Here is a compilation of Essays on ‘Religions’ for Class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Religions’ especially written for Kids, School and College Students in Hindi Language.

List of Essays on Religions, Practiced in India


Essay Contents:

  1. जीवन में धर्म का महत्त्व । Essay on the Importance of Religion in our Life in Hindi Language
  2. हिंदू धर्म । Essay on Hinduism for Kids in Hindi Language
  3. इसलाम धर्म । Essay on the Religion of Islam for School Students in Hindi Language
  4. ईसाई धर्म । Paragraph on Christianity for Kids in Hindi Language
  5. बौद्ध धर्म । Essay on Buddhism for College Students in Hindi Language 
  6. जैन धर्म । Essay on Jainism for College Students in Hindi Language
  7. सिक्ख धर्म । Essay on Sikhism for School Students in Hindi Language
  8. पारसी धर्म । Essay on Parsi Religion for Kids in Hindi Language

1. जीवन में धर्म का महत्त्व । Essay on the Importance of Religion in our Life in Hindi Language

संसार में अनेक धर्म प्रचलन में हैं । हर देश का अपना धर्म है । एशिया के अलग-अलग भागों में विभिन्न धर्मों का जन्म हुआ । एक बात अवश्य है कि हर धर्म ने मानव को भाईचारे और इनसानियत का पाठ पढ़ाया । सभी धर्मो का एक ही संदेश है:

(i) मानव से प्यार करो,

(ii) सभी के प्रति अच्छा आचरण करो,

(iii) सहनशील बनो,

(iv) जीवन मात्र के प्रति उदार बनो,

(v) प्रत्येक प्राणी के प्रति दयाभाव रखो,

(vi) सभी मानव दानशील बनें ।

ADVERTISEMENTS:

इतिहास हमें बताता है कि विश्व के सभी धर्मों में ‘हिंदूधर्म’ सबसे पुराना है । इसके बाद इसलाम और ईसाई धर्म का स्थान है । ईसाइयों में यहूदी धर्म सबसे पुराना है । ईरान में पारसी धर्म का जन्म हुआ । चीन में कन्फ़्यूशियस धर्म का जन्म हुआ ।

भारत में जितने धर्म हैं उतने विश्व में कहीं नहीं ।  जिन लोगों ने हिंदू धर्म की जटिलताओं को स्वीकार नहीं किया, उन्होंने अपना धर्म अलग से ही बना लिया । फिर लोगों में अपने-अपने धर्म के प्रति रुचि पैदा करने की कोशिश की । इन धर्मों में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म प्रमुख हैं ।

बौद्ध और जैन धर्म का विकास हिंदू धर्म के अंतर्गत हुआ है । ये हिंदू ही हैं, भले ही इनको माननेवालों की संख्या बहुत अधिक हो और इनका अलग धर्म दिखता हो । पारसी धर्म ईरान में और  कक्यूशियस धर्म चीन में ही प्रचलित है ।

यहूदी धर्म इजराइल में है, जबकि इसलाम धर्म भारत, पाकिस्तान, बँगलादेश, अफगानिस्तान, ईरान तथा अरब देशों के अतिरिक्त संसार के लगभग सभी देशों में प्रचलित है । पूर्व के सभी देशों में ईसाइयों की संख्या बहुत अधिक है । ईसाई धर्म विश्व का सबसे बड़ा धर्म है ।

ईसाइयों की संख्या विश्व के सभी भागों में है । संख्या के आधार पर हम किसी धर्म को बड़ा अथवा छोटा नहीं ठहरा सकते । जो लोग सच्चे मन से अपने-अपने धर्मों का पालन करते हैं, वे किसी धर्म का विरोध नहीं करते; क्योंकि वे जानते हैं कि सभी धर्मों का उद्‌देश्य और सार एक ही है ।

आज जो लोग अपने-अपने धर्म की आड़ लेकर एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं, वे वास्तव में धर्म के मर्म को न तो जानते हैं और न ही जानने की कोशिश करते हैं । वे तो धर्म के नाम पर मार-काट और लूट-खसोट करना जानते हैं । ऐसे लोग वास्तव में धर्म के विरुद्ध कार्य करते हैं । ऐसे लोगों का समाज से बहिष्कार होना चाहिए ।


