औरंगजेब पर निबंध | Essay on Aurangzeb in Hindi

1. प्रस्तावना:

भारत के मध्य युग के इतिहास में औरंगजेब का स्थान अपनी सफलताओं और असफलताओं दोनों के लिए जाना जाता है । मुगल साम्राज्य में शाहजहां के उत्तराधिकार के युद्ध में सबसे अधिक योग्य औरंगजेब ही था ।

सम्राट बनने के बाद उसने अपनी महत्त्वाकांक्षी और साम्राज्यवादी नीति के तहत अपनी शक्ति का पूर्णत: उपयोग किया । उसकी दक्षिण नीति पूरी तरह सफल रही । दक्षिण विजय ने उसके साम्राज्य को स्थायित्व दिया ।

वह एक ओर व्यसन, भोग-विलास से दूर, संयमी, सरल, परिश्रमी, साहसी, आदि सदगुणों से युक्त था, तो दूसरी तरफ उसमें करुणा, कोमलता, उदारता, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य आदि मानवीय गुणों का सर्वथा अभाव था । उसकी अत्यधिक धार्मिक कट्टरतावादी नीति ने तो उसे अत्यन्त हृदयहीन, नृशंस बना दिया । विशुद्ध इस्लामी नीति का स्वप्न और सन्देहशील स्वभाव, कला, संस्कृति विरोधी नीति ने उसे कठोर शासक बना दिया । वह एक अच्छा पिता, अच्छा मित्र, सम्बन्धी, प्रशासक श्रेष्ठ सम्राट नहीं था ।

2. जीवन वृत्त एवं उपलब्धियां:

औरंगजेब का जन्म 24 अक्तूबर सन् 1618 को गुजरात के दोहद नगर में हुआ था । वह शाहजहां और मुमताज महल की छठीं सन्तान और तीसरा पुत्र था । उसके पिता शाहजहां ने जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह किया, तब औरंगजेब और उसके भाई दारा को अनेक कष्ट सहने पड़े । बचपन से ही औरंगजेब बड़ा ही चतुर, बुद्धिमान, होनहार था ।

शाहजहां ने औरंगजेब की शिक्षा के लिए योग्य शिक्षक मुहम्मद हाशिमजीलानी को नियुक्त किया । अपने अध्ययनकाल में औरंगजेब ने अपनी तीक्षण बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए अल्पावधि में ही कुरान और हदीस में निपुणता हासिल कर ली थी । चित्रकला, संगीत, ललितकला में उसकी कोई रुचि नहीं थी । वह कला-सौन्दर्य से भाव विभोर नहीं होता था । युवावस्था में उसने समुचित सैन्य शिक्षा प्राप्त कर ली थी ।

कई अवसरों पर तो उसने वीरता, साहस, निर्भीकता का परिचय दिया । 1633 में एक उन्मत्त हाथी ने उस पर आक्रमण किया, तो औरंगजेब ने भयभीत हुए बिना अपने बरछे से उसे घायल कर दिया था । उपस्थित जयपुर नरेश ने उसके इस पराक्रम व धैर्य की सराहना करते हुए उसे ”बहादुर” की उपाधि के साथ स्वर्ण से तौलकर उसका स्वागत किया ।

सन् 1634-35 में 10 हजार जात और 4 हजार सवार का मनसबदार था । शाहजहां ने उसे बुन्देलों के विद्रोह का दमन करने हेतु बुन्देलखण्ड भेजा, तो उसने इसमें सफलता प्राप्त कर ली । इस अभियान में ही उसने बुंदेल राजवंश की दो राजकन्याओं को पकड़वाकर उसकी बात न मानने पर शाही हरम में भेज दिया । जुझारसिंह के दो पुत्र तथा एक पौत्र को बलात् मुसलमान बनाया ।

एक अन्य पुत्र और मन्त्री ने जब मुसलमान बनने से इनकार कर दिया, तब औरंगजेब ने उनका बर्बरतापूर्वक कत्ल करवा दिया । जुझारसिंह के पिता वीरसिंह के द्वारा बनाये गये सुन्दर मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर उनके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया और उनके 1 करोड़ का कोष भी हथिया लिया । इस तरह उसका पहला सैनिक अभियान कट्टर अनुदार व संकीर्ण मनोवृत्ति के मुसलमान वाला था ।

