सरदार बल्लभ भाई पटेल पर अनुच्छेद | Paragraph on Sardar Ballav Bhai Patel in Hindi

प्रस्तावना:

सरदार बल्लभ भाई पटेल स्वतन्त्र भारत के पहले उपप्रधान मंत्री थे । वे भारत के सपूतों की सबसे अगली पंक्ति में आते हैं । उन्हें लौह पुराष के नाम से जाना जोता है । उनके जैसा सपूत पाकर कोई भी मां सदा गर्व करेगी । भारत उनका सदैव ऋणी रहेगा ।

उनका जन्म:

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उनका जन्म 1875 में गुजरात में हुआ था । उन दिनों गुजरात मुम्बई राज्य का एक भाग था । उनके पिता जवर भाई बड़े बहादुर सेनानी थे । उनके मा-बाप पुराने विचारों के समृद्ध जमींदार किसान थे । सरदार पटेल ने बचपन से ही अपनी निडरता और दृढ़ता का परिचय देना प्रारम्भ कर दिया था जिस पर वे समूचे जीवन कायम रहे ।

उनकी शिक्षा:

स्कूल में उनकी गणना सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों में की जाती थी । बड़ोदा से उन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास की । वे बड़े साहसी और निडर थे । वे विद्यार्थियों के प्रमुख प्रतिनिधि थे । और उनकी हिमायत करते रहते थे । स्कूल के सभी साथी उनका सम्मान करते थे और उनके बीच लोकप्रिय थे । बाद में वे ला कालेज में भर्ती हो गए और कानून की पढ़ाई करने लगे । यहां से उन्होंने सम्मानपूर्वक कानून की परीक्षा पास की ।

सफल वफालत:

बहुत-से अन्य भारतीय नेताओं की भांति उन्होंने भी प्रारम्भ में वकालत की । वे अहमदाबाद में वकालत की प्रेक्टिस करने लगे । शीघ्र ही अपने पेशे पेसे उन्होने बड़ी ख्याति अर्जित कर ली ।

दूर-दूर तक उनका नाम बड़े अच्छे वकीलों में गिना जाने लगा । उन्होंने वकालत से काफी धन कमाया और ऐशो-आराम पर खर्च भी किया । लेकिन यह सिलसिला अधिक दिनों तक नहीं चल सका ।

गांधी जी से मुलाकात:

धन, वैभव और यश उन्हें बहुत दिनों तक लुभाए न रख सके । जब गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया तो वे उनके सम्पर्क मे आये । गाधी जी ने उनसे आन्दोलन में शामिल हो जाने का अनुरोध किया । उनकी पुकार को सुनकर सरदार पटेल स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े । उन्होंने वकालत छोड दी और महात्मा गाँधी का अनुसरण करने लगे ।

बारदोली का सत्याग्रह:

अपने जीवन के प्रारम्भिक दिनो मे सरदार पटेल बारदोली में रहे थे । उन्होंने गांधी जी के सिद्धान्त के अनुकूल वहा के लोगो को संगठित किया और उन्हें सविनय अवज्ञा आन्दोलन के अधीन सरकार के टैक्सों की अदायगी करने से रोका ।

सरदार पटेल उनके प्रमुख नेता थे । उन्होने भारत के स्वतन्त्रता सग्राम मे बारदोली का नाम रचर्ण अक्षरो में लिख दिया । सरकार को किसानने की मांग स्वीकार करनी पडी । उनके इस नेतृत्व के कारण गाधी जी नेउ उन्हें बारदोली के सरदार की पदवी दी । इसी से आगे चलकर वे सरदार कहलाये ।

उनका राजनैतिक जीवन:

उन्होने शेष जीवन देश की सेवा को अर्पित कर दिया । कांग्रेस पार्टी में उनका बड़ा सम्मान था । बाद के दिनों में कांग्रेस की बागडोर उनके हाथ में रही । गांधी जी का कोई ऐसा आन्दोलन नहीं था, जिसमें उन्होंने महत्पपूर्ण भूमिका न निभाई हो । परिणाम यह हुआ कि उन्हें अनेक बार जेल जाना पड़ा ।

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उन्हें जितनी अधिक यातनाये दी गई, उतने ही अधिक उत्साह से वे मातृभूमि की सेवा करते रहे । कुछ समय बाद वे महात्मा गाधी के मुख्य सहयोगी बन गए । उनके हर आन्दोलन को शानदार सफलता मिली ।

उनका अविस्मरणीय कार्य:

जीवन की अन्तिम सांस तक वे भारत की सेवा करते रहे । लेकिन जो काम उन्होंने भारत के उप प्रधानमंत्री बनने के बाद किया उसके कारण उसके कारण उनका नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा रहेगा । जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो देश में 500 से भी अधिक छोटी-बड़ी रियासते थीं । ब्रिटिश सरकार ने उन्हे स्वतन्त्र छोड़ दिया था । ये रियासते सिर उठाने लगी ।

सरदार पटेल ने बड़ी सूझ-बूझ और साहस से उनके राजाओं से बातचीत की और उन्हें अपनी शर्तों पर भारत में विलय करने को तैयार कर लिया । उनकी यह नीति इतनी सफल रही कि जब तक नया संविधान लागू हो पाया, सभी रियासते भारत में विलीन हो चुकी थी ।

उनका चरित्र:

सरदार पटेल लौह पुरुष थे । उनकी इच्छा-शक्ति बड़ी प्रबल थी । वे किसी के सामने कभी नहीं झुइके । वे महान् कूटनीतिज्ञ भी थे । उन्होंने क्रांति और दंगे दबाने में बड़ी सख्ती से काम लिया । वे मतभेद और विरोध बरदाश्त नहीं करते थे ।

उपसंहार:

लेकिन मुम्बई के बिड़ला भवन में 15 दिसम्बर, 1951 को प्रात: भारत के लौह पुरूष का निधन हो गया । उनकी असामयिक मौत ने सारे भारत को शोक संतृप्त कर दिया । राष्ट्र बड़े आदर से उनकी सेवाओं का बखान करता रहेगा ।

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