2. हिंदू धर्म । Essay on Hinduism for Kids in Hindi Language

हिंदू धर्म सबसे प्राचीन धर्म है । इसके माननेवाले लोग करोड़ों की संख्या में हैं । ये देवी-देवताओं के पूजन में विश्वास करते हैं । यदि प्राणी मरता है तो मरने के बाद उसे फिर से जन्म लेना होता है, हिंदू धर्म को माननेवाले इसमें विश्वास करते हैं । वे ‘कर्म के सिद्धांत’ को भी मानते हैं ।

विद्वानों का कहना है कि ‘सनातन’ शब्द का अर्थ शाश्वत, स्थायी और प्राचीन है । इस कारण से हिंदू धर्म ‘सनातन धर्म’ भी कहलाता है । आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म को ‘वैदिक धर्म’ कहा है । इसके पीछे उनका तर्क यह है कि वैदिक धर्म ही सनातन धर्म है और वही असली हिंदू धर्म है ।

यह बात सच है कि विश्व के धर्मों के इतिहास में सबसे पुराना धर्म ‘वैदिक धर्म’  है । वैदिक धर्म वहीं से शुरू होता है, जहाँ से वेदों की शुरुआत होती है । पुराने समय के सभी धर्म समाप्त हो गए, लेकिन वैदिक धर्म अभी तक जीवंत है । इसका मुख्य कारण यह है कि वैदिक धर्म आध्यात्मिक तत्त्वों पर टिका है । वे आध्यात्मिक तत्त्व ऐसे हैं, जिन्हें विज्ञान भी स्वीकार करता है ।

ADVERTISEMENTS:

हिंदू धर्म के बड़े-बड़े विद्वानों ने अपने बुद्धि-बल से अपने धर्म पर आए संकटों को समाप्त कर दिया । उन विद्वानों में व्यास, वसिष्ठ, पतंजलि, शंकराचार्य, रामानुज, कबीर, तुलसी, नानक, राजा राम मोहन राय, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, मोहनदास करमचंद गांधी, महर्षि अरविंद, डॉ भगवानदास, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि के कार्य सराहनीय रहे ।

इन विद्वानों ने समय-समय पर हिंदू धर्म के पक्ष में अपनी-अपनी बातों को पूरे तर्क के साथ लोगों के सामने रखा । हिंदू धर्म एक ऐसा वट-वृक्ष है, जिसकी जितनी शाखाएँ हैं, उतने ही देवी-देवता भी हैं । उन सभी देवी-देवताओं को माननेवाले हिंदुओं की संख्या बहुत बड़ी है ।

यही नहीं, हर व्यक्ति को अपने-अपने देवी-देवता की पूजा करने की पूरी स्वतंत्रता है । वैसे हिंदुओं के प्रमुख देवता हैं: ब्रह्मा, विष्णु, महेश । महेश को ‘शंकर’ भी कहा जाता है । विष्णु और शंकर को माननेवाले दो वर्गों में बंटे हुए हैं । पहला वर्ग ‘वैष्णव संप्रदाय’ है तो दूसरा वर्ग ‘शैव संप्रदाय’ ।

इन देवी-देवताओं के रूप, लक्षण, प्रकृति, इनकी पूजा करने की पद्धति और उनसे प्राप्त फलों में भारी अंतर माना जाता है । ‘वैष्णव’ और ‘शैवों’ की पूजन-पद्धति, मूर्ति के आकार-प्रकार, विश्वास, मूल्यों आदि में बहुत अंतर है । हिंदू धर्म में इन देवताओं के अतिरिक्त श्रीराम और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है ।

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हिंदू धर्म में श्रीराम और श्रीकृष्ण को ‘विष्णु’ का अवतार माना जाता है । कृष्ण की लीला को ‘रासलीला’ का नाम दिया गया है । कृष्ण-भक्त स्थान-स्थान पर रासलीलाओं का आयोजन किया करते हैं । कृष्ण के अनुयायी भारत में तो हैं ही, विदेशों में भी उनकी काफी संख्या है । कृष्ण के जीवन-दर्शन से पश्चिम के देशवासी बहुत ही प्रभावित हैं ।

