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महात्मा बुद्ध पर निबंध | Essay on Mahatma Buddha in Hindi!

महात्मा बुद्‌ध शांति और अहिंसा का अग्रदूत बनकर इस धरा पर अवतरित हुए । उनके प्रादुर्भाव के समय संपूर्ण भारत हिंसा, अशांति, अंधविश्वास, अधर्म और रूढ़िवादिता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था ।

महात्मा बुद्‌ध का आगमन एक ऐसे युग प्रवर्तक के रूप में हुआ जिन्होंने न सिर्फ भारत में अपितु विश्व के अनेक देशों में अपने ज्ञान की ज्योति से जनमानस को लाभान्वित किया । महात्मा बुद्‌ध का जन्म सन् 569 ई॰ पूर्व लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था । वे कपिलवस्तु के क्षत्रिय राजा शुद्‌धोधन के पुत्र थे ।

उनका बचपन का नाम सिद्‌धार्थ था । बचपन में ही माता का देहावसान हो जाने के उपरांत पिता शुद्‌धोधन ने उन्हें अपार स्नेह प्रदान किया । बचपन से ही बुद्‌ध अत्यंत गंभीर व शांत विचारों के थे । वे अत्यंत जिज्ञासु थे । अपने आस-पास होने वाली समस्त घटनाओं का वे गहन अवलोकन करते थे ।

जैसे-जैसे बालक सिद्‌धार्थ बड़ा हुआ, समय के साथ वह और भी गंभीर व दार्शनिक प्रवृत्ति का होता गया । उसे राजसी भोग-विलास आकृष्ट न कर सके । धीरे- धीरे वह वैराग्य की ओर बढ़ता चला गया । पिता उसके वैरागी स्वभाव से अत्यंत चितिंत हुए । अपनी इस चिंता के निवारण हेतु उन्होंने अनेक प्रयास किए । उनका विवाह यशोधरा नामक एक सुंदरी से करा दिया गया तथा महल में ही सिद्‌धार्थ के विलास के सभी साधन उपलब्ध कराए गए ।

मगर पुत्र की सांसारिक अनिच्छा और सत्य को जानने की तीव्र उत्कंठा में कभी नहीं आई । एक बार वे गया में वट-वृक्ष के नीचे समाधिरत थे । उसी वृक्ष के नीचे अकस्मात उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ । ज्ञान प्राप्ति के उपरांत वे गौतम बुद्‌ध के नाम से प्रसिद्‌ध हुए । गया में ज्ञान प्राप्ति के उपरांत उनका संपूर्ण जीवन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित हो गया ।

गौतम बुद्‌ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जगह-जगह भ्रमण करते रहे । उनके अनुयायियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई तथा उनकी ख्याति चारों ओर फैल गई । अंगुलिमाल जैसा डाकू भी अपनी आसुरी प्रवृत्ति को छोड्‌कर उनका शिष्य बन गया । उन्होंने जगत को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया । उनके अनुसार अहिंसा ही परम धर्म है ।

गौतम बुद्‌ध के उपदेश व शिक्षाएँ विश्व में बौद्‌ध-धर्म के रूप में विख्यात हैं । आज भी यह धर्म भारत में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों; जैसे – चीन, जापान, नेपाल व तिब्बत आदि में प्रमुख रूप से विद्‌यमान है । बौद्‌ध धर्म के अनुयायी ‘ बौद्‌ध ‘ कहलाते हैं ।

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अपने समस्त राजसी सुखों का परित्याग कर विश्व में धर्म और शांति स्थापना के लिए वैराग्य को कोई महापुरुष ही स्वीकार कर सकता है । गौतम बुद्‌ध को प्रदत्त ‘ महात्मा बुद्‌ध ‘ की उपाधि इन अर्थों में सर्वथा उपयुक्त है । वह निस्संदेह एक महापुरुष व युग प्रवर्तक थे ।

वे भारत ही नहीं अपितु समस्त मानव जाति का गौरव थे । इसलिए उन्हें ‘ लाइट ऑफ एशिया ‘ कहकर भी संबोधित किया जाता है । उनके पिता ने उनकी भौतिक जगत की ओर आसक्ति बढ़ाने के लिए अनवरत प्रयास किए परंतु उनके सभी प्रयास निस्फल होते चले गए ।

राजा शुद्‌धोधन ने उनके खान-पान, रहन-सहन वस्त्रादि की समस्त राजसी सुविधाएँ प्रदान कीं । जब इन समस्त भौतिक सुखों का उन पर कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने युवराज सिद्‌धार्थ का विवाह यशोधरा से करा दिया । इससे कुछ क्षणों के लिए उनका मन आसक्ति की ओर मुड़ा । वे घर-गृहस्थी की ओर आकृष्ट हुए । कुछ समय के पश्चात् उनको ‘ राहुल ‘ नाम का सुंदर पुत्र हुआ । राजा शुद्‌धोधन यह सब देख-सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए ।

युवक सिद्‌धार्थ को विवाह का बंधन तथा पुत्र का मोह स्थाई रूप से नहीं बाँध सका । उनका मन पुन: अशांत रहने लगा । नश्वर संसार से उनकी विरक्ति बढ़ती ही जा रही थी । सत्य की खोज व आध्यात्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए उनकी जिज्ञासा दिन-प्रतिदिन तीव्र होती जा रही थी ।

वैराग्य की उनकी उत्कंठा जब अत्यधिक बढ़ गई तब एक दिन वे रात्रि को अपनी धर्मपत्नी यशोधरा व पुत्र राहुल को सोता हुआ छोड्‌कर सत्य की खोज में निकल पड़े । घर-परिवार व समस्त राज-सुख का परित्याग कर सिद्‌धार्थ शांति और सत्य की खोज में जंगलों व एकांत में भटकते रहे । उनका शरीर निर्जर होता चला गया और अंत में उनकी तपस्या व सत्य की खोज पूरी हुई ।

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