यद्यपि ईश्वर भी अतीत को परिवर्तित नहीं कर सकता, लेकिन इतिहासकार और जीवनी लेखक कर सकते हैं!

अतीत की घटना इतिहास बन जाती है । इतिहास का अर्थ ही बीती घटनाओं, तथ्यों का संकलन है । लेकिन मनुष्य के इतिहास का संबंध घटनाओं के इतिहास से नहीं, बल्कि कार्यो और मानवजाति की उपलब्धियों से होता है ।

जिसका संग्रहण इतिहासकारों और जीवनीकारों के अध्ययन और विश्लेषण तथा परिशुद्ध एवं विश्वसनीय साक्ष्यों पर आधारित होता है । ये साक्ष्य भवनों, कला के उपादानों, वस्तुओं और लिखित सामग्री के रूप में होने चाहिए । ये मतों, भाषाओं अथवा रीतिरिवाजों पर आधारित भी हो सकते हैं ।

एक आधुनिक इतिहासकार अथवा जीवनीकार को केवल इतिहास का अध्ययन मात्र नहीं करना होता । उसे कालविशेष की परिस्थितियों को स्वयं अनुभव करना होता है । महान स्त्री पुरुषों की चारित्रिक विशेषताओं को समझने के लिए उसे संबधित घटनाओं को स्वयं जीना पड़ता है ।

उसका कर्तव्य है कि वह शुद्ध तथ्यों, घटनाओं का वर्णन करें इसके लिए उसे ऐतिहासिक घटनाओं की तह तक जाकर तथ्यों की समीक्षा कर, वर्तमान और भावी परिस्थितियों का अंकन करना होता है । इस प्रकार इतिहास में मात्र तथ्यों का संकलन नहीं होता बल्कि आतंरिक परिस्थितियों और उद्देश्यों की प्रस्तुति भी होती है ।

इतिहासकार को ऐतिहासिक तथ्यों के संकलन के मूल स्रोत का उल्लेख भी करना होता है । वह विभिन्न आंदोलनों, घटनाओं के पीछे की प्रमुख प्रवृतियाँ की समीक्षा करता है । उस समय की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धामिक परिस्थिति का उसे संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए । साथ ही उसके निजी विचारों की छाप ऐतिहासिक तथ्यों पर नहीं पड़नी चाहिए । समीक्षा वस्तुपरक, तार्किक होनी चाहिए ।

निबंध के विषय में वर्णित परिवर्तन से तात्पर्य तथ्यों में परिवर्तन से नहीं हैं, बल्कि अनभिज्ञ तथ्यों की प्रस्तुति से है । ऐतिहासिक अनुसंधान में आधुनिक प्रणालिओं के प्रयोग से नवीन आयाम खुले हैं । उनके माध्यम से इतिहासकार इतिहास के गूढ़ तथ्यों की जानकारी प्राप्त कर सकते है ।

आधुनिक पुरातत्व-विज्ञान के विकास से इतिहासकारों को पर्याप्त सुविधा मिली हैं । उदाहरण के लिए, आधुनिक इतिहासकार को मात्र यह तथ्य आकर्षित नहीं करता कि एलेक्जेंडर ने पंजाब को अधीन किया और पोरस को हराते हुए संपूर्ण देश को अपने साम्राज्य में स्थापित किया ।

इसके साथ ही वे पंजाब ही नहीं बल्कि शेष भारत की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थिति के प्ररिपेक्ष्य में उस घटना को रख कर प्रस्तुत करता है । एलेक्जेंडर की जीवनी को लिखते समय जीवनीकार उस समय की प्रवृतियों की चर्चा करेगा जिन्होंने सिकन्दर को विश्व विजेता बनने की प्रेरित किया ।

ADVERTISEMENTS:

