दर्जी पर अनुच्छेद | Paragraph on The Tailor in Hindi

प्रस्तावना:

दर्जी हमारे कपड़े सीता है । हर गांव, शहर, कस्बे या नगर में दर्जी होते हैं । कोई भी सभ्य समाज या देश इनकी सेवाओं के बिना सभ्य नहीं दिखेगा । इस तरह वह हमारे समाज का अति आवश्यक क्या है । वह कडी मेहनत से अपनी रोजी कमाता है ।

उसके औजार:

दर्जी की कार्यकुशलता उसके अनुभव तथा औजारों पर निर्भर करती है । दर्जी को थोड़े-से ही औजार चाहिए । उनके मुख्य औजार हैं- कैंची, सिलाई मशीन, नाप का फीता, सुई-धागा, ऊगलियों मे पहनने का धातुई छल्ला तथा प्रेस । इसके अलावा उसे एक टेबल या सपाट तख्ता भी चाहिए, जिस पर रख कर वह कपड़े काट सके ।

तरह-तरह के बटन, रंग-बिरंगे धागे, रंगीन चाक और मोटी तथा पतली सुइयों की जरूरत होती है । वह एक रजिस्टर भी रखता है जिसमें ग्राहकों के कपडों की नाप लिख लेता है । इनमें से किसी चीज के अभाव में उसका काम ठीक से नहीं चल पायेगा ।

उसकी दुकान:

दर्जियों की दुकानें आमतौर पर कपड़ा बाजार के आस-पास होती हैं । बड़े शहरों में घर, गली और मुहल्ले में दर्जी की दुकानें दिखाई पड़ती हैं । शहरो में ये दर्जी शीशे की अल्मारी रखते हैं, जिसमें नए सिले कोट, पैंट, कमीजें आदि टाँग दिए जाते हैं, जिन्हें देखकर नए ग्राहक आकर्षित होते हैं ।

गांवों के दर्जियों को ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता । वही आमतौर पर किसी कमर में या चबूतरे पर मशीन लेकर दर्जी बैठ जाता है । उसके पास सिलाई का काम भी बहुत कम आता है । शहर के दर्जियों की दुकान पर चमकदार साइन बोर्ड भी लगे होते हैं, जिनसे दर्जी के नाम और उसकी विशेषता का पता लग जाता है ।

उसका काम:

दर्जी का काम बड़े अनुभव का होता है । जब तक दर्जी अपने काम में पूरा माहिर नहीं हो जाता, तब तक वह किसी कुशल दर्जी के अधीन काम करता है । एकदम फिट और ग्राहक की पसन्द के अनुरूप कपड़े सिलने पर उस दर्जी का नाम हो जाता है और उसे अधिकाधिक काम मिलने लगता है ।

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दुकान पर जाते ही दर्जी ग्राहक का स्वागत करता है । कौन-सा कपड़ा सिलाना है, जानने के बाद दर्जी अपने फीते से कपड़े को नापता है । फिर ग्राहक की नाप ठीक से लेता है और अपने रजिस्टर मेन उसे लिखता जाता है ।

इसके बाद वह ग्राहक के कपड़े पर रंगीन चाक से निशान लगा देता है अथवा रजिस्टर का नम्बर लिख देता है, ताकि कोई आ न हो जाये, यानि एक ग्राहक के कपड़े से अन्य ग्राहक की नाप की पैंट या कमीज न सिल जाये ।

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इसके बाद वह ग्राहक के कपड़े को मेज या तख्ते पर फैला कर ठीक नाप से उसके टुकड़े काटता है । कटाई करने के बाद वह मशीन से पैंट, कोट, कमीज आदि जो भी आवश्यक हो सिल देता है ।

कपड़ा सिल जाने के बाद वह उसके काज बनाता है और बटन लगाता है और फिर प्रेस करके उस कपड़े को शीशे की अल्मारी मे तब तक टंगा रहने देता है, जब तक उसका मालिक आकर उसे नहीं ले जाता ।

उसकी मजदूरी:

गाँव का दर्जी बहुत कम मजदूरी लेता है । उन्हें सिलाई का काम भी बहुत कम मिलता है । अत: उसे गरीबी की जिन्दगी गुजारनी पड़ती है । शहरों और कस्बों में दर्जियों ने सिलाई के रेट बहुत बढ़ा दिये हैं । बड़े-बड़े शहरों में प्रख्यात दर्जियों की आमदनी हजारों रुपये प्रतिमाह होती है ।

उसके वादे : गाँव के दर्जी तथा शहरों के छोटे दर्जी वादे के पक्के नहीं होते । वे ग्राहकों को बार-बार लौटाते हैं । लेकिन बड़े दर्जी निश्चित तिथि पर ही कपड़े सिलकर दे देते हैं । अधिकांश दर्जी आवश्यकता से अधिक कपड़ा ले लेते हैं और ग्राहकों के कपड़े में से कुछ न कुछ कपड़ा अवश्य बचाते हैं ।

उपसंहार:

आजकल सिलाई-कटाई का अलग से प्रशिक्षण दिया जाता है । बहुत से पढ़-लिखे लोग ऐसी संस्थाओं से प्रशिक्षण प्राप्त करके दर्जी की दुकान खोलते हैं । बड़े-बड़े शहरों में कुशल दरियों की बड़ी मांग है । वहां सिलाई अच्छी आमदनी का साधन है ।

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