सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध | Essay on Sarvepalli Radhakrishnan in Hindi

1. प्रस्तावना:

बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न डॉ० राधाकृष्णन न केवल भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे, वरन् वे एक कुशल राजनेता, तत्ववेत्ता, दार्शनिक, धर्मशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, कुशल अध्यापक होने के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माता भी थे । अपने जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में समर्पित करने वाले डॉ० राधाकृष्णन के हृदय में शिक्षकों के प्रति अपार श्रद्धाभाव था । वे भारतीय संस्कृति के उन्नायक तथा हिन्दू धर्म के प्रति आस्थावान थे ।

2. जीवन परिचय:

राधाकृष्णनजी का जना 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिरूतनी नामक गांव में हुआ था । उनका लालन-पालन अत्यन्त संस्कारयुक्त धार्मिक वातावरण में हुआ । उनके पिता सम्भ्रात ब्राह्मण होते हुए भी रुढ़िवादी नहीं थे । इसी कारण उन्होंने रुढ़िग्रस्त समाज की आलोचना की परवाह न करते हुए उन्हें ईसाई मिशनरी में शिक्षा प्राप्ति हेतु भर्ती करवाया था ।

सन् 1905 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से बी०ए० तथा एम०ए० की उपाधि प्राप्त की । वहीं के एक विश्वविद्यालय में वे प्रोफेसर नियुक्त हुए । आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर रहते हुए उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी अध्यापन कार्य किया । इसी बीच कई विश्वविद्यालयों में विषय विशेषज्ञ के रूप में व्याख्यान देने के लिए जाया करते थे ।

काशी विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में कार्यरत रहे । सोवियत संघ में भारत के राजदूत के पद पर उन्होंने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण कार्य किये । यूनेस्को के एक्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे । 1952 से 62 तक वे उपराष्ट्रपति तथा 62 से 67 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे ।

3. उनकी कृतियां:

डॉ० राधाकृष्णन शिक्षाशास्त्री, दार्शनिक, अध्यापक होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ लेखक भी थे । 100 से अधिक विश्वविद्यालयों ने उन्हें डॉ० की मानक उपाधि प्रदान की । पूर्व एवं पश्चिम के दर्शन एवं संस्कृति पर न केवल उन्होंने लेख लिखे, अपितु उनकी व्याख्या भी की । जिस पर उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की ।

उनके सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थों में द फिलासफी ऑफ उपनिषद्स, भगवद्‌गीता, एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ, हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ, द एथिक्स ऑफ वेदान्त एण्ड इट्‌स प्रिसपोजीशन आते हैं । 1931 में ब्रिटिश सरकार ने इन्हें ”नाइट” की उपाधि प्रदान की । 1954 में उन्हें भारत रत्न का सर्वोच्च सम्मान मिला । विश्वप्रसिद्ध टेम्पलेटन पुरस्कार भी उन्हें मिला । वे गीता के कर्मयोग के सिद्धान्तों के सच्चे प्रतिनिधि थे ।

4. उनके कार्य:

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डॉ० राधाकृष्णन की भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध निष्ठा थी । भारतीय शिक्षा एवं दर्शन की व्याख्या करते हुए उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति की आत्मा व उसके गुणों का प्रकाशन माना । शिक्षा द्वारा आध्यात्मिक मूल्यों के साथ-साथ चरित्र निर्माण पर भी उन्होंने विशेष बल दिया । वे एक अच्छे राजनीतिज्ञ भी थे । प्रजातान्त्रिक मूल्यों को उन्होंने सदा ही महत्त्व दिया ।

सामाजिक दृष्टि से उनके कार्यों में मानवमात्र के प्रति समानता का भाव दिखाई पड़ता है । कठिन-से-कठिन परिस्थिति में निष्काम कर्म की प्रेरणा उनके आदर्शों में से एक थी । शिक्षक दिवस को राष्ट्र को समर्पित करते हुए एक ओर तो उन्होंने राष्ट्र निर्माता शिक्षकों के प्रति अपार श्रद्धाभाव एवं कृतज्ञता अर्पित की है, वहीं दूसरी ओर भावी पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेने हेतु प्रेरित किया है ।

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5. उपसंहार:

राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पण एवं निष्ठा भाव से कार्य करने वाले इस शिक्षाविद्, दार्शनिक, राजनेता को भारतवासी हमेशा याद रखेंगे; क्योंकि राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उन्होंने भारतीय धर्म और संस्कृति की आदर्श व्याख्या प्रस्तुत कर गौरव बढ़ाया है ।

5 सितम्बर को अपना जन्म दिवस राष्ट्र को शिक्षक दिवस के रूप में समर्पित करने वाले डॉ० राधाकृष्णन एक महान् व्यक्तित्व के धनी थे । नेहरू के शब्दों में- A great philosopher a great educationist and a great humanist थे । ऐसे महामानव 87 वर्ष की आयु में 16 अप्रैल 1975 को परमात्मा में विलीन हो गये ।

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