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कवि, प्रेमी और पागल व्यक्ति एक समान होते हैं (निबन्ध) | Essay on Poets, Lovers and Mad Men are All alike in Hindi!

Aविश्व भर में कवि को सबसे प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति माना जाता है । यह मान्यता भी प्रसिद्ध है कि कवि जगत का निर्माण करता है । दुनिया इन्हीं पर टिकी हुई है ।

संसार के महान कवियों की कृतियों वेद, महाकाव्य, अभिलेख आदि मानव सभ्यता के प्रकाश स्तम्भ हैं । विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में, विभिन्न युगों में कालिदास, कल्हण, शेक्सपियर, मिल्टन, होमर, कोलरिज, गेटे, बायरन, शैली, गालिब, इकबाल तथा अन्य कवियों द्वारा लिखी कविताएं मानवजाति को आशा और प्रेरणा देने के काव्य-कर्म को निभाती आ रही हैं ।

उत्कृष्ट कविताओं में पाठकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने की अनुपम शक्ति निहित होती है । कविता मानव आत्मा को भावसंवेदना के माध्यम से झकझोर देती है । इतिहास इस तथ्य की पुष्टि करता है, भक्तिकाल के दौरान भारत की जनता में नैराश्य की भावना बलवती हो गई थी । इस युग के कवियों ने जनता में प्राण संचार किया । इस कारण भक्तिकाल को भारतीय साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है ।

प्रेम हृदय की भावना है । किसी ने ठीक ही कहा है कि ”प्रेम से संबंधित सभी विचार, भाव, संवेदनाएं प्रेम में सहायक है और इस पावन ज्योति को पुष्ट करती है ।” वास्तव में कविता प्रेम की ही उपज है । प्रेम में मुग्ध अथवा व्यथित हृदय से कविता झरने के समान प्रवाहित होती है । प्रेम परमपद है, प्रेम ही ईश्वर है ।

सौन्दर्य, चाहे वह चन्द्रमा, तारे और प्राकृतिक दृश्य या नारी का हो, देखने वाले सहृदय व्यक्ति को आकर्षित कर लेता है । इससे कवि के हृदय में असीम भाव-संवेदनाएं प्रस्फुटित होती है । इन्हीं संवेदनाओं को कविताओं में मूर्त रूप प्राप्त होता हैं । इसका प्रभाव पूर्ण चन्द्रमा और समुद्र की लहरों के समान ही ज्वार-भाटा उत्पन्न करने वाला होता है ।

चन्द्रमा की ओर उछलती लहरों की ध्वनि और उन्माद ही वास्तविक कविता है । उसी प्रकार पूर्ण सौन्दर्य को देखकर मानव हृदय में जो आकर्षण, प्रेम उत्पन्न होता है, उन्हीं भावों का प्रस्कुटन कविता है । प्रेम और कविता के प्रभाव के सामने यह कहना कि कवि, प्रेमी और पागल व्यक्ति एक समान होते हैं, विरोधाभास लगता है । लेकिन उक्ति पूर्णत: आधारहीन भी नही हैं । तस्वीर का दूसरा रूख भी होता है । इसमें कोई संदेह नही है कि एक पागल व्यक्ति पागल होता है ।

प्रेम में पड़कर एक विद्वान व्यक्ति के हृदय में भावनाओं का संवेग उत्पन्न होता है, जिसकी कल्पना भी एक सामान्य सांसारिक व्यक्ति नहीं कर सकता । अपने प्रिय की उपस्थिति में उसे अन्य कोई नजर नहीं आता और उसकी अनुपस्थिति में तो उसे कुछ दिखना ही बंद हो जाता है । प्रेम के इस अतिमानवीय प्रभाव के कारण उसकी बुद्धि, सांसारिकता समाप्त हो जाती है । प्रिय के अतिरिक्त उसे किसी और चीज की कामना नहीं होती ।

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अपने जीवन निर्वाह में जुटा सामान्य व्यक्ति उस भावनाओं की ऊँचाई तक नहीं पहुँच पाता है । प्रेमी की अतीइन्द्रिय संवेदना उसकी समझ से परे है । वह उस प्रेमी, कवि हृदय व्यक्ति को पागल घोषित कर देता है । अधिकांश लोग सांसारिक विचारधारा में विश्वास रखते हैं, इसलिए वे प्रेम से व्यथित हृदय की महानता को समझने में असमर्थ होते हैं । प्रेमी का हृदय आंधी से घिरे समुद्र के समान होता है ।

प्रेम के कारण व्यक्ति साधारणताओं से ऊपर उठ जाता है । सांसारिक और धन के लोभी मनुष्य ही उसे पागल कहते हैं । वे सोचते है कि कवि, प्रेमी और पागल व्यक्ति एक समान होते हैं । महान व्यक्ति ही प्रेमी व्यक्ति के हृदय की कोमल भावनाओं की परख कर सकता है ।

महान व्यक्ति की स्वीकृति मिलने पर ही साधारण मनुष्य उसके भावों की गूढ़ता तक पहुँचने का प्रयास करता है । हृदय के भावों से प्रेरित उसकी कविता को पढ़कर अभिभूत होता है । जैसा कि शैली ने कहा है, जो मैं अभी सुन रहा हूँ, संसार उसे मेरे बाद सुनेगा ।

प्रत्येक प्रेमी के हृदय में कवि छिपा होता है, जो अकेले में अपने अन्त: भावों के संगीत को सुनता है और उन्हें शब्दों में अभिव्यक्त करता है । उसकी कविता को सुनते हैं । लेकिन वे स्वयं उस उच्चता तक नहीं पहुँच सकते, जिसे प्रेमी तथा कवि ने प्राप्त किया है ।

प्रेम की उच्च संवेदना व्यक्ति को उन्मादित, अथवा पागल कर देती है, इस अर्थ में सभी प्रेमी (चाहे प्रेम नारी से हो या ईश्वर से) और कवि पागल होते हैं । उक्ति का दूसरा रूप उचित नहीं है । क्यों सभी पागल व्यक्ति प्रेमी नहीं होते और सभी प्रेमी कवि के समान उच्च पद प्राप्त नहीं कर सकते ।

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