दर्जी पर निबंध / Essay on Tailor in Hindi!

सभी लोग वस्त्र पहनते हैं । वस्त्र मौसम तथा ऋतु के अनुकूल होते हैं । वस्त्र शरीर के आकर्षण में वृद्धि करते हैं । दर्जी अलग- अलग व्यक्तियों के अनुरूप वस्त्र सिलकर समाज की मदद करता है । वह वस्त्रों पर कारीगरी करता है जिससे पोशाक सुंदर दिखाई देने लगती है । इस तरह दर्जी समाज का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य होता है ।

दर्जी का काम बहुत मेहनत का है । उसके पास सिलाई की मशीन होती है । उसकी अपनी दुकान होती है जहाँ वह सिलाई मशीन एवं अन्य औजारों को रखता है । कैंची, सुई – धागा, माप लेने का फीता, स्केल, पैंसिल, हैंगर आदि उपकरणों को हमेशा वह अपनी दुकान में रखता है । वह सुबह से रात के नौ-दस बजे तक अपनी दुकान पर कार्य करता रहता है । वह ग्राहकों का स्वागत करता है । वह वस्त्रों को मापता है । वह व्यक्ति की सही माप लेता है और वस्त्रों पर या रसीद बही पर उस माप को दर्ज कर लेता है ।

वह ग्राहकों को डिलीवरी की तारीख बताकर उन्हें विदा करता है । फिर वह निर्धारित माप के अनुसार वस्त्रों की कैंची से कटाई करता है । वस्त्रों की सिलाई में कटाई का बहुत महत्त्व है क्योंकि उसी के आधार पर वस्त्रों की फिटिंग निर्भर करती है । कटाई का काम पूरा कर वह वस्त्रों को सिलने बैठता है । वह हाथों से वस्त्र पकड़े रहता है और पैरों से मशीन चलाता है । उसका पूरा ध्यान सिलाई पर केंद्रित रहता है ।

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वस्त्रों की सिलाई पूर्ण होने पर वह उनमें बटन आदि लगाने का काम हाथों से करता है । उसके सधे हाथ बहुत शीघ्रता से चलते हैं । अंत में वह वस्त्रों पर इस्तरी करता है और वस्त्रों को मोड़कर हैंगर पर लटका देता है ।

ग्राहक नियत तिथि पर आता है और मेहनताना देकर सिले हुए वस्त्र ले जाता है । दर्जी ग्राहकों को हर प्रकार से संतुष्ट करता है ताकि वे दुबारा उसकी दुकान पर आएँ । अच्छे तरीके से सिलाई न करने वाले दर्जी को बेरोजगार रहना पड़ता है । ग्राहक उसकी दुकान से नजरें फेर लेते हैं । लेकिन जो अच्छी सिलाई करता है, उसकी दुकान पर भीड़ लगी होती है । लोग उसके यहाँ महँगी सिलाई देकर भी कपड़े सिलवाते हैं ।

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दर्जी अपने श्रम पर जीता है । उसे खून-पसीना एक कर कार्य करना पड़ता है । त्योहारों के अवसर पर वह बहुत व्यस्त हो जाता है । हर कोई अपने वस्त्र जल्दी सिलने का अनुरोध करता है । तब उसके हाथ शीघ्रता से चलने लगते हैं । वह दिन-रात एक कर देता है । आखिर उसे भी तो त्योहार मनाना है, उसे भी त्योहार के मौके पर अधिक धन चाहिए । घर पर पत्नी और बच्चों को उसका इंतजार है लेकिन वह दुकान पर मनोयोग से अपने काम में व्यस्त है ।

दर्जियों की दुकान हर जगह होती है । शहरों में हर गली, हर नुक्कड़ और चौराहे पर उसकी दुकान होती है । यहाँ वह अपने साथियों के साथ काम करता है । वह कोट, पैंट, कमीज, फ्राक, सलवार, सूट, पायजामा, अंगिया, पेटीकोट आदि विभिन्न प्रकार के वस्त्रों को सिलता है । वह पुराने वस्त्रों की मरम्मत का कार्य भी करता है । गाँवों में एक या दो दर्जी ही होते हैं । वहाँ उन्हें साल भर काम नहीं मिल पाता । बहुत से दर्जियों की आय इतनी कम होती है कि उनका गुजारा बड़ी कठिनाई से चलता है ।

दर्जी एक श्रमिक है । हमें उसके श्रम का सम्मान करना चाहिए । समाज में उसका कार्य किसी अन्य के कार्य से कम नहीं है । उसकी मेहनत से तैयार शोभायुक्त वस्त्रों को पहनकर व्यक्ति स्वयं को गौरवान्वित समझता है ।

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