हिंदू धर्म की एक बहुत बड़ी विशेषता है कि उसमें उपासना-पद्धति के अंतर्गत प्रकृति और पुरुष यानी स्त्री और पुरुष की समान रूप से भागीदारी है । हिंदू धर्म में देवियों का स्थान देवताओं से पहले है । उदाहरण के लिए: सीता-राम, राधा-कृष्ण, उमा-शंकर इत्यादि ।


3. इसलाम धर्म । Essay on the Religion of Islam for School Students in Hindi Language

इसलाम धर्म का जन्मदाता हजरत मुहम्मद को माना गया है । हजरत मुहम्मद साहब का जन्म मक्का में सन् ५७० में हुआ था । इनके पिता एक साधारण व्यापारी थे । बचपन से ही मुहम्मद साहब एक विचारशील व्यक्ति थे ।

जब वे बहुत छोटी अवस्था के थे, तभी उन्हें मूर्च्छा आ जाया करती थी । कहते हैं, उस समय वे अल्लाह को याद किया करते थे । बाद में, उनकी धार्मिक रुचि देखकर मुसलमानों ने उन्हें अपना धार्मिक नेता मान लिया । समय-समय पर मुहम्मद साहब ने अनेक स्थानों पर धार्मिक उपदेश दिए ।

ADVERTISEMENTS:

बाद में मुहम्मद साहब के उपदेशों को लिखा गया और उसे ‘कुरान शरीफ’ का नाम दिया गया । मुहम्मद साहब द्वारा प्रतिपादित धर्म को ‘इसलाम धर्म’ कहा गया । इसलाम का अर्थ होता है ‘शांति का मार्ग’ । मक्का मुसलमानों का पवित्र स्थान है । उनके सिद्धांत के विरोधी लोगों ने इसलाम धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ दुष्प्रचार किया । इस्‌से स्थिति बहुत नाजुक हो गई ।

इस तरह मुहम्मद साहब के जीवन के लिए भी खतरा पैदा हो चुका था । मामले की गंभीरता को भाँपकर मुहम्मद साहब को उनके शिष्यों ने मदीना पहुँचाया । इस तरह से मुहम्मद साहब मक्का छोड्‌कर मदीना में रहने लगे । वे सन ६२२ में मदीना गए । सन ६२२ से ही हिजरी सर शुरू होता है ।

मदीना में रहकर मुहम्मद साहब ने अपने धर्म का प्रचार-प्रसार किया । इस तरह इसलाम धर्म का प्रचार-प्रसार समूचे अरब देशों में हो गया । मुहम्मद साहब के मक्का से जाने की देरी थी, धीरे-धीरे मक्का निवासियों ने मुहम्मद साहब के बताए मार्ग पर चलना शुरू कर दिया ।

सारे मक्का निवासियों ने एक स्वर में ‘इसलाम धर्म’ को स्वीकार कर लिया । मुहम्मद साहब ने समझ लिया कि मदीना में इसलाम धर्म की नींव बहुत गहरी हो चुकी है । तब उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला लिया । वे ‘हज्जाज’ गए । उसके बाद वे ‘नजत’ नामक स्थान पर भी गए ।

ADVERTISEMENTS:

मुहम्मद साहब की मृत्यु के सौ वर्षों के बाद इसलाम-धर्म का पूरे विश्व में प्रभावकारी प्रसार हुआ । इसलाम धर्म का पवित्र ग्रंथ ‘कुरान शरीफ’ माना गया है । ‘कुरान शरीफ’ के अनुसार, इस सृष्टि की रचना करनेवाले ‘अल्लाह’ हैं । इस लोक में जितने भी प्राणी हैं, वे सभी अल्लाह के बंदे हैं ।

इसलाम धर्म अल्लाह के अलावा और किसी देवी-देवता को नहीं मानता । यही कारण है कि मुसलमान लोग इस बात की कसम खाते हैं कि वे कयामत तक अल्लाह के न्याय में विश्वास रखेंगे । जहाँ तक भारत में इसलाम धर्म के प्रचार-प्रसार की बात है, इसकी अवधि सर ७१२ की मानी जाती है ।

सल्तनत-काल में भारत में इस धर्म के प्रचार-प्रसार में तेजी आई । इसके बाद जब मुगलों ने भारत पर शासन किया तब इस धर्म के अनुयायियों की संख्या में और अधिक वृद्धि हुई । इसलाम को न माननेवालों को काफिर बताया गया है । अल्लाह की इबादत में पाँचों वक्त की नमाज अदा की जानी चाहिए ।


