युद्ध की वीभत्सता पर अनुच्छेद | Paragraph on Horrors of War in Hindi

प्रस्तावना:

युद्ध सदैव से ही बड़े निर्दयतापूर्ण और क्रूर रहे हैं । यदि हम इतिहास के पन्ने पलटें तो देखेगे कि संसार के महान् विजेताओ ने खून-खराबा. क्रूरता और लूटपाट में बडा आनन्द लिया है ।

नादिरशाह, चंगेज खां और महमूद गजनवी जैसी खूनी और अत्याचारी आक्रमणकारियों के नाम से आज तक हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं । सभी आम आदमी युद्ध रूपी दानव से पूणा करते हैं, लेकिन कुछ युद्ध-लोलुप लोग अपने स्वार्थ के लिए युद्ध छेड़ देते हैं, जबकि साधारण जनता शांति चाहती है ।

युद्ध से जन-धन की भारी हानि होती है:

युद्धों में सैकड़ों-हजारों लोग जान से हाथ धो बैठते हैं और संपत्ति का भारी नुकसान होता है । प्राचीन काल के युद्धों में अधिकाशतया सेनायें ही भाग लेती थीं, लेकिन आधुनिक युद्धो से समूची जनता भी प्रभावित होती है । इस शताब्दी में हम दो विश्व-युद्ध देख चुके हैं, जिनमें जन-धन की भारी हानि हुई है । युद्धों के प्रभावो से हमारा सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन भी अछूता नहीं रहता ।

इससे गरीब और अमीर सभी प्रभावित होते है । समूचे शहर और नगर बरबाद हो जाते हैं । पुरुष, स्त्री, बच्चे, जवान, बूढे सभी मौत के घाट उतर जाते हैं । परिवार बिखर जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं तथा बुड्‌ढे बेसहारा हो जाते हैं । आज के युद्ध नरक का खुला दृश्य उपस्थित कर देते हैं ।

व्यापार और उद्योगों की हानि:

आज के युद्धों में अंधाधुंध बमबारी होती है । दोनों ही पक्षों द्वारा एक-दूसरे के प्रमुख औद्योगिक और व्यापारिक महत्त्व के स्थानों को निशाना बनाया जाता है । बड़े-बड़े कारखाने क्षणों मे मिट्टी में मिल जाते हैं । आवागमन के साधन नष्ट हैं, जिनसे भुखमरी फैल जाती है । युद्धो के समय सरकारें अपन समूचा धन और शक्ति युद्ध-सामग्री जुटाने में लगा देती हैं, जिससे नष्ट हुए उद्योग और व्यापार के पुननिर्माण में बाधा पडती है ।

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नैतिकता का पतन:

युद्धों से केवल जन-धन की ही हानि नहीं होती, बल्कि जनता का मनोबल भी गिर जाता है और लोगों का नैतिक पतन होने लगता है । चारों तरफ आपा-धापी मची रहती है । असुरक्षा की भावना से ग्रस्त लोग स्वार्थी हो उठते हैं । उनका धार्मिक विश्वास तक नष्ट हो जाता है और वे एक-दूसरे की सहायता करने के बजाय अपने भले की ही सोचने लगते हैं ।

कीमतों की वृद्धि:

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युद्धों के दौरान आम जरूरत की वस्तुओं की विशाल मात्रा सैनिकों के लिये सरकारें खरीद लेती हैं । इसके अलावा फसलों और उद्योग-धंधों के नष्ट हो जाने तथा आवागमन के साधनो में बाधा पड़ने से वस्तुओं की कमी हो जाती है । इसलिए उनकी कीमतों में भारी वृद्धि हो जाती है । कीमतों की अभूतपूर्व वृद्धि का सबसे बुरा प्रभाव देश की निर्धन जनता पर पडता है, जो त्राहि-त्राहि करने लगती है ।

जमाखोरों और पूँजीपतियों के असामाजिक कार्य:

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युद्ध के दौरान देश के पूजीपति और जमाखोर अवसर का लाभ उठाकर भारी मुनाफा कमाते हैं । वे युद्ध रूपी चिता में अपनी रोटियाँ सेकमें जैसा मृणित कार्य करते है, वे वस्तुओं को छिपाकर कृत्रिम कमी पैदा करके कीमतें बढा देते हैं और भारी मुनाफा कमाते हैं । इससे जनता का संकट और भी बढ जाता है । साधारण जनता भुखमरी का सामना करती है, जबकि ये चद असामाजिक तत्त्व अपनी तिजोरियां भरते हैं ।

परमाणु युद्ध से मानवता को खतरा:

द्वितीय विश्व-युद्ध में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक नगरों पर गिराये गये परमाणु बमों के प्रभाव से हजारों लोग मर गये तथा समूचे नगर नष्ट हो गये । इसका बुरा प्रभाव बचे हुए लोगों की कई पीढ़ियों पर पडा है । आज उससे हजारों गुना शक्ति के हाइड्रोजन बम तैयार किए जा चुके है । इतने दूरगामी अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया जा चुका है कि हजारों मील दूर एकदम सही निशाने पर मार की जा सकती है ।

इन अस्त्रों के प्रयोग से समूची मानवता नष्ट होकर प्रलय की स्थिति आ सकती है । ससार के बड़े राष्ट्रो के पास ऐसे अस्त्रों का भण्डार एकत्र है, लेकिन वे एक-दूसरे से डरते हैं । उनके बीच समझौते की वार्ता चल रही हैं । हमे आशा करनी चाहिये कि ईश्वर इन्हें सद्‌बुद्धि दे, ताकि मानवता को नष्ट होने से बचाया जा सके ।

उपसंहार:

संसार के शांतिप्रिय लोगों को एक होकर ऐसे जनमत का निर्माण करना चाहिये, जिससे मजबूर होकर बड़े राष्ट्र इन विनाशकारी परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने का समझौता कर लें और हमे भावी युद्ध की बीभरत्तता न देखनी पड़े ।

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