औरंगजेब को 18 वर्ष की अवस्था में दक्षिण के 4 सूबों का सूबेदार बनाया गया । इन 4 सूबों में 64 दुर्ग थे, जो अधिकांश शाहजी भोंसले के अधिकार में थे । इन 4 सूबों से उसकी आय 5 करोड़ होती थी । 8 वर्षों तक दक्षिण का सूबेदार रहने के बाद उसने गुजरात, आगरा को भी अपने कब्जे में ले लिया । आगरा में जाकर 1637 में ईरान के शाही वंशज सरदार शाह नवाज की पुत्री दिलरसबानू बेगम से विवाह हुआ । इस बेगम से उसे 3 पुत्रियां और 2 पुत्र हुए । पुत्रों के नाम शाहजादा आजम और शाहजादा अकबर थे ।

ADVERTISEMENTS:

औरंगजेब की सफलता से ईर्ष्याग्रस्त होकर उस समय दारा ने शाहजहां के कान भरे । जब उसकी बहिन रोशनआरा जलने पर मरणासन्न अवस्था में थी, तब उसे देखने गया हुआ था । औरंगजेब से दक्षिण की सूबेदारी का त्यागपत्र मांगकर उसके सारे अधिकार छीन लिये, जिससे औरंगजेब बुरी तरह दुखी हुआ । 16 फरवरी सन् 1645 को औरंगजेब को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया गया । जहां 2 वर्षों के सुयोग्य और दृढ़ शासन में उसने कंधार के अभियान में सफलता तो प्राप्त की, किन्तु बल्ख के अभियान में उसे पराजय का सामना करना पड़ा ।

फिर उसे सिन्ध और मुल्तान का सूबेदार 4 वर्षों तक बनाया गया, जहां उसे इरानियों के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा । निम्न श्रेणी के तोपखानों के कारण औरंगजेब को परास्त होकर लौटना पड़ा । शाहजहां ने उसकी रणकुशलता और योग्यता पर प्रश्नचिह्न लगते हुए उसे दक्षिण भारत के मुगल सूबों का सूबेदार बनाते हुए आगरा, दिल्ली से दूर भेज दिया ।

1653 में औरंगाबाद पहुंचा । वहां उसने बुरहानपुर में रूप, लावण्य, चंचलता, यौवन की धनी, संगीत, नृत्य, अभिनय में निपुण {मीर खलीम की गुलाम} हीराबाई नामक रखैल के साथ अपने दिन भोग-विलास में अपनी मौसी के यहां व्यतीत किये । औरंगजेब ने उसका नाम जैनाबादी महल रखा शा ।

युवावस्था में ही जैनाबाई की मृत्यु पर औरंगजेब अत्यन्त शोकाकुल हो गया । दक्षिण के अस्त-व्यस्त साम्राज्य पर उसने कृषि की उन्नति के लिए प्रयास किये । राजस्व व्यवस्था में सुधार कर टोडरमल की भूमि कर व्यवस्था प्रचलित की । उसने किलों का जीर्णोद्धार कर सैन्य व्यवस्था में सुधार किये ।

अयोग्य व बेईमान कर्मचारियों को सेवानिवृत कर दिया । औरंगजेब ने बीजापुर के सुलतान से 2 लाख का वार्षिक कर वसूलना चाहा । न देने पर उसने उसकी सेना को परास्त कर गोलकुण्डा में प्रवेश करना चाहा । तब दाराशिकोह ने हस्तक्षेप करके उसे इसके बदले में सन्धि करने पर विवश किया ।