4. ईसाई धर्म । Paragraph on Christianity for Kids in Hindi Language

ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा-मसीह हैं । ईसाई लोग उन्हें ‘प्रभु यीशु’ के नाम से जानते हैं । ‘बाइबिल’ के अनुसार यीशु का अर्थ ‘उद्धारकर्ता’ है । ईसा मसीह का जन्म बैथलहम में हुआ था । वहाँ यूसुफ नामक बढ़ई के यहाँ उनकी मंगेतर मरियम के गर्भ से उनका जन्म हुआ था ।

तब उनका नाम ‘इम्मानुएल’ रखा गया था । इम्मानुएल का अर्थ है: ‘ईश्वर हमारे साथ है’ । उन दिनों वहाँ एक राजा का शासन था । उसका नाम हेरादेस था । वह दुष्ट प्रवृत्ति का था । वह ईसा मसीह से बहुत चिढ़ता था । उसने ईसा-मसीह को जान से मारने की एक योजना बनाई ।

जब योजना की भनक यूसुफ को लगी तब वे अपने पुत्र ईसा तथा मंगेतर मरियम को लेकर चले गए । यूसुफ ने मरियम से शादी कर ली । यीशु के अनुयायी उन्हें ‘चमत्कारी बालक’ समझते थे । यीशु जब बारह वर्ष के थे, तब वे यरूशलम गए । वहाँ उन्होंने कानून की शिक्षा ग्रहण की । उन्होंने मसीही अवतार से संबंधित अनेक ग्रंथों का अध्ययन तथा मनन-चिंतन किया ।

इस तरह यीशु ने परमेश्वर से संबंधित अनेक बातों का ज्ञान अर्जित किया । उस उपदेश का ईसाइयों के लिए बहुत ही महत्त्व है । उस उपदेश को ‘पहाड़ी का उपदेश’ नाम दिया गया । ‘पहाड़ी का उपदेश’ के अंतर्गत ‘ईसाई धर्म का सार’ है । यीशु के इस उपदेश को सुनने के लिए कैपरनम की पहाड़ी के निकट बहुत बड़ी संख्या में एकत्र हुए थे ।

उनके उपदेश से यरूशलम के धार्मिक नेता चिढ़ गए । वे यह कैसे बरदाश्त कर सकते थे कि यीशु उनके सिद्धांतों को गलत ठहरा दें । फिर यीशु की बातों में इतना अधिक प्रभाव था कि अन्य धार्मिक नेताओं का उपदेश सुनने के लिए कोई जाता ही नहीं था ।

इस तरह यीशु का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया तथा वे जन-जन के चहेते बन गए । सभी लोग उन्हें ‘परमेश्वर का दूत’ मानने लगे । दूसरी ओर उनके बढ़ते प्रभाव से जलनेवाले धार्मिक लोग उनके दुश्मन हो गए । धर्म के ठेकेदार यीशु को शीघ्रातिशीघ्र अपने रास्ते से हटा देना चाहते । इसके लिए उन्होंने एक चाल चली ।

उन्होंने यीशु के एक शिष्य को अपनी ओर मिला लिया । इस तरह यीशु के उस शिष्य ने यीशु के साथ विश्वासघात किया । यीशु पर मुकदमा चला । उन्हें कुस पर चढ़ाकर मृत्युदंड दिया गया । न्याय, प्रेम, अहिंसा और कर्तव्य-पालन के लिए यीशु आज भी जाने जाते हैं ।

ईसाई लोगों का प्रभु यीशु पर पूरा विश्वास है । वे लोग उन्हें ‘परमेश्वर का सच्चा दूत’ मानते हैं । यही कारण है कि लोग ईसा के मसीहा होने में पूरा विश्वास करते हैं । ईसाई धर्म को स्वीकार करने के लिए लोगों को ‘बपतिस्मा’ लेना पड़ता है । यह एक प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान होता है ।

इसमें पवित्र जल से स्नान करना होता है । ईसाई लोगों की सबसे बड़ी बात यह थी कि वे बिना किसी स्वार्थ के गरीब-असहाय लोगों की सेवा करने लगे । इससे लोगों ने उनकी उदारता को समझा । धीरे-धीरे वे लोग उनके साथ शामिल हो गए । ईसाइयों की संख्या तेजी से बढ़ गई ।

