धोबी पर अनुच्छेद | Paragraph on The Washer Man in Hindi

प्रस्तावना:

धोबी समाज के पिछड़े वर्ग का व्यक्ति होता है । वह समाज की बड़ी सेवा करता है और उसका एक बड़ा उपयोगी अंग है । वह उच्च वर्ग के लोगों के गंदे कपड़े साफ करता है ।

समाज के लिए उसकी सेवायें अनिवार्य है । हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों के लोग धोबी का काम करते हैं । शहरो और नगरों के अधिकांश लोग तथा गावों का धनी वर्ग और जमींदार उसकी सेवाओं पर निर्भर रहते है ।

उसकी पोशाक:

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वह अनोखे कपड़ा पहनता है । आमतौर पर धोबी कानों मे सुनहरी बालियाँ पहनता है और सिर पर पगड़ी बांधता है । अक्सर वह धोती-कुरता या पाजामा-कमीज पहनता है । उसके कपड़े आमतौर पर ढीले-ढाले होते हैं । वह एक छोटा हुक्का अपने साथ रखता है । जब कभी फुर्सत मिलती है, वह हुक्के से दम लगा कर तरोताजा हो लेता है ।

दो किस्म के धोबी:

धोबी भी प्राय: दो किस्म के होते हैं-पुराने व नए । पुराने धोबी आज तक कपड़ा धोने के वही परम्परागत तरीके काम मे लाते हैं । वह किसी तालाब या नदी के किनारे कपड़े धोता है । वह आज भी रेत मिट्‌टी लगाता है और कपडों को भट्टी पर चढ़ाता है । घाट पर पत्थर पर जोर-जोर से कपडों को पछाड़-पछाड़ कर वह उन्हें साफ करता है । इस पर भी उसके धोये हुये कपड़े बहुत साफ और उजले नहीं हो पाते ।

नए किस्म का धोबी उपेक्षाकृत अच्छे ढंग से कपड़े साफ करता है । वह साबुन, सोडा और ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल करता है । वह पक्के बने हौजों या नदी के साफ पानी में कपड़े धोता है औंर उन पर ठीक से प्रेस करके ग्राहकों तक पहूँचाता है । कुछ धोबियों ने लीण्ड्रियाँ या दुकाने खोल ली है और अपने कारखानों में कपडों की धुलाई करते है ।

पुराने किस्म के धोबी आमतौर पर गांतों या करबों में रहते हैं । वे गांववासियों की अन्य कई तरीकों से भी सेवा करते हैं । उच्च वर्ग के लोगों की शादियों व अन्य सामाजिक उत्सवों पर वे उनकी सेवा करते हैं । सेवा के बदले फसल पर उन्हे अनाज दिया जाता है ।

कड़ी मेहनत का काम:

कपड़े धोने का काम बड़ी मेहनत का है अंत धोबियों को कठिन जीवन बिताना पड़ता है । वह हर हफ्ते गंदे कपड़े जमा करने और साफ किये हुये कपड़े पहुचाने घर-घर का फेरा लगाता है । गंदे कपडों को वह अलग-अलग गाव बांधकर, फिर एक बड़ी गठरी मे बांध कर घर लाता है ।

इसके बाद अलग-अलग ग्राहको के कपड़ों पर भिन्न-भिन्न निशान ऐसी स्याही से लगाता है, जो धोने पर भी नहीं मिटती । निशान लगाने के बाद वह कपडो त्हो उनकी किस्म के अनुसार अलग-अलग करता है । इसके बाद सफेद सूती कपडों को वह सोडा और साबुन में भिगोकर भट्टी पर चढ़ाता है ।

रंगीन कपडों को वह केवल सोड़ा ओर साबुन धोता तै । टेरीलीन, रेशम तथा अन्य कीमतों कपडों को वह विशेष साबुन और पाउडर से धोता है । इसके बाद तह कपडों को अपने गंधे या रिकसे पर लाद कर घाट लै जाता है । उसका घाट किसी नदी, नहर, तालाब या चश्मे के किनारे होता हैं । शहरों में उनके लिए नलों और हौदों का इन्तजाम होता है ।

घाट पर धुलाई:

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घाट पर आकर वह गंदे और साबुन लगे कपडों को गंधे या रिक्से से उतारता है । फिर कपडों को एक-एक करके किसी सपाट पत्थर या लकड़ी के पट्‌टे पर जोर-जोर से पीट कर धोता जाता है । इससे कपडों का मैल आसानी से छुट जाता है ।

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इसके बाद कपडों को निचोड़ कर वह रस्सी की अलगनी अथवा घास पर फैला कर सुखा देता है । उसकी पत्नी तथा बच्चे भी उसके इस काम में मदद करते है । वह सर्दी के दिनों में बर्फीले पानी में तथा गर्मियों में तपती धूप में घंटो काम करता रहता है ।

शाम को जब कपड़े सूख जाते हैं, तो उन्हें इक्कठा करके पुन: गधा या रिक्शे पर लाद कर घर लौट आता है । अगले दिन वह हर ग्राहक के कपड़े अलग-अलग करके उन पर प्रेस करता है और भली-भांति तह करक जमा करता है । इसके बाद वह उनकी गठरी बनाकर ग्राहकों को उनके घर-घर पहुंचाता है । इसी प्रकार उसका जीवनक्रम चलता रहता है ।

उसकी आदतें:

अधिकांश धोबी नियमित रूप से अपना काम करते हैं । वे वादे के बड़े पक्के होते हैं । वे ग्राहकों के कपडों की धुलाई ध्यान से करते हैं, ताकि वे न तो फटे और न खराब हो । लेकिन कुछ धोबी बड़े लापरवाह भी होते हैं । अवसर वे कपडों के बटन तोड़ लाते हैं, उन्हे फाड़ देते हैं और कभी-कभी गुम भी कर देते हैं । वे अपने वादे के पक्के भी नहीं होते । उन्हे अपनी लापरवाही का हरजाना देना पड़ता है ।

धोबी की अधिकांशत:

कुछ बुरी आदते भी होती हैं । अधिकतर धोबी खूब शराब पीते है । जब कभी उनसे कोई सामाजिक हो जाती है, तो उनकी जातीय पचायतें शराब की बोतले के रूप में जुर्माना करती हैं । विवाह-शादियों में वे अपनी सामर्थ से कहीं अधिक धन खर्च करते हैं । अन्य सामाजिक और धार्मिक अवसरसे पर भी उन्हे बहुत धन खर्च करना पडता है । इससे वे कर्जे के बोझ से दबे रहते हैं । शराब और कर्ज से उनके परिवार सदैव अभावग्रस्त रहते हैं ।

उपसंहार:

अपनी बुरी आदतों के बावजूद भी धोबी बड़ा उपयोगी होता है । गाँवों में उसे अपनी कठिन मेहनत की बहुत कम मजदूरी मिलती है । समाज में उन्हें नीची नजर से देखा जाता है । हमें चाहिये कि हम उनका जीवन सुधारें । सरकार को चाहिए कि वह उनके बच्चो को अनिवार्य रूप से नि:शुल्क शिक्षा दे तथा उनकी किताबों, कॉपियों आदि की मुफ्त व्यवस्था करे ।

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