अनुसंधान करते समय इतिहासकारों अथवा जीवनीकारों के सम्मुख नवीन तथ्य उभर कर आते हैं, जो नए दृष्टिकोणों को प्रकट करते हैं । कभी-कभी इतिहास वास्तविक तथ्यों से बहुत अलग नजर आता है । इसका कारण समय के साथ-साथ इतिहासकार का दृष्टिकोण भी है ।

आधुनिक इतिहासकारों ने इतिहास को तीन कालों – प्राचीन, मध्य और आधुनिक में विभाजित किया है । प्राचीन इतिहास में ई.पू. 15वीं शताब्दी तक की पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता का वर्णन है । पूर्वी सभ्यता में, बेबीलोन, इलम, मैसोपोटामिया, मिस्र, यूनान, भारत, चीन, जापान, परसिया, कीलिस्तीन आदि आते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

इन सभी सभ्यताओं का अध्ययन करते समय आधुनिक इतिहासकार कला, युद्ध, शिल्प, प्रवृति, घटनाओं, युद्धों, उन्नति स्तर आदि की समीक्षा की प्रस्तुत करता है । समकालीन समाज की आर्थिक राजनैतिक प्रवृतियों पर भी प्रकाश डालता है । इतिहास में साक्ष्यों के आधार पर घटनाओं की तार्किक संक्षिप्ति और वैज्ञानिक विधि से समीक्षा की जाती है ।

इस प्रकार भगवान तो अतीत को परिवर्तित नही कर सकता जबकि इतिहासकार और जीवनीकार ऐतिहासिक साक्ष्यों और अनुसंधान की वर्तमान तकनीकों के आधार पर इतिहास में परिवर्तन ला सकता है । प्रसिद्ध इतिहासकार तथ्यों को जिस रूप में प्रस्तुत करेगा, वही सर्वमान्य होंगे ।

प्रत्येक मानव समाज को शासन की आवश्यकता होती है । मानव समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार मानी गई है । एक आत्मनिर्भर परिवार, एक राजनैतिक इकाई के समान होता है, जहाँ एक सदस्य का अन्य सदस्यों पर नियंत्रण होता है । परिवार से बड़ी इकाई कुछ समूहों को मिलाकर बने कबीले से बनती है, कुछ कबीलों के एकत्र हो जाने से सभी परिवारों के मुखिया से मिलकर सरकार का निर्माण हुआ ।

कुछ व्यक्तियों को शासन का अधिकार उच्चकुल में जन्म लेने या योग्यता के बल पर प्राप्त होता था । इन कबीलों का नेतृत्व एक मुखिया करता था, जिसका कार्य शासन चलाना होता था । यह शासन तानाशाह, कुलतंत्र या प्रजातंत्र चाहे किसी भी प्रकार का हो, इसकी अनिवार्य आवश्यकता बेहतर शासन को प्रस्तुत करना थी ।

प्रत्येक समाज में मनुष्य को सोचने, समझने और कार्य करने की स्वतंत्रता होती है । उससे उस समाज की विशिष्टताओं, मतों पर प्रकाश पड़ता है । इतिहासकारों और जीवनी लेखकों का इन सभी से गहन संबंध होता है । पाषाण युग में गुफाओं की चित्रकला और बीसवीं सदी की औद्योगिक उन्नति उन विशिष्ट कालों की प्रमुख प्रवृति और सांस्कृतिक सृजन का प्रतीक है ।

पिछली कुछ शताब्दियों से इतिहासकारों का ध्यान विभिन्न सभ्यताओं के उत्थान और पतन की ओर केन्द्रित हुआ है । प्रत्येक व्यक्ति के मन में प्रश्न उठता है कि क्यों एक सभ्यता उन्नति के शिखर को छूकर पतन की ओर मुड़ जाती है, इसके संबंध में कई इतिहासकारों ने अपने मत प्रकट किए हैं, लेकिन शब्दों से इन चिरन्तन सत्य का उत्तर नहीं दिया जा सकता है ।

ADVERTISEMENTS:

कार्लमार्क्स के मतानुसार सभ्यता की सांस्कृतिक उपलब्धि उस