एशिया माइनर, सीरिया, मेसीडोनिया, यूनान, रोम, मिस्र आदि देशों में ईसाई लोग फैल चुके हैं । ईसाई लोग प्रति रविवार गिरजाघर जाते हैं । वहाँ वे सामूहिक प्रार्थना में भाग लेते हैं । पवित्र धर्म-शास्त्र बाइबिल का पाठ करते हैं । ईसाई बुधवार और शुक्रवार को व्रत रखते हैं ।


5. बौद्ध धर्म । Essay on Buddhism for College Students in Hindi Language  

महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक हैं । उनका जन्म लुंबिनी नामक स्थान पर राजा शुद्धोदन के यहाँ हुआ था । उनके जन्म के समय ज्योतिषियों ने बताया था कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट् बनेगा या अपने अलौकिक ज्ञान से समस्त संसार को प्रकाशित करने वाला संन्यासी ।

अत: इसी डर से राजा ने बालक के लिए रास-रंग के अनेक साधन जुटाए । किंतु राजसी ठाट-बाट उन्हें जरा भी पसंद न था । एक बार वे सैर के लिए रथ पर सवार होकर महल से बाहर निकले । उन्होंने बुढ़ापे की अवस्था में एक जर्जर काया को देखा, रोगी को देखा, फिर एक मृत व्यक्ति की  अस्थी को ले जाते हुए देखा ।

इनसे उनके जीवन पर एक अमिट प्रभाव पड़ा । गौतम को वैराग्य की ओर जाने से रोकने के लिए राजा शुद्धोधन ने यशोधरा नाम की रूपवती कन्या (राजकुमारी) से उनका विवाह करा दिया । उनके राहुल नाम का एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ ।

महात्मा बुद्ध दुःख और कष्टों से छुटकारा पाने के उपाय के बारे में सोचने लगे । एक रात वे पत्नी और पुत्र को सोता छोड़कर ज्ञान की खोज में निकल गए । कई स्थान पर ध्यान लगाया । शरीर को कष्ट दिए, लंबे-लंबे उपवास रखे, लेकिन तप में मन न रमा ।

अंत में बोधगया में एक दिन पीपल के एक वृक्ष (बोधिवृक्ष) के नीचे ध्यान लगाकर बैठे । कठोर साधना के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया । इसी कारण उनका नाम ‘बुद्ध’ हो गया । बुद्ध का अर्थ होता है: ‘जागा हुआ’, ‘सचेत’, ‘ज्ञानी’ इत्यादि । अब उन्होंने लोगों को कुछ शिक्षाएँ दी थीं । उन शिक्षाओं को ‘चार आर्य सत्य’ का नाम दिया गया है, जो इस प्रकार हैं:

१. सर्वं दुःखम्,

२. दुःख समुदाय,

३. दुःख विरोध,

४. दुःख विरोध-मार्ग ।

वास्तव में गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों में अहिंसा, शांति, दया, क्षमा आदि गुणों पर विशेष रूप से बल दिया है । भगवान् बुद्ध के उपदेशों को जिस ग्रंथ में संकलित किया गया है, उसे ‘धम्मपद’ कहा गया है । बौद्ध मंदिरों में बुद्ध की प्रतिमा रहती है । वाराणसी के पास ‘सारनाथ नामक’ स्थान बौद्ध-मंदिर के लिए विख्यात है । बुद्ध के अनुयायियों (बुद्ध के रास्ते पर चलनेवाले) को ‘बौद्ध भिक्षु’ कहा जाता है ।

वे मठों में रहते हैं । उस काल में अनेक मठ-विहार स्थापित हुए । अनेक राजाओं ने बौद्ध धर्म अपनाया । सम्राट् अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और फिर उसका तेजी से प्रसार हुआ । अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए लंका भेजा । बौद्धों का प्रिय कीर्तन वाक्य हैं: बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि ।


6. जैन धर्म । Essay on Jainism for School Students in Hindi Language

‘अहिंसा परमो धर्म:’ यह जैनियों का मूल मंत्र है । जीव-हत्या इनके लिए महापाप है । कहा जाता है कि जब भारत में चारों ओर अँधेरा छाया हुआ था, लोग अशांत जीवन जी रहे थे, उसी समय उत्तर भारत में दो बालकों ने जन्म लिया था । वे दोनों बालक राजकुमार थे ।

