स्कूल में मेरा पहला दिन पर अनुच्छेद | Paragraph on My First Day at School in Hindi

प्रस्तावना:

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मैं पिछले चार वर्षों से सनातन धर्म सीनियर सेकेण्ड्री स्कूल में पढ़ रहा हूं, लेकिन आज तक मैं इस स्कूल के अपने पहले दिन को नहीं भूल पाया हूं ।उस दिन मुझे अपने उस ट्‌यूटर के चंगुल से छुटकारा मिला था, जो मुझे हर दिन ढेर-सा काम घर पर करने को देता था ।

मुझे सप्ताह में किसी दिन भी छुट्‌टी नहीं मिलती थी । ऐसी स्थिति में आप मेरी प्रसन्नता की कल्पना कर सकते हैं, जब मुझे यह पता लगा कि अब मुझे एक स्कूल में भर्ती कराया जायेगा ।

स्कूल आते समय:

मैं स्कूल जाने की तैयारी के लिए 8 जुलाई को बड़े सबेरे उठ गया । अपने ट्‌यूटर के साथ मैं नए स्कूल के लिए रवाना हो गया । रास्ते में पानी बरसने लगा । स्कूल पहुंचने तक हम दोनों पूरी तरह से भीग गए थे ।

स्कूल कार्यालय तथा प्रिंसिपल का कार्यालय:

स्कूल की भव्य इमारत देखकर मैं उत्तेजित हो उठा । मेरा मन स्थिर नहीं रहा । कार्यालय में घुसने पर मैंने देखा कि काउन्टर के पीछे चार व्यक्ति बैठे हैं । उनमें से एक व्यक्ति से मेरे ट्‌यूटर ने प्रवेश-पत्र लिया । ट्‌यूटर ने प्रवेश-पत्र भरा ।

इसके बाद प्रवेश-पत्र के साथ हम दोनों प्रिंसिपल के कमरे में गए । ट्‌यूटर ने प्रिंसिपल को प्रवेश-पत्र दे दिया । उन्होंने प्रवेश-पत्र ध्यान से पढ़ा और घंटी बजाई । फौरन ही कमरे में एक चपरासी आया । उन्होंने उसे आदेश दिया कि वह हमें अध्यापकों के कमरे में ले जाये ।

परीक्षा और दाखिला:

चपरासी हमें जिस कमरे में ले गया उसमें एक बहुत बड़ी टेबल पड़ी थी, जिसके चारों ओर अध्यापक बैठे थे । चपरासी ने उनमें एक अध्यापक को मेरा प्रवेश-पत्र पकड़ा दिया । उस अध्यापक ने मेरे अग्रेजी के ज्ञान की परीक्षा ली । उसने मुझे दाखिले के योग्य मान लिया ।

इसके बाद एक अन्य अध्यापक ने मुझे पाँच सवाल हल करने को दिए । मैंने उन्हें बड़ी आसानी से हल कर दिया । दोनों ही अध्यापकों ने प्रवेश-पत्र पर कुछ लिखकर हस्ताक्षर कर दिए । प्रवेश-पत्र को लेकर मेरे ट्‌यूटर पुन: कार्यालय में गए और मेरी फीस जमा करा दी । मुझे एक पर्ची देकर कक्षा में भेजा दिया गया ।

कक्षा तथा कक्षा अध्यापक:

कक्षा में पहुँचकर मैं सबसे पंक्ति में एक सीट पर बैठ गया । मेरे सामने दीवार पर एक बडा ब्लैकबोर्ड था । उसके पास अध्यापकों के बैठने के लिए एक अच्छी-सी कुर्सी और टेबल थी । कुछ समय बाद कक्षा में एक अध्यापक ने प्रवेश किया ।

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उसके प्रवेश करते ही सभी लड़के खड़े हो गए । मैं भी उनके साथ खड़ा हो गया । मैंने उन अध्यापक महोदय को वह पर्ची पकड़ा दी । उन्होंने मेरा नाम रजिस्टर में लिख लिया । मेरा सौभाग्य था कि वे अध्यापक बड़े सज्जन पुरुष थे । उन्होंने कुछ राचक चुटकुले सुनाए ।

मध्यांतर छुट्‌टी:

जैसे ही मध्यातंर की घंटी बजी, हम सभी विद्यार्थी कक्षा से बाहर निकल आये । यह कुछ देर के लिए कक्षा के नीरस वातावरण से मुक्ति की अवधि थी । इस दौरान खेल का मैदान गतिविधियो का केन्द्र बन गया और मैं अकेला खड़ा था ।

मुझे अकेला देखकर कुछ लड़के मेरे पास आये और मेरा मजाक उड़ाने लगे । उनमें से एक ने पूछा ”तुम किस जगल से आए हो” मैं चुप रहा । भाग्यवश तीन अन्य लड़के मेरी सहायता को दौड़ आए । उन्होने मुझे स्कूल की पूरी इमारत दिखाई । उनके साथ ही मैंने स्कूल का पुस्तकालय तथा वाचनालय देखा ।

हम स्कूल के हॉल में भी गए, कुछ महान् विभूतियों के चित्रों और पेंटिंग से सुसज्जित था । इतने में ही घंटी बज गई । मध्यातर काल समाप्त हुआ और हम सब अपनी-अपनी कक्षाओं में वापस चले गए । उस दिन एक-एक करके अन्य अध्यापक भी कक्षा में आए, लेकिन उन्होंने पढ़ाया नहीं ।

उपसंहार:

साढ़े बारह बजे छुट्‌टी की घंटी बजी । सभी लडके शोर मचाते हुए कक्षाओं से निकल पडे । मैं भी अन्य लडकों के साथ स्कूल से घर पहुंचा । घर पहुंचने पर मेरे मन में तरह-तरह के नए विचार उठते रहे । मैंने अपनी मां को विस्तार से बताया कि मेरा स्कूल कितना अच्छा है । स्कूल के पहले दिन का वृतान्त सुनकर मेरी मां भी बड़ी खुश हुई ।

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