बढ़ती जनसंख्या और घटते संसाधन पर निबंध | Essay on The Increasing Population and Decreasing Resources in Hindi!

संयुक्त राष्ट्र के आप्टिनम पापुलेशन ट्रस्ट के अनुसार यदि वर्तमान गति से विश्व की जनसंख्या बढ़ती गयी तो सन् 2050 तक 9.2 अरब लोग इस धरती पर होंगे । वर्तमान में यह संख्या 7 अरब है । हालांकि इसको सभी स्वीकार नहीं करते और यह नहीं मानते कि जनसंख्या इस कदर बढ़ेगी ।

यदि हम जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न आकड़ों पर विश्वास करें तो उसके अनुसार विश्व की जनसंख्या पचास प्रतिशत तक बढ़ेगी और उसके बाद रुक जायेगी । फिर भी, इस पचास प्रतिशत की वृद्धि के कारण जीवन यापन के और साधन तलाशने होंगे और पृथ्वी के संसाधन-स्रोतों को पचास प्रतिशत और दोहन का जोखिम उठाना होगा । यदि इस वृद्धि दर की आर्थिक वृद्धि की दर से तुलना करें तो बहुत सारे अनुमान सामने दिखते हैं ।

अर्थशास्त्रियों की भविष्यवाणी है कि इस शताब्दी में विश्व की आर्थिक विकास दर का औसत तीन प्रतिशत प्रति वर्ष रहेगा । सरकारें इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करती रहेंगी । लगातार तीन प्रतिशत की आर्थिक विकास दर को पाने के लिए हर 2-3 वर्ष बाद दोगुनी आर्थिक गतिविधियां करनी पड़ेगी । इस शताब्दी में आर्थिक वृद्धि, पर्यावरण संरक्षण और जनसंख्या वृद्धि के बावजूद 32 गुना ज्यादा हो सकती है यदि बैंक, सरकारें और व्यापार अपने रास्ते पर ठीक ठाक चलते रहे तो ।

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जब संसाधन सीमित हों, तब आर्थिक वृद्धि पाना असंभव भी हो सकता है । जनसंख्या को न देखकर यदि आर्थिक वृद्धि को देखें तो वे खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं । जनसंख्या इसका कारक हो सकता है पर ऐसा नहीं है । समय बदल गया है-अब जनसंख्या वृद्धि गरीब देशों की ही समस्या नहीं है, यह धनी देशों की वृद्धि से जुड़ी है । वे संसाधनों का अत्यधिक उपभोग कर रहे हैं, साथ ही पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं ।

आज एक समस्या माइग्रेशन से भी जुड़ी है । संपन्न देशों के लोग जिस तरह से बाहरी देशों से आयी जनसंख्या से परेशान हैं, वह अपने आप में बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है । वे अपने यहां बाहर से आने वाले लोगों पर प्रतिबंध लगाते जा रहे हैं ।

गत दिनों ब्रिटेन ने टूरिस्ट वीसा के लिए कुछ प्रतिबंध लगाए । अब तक ऐसे प्रतिबंध नहीं थे, लेकिन जनसंख्या वृद्धि की परेशानियों से उन्होंने ऐसे कदम उठाये हैं । उदाहरण के लिए 1997 से 2004 के बीच लाखों की संख्या में लोग ब्रिटेन गये । उनमें से एक बड़ा हिस्सा वहीं बस गया । इस कारण प्रति वर्ष उनके लिए 60 हजार घर बनाने पड़े।

दरअसल जनसंख्या का बढ़ना ही सारी समस्याओं की जड़ हैं । बढ़ती आबादी के कारण ही खाद्यान्न भंडार खाली हो रहे हैं । ऐसे में भूमि कितना उत्पादन कर पाएगी? सीमित भूमि और निरंतर जनसंख्या का दबाव किसी परमाणु विस्फोट से कम नहीं है । ऐसे में रोटी, कपड़ा और मकान कैसे उपलब्ध होंगे? संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन का मानना है कि 2050 तक खाद्यान्न की पैदावार दुगनी करनी पड़ेगी, तभी भुखमरी से बचा जा सकता है ।

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1980 के मुकाबले आज विश्व में तीन गुना मांस का उत्पादन ज्यादा करना पड़ रहा है । इस तरह खेती की जमीन से उत्पादित अन्य और घास का बड़ा प्रतिशत जानवरों के लिए उगाना पड़ रहा है । विश्व के उत्पादित अन्न का एक-तिहाई जानवरों के लिए प्रयुक्त हो रहा है । ऐसी स्थितियों में आबादी का बढ़ना विश्व के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं ।

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