दाराशिकोह के षड्‌यन्त्रों की वजह से बीजापुर और गोलकुण्डा मुगल साम्राज्य में नहीं मिलाये जा सके, तो औरंगजेब ने दक्षिण की सूबेदारी में शिवाजी के प्रभाव को कम करने के लिए अभियान प्रारम्भ किया । शाहजहां की मृत्यु होने पर औरंगजेब को सिंहासन प्राप्ति के लिए युद्ध करना पड़ा । उसने दारा, मुराद, शिकोह, सुलेमान का वध कर डाला । 21 जुलाई सन् 1658 को राज्य सिंहासन प्राप्त कर लिया ।

ADVERTISEMENTS:

1659 के दिल्ली में सम्पन्न राज्यारोहण समारोह में उसने ”आलमगीर पादशाह गाजी” की उपाधि धारण की । उसने इस आनन्दोत्सव में लाखों की दौलत खर्च कर अपने भाइयों की क्रूर हत्या तथा पिता को क्रूरतापूर्वक बन्दीगृह में यातनाएं देने के पाप को धोना चाहा ।

औरंगजेब ने अपने 50 वर्षों के शासनकाल में 25 वर्ष उत्तर भारत में रहते हुए अनेक प्रशासनिक सुधार किये और 1682 से 1707 तक 25 वर्ष दक्षिण भारत में व्यतीत किये । दक्षिण भारत में वह मराठों की शक्ति तथा शिवाजी के शासन का सर्वनाश करने में पूर्णत: असफल रहा ।

ADVERTISEMENTS:

औगंजेब ने जहां बौद्धिक, साहित्यिक, कलात्मक, गतिविधियों का ह्रास किया, वहीं उसने प्रान्तीय सूबेदारों का स्थानान्तरण कर प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त-दुरस्त किया । उसने राजस्व व्यवस्था में सुधार लाने के साथ-साथ जनकल्याण के कार्य किये । हिन्दुओं के प्रति कट्टरवादी नीति के साथ ही उसने तीर्थयात्रा कर, अस्थि कर के साथ-साथ कुल मिलाकर 80 करों को समाप्त किया ।

औगंजब कट्टर सुन्नी मुसलमान था । वह इस्लाम के नियमों और कुरान के अनुसार अपना राज-काज चलाता था । वह हिन्दुस्तान को दार-उल-हर्ब, यानी काफिरों के देश से दार-दल-इस्लाम, यानी मुसलमानों का देश बनाना चाहता था । इस नीति के तहत कई हिन्दू विरोधी कार्य किये, जिसमें हिन्दुओं के मन्दिरों और देवस्थानों का निर्ममतापूर्वक विध्वंस किया । नवीन मन्दिर बनाने की मनाही की । मन्दिरों के भग्नावेशों पर मस्जिद बनवायी । गौवध किया ।

मथुरा, प्रयाग, अयोध्या, काशी, हरिद्वार, उज्जैन, गुजरात, सौराष्ट्र, मारवाड़, उदयपुर, महाराष्ट्र, गोलकुण्डा के मन्दिरों का विध्वंस किया । मन्दिरों की मूर्तियों को मस्जिद की सीढ़ियों में लगवाया, ताकि वे मुसलमानों के पैरों तले रौंदी जा सकें । हिन्दुओं को काफिर तथा मूर्ख ब्राह्मण कहकर शिक्षा देने वाले पण्डितों को अपमानित किया ।

हिन्दुओं पर जजिया कर उलेमाओं को खुश करने के लिए लगाया, जो हिन्दुओं से बड़ी ही निर्ममता से वसूला जाता था । इसमें भी उसने एक बंटे तीन जजिया हिन्दुओं से अधिक लिया । उसने हिन्दुओं को शासकीय पदों से पृथक् कर उन पर कई सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक प्रतिबन्ध लगाये । मुसलमान बनने पर उन्हें अनेक प्रकार के प्रलोभन दिये ।

ADVERTISEMENTS:

बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराने के लिए उसने तो सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर का सिर कटवा दिया । गुरु गोविन्दसिंह के दोनों पुत्रों को दीवार में जिन्दा चुनवा दिया । शिवाजी के पुत्र शंभाजी तथा मन्त्री कवि कलश का नृशंसतापूर्वक कत्ल करवा दिया । जाटों के नेता गोकुल तथा पंजाब और कश्मीर के अनेक सूबेदारों को तथा उच्च कुलीन हिन्दू परिवारों की कन्याओं के विवाह मुसलमानों से करवाये ।

