी.डी. 3 के द्‌वारा रोहिणी श्रुंखला के उपग्रह स्त्रौस-iii का सफल प्रक्षेपण किया गया । फिर इसी वर्ष इन्सैट- 2 ए नामक उपग्रह को फ्रेंच गायना से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया । यह देश में निर्मित प्रथम उपग्रह माना जाता है । इस तरह भारत ने हर वर्ष कोई न कोई उपग्रह छोड़कर एक कीर्तिमान खड़ा किया है ।

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21 मार्च 1996 ई. को श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पी.एस.एल.वी. डी-3′ के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत रॉकेट बाजार में शमिल हो गया । विश्व अंतरिक्ष बाजार में इससे पूर्व तक अमरीका, फ्रांस, रूस आदि कुछ देशों का ही दबदबा था ।

आज भारत की गिनती अंतरिक्ष के क्षेत्र में पाँच सर्वाधिक उन्नत देशों में होती है तो निश्चित ही इसका श्रेय भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘इसरो’ के वैज्ञानिकों को जाता है । विभिन्न उपग्रहों से प्राप्त चित्रों तथा आँकड़ो का उपयोग कृषि फसलों की पैदावार का अनुमान, खनिज, वनसंपदा, जल संसाधन, महासागरीय संपदा, भूमि का सर्वेक्षण तथा सूखा, बाढ़, तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना देने के लिए किया जाता है ।

सुदूर संवेदी उपग्रह इन मामलों में बड़े उपयोगी कहे जाते हैं । दूसरी ओर संचार उपग्रहों द्‌वारा भारत में संचार क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ है । उपग्रहों के माध्यम से ही टेलीविजन के कार्यक्रम, मोबाइल सेवाएँ, दूरस्थ एस.टी.डी. सेवाएँ आदि संचालित होती हैं । उपग्रहों का रक्षा क्षेत्र में भी महत्व है क्योंकि विभिन्न देशों ने अपने-अपने जासूसी उपग्रह भी छोड़े हैं ।

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अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते हुए भारत ने मानव सहित चंद्रयात्रा की योजना भी तैयार की है । भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम चरणबद्‌ध तरीके से काम करते हुए आगे बढ़ रहा है, जो हमारे लिए संतोष एवं गर्व का विषय है ।

हमारा देश अब उपग्रहों के निर्माण, संचालन, नियंत्रण एवं बेहतर इस्तेमाल में विश्व में अग्रता प्राप्त कर चुका है । लेकिन अभी और भी दूरियाँ तय करनी हैं, अभी कई और मंजिलों तक पहुँचना है ।

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