विद्यालय में मेरा पहला दिन पर निबंध / Essay on My First Day at School in Hindi!

नगर निगम प्राथमिक विद्‌यालय से पाँचवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की तो नए विद्‌यालय में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त हुआ । पिताजी ने पड़ोस के उच्च माध्यमिक विद्‌यालय में दाखिला लेने की सहमति प्रदान की । संक्षिप्त टेस्ट के बाद विद्‌यालय में प्रवेश की अनुमति मिल गई । वह 3 अप्रैल की तारीख थी जिस दिन नए सत्र की पढ़ाई का आरंभ होना तय हुआ था ।

मैं अत्यंत उत्साहित था । नया विद्‌यालय, नई कक्षा, नए सहपाठी और नया माहौल । मन में तरह-तरह की भावनाएँ उठ रही थीं । कैसी होगी कक्षा, कौन-कौन से शिक्षक होंगे, कक्षा में बैठने के लिए किस तरह के फर्नीचर होंगे, विद्‌यालय में पढ़ाई की दिनचर्या कैसी होगी, कैंटीन है अथवा नहीं आदि विचार रह-रह कर मन में उठते थे । कुछ बातें सोचकर शरीर में रोमांच भी होता था । नगर निगम विद्‌यालय के छोटे एवं सीमित साधनों वाले विद्‌यालय से बड़े एवं सर्वसुविधा युका नए विद्‌यालय में प्रवेश करना सचमुच एक नया अनुभव था ।

नियत तिथि आई तो पिताजी ने सुबह जल्दी जगा दिया । मैंने नित्य कार्यों से निवृत्त होकर ईश्वर का ध्यान किया । इस बीच माँ ने मेरे लिए नाश्ता तैयार कर दिया । हल्का नाश्ता कर और लंच-बॉक्स साथ लेकर मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ । स्कूल की नई पोशाक पहनी बस्ते में आवश्यक पुस्तकें एवं अभ्यास पुस्तिका भरी और चल पड़े स्कूल की ओर । यों तो मेरे पास अपनी साइकिल थी पर पहला दिन होने के कारण पिताजी मुझे अपने स्कूटर से विद्‌यालय छोड़ना चाहते थे । दोनों स्कूटर पर सवार होकर पाँच-सात मिनट में ही विद्‌यालय पहुंच गए ।

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विद्‌यालय के गेट पर काफी चहल-पहल थी । दरबान गेट पर खड़े होकर आने-जाने वालों को सरसरी नजर से देख रहा था । भीतर पहुँचा तो प्रार्थना की तैयारी हो रही थी पिताजी मुझे कुछ देकर वहाँ से लौट गए । मैं प्रार्थना में शामिल हुआ । समवेत स्वर में होनेवाली प्रार्थना से वातावरण संजीदा हो उठा । फिर सब अपनी-अपनी कक्षा में गए ।

मेरी कक्षा व्यवस्थित थी । कक्षा में सुविधायुक्त फर्नीचर, अध्यापक के लिए मेज और कुर्सी, ब्लैकबोर्ड, बिजली का पंखा एवं बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ थीं । हमने कक्षा में स्थान ग्रहण किया । शीघ्र ही वर्गशिक्षक आ गए । उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में छात्रों का परिचय प्राप्त किया । मैंने कक्षा- अध्यापक को फूलों का एक गुलदस्ता भेंट किया जिसे उन्होंने प्रेमपूर्वक स्वीकार कर लिया । उस दिन कक्षा-अध्यापक एवं विद्‌यार्थी आपस में बातें करते रहे पढ़ाई नहीं हुई । पीरियड खत्म होने पर अलग-अलग अध्यापक आए और हल्के-फुल्के ढंग से पढ़ाई हुई ।

मध्यावकाश की घंटी बजी तो कक्षा में सभी विद्‌यार्थी हर्ष-विभोर होकर एक-दूसरे से परिचय प्राप्त करने लगे । मैंने एक-दो सहपाठियों से परिचयात्मक वार्ता की । लंच बॉक्स की सामग्रियों का आपस में आदान-प्रदान किया और विद्‌यालय का मुआयना करने मैदान में आ गया । स्टाफ रूम पुस्तकालय कैंटीन प्रधानाचार्य का कार्यालय आदि स्थानों से अवगत हुआ । विदयालय के वर्गाकार भवन के बीच एक बड़ा सा मैदान था । मैदान के चतुर्दिक कतारों में पेड़ लगे थे । बीच में एक छोटा-सा पुष्पोद्‌यान था । सुनहरी धूप खिली हुई थी । हवा के झोंके चल रहे थे । मैं मंत्रमुग्ध-सा चहुँ ओर निहार रहा था ।

विद्‌यालय का प्रथम दिन होने के कारण मध्यावकाश के बाद पढ़ाई नहीं हुई । बच्चे खेलने लगे । मैंने बैडमिंटन कोर्ट में जाकर कुछ अच्छे हाथ दिखाए । बहुत आनंद आया । फिर छुट्‌टी की घंटी बजी । बच्चों ने बस्ता सँभाला और आपस में बातें करते हुए घर की ओर चले ।

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इस प्रकार विद्‌यालय का पहला दिन नए विद्‌यालय को जानने तथा शिक्षकों एवं सहपाठियों से परिचय प्राप्त करने में बीता । कई नए अनुभव प्राप्त हुए । घर लौटकर माँ और पिताजी के साथ अपने अनुभव बाँटे ।

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