स्वामी रामतीर्थ पर निबन्ध | Essay on Swami Ramtirth in Hindi

जन्म और शिक्षा:

स्वामी रामतीर्थ अविभाजित पंजाब के गुजराँवाला जिले में पैदा हुए थे, जो अब पाकिस्तान में है । उनका जन्म 22 अक्टूबर, 1873 को हुआ था । उनके पिता बडे सरल और धार्मिक स्वभाव के थे । स्वामी रामतीर्थ ने 15 वर्ष की आयु में ही हाई रव्हूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली और उन्हें सरकार की और से वजीफा मिलने लगा ।

उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने लौहार के मिशन कॉलेज में प्रवेश लिया । यही से उन्होंने प्रथम श्रेणी में बीए, और एम.ए. परीक्षाये पास की । इरन बीच वजीफे की थोडी-सी धनराशि से ही वे गुजारा करते रहे । उन्होंने अपने पिता से पढ़ाई के लिए कोई पैसा नहीं लिया ।

शिक्षण का काम और संन्यासी बनना:

शिक्षा समाप्त करके उन्होंने एक या दो स्कूलों में अध्ययन कार्य किया । इसके बाद वे लौहार के मिशन कॉलेज मे गणित के प्रोफेसर बन गए । अब उन्हें बड़ा अच्छा वेतन मिलने लगा, लेकिन वे अपने जीवन से संतुष्ट न थे ।

उनके असंतोष का मुख्य कारण यह था कि उन्हे धार्मिक यथो के अध्ययन का समय नहीं मिल पाता था । इसलिए उन्होने प्रोफेसर के पद से इस्सपिग दे दिया । कुछ दिनो तक उन्होने एक पत्रिका का प्रकाशन किया । 1900 ई॰ में वे संसार का त्याग कर हिमालय चले गए और कुछ दिन बाद र्हो संन्यासी हो गए ।

विदेशों में उनके कार्य:

1902 में टिहरी नरेश के अनुरोध पर वे एक धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने जापान गए । यही टोकियो विश्वविद्यालय में उन्होंने कई विद्वतापूर्ण भाषण दिए । इन भाषणों से उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई । वे जहाँ भी जाते, उनका भलय स्वागत होता । दूर-दूर से उनका भाषण सुनने को लोग आने लगे । इसके बाद वे अमरीका गए । राह में उन्हे एक समाचारपत्र का संवाददाता मिला ।

उसने उनसे धन-दौलत, अमरीका में ठहरने के स्थान आदि से बारे में अनेकके प्रश्न पूछे । स्वामी रामतीर्थ ने हस कर उसे उत्तर दिया कि समूचा विश्व उनका घर है और वे संसार की समूची सम्पत्ति के स्वामी हैं । रहने के लिए उन्हें केवल 2 गज जमीन की आवश्यकता है, जो कहीं भी बड़ी आसानी से मिल सकती है ।

संवाददाता ने पहले तो उनकी बातो का मजाक उडाया, लेकिन जब उसे पता लगा कि वे स्वामी रामतीर्थ हैं, तो उसने अमरीकावासियों को तौर देकर उनके आगमन की सूचना पहले से भेज दी । अमरीका की धरती पर उतरते ही बड़ी संख्या में लोगों ने उनका भव्य रचागत किया ।

उनके उपदेश:

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अमरीका में उन्होंने अनेक भाषण दिए । बड़ी संख्या में पुरात और महिलायें उनके भाषण बड़ी ध्यान से सुनते थे । उन्होंने अमरीकावासियों से मानव मात्र के प्रति भाईचारे का व्यवहार करने का पाठ पढ़ाया । वे लोगों का ध्यान भौतिकता से हटाकर अध्यात्म की ओर ले जाना चाहते थे और उन्हें स्वार्थ त्यागकर मानवमात्र से प्रेम करना सिखाना चाहते थे ।

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उनके मतानुसान ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल उपाय यही था । स्वामी जी बड़े व्यावहारिक व्यक्ति थे । वे जो उपदेश देते थे, रचय उसका पालन भी करते थे । तीन वर्ष तक वे अमरीका में रहे और वही उन्होंने धर्म प्रचार का कार्य किया ।

उपसंहार:

स्वामी जी जब भारत लौटे, तो उनका स्वारथ्य बहुत बिगड़ गया था । एक दिन गंगा में नहाते समय ही उन्होंने महासमाधि ले ली । बड़े दुर्भाग्य की बात है कि भारत के ऐसे महान् समृत को 33 वर्ष की अल्पायु में ही विधाता ने हमसे छीन लिया ।

लेकिन उन्होंने इसी अवधि में इतने महान् कार्य कर दिखाये, ओ अन्य लोग शताब्दियों में भी पूरा नहीं कर सके । उनका नाम भारत में बड़ी श्रद्धा से लिया जाता रहेगा । उन्होंने जापान और अमरीका जैसे देशों में भारत का गौरव बढाया ।

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