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भ्रष्टाचार: समस्या एवं समाधान पर निबंध | Essay on Corruption : Problems and Solutions in Hindi!
भ्रष्टाचार का शब्दिक अर्थ है – ‘बिगड़ा हुआ आचरण’ अर्थात् वह आचरण या कृत्य जो अनैतिक तथा अनुचित है । आज देश में भ्रष्टाचार की जड़ें अत्यधिक गहरी होती जा रही हैं । यदि समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह समूचे तंत्र को अव्यवस्थित कर सकता है ।
भ्रष्टाचार के कई कारण हैं । सबसे प्रमुख कारण है मनुष्य में असंतोष की प्रवृत्ति । मनुष्य अपने वर्तमान से संतुष्ट नहीं हो पाता है । वह सदैव अधिक पाने की लालसा रखता है । बहुत कम लोग ही ऐसे हैं जो अपनी इच्छाओं और क्षमताओं में संतुलन रख पाते हैं । ये लोग अपनी इच्छाओं व आकांक्षाओं की पूर्ति न होने पर भी संतुलन नहीं खोते हैं ।
परंतु बहुत से लोग अपनी आकांक्षाओं और अपने वर्तमान में सामजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं । उनकी लोलुपता इतनी तीव्र हो उठती है कि वे अनैतिकता के रास्ते पर चलकर भी इच्छा पूर्ति में संकोच नहीं करते हैं । अंतत: इससे भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है । मनुष्य की यह लोलुपता आर्थिक अथवा सामाजिक किसी भी स्तर की हो सकती है ।
कुछ लोगों में सम्मान अथवा पद की आकांक्षा होती है तो कुछ में धन की लोलुपता । इस प्रकार असंतोष और लोलुपता के कारण ही वे न्याय-अन्याय में अंतर नहीं कर पाते हैं तथा भ्रष्टाचार की ओर उत्सुख हो जाते हैं । भाषावाद, क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, जातीयता आदि भी भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करते हैं ।
भ्रष्टाचार के अनेक रूप हैं । चोरबाजारी, रिश्वतखोरी, दलबदल, जोर-जबरदस्ती आदि भ्रष्टाचार के ही रूप हैं । भ्रष्टाचार वर्तमान में एक नासूर बनकर समाज को खोखला करता जा रहा है । धर्म का नाम लेकर लोग अधर्म को बढ़ावा दे रहे हैं । हर ओर कुरसी के लिए लोग प्रयासरत हैं । आज दोषी व अपराधी धन के प्रभाव में स्वच्छंद होकर घूम रहे हैं । धन-बल का प्रदर्शन, लूट-पाट, तस्करी आदि आम बात हो गई है ।
भ्रष्टाचार का हमारे समाज और राष्ट्र में व्यापक रूप से असर हो रहा है । संपूर्ण व्यवस्था में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गई । परिणामत: समाज में भय, आक्रोश व चिंता का वातावरण बन रहा है । राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक व प्रशासनिक आदि सभी क्षेत्र इसके दुष्प्रभाव से ग्रसित हैं ।
यह हमारी व्यवस्था में इस प्रकार समाहित हो चुका है कि आज इसे दूर करना प्रत्येक राष्ट्र के लिए लोहे के चने चबाने जैसा हो गया है । आजकल तो सेना में भी भ्रष्टाचार फैल रहा है जिसके कारण देश की सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लग गया है ।
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भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति विशेष या समाज की नहीं अपितु संपूर्ण राष्ट्र की समस्या है । इसका निदान केवल प्रशासनिक स्तर पर हो सके ऐसा संभव नहीं है । इसका समूल विनाश सभी के सामूहिक प्रयास के द्वारा ही संभव है । इसके लिए केंद्रीय स्तर पर राजनीतिक इच्छा-शक्ति का प्रदर्शन भी नितांत आवश्यक है ।
प्रशासनिक स्तर पर यह आवश्यक है कि भ्रष्टाचार के आरोपी व्यक्तियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही हो । इसके लिए आवश्यक है कि प्रशासन कठोर, चुस्त तथा निष्पक्ष हो । हमारी व्यवस्था इतनी सुदृढ़ हो कि अपराधियों को उनके किए की सजा मिल सके भले ही वह किसी पद पर आसीन हो ।
सामाजिक स्तर पर यह आवश्यक है कि हम ऐसे तत्वों को बढ़ावा न दें जो भ्रष्टाज्जार को बढ़ावा देते हैं या उसमें लिप्त हैं । यह आवश्यक है कि उन्हें हम मुख्य धारा से अलग कर दें जब तक कि वे नीति के मार्ग पर नहीं चलने लगें ।
व्यक्तिगत स्तर पर यह आवश्यक है कि हम यह समझें कि समाज से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने का उत्तरदायित्व हम पर ही है । तब निस्संदेह हम भविष्य में भ्रष्टाचार रहित समाज की कल्पना कर सकते हैं । भ्रष्टाचार के पूर्णतया उन्मूलन से पूर्व हमें इस पर विचार करना होगा कि वे क्या कारण हैं जिसके फलस्वरूप समाज के धनाढ़य एवं सुशिक्षित उच्चपदासीन व्यक्ति अधिक संख्या में भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ।
क्यों एक प्रशासनिक अधिकारी जबकि उसे पर्याप्त वेतन एवं सुविधाएँ उपलब्ध हैं, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में औरों से कम नहीं है । जाहिर है, कहीं न कहीं हमारी शिक्षा-प्रणाली खामियों से परिपूर्ण है तथा सामाजिक नैतिकता का दिनों-दिन ह्रास हो रहा है ।