अटल बिहारी वाजपेयी पर निबंध | Essay on Atal Bihari Bajpai in Hindi!

श्री अटल बिहारी वाजपेयी देशसेवा, राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति, मानवीयता तथा उच्च जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं । प्रख्यात प्रो० विष्णुकांत शास्त्री के अनुसार श्री वाजपेयी ‘वज सी कठोर, अडिग संकल्प-शक्ति’ तथा ‘कुसुम कोमल हृदयता’ का अद्‌भुत समन्वय हैं ।

भारत के १३वें प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म गवालियर (मध्य प्रदेश) के एक संपन्न कान्यकुब ब्राह्‌मण परिवार में 25 दिसंबर 1926 ई० को हुआ । उनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी संस्कृत के विद्‌वान होने के साथ ही अच्छे वक्ता, विचारक व एक प्रतिष्ठित कवि भी थे ।

उनकी माता का नाम कृष्णा देवी था । 1941 ई० में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने विक्टोरिया कॉलेज में प्रवेश किया । यहीं से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके पश्चात् कानपुर (उत्तर प्रदेश) के डी०ए०वी० कॉलेज से राजनीति शास्त्र में आपने एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की ।

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अटल जी के जन्म के समय भारत अंग्रेजी शासन के अधीन था । एक ओर महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आदोलन चल रहा था तो दूसरी ओर बोस, भगत सिंह, सुखदेव व आजाद जैसे क्रांतिकारी अंग्रेजी शासन की कूर व दमनात्मक नीतियों का विरोध कर रहे थे । श्री वाजपेयी विक्टोरिया कॉलेज में अपने अध्ययन के समय ही विद्‌यालय की राजनीति से पूरी तरह जुड़ चुके थे तथा 1943-44 में वे कॉलेज के सचिव नियुक्त किए गए थे । उस समय वे आर्य कुमार सभा के सक्रिय सदस्य थे ।

उन्होंने 1941 ई० में स्वयं को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जोड़ लिया और 1942 ई० में वे भारत छोड़ो आदोलन के दौरान जेल भी गए । कांग्रेस की नरम नीतियों के फलस्वरूप वे कांग्रेस के साथ अधिक दिनों तक नहीं रह सके ।

श्री वाजपेयी ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के सदस्य रहे हैं । वे ‘संघ’ की राष्ट्रवादी विचारधारा से अत्यंत प्रभावित रहे हैं । उन्होंने इसकी सदस्यता 1939 ई० में ग्रहण कर ली थी । संघ में सभी उनके कविता पाठ व भाषण कला की सराहना करते थे । धीरे-धीरे वे लोगों में प्रख्यात होते गए । पं० जवाहर लाल नेहरू ने सत्य ही कहा था – ”वाजपेयी की जुबान में जादू है । ”

स्वयं में अनुशासित रहना ही वाजपेयी जी के विराट व्यक्तित्व की विशेषता है । वे बचपन से ही अत्यंत स्वाभिमानी, निर्भीक व निष्पक्ष विचारों के रहे हैं । उनका सहज, सरल व सौम्य स्वभाव सभी को उनकी और आकर्षित करता है । उनका निष्कलंक जीवन चरित्र दूसरों के लिए दृष्टांत है । उनमें अनूठी इच्छाशक्ति व चारित्रिक दृढ़ता देखने को मिलती है । राष्ट्रीय एकता को वे शांति का पर्याय मानते हैं ।

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अपनी ही लिखी पंक्तियों के माध्यम से वे कहते हैं:

हे प्रभु !

मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,

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गैरों को गले न लगा सकृँ ।

नेहरू जी और श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने भी सदैव उनके निष्पक्ष विचारों का स्वागत किया है । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय श्री वाजपेयी 25 वर्षीय युवा थे । उनकी वाणी से उनकी प्रतिभा व ओजस्विता स्पष्ट प्रकट होती थी । अटल जी जनसंघ के संस्थापक स्व॰ डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अत्यंत निकट थे । 1952 ई॰ में वे प्रथम बार लोकसभा के सदस्य बने । तीन बार संसद सदस्य बनने के पश्चात् वे 1968 ई॰ से 1991 ई॰ तक राज्यसभा के सदस्य रहे ।

1977 से 79 ई॰ तक जनता सरकार के कार्यकाल में वे विदेश मंत्री रहे । इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारत की गरिमा व साख को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया । सयुक्त राष्ट्र संघ में प्रथम बार उनका राष्ट्रभाषा हिंदी में दिया गया भाषण अविस्मरणीय है । 16 मई 1996 को वे प्रथम बार भारत के प्रधानमंत्री बने ।

प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी के महान कार्यों व उनकी नेतृत्व क्षमता का सभी लोहा मानते हैं । विषम से विषम परिस्थितियों का भी उन्होंने बड़ी ही सहजता व धैर्य के साथ सामना किया । विश्व शांति के उनके प्रयासों के लिए आज समूचा विश्व उनकी सराहना करता है ।

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विश्व से आतंकवाद मिटाने हेतु उनके द्‌वारा उठाए गए कदम प्रशंसनीय हैं । उन्होंने सभी पड़ोसी देशों से अपने संबंध सुधारने का प्रयास किया । वे परस्पर मिल-बैठकर आपसी सहमति से विषम समस्याओं का समाधान करने के हामी रहे हैं । उनका यही उदारवादी दृष्टिकोण उनके महान मानवीय पक्ष को उजागर करता है ।

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