अरब में जो कार्य पैगंबर मुहम्मद साहब ने किया तथा जर्मनी में जो कार्य मार्टिन लूथर किंग ने किया था, भारत में वही काम इन दोनों बालकों ने बड़े होकर किया । इन दोनों बालकों का नाम क्रमश: महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध था ।

महावीर स्वामी को जैन धर्म का चौबीसवाँ तीर्थंकर कहा जाता है । जैनों में जितने भी उनके प्रमुख धार्मिक नेता हुए हैं, उन्हें संख्या के साथ ‘तीर्थंकर’ कहा जाता है । यों तो भगवान् महावीर को जैन धर्म का प्रवर्तक माना जाता है, लेकिन सही मायने में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (ऋषभनाथ) को इस धर्म की स्थापना का श्रेय दिया जाता है ।

जैन-परंपरा के अनुसार, महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे । जैन धर्म के अनुयायी चौबीस तीर्थंकरों में विश्वास करते हैं । महात्मा पार्श्वनाथ तेईसवें और महावीर स्वामी चौबीसवें तीर्थंकर थे । पार्श्वनाथ ईसा से लगभग सातवीं शताब्दी-पूर्व पैदा हुए थे ।

जैन धर्म को आगे बढ़ाने में महात्मा पार्श्वनाथ का महत्त्वपूर्ण योगदान था । महात्मा पार्श्वनाथ ने हर तरह से जैन धर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए कार्य किया । उसके बाद महावीर स्वामी आए । उन्होंने हर तरह से सुधार कुरके जैन धर्म में नई जान डाल दी ।

उन्होंने अपने उपदेशों से जनता पर बहुत अधिक प्रभाव डाला ।  उनके उपदेशों से प्रभावित होकर अधिकांश लोगों ने जैन धर्म को स्वीकार कर  लिया । जैन धर्म ढकोसलों से बहुत दूर है । यह धर्म बहुत ही उदार है और हिंसा करनेवालों की निंदा करता है । इस धर्म का मूल स्वर है: हिंसा से दूर रहो ।

इसके अतिरिक्त जैन धर्म का कहना है:

(i) चोरी नहीं करनी चाहिए ।

(ii) किसी से चाह नहीं रखनी चाहिए ।

(iii) झूठ नहीं बोलना चाहिए ।

(iv) मन से, वचन से और कर्म से शुद्ध रहना चाहिए ।

(v) इंद्रियों को वश में रखना चाहिए ।

जैनी लोग अपने जीवन को बहुत सीधे और सरल तरीके से जीते हैं । ये लोग धर्म को अपने जीवन में बहुत ही महत्त्व देते हैं । जीवन का लक्ष्य मोक्ष को मानते हैं । मोक्ष का अर्थ संसार में जीवात्मा के आवागमन से मुक्त हो जाना है ।  मोक्ष की प्राप्ति तब होती है जब मनुष्य कर्म के बंधन से मुक्ति पा लेता है ।

यही कारण है कि जैनी लोग मोक्ष पाने के लिए तीन तरह के रास्ते अपनाते हैं, जो निम्नलिखित हैं:

१. सम्यक् दर्शन,

२. सम्यक् ज्ञान और

३. सम्यक् चरित्र ।


7. सिक्ख धर्म । Essay on Sikhism for College Students in Hindi Language

सिक्स धर्म कोई धर्म न होकर एक पंथ है, जिसके प्रवर्तक गुरु नानक देव हैं । यह हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है । कुछ लोग इसे अलग धर्म मानने की भूल करते हैं । गुरु नानक देव का जन्म सन् १४६९ में लाहौर प्रांत में रावी नदी के किनारे तलवंडी नामक गाँव में हुआ था ।

उनके पिता का नाम मेहता कालूचंद था । वे मुंशी के पद पर कार्यरत थे । नानक जब कुछ बड़े हुए तब मौलवी कुतुबुद्‌दीन ने उन्हें फारसी का ज्ञान कराया । मौलवी साहब सूफी संत थे । नानक ने फारसी के अलावा संस्कृत और हिंदी का भी ज्ञान प्राप्त किया । अपने इस अध्ययन के साथ-साथ उन्होंने धर्म के विषय में भी अपना ज्ञान बढ़ाना शुरू कर दिया ।

