ट्‌यूशन: वरदान या अभिशाप पर निबंध | Essay on Tuition : Blessing or Curse in Hindi!

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आजकल के मां-बाप के लिए बच्चों को ट्‌यूशन दिलवाना एक फैशन सा बन चुका है । कुछ मां-बाप के लिये तो यह मजबूरी भी है क्योंकि वे अपने बच्चों का होमवर्क पूरा नहीं करवा सकते है ।

इसके अतिरिक्त, उनको गणित और अंग्रेजी जैसे विषयों में कोई महारत हासिल नहीं होती । अत: उनको अपने बच्चों को इन दोनों (और कई अन्य) विषयों को सिखाने हेतु प्रोफेशनल ट्‌यूटरों का इन्तजाम करना ही पड़ता है ।

सभी बच्चे ट्‌यूशन पढ़ते हैं । यह महानगरों में तो एक प्रवृति सी हो गई है । अर्द्धशहरी इलाकों में भी भारी तादाद में ट्‌यूशन सैन्टर खुलते जा रहे हैं । हमने यह पाया है कि बच्चा ट्‌यूटर के बिना अपने आप को असहाय और असुरक्षित महसूस करता है ।

ट्‌यूशन के द्वारा वह अपना होमवर्क भी पूरा कर लेता है और आने वाले (कक्षा में होने वाले) टेस्टों की तैयारी भी । सालाना परीक्षाओं में ट्‌यूटर द्वारा करवाई गई मेहनत काम आ जाती है । बच्चा भी ट्‌यूटर पर अधिक निर्भर करता है । स्कूल तो वह नाममात्रा के लिये ही जाता है ।

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हमारा उद्देश्य ट्‌यूशन की प्रथा को रोकने का अथवा ट्‌यूटरों को नैतिक स्तर पर प्रताड़ित करने का नहीं है । यदि वे बच्चों को ज्ञान देकर कुछ धन अर्जित कर लेते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है । परन्तु यदि एक अध्यापक ट्‌यूटर बन जाता है और स्कूल / कॉलेज की अपनी ड्‌यूटी को नजर अन्दाज कर के निजी ट्‌यूशनों पर ध्यान देता है तो वह नैतिक आधार पर गलत कार्य कर रहा है ।

आजकल ट्‌यूटर 25000-50000 रुपया प्रति माह ट्‌यूशनों के जरिये ही कमा लेते हैं । यदि वे ऐसा कर सकते है तो उनको चाहिये कि वे स्कूलों / कॉलेजों में अध्यापन कार्य न करें । उनको चाहिये कि वे ट्‌यूशन के कार्य में पूर्णरूपेण रत्त हो जायें ताकि स्कूलों / कॉलेजों में अन्य अध्यापकों की नियुक्ति की जा सके । दो नावों में पैर रखना तर्कसंगत नहीं होगा ।

कई अध्यापक इस शर्त पर ट्‌यूशन देते हैं कि बच्चे अगले शैक्षणिक सत्र में भी उनसे ही पढ़ेंगे । यह शर्त भी तर्क से परे और नैतिकता के खिलाफ है । इसके अलावा, कुछ बच्चे, जो भारी ट्‌यूशन फीस नहीं दे सकते, को उचित फीस पर पढ़ाना भी ऐसे ट्‌यूटरों का कर्तव्य है । हर जगह पर धन लोलुप होने से काम नहीं चलता । समाज के कुछ गरीब/ पिछड़े वर्गों का ध्यान रखना भी अध्यापक गण का कर्तव्य है ।

विशिष्ट पाठ्‌यक्रमों में प्रवेश पाने हेतु भी प्राईवेट कोचिंग दी जाती है ।आई. आई.टी., आई.आई.एम. और अन्य संस्थाओं में प्रवेश आसानी से नहीं मिलता । अत: व्यवसायिक तौर पर प्रशिक्षित अध्यापक छात्रों को कोचिंग देते हैं । इन अध्यापकों में से अधिकतर इन्हीं संस्थानों के स्नातक होते हैं । ये कोचिंग इन्स्टीट्‌यूट सारे भारत में फैल चुके हैं । इनकी एक महीने की फीस 1000 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक है । आजकल तो दसवीं कक्षा के छात्र भी इन संस्थानों में प्रवेश पाने की होड़ में लगे हैं ।

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शिक्षा को व्यवसाय बनाना हमें कतई अच्छा नहीं लगा । परन्तु इस प्रवृति को रोका नहीं जा सकता । हर तरफ निजीकरण, वैश्वीकरण और उन्मुक्त व्यापार व्यवस्था का वर्चस्व है । जाहिर है, शिक्षा का निजीकरण होना भी अवश्यम्भावी था । हमें बदलते हुये मूल्यों को आत्मसात करना ही होगा ।

अब बात आती है महंगे ट्‌यूटर और कुशल / सक्षम ट्‌यूटर की । यह आवश्यक नहीं है कि एक महंगा ट्‌यूटर, सक्षम और अच्छा अध्यापक भी हो । प्रचार और प्रसार के इस युग में किसी भी व्यक्ति या संस्था विशेष को मीडिया के द्वारा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया जाता है । परन्तु हो सकता है कि उसकी क्षमतायें नगण्य हों । अत: छात्रों को चाहिये कि वे अपने अध्यापकों / ट्‌यूटरों का चुनाव सोच समझ कर करें ।

यह जरूरी नहीं है कि स्कूल या कॉलेज में पढ़ाने वाला अध्यापक ही घर पर या इंस्टीट्‌यूट में पढ़ाये । कुछ बच्चों को लालच होता है कि उनको उनका ट्‌यूटर उन्हें सालाना परीक्षा में प्रश्न-पत्रों के बारे में बता सकेगा (क्योंकि शायद प्रश्न-पत्र उसी ने बनाया है) यह प्रवृत्ति गलत है । इस प्रकार की अटकलों और (अध्यापकों के) चुनावों से छात्रों को बचना चाहिये । उन्हें ऐसे अध्यापकों को ट्‌यूटरों के रूप में चुनना चाहिये जिनके साथ उनका विचारों और संचार का सामंजस्य हो सके ।

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तत्पश्चात् उनको और उनके ट्‌यूटरों को मेहनत तो करनी ही होगी । बिना परिश्रम के फल नहीं मिल सकता । चाहे यह संदर्भ पाठशाला या कॉलेज की कक्षा का हो, चाहे ट्‌यूशन केन्द्र का । इसके अलावा, स्कूल या कॉलेज में की गई पढ़ाई भी ट्‌यूशन केन्द्र में पढ़ने के लिये एक उचित आधार है । उसको नजरअन्दाज नहीं करना चाहिये ।

संक्षेप में ट्‌यूशन केन्द्रों पर लगभग सभी छात्रों के जाने की प्रबल संभावनायें हैं । घर पर ट्‌यूटर को बुलाना महंगा पड़ता है । ग्रुप ट्‌यूशन का चलन तो है परन्तु छात्रों को ट्‌यूटर की ओर से पूर्ण ज्ञान मिलने की संभावनायें कम हो जाती है । ग्रुप कोचिंग सस्ती है । विशिष्ट विषयों और पाठ्‌यक्रमों के लिये छात्रों को अधिक खर्च भी करना पड़ सकता है । हमारी राय है कि छात्र उन्हीं अध्यापकों से ट्‌यूशन पढ़ें जिनको पाठ्‌यक्रमों और परीक्षाओं की सही प्रवृतियों का पूर्ण ज्ञान हो ।

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