विदद्यालय में मेरा पहला दिन पर निबन्ध | Essay on My First day at School in Hindi!

1. भूमिका:

जीवन की अनेक घटनाएँ (Incidents) हम भूल जाते हैं, किन्तु कुछ घटनाएँ ऐसी भी होती हैं, जो हमें सदा याद रहती हैं । मेरी स्मृति में वह दिन आज भी ताजा है जो मैं कभी नहीं भूल सकता । वह दिन था -इस विद्याल में प्रवेश (Admission) लेने के बाद कक्षा का पहला दिन ।

2. वर्णन:

बात दो साल पहले की है । छठी कक्षा की परीक्षा पास करने केबाद मेरे पिताजी का तबादला (Transfer) देहरादून से शिलांग हो गया । मैं अपने माता-पिता के साथ यहाँ आ गया और मुझे इस नये विद्यालय में प्रवेश मिला । नये विद्यालय में कक्षा सातवीं में प्रवेश पाने केबाद मुझे खुशी केसाथ चिंता भी हुई ।

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मन में कुछ संकोच (Hesitation) भी था कि न जाने इस नई जगह और नये विद्यालय में सहपाठी (Class-Fellows) कैसे-होंगे औरवे मेरेसाथ कैसा बर्ताव (Behave) करेंगे । पहले ही दिन जब मैं स्कूल पहुँचा तो मेरी झिझक (Hesitation) कम हो गई । स्कूल का भवन देहरादून वाले स्कूल के समान ही विशाल था । स्कूल के विद्यार्थी काफी सुशील (Well-mannered) तथा अनुशासित (Disciplined) दिखाई पड़ रहे थे ।

पिताजी मेरे साथ थे । उन्होंने प्रधानाध्यापक (Headmaster) तथा कुछ अध्यापकों से मेरा परिचय कराया (Introduce) । कक्षा में पहुँचने पर कक्षाध्यापक (Class Teacher) ने भी बड़े प्यार से मेरा परिचय लिया । विद्यालय के पुराने विद्यार्थी मेरी ओर बड़ी उत्सुकता (Curiosity) से देख रहे थे ।

मध्यावकाश के समय कुछ छात्रों ने मुझे घेर लिया और मैंने उन्हें अपना परिचय दिया । मध्यावकाश (Interval) के समय सहपाठियों ने अपनी टिफिन मेरे साथ बाँट कर खायी । छुट्‌टी के समय विद्यालय के मुख्य द्वार तक कई सहपाठी मेरे साथ आए । मैंने सबसे विदा ली और इस प्रकार पहला दिन समाप्त हुआ ।

3. प्रभाव:

मेरा यह नया विद्यालय पिछले विद्यालय जैसा ही है लेकिन पहले अध्यापकों का स्नेह (Affection) तथा सहपाठियों का अपनापन मुझे पिछले विद्यालय से अधिक लगा । विद्यालय-परिसर (School Campus) में दाखिल होने के समय जो मन में भय था, छुट्‌टी होने के समय तक वह दूर हो चुका था ।

4. उपसंहार:

मैं आज भी इस विद्यालय में हूँ और अनेक छात्र मेरे मित्र बन गए हैं, लेकिन पहले दिन का उनका स्नेहपूर्ण बर्ताव (Behave) मैं कभी नहीं भूल सकता ।

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