जब उनके पिता को इस बात का पता चला तब उन्होंने अपने पुत्र को घर-परिवार की स्थिति के बारे में समझाया । उन्होंने नानक को खाने-कमाने के लिए कोई काम शुरू करने के लिए कहा । इसका नानक पर कोई असर नहीं हुआ । इस स्थिति को समझते हुए पिता ने उनका विवाह कर दिया ।

विवाह के बाद भी उनमें कोई परिवर्तन नहीं दिखाई दिया । उनके पिता ने उन्हें एक नौकरी दिलवा दी, किंतु वे अपनी नौकरी के प्रति जरा भी जागरूक नहीं थे । वे नौकरी पर जाने की बजाय पास ही के एक जंगल में जाते थे । वहाँ वे रामानंद और कबीर की रचनाओं को पड़ा करते थे । इस प्रकार इन संतों की कही हुई बातों ने नानक की जीवन-धारा ही बदल दी ।

नानक जाति-पाँति तथा मूर्ति-पूजा के घोर विरोधी थे । नानक ने अपने धर्म में गुरु के महत्त्व को सर्वोच्च स्थान दिया है । उनका तर्क है कि एक ईश्वर की उपासना के लिए गुरु का होना अनिवार्य है । यही कारण है कि सिक्स धर्म में गुरु परंपरा आज भी बनी हुई है ।

अपनी बातों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए नानक ने दूर-दूर तक यात्राएँ कीं । उनका प्रिय शिष्य ‘मर्दाना’ उनके साथ रहता था । मर्दाना बहुत अच्छा भजन-गायक था । नानक अपने उपदेश से लोगों का मन मोह लेते थे । उन्होंने जगह-जगह अपने विचार रखे ।

गुरु नानक देव के विचारों से लोग बहुत प्रभावित हुए । उनकी यात्राओं में चार यात्राओं का बहुत ही महत्त्व है । वे बड़ी यात्राएँ मानी गई हैं । उन्हें ‘उदासियाँ’ कहा जाता है । सर १५३८ में गुरु नानक देव की मृत्यु हो गई थी । नानक देव के बाद उनके शिष्य अंगद गुरु बने ।

सिक्सों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव ने नानक के उपदेशों तथा रामानंद और कबीर की रचनाओं को ‘ग्रंथ साहब’ नामक ग्रंथ में संकलित कराया । दसवें गुरु गोविंद सिंह ने इस ग्रंथ को ‘गुरु’ का सम्मान दिया । तब से यह ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहब’ कहलाता है ।

नौवें गुरु तेग बहादुर का मुगलों द्वारा शीश काटने के बाद गुरु गोविंद सिंह ने अपने शिष्यों से कच्छा, कड़ा, कंघी, कृपाण और केश-ये पाँच ककार (‘क’ से शुरू होनेवाले शब्द) धारण करने के लिए कहा । यही नहीं, उन्होंने सिक्सों को युद्ध के लिए तैयार किया ।

तभी से सिक्सों का एक संप्रदाय तैयार हो गया, जिसे ‘खालसा’ नाम से जाना जाता है । गुरु नानक देव का कहना था कि सभी धर्मों का सार एक ही है । उनके अनुसार:  ”अव्वल अल्लह नूर नुमाया कुदरत दे सब बंदे । एक नूर से सब जग उपज्या कौन भले कौन मंदे ।।”

जिस प्रकार कबीर ने बाहरी दिखावे की भर्त्सना की है उसी प्रकार गुरु नानक देव ने समाज में फैले आडंबरों एवं द्वेषभाव की आलोचना की । गुरु नानक का कहना था: जो व्यक्ति ईश्वर की इच्छा के सामने अपने को समर्पित कर देता है, उसे उसका लक्ष्य प्राप्त हो जाता है ।


8.पारसी धर्म । Essay on Parsi Religion for Kids in Hindi Language

पारसी धर्म का जन्म फारस में हुआ । वही फारस, जिसे आज हम ईरान के नाम से जानते हैं । पारसी धर्म की शुरुआत जोरोस्टर नामक पैगंबर ने की थी । ईसा-पूर्व सातवीं शताब्दी में जोरोस्टर का जन्म अजरबैजान में हुआ था ।

