राम मनोहर लोहिया पर निबंध | Essay on Ram Manohar Lohia in Hindi

1. प्रस्तावना:

डॉ० राममनोहर लोहिया अपने समाजवादी विचारधारा के कारण राष्ट्रभक्तों में जाने जाते हैं । उनका भारतीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । देश की स्वतन्त्रता के लिए उनके द्वारा किये गये कार्यों के कारण देशवासी उन्हें सदैव स्मरण रखेंगे । वे भारत में ही नहीं, समस्त विश्व में समानता और आर्थिक समानता के पक्षधर थे ।

2. जीवन परिचय एवं उनके कार्य:

डॉ० लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तरप्रदेश के अकबरपुर नामक गांव में हुआ था । उनके पिता श्री हीरालाल लोहिया और माता कुमारी चन्दादेवी थीं । उनका परिवार मूलत: राजस्थानी था । मिर्जापुर आकर उनके पूर्वज लोहे का व्यवसाय करने लगे । फलत: उनका पारिवारिक उपनाम ‘लोहिया’ हो गया ।

उनके परिवार को असामयिक मृत्यु का वजपात सहना पड़ा । जब लोहिया ढाई वर्ष के थे, तो उनकी माता चल बसीं । उनकी दादी तथा पिता ने उनका पालन-पोषण किया । लोहियाजी बाल्यकाल से ही पढ़ाई तथा खेलकूद में तेज थे । बम्बई आकर उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई करनी चाही ।

यहां दस वर्ष की अतस्था में ही उन्होंने तिलक की शोक सभा में हिस्सा लिया । भारतीय राजनीति में उनकी रुचि सक्रिय होने लगी । 1925 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से इंटर पास किया ।

इसके बाद ईश्वरचंद विद्यासागर कॉलेज से बी०ए० कर बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की उच्च शिक्षा ग्रहण की । यहां ”इकानॉमिक्स ऑफ साल्ट” विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की । बर्लिन में उन्हें अंग्रेजी भाषा की समस्या का सामना करना पड़ा, किन्तु वे फर्राटेदार जर्मनी बोल लिया करते थे । वे एक कुशल वक्ता भी थे ।

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1928 में नेहरूजी से उनका परिचय हुआ । 1934 में आचार्य नरेन्द्रदेव की ”सोशलिस्ट” पार्टी में जयप्रकाश नारायण के साथ शामिल हो गये । उन्होंने पार्टी के मुख्य पत्र ‘कांग्रेस सोशलिस्ट’ का सम्पादन भी किया । 1935 में कांग्रेस के विदेश विभाग के प्रमुख बनाये गये । 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के दौरान वे भूमिगत हो गये और उन्होंने ”कांग्रेस रेडियो” नामक गुप्त रेडियो की स्थापना और संचालन भी किया, जिसे उन्होंने कलकत्ता और बम्बई से गुप्त रूप से चालू रखा ।

94 दिनों तक उन्होंने इसके द्वारा उत्तेजक भाषणों का प्रसारण भी किया । अंग्रेज सरकार उन्हें पकड़ना चाहती थी, इसके पहले ही वे नेपाल भाग गये, जहां जयप्रकाशजी के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया । वहां से फरार होकर वे भारत वापस आ गये । 20 मई 1994 को अंग्रेज सरकार ने उन पर अमानवीय अत्याचार किये ।

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बाद में अंग्रेज सरकार ने उन्हें आगरा जेल में डाल दिया । 11 अप्रैल 1946 को अंग्रेज सरकार ने लोहिया और जयप्रकाश को छोड़ दिया । इसके बाद उन्होंने गोवा की आजादी के लिए आन्दोलन छेड़ा । 28 सितम्बर से 8 अक्टूबर 1946 तक गोवा सरकार ने उन्हें कैद में रखा । उनकी समाजवादी विचारधारा ऐसी थी कि नेहरूजी से मतभेद होने पर उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया ।

स्वतन्त्रता मिलने के बाद वे 1966 तक संसद में विपक्ष के सदस्य रहे, जहां एक मजबूत विपक्ष की उन्होंने प्रभावी भूमिका का निर्वहन किया । एक बार संसद सदस्य के रूप में वे अमेरिका गये हुए थे, जहां के जैक्सन हॉटल में उन्हें काले भारतीय होने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था । बाद में अमेरिकी विदेश मन्त्री को इस हेतु क्षमा-याचना कर उन्हें छोड़ना पड़ा । 12 अक्टूबर 1967 को उन्होंने अन्तिम सांसें लीं।

3. उपसंहार:

डॉ० राममनोहर लोहिया आज भी अपनी समाजवादी विचारधारा के कारण आदर्श तथा प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं । कुछ राजनीतिज्ञ उनकी विचारधारा से प्रभावित होकर कार्य करना चाहते है । समानतावादी, मानवतावादी विचारधारा पर आधारित राजनीति को दिशा देने वाले डॉ० लोहिया देश सेवा में किये गये अपने कार्यों के कारण हमारे बीच लोकनायक की उज्जल छवि के साथ हमेशा जीवित रहेंगे ।

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