दीपावली पर निबंध / Essay on Deepawali in Hindi!

दीपावली को दीवाली के नाम से भी जाना जाता है । दीपावली हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है । इसे कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है । यह प्रकाश पर्व है । इस दिन घर-घर प्रकाश से जगमगा उठता है ।

दीपावली एक दिन का पर्व नहीं, अपितु कई पवों का समूह है जो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक बहुत हर्षोल्लास से संपन्न होता है । ये पर्व हैं- धन त्रयोदशी, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज ।

दीपावली के दिन रात्रिकाल में धन-संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी जी और विघ्नविनाशक व मंगलदाता गणेश जी की पूजा की जाती है । समुद्र-मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में लक्ष्मी भी एक रत्न थीं । लक्ष्मी रत्न का प्रादुर्भाव कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था । उस दिन से कार्तिक की अमावस्या लक्ष्मी-पूजन का त्योहार बन गया । लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश की पूजा की जाती है क्योंकि गणेश धन-संपत्ति की संरक्षा करते हैं तथा सब प्रकार के अमंगलों का नाश कर सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं ।

दीपावली के मनाने के पीछे एक कथा यह भी है कि भगवान राम इसी दिन रावण संहार के उपरांत पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण समेत अयोध्या लौटे थे । चौदह वर्ष के वनवास से लौटने की उमंग में अयोध्यावासियों ने अपने- अपने घर सजाए थे तथा रात को घरों में विशेष रोशनी की थी । तब से दीपावली के दिन लोग अपने सजे हुए घर में दीप जलाते हैं तथा प्रकाश-व्यवस्था करते हैं ।

इस त्योहार का संबंध फसल से भी है । इस समय खेतों में नई फसल पकने लगती है । किसान नइ फसल रूपी धन-लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए उत्सव मनाते हैं । फसल रखने के लिए खलिहान और घरों को लीप-पोत कर तैयार कर लिया जाता है । इससे बरसात के कारण हुई क्षति की भरपाई भी होती है । रात को असंख्य दीप जलते हैं जिनमें कीट-पतंगे और मच्छर नष्ट हो जाते हैं । घर-आँगन साफ-सुथरा दिखाई देने लगता है । शहरों में भी लोग अपने घर से कूड़ा-करकट निकाल कर दीवारों की पुताई करते हैं । व्यापारी अपना पुराना हिसाब-किताब निबटाकर नए बही-खाते तैयार करते हैं ।

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दीवाली के पहले से ही बाजार सज जाते हैं । लोग नए वस्त्रों की खरीदारी करते हैं । व्यापारी दुकानें सजाते हैं । ग्राहकों के आवागमन की गति बढ़ जाती है । हलवाई स्वादिष्ट मिठाइयाँ बनाकर उनकी नुमाशन करते हैं । कुम्हार मिट्‌टी के दीए लेकर बाजार आ पहुँचते हैं । कपास और खील-बताशे बेचने वालों की संख्या बढ़ जाती है । कुछ लोग चाँदी के सिक्के खरीदते हैं तो कुछ गहने । दूसरों को भेंट देनेवाली चीजों की माँग बढ़ जाती है । चहुँ ओर उल्लास होता है । खरीदार और विक्रेता दोनों खुश नजर आते हैं । पुलिस की गश्त बढ़ जाती है क्योंकि उसे सुरक्षा का विशेष प्रबंध करना होता है ।

दीपावली के दिन हर कोई व्यस्त दिखाई देता है । गृहणियाँ घर में विशेष पकवान बनाती हैं । बच्चे खरीदे गए बम-पटाखों को धूप में सुखाते हैं । कामकाजी लोग कार्यालय से उपहार प्राप्त कर खुश दिखाई देते हैं । दुकानदार दुकान में पूजा की तैयारियों में जुटे होते हैं । लोग एक-दूसरे को भाँति- भाँति के उपहार और दीपावली की बधाइयाँ देते हैं । लोग पुष्पमालाएँ, पूजा की अन्य सामग्रियाँ, मोमबत्ती तथा लक्ष्मी-गणेश की छोटी-छोटी मूर्तियाँ खरीदते हैं । पंडित जी गृहकार्य निबटाकर दुकान-दुकान, घर-घर पूजा-पाठ कराने निकल पड़ते हैं । बच्चे शाम होने की प्रतीक्षा अधीरतापूर्वक करते हैं ताकि वे आतिशबाजी का आनंद ले सकें ।

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संध्या का समय आता है । घर-घर दीयों, मोमबत्तियों तथा बिजली के रंगीन बल्बों और झालरों से जगमगा उठते हैं । ऐसा लगता है मानो आसमान के सभी तारे धरती पर उतर आए हों । बड़ा अद्‌भुत दृश्य होता है यह । भारत- भूमि पर स्वर्ग का समाँ बँध जाता है । इसके साथ ही बम-पटाखों और फुलझड़ियों की ध्वनि और चमत्कार होने लगता है । पूरे देश में अरबों रुपये इन दो-चार घंटों में फूँक दिए जाते हैं क्योंकि अब दीपावली प्रकाश-पर्व ही नहीं रह गया है, यह ध्वनि पर्व भी बन गया है । इस ध्वनि पर्व के कारण प्रदूषण का स्तर भी बेहिसाब बढ़ जाता है ।

दीप जले, पटाखे फूटने लगे और लक्ष्मी-गणेश पूजा आरंभ हो गई । शंख बज उठे । पूजा समाप्त हुई तो प्रसाद बाँटे गए । पड़ोसी एक-दूसरे को प्रसाद और उपहार देने गए । भाईचारे की भावना को बल मिला । घर-घर में आनंद के सुखद क्षण आए । लोग मिठाइयाँ खाने लगे । एक से बढ्‌कर एक पकवानों को खाने-खिलाने का सिलसिला चल पड़ा । परिवार के सब लोग इकट्‌ठे होकर फुलझड़ियाँ छोड़ने लगे । कुछ लोग छत पर चढ़कर नगर की सजावट देखने लगे । कुछ तामसिक प्रवृत्ति के लोग रतजगा करते हुए जुआ खेलने और मदिरापान करने की तैयारियों में जुट गए ।

इस तरह त्योहार की समाप्ति आ गई । त्योहार तनाव दूर कर गया और लोग अपने- अपने कामों में नए सिरे से जुट गए ।

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