जोरोस्टर के पिता का नाम था: पोरूशरप । उसके पिता ‘स्पितमा’ वंश के थे ।  उनकी माता का नाम द्रुधधोवा था । वे भी एक श्रेष्ठ वंश की थीं । कहा जाता है कि उनकी माँ ने उन्हें मात्र पंद्रह वर्ष की अवस्था में जन्म दिया था । एक दैवी प्रकाश ने द्रुधधोवा के गर्भ में प्रवेश किया था, जिससे जोरोस्टर का जन्म हुआ था ।

जोरोस्टर एक चमत्कारी बालक था । जोरोस्टर को कृष्ण की ही भाँति तरह-तरह की लीलाएँ करने में आनंद आता था । उनकी अनेक चमत्कारपूर्ण कथाएँ चर्चित हैं । कहा जाता है कि सात वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अध्ययन-कार्य शुरू कर दिया था । उन्होंने पंद्रह वर्ष की अवस्था तक धर्म और विज्ञान का ज्ञान प्राप्त कर लिया था ।

उसके बाद वे अपने घर लौट आए, फिर उन्होंने अपने अगले पंद्रह वर्षों को चिंतन और मनन करने में व्यतीत किया । उन्होंने लंबे समय तक साधना की, तब जाकर उन्हें ज्ञान का प्रकाश मिला । जिस तारीख को जोरोस्टर को ज्ञान का प्रकाश मिला, वह ५ मई, ६३० ईसा-पूर्व की थी । इस तारीख को पारसी धर्म में ‘पहला वर्ष’ माना गया ।

पारसी ज्ञान के देवता को ‘प्रकाश का देवता’ भी कहते हैं । इस तरह वे प्रकाश के देवता को ‘अहुरा-मजदा’ कहते हैं । ‘अहुरा-मजदा’ पारसियों के सबसे बड़े देवता माने जाते हैं । पारसी लोग विश्व की रचना करनेवाले और रक्षा करनेवाले ‘अहुरा-मजदा’ की पूजा-आराधना करते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

इस प्रकार अहुरा-मजदा की पूजा करने के लिए ‘पारसी धर्म’ की नींव पड़ी । पारसी लोग जहाँ अपना धार्मिक कार्य करते हैं, उसे ‘फायर टेंपिल’ कहते हैं । वहाँ पूजा-पाठ करनेवाले लोग भी अपने ढंग से पूजा-पाठ करते हैं । उसमें से कुछ लोग महीने में चार बार और कुछ लोग प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं ।

पारसी लोग अपने मृतक को न तो जलाते हैं और न ही दफनाते हैं । विचित्र बात तो यह है कि ये मृतक शरीर को ज्यों-का-त्यों छोड़ देते हैं । उन्हें गिद्ध-कौए आदि खा जाते हैं । पारसी लोग मृतकों को जहाँ छोड़ते हैं, उस स्थान को ‘मौन का मीनार’ कहते हैं । इस तरह उस छत पर ये मृतक को छोड़ जाते हैं ।

सात और आठ वर्ष के पारसी बालकों का हिंदुओं की तरह यज्ञोपवीत संस्कार होता है । विवाह के समय जब दूल्हा-दुल्हन यज्ञ-मंडप में बैठते हैं, तब दोनों ओर के गवाही देनेवाले भी वहाँ उपस्थित होते हैं । उनकी संख्या २ होती है और २ से अधिक भी ।

विवाह के समय जिस तरह हिंदुओं में नारियल, अक्षत आदि वर-वधू पर फेंके जाते हैं, उसी प्रकार पारसी धर्म में भी यह संस्कार होता है । पारसी धर्म में कुछ बातें ईसाई धर्म तथा कुछ हिंदू धर्म से मिलती-जुलती हैं । हिंदुओं की तरह पारसी भी स्वर्ग-नरक में विश्वास करते हैं ।

पारसियों का मानना है कि मरने के बाद आत्मा परलोक में पहुँचती है । वहाँ उनके कर्मों का लेखा-जोखा देखा जाता है । उसके बाद निर्णय सुनाया जाता है कि वह पुण्य का भागी है अथवा पाप का । हिंदुओं में भी ऐसी ही मान्यता है ।


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