दहेज प्रथा | Dowry System in Hindi!

1. भूमिका:

विवाह के लिए कन्या-पक्ष और वर-पक्ष के बीच रुपये-पैसे या वस्तुओं के लेन-देन को कहा जाता है-दहेज (Dowry) । समाज में आज लग भा सभी जातियों और धर्मों के लोगों के रिवाज (Custom) में शामिल है यह प्रथा । कहीं कन्या-पक्ष वाले वर प क्ष वालों को धन देते हैं, तो कहीं वर-पक्ष वाले कन्या-पक्ष को ।

2. इतिहास:

दहेज प्रथा का आरम्भ हमारे समाज में कब, कहाँ और कैसे हुआ, यह कह पाना बड़ा कठिन है । लेकिन यह किंवदंती (Legend) है कि अयोध्या के राजा दशरथ के समय यह प्रथा (System) शुरू हुई थी ।

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कहा जाता है कि उनके पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुप्न के विवाह पर राजा जनक ने उन्हें बहुत धन-दौलत दहेज के रूप में दिया था । तभी से उनकी देखा-देखी यह प्रथा शुरू हो गई । लेकिन हो सकता है इस प्रथा का चलन उससे पहले भी रहा हो ।

3. कारण और उपाय:

दहेज प्रथा के पीछे शायद सबसे बड़ा कारण यही रहा होगा कि कन्या या वर पक्ष वाले दूसरे पक्ष को धन-दौलत देकर खुश करना चाहते हों, जिससे वर-कन्या का विवाहित जीवन सुखी हो । दूसरा कारण यह भी रहा होगा कि एक पक्ष दूसरे पक्ष को धन-दौलत देकर यह सिद्ध करना चाहता हो कि वह दूसरे पक्ष से किसी भी प्रकार से पीछे नहीं है । कारण जो भी हो किन्तु पौराणिक काल से चली आ रही इस प्रथा का रूप आज बदल गया है ।

लोग इसे वर-कन्या की खरीद-बिक्री का साधन मानने लगे हैं । दहेज न दे सकने के कारण अनेक कन्याएँ या तो कुँवारी (Unmarried) रह जाती हैं या आत्महत्या (Suicide) करती हैं अथवा किसी प्रकार विवाह हो जाने पर भी उन्हें ससुराल में कष्ट उठाना पड़ता है ।

दहेज प्रथा के बुरे प्रभाव से लड़कियों को बचाने के लिए सरकारी कानून भी बने हैं लेकिन उनका कोई असर नहीं पड़ा है । लोगों के लोभ-लालच के कारण यह बुरी प्रथा और बढ़ती जा रही है । अत: इसके लिए जरूरी है कि धर्म-अधर्म में लोगों का विश्वास फिर से पैदा किया जाय और समाज में दहेज को सबसे बड़ा पाप माना जाय ।

4. उपसंहार:

अन्य बुराइयों की तरह दहेज लेना और देना भी बहुत बड़ी बुराई है । इससे छुटकारा पाये बिना हम पारिवारिक कलह और सामाजिक पिछड़ेपन (Social Backwardness) से छुटकारा नहीं पा सकते ।