उसकी इस कट्टर धार्मिक नीति के परिणामस्वरूप हिन्दू, जाटों, सतनामियों, सिक्खों, राजओं और मराठों ने विद्रोह कर दिये थे । औरंगजेब ने मुगल सिक्खों पर कलमा खुदवाना इसीलिए बन्द करवा दिया, क्योंकि काफिरों के स्पर्श से यह अपवित्र हो जाता है ।

उसने पारसी नौरोज, झरोखा दर्शन, जन्मदिवस, राज्याभिषेक दिवस, प्रीतिभोज, हिन्दुओं की तरह रेशमी वस्त्र तथा राजदण्ड धारण करना, मस्तक पर तिलक लगवाना, ज्योतिषियों, फैशनपरस्ती, खेल-तमाशों, मद्यपान, जुआ, वेश्यावृत्ति, मूर्तिपूजा, सती-प्रथा, दरबारी संगीत पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगवाये ।

ADVERTISEMENTS:

ADVERTISEMENTS:

हिन्दुओं की अभिवादन शैली की जगह ”सलाम अलेकम” की प्रथा के साथ-साथ कई कट्टर धार्मिक नियमों का पालन करने पर जोर दिया । ऐसा न करने वालों को वह कठोरतापूर्वक दण्डित किया करता था ।

3. उपसंहार:

औरंगजेब यद्यपि श्रेष्ठ प्रशासनिक क्षमता तथा सुसंगठित शासन व्यवस्था रखने में सक्षम था । उसमें कुशल सेनानायक, संयमी जीवन, परिश्रमी, अनुशासनप्रिय, धर्मनिष्ठ मुसलमान, चालाक कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ के गुण थे, जिसके कारण उसने शासन व्यवस्था में सुधार लाते हुए लगभग 50 वर्षों तक शासन किया, तथापि उसमें मानवोचित गुणों, पारिवारिक प्रेम का अभाव, राज्यभक्ति व प्रजाहित का अभाव, सन्देहशील प्रवृति, धर्मान्धता, हिन्दुओं पर क्रूर अत्याचार, आर्थिक-सामाजिक सुधार की उपेक्षा, ललितकला और साहित्य के विध्वंस की नीति, साम्राज्य की अति महत्त्वाकांक्षी नीति जैसे अवगुण थे, जिसके कारण उसका शासन अराजकता, विद्रोह तथा षड्‌यन्त्रों का अखाड़ा बन गया था ।

औरंगजेब के अन्तिम दिन अत्यन्त कष्टमय बीते । 21 फरवरी 1707 को 90 वर्ष की आयु पूर्ण कर उसने इस दुनिया से कूच किया । उसके शव को दौलताबाद {खुलदाबाद} में शेख बुरहानुद्दीन दरवेश की कब्र के समीप दफनाया गया । उसका जनाजा बहुत ही सादगी के साथ ले जाया गया ।

उस पर कोई भवन, मकबरा या गुम्बद न बनाकर उसके चारों तरफ सफेद संगमरमर का जालीदार घेरा मात्र बनाया गया । औरंगजेब के अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में उसकी एकांगी और संकुचित भावना की कट्टरता की नीति की वजह से उसके साम्राज्य की जड़ें खोखली हो गयी थीं । जीवन के अन्तिम समय में उसने पुत्रों से कहा था-

ADVERTISEMENTS:

”मैं अकेला आया था, अकेला ही जा रहा हूं । मैं नहीं जानता कि मैं क्या हूं और क्या करता हूं । मैंने सच्चे अर्थों में शासन नहीं किया, मेरी सारी शक्ति समाप्त हो गयी है, मैं केवल खाल, भूसा और सूखा मांस ही रह गया हूं । मैं इस ससार में कुछ नहीं लाया था, किन्तु पाप की गठरी सिर पर रखकर ले जा रहा हूं ।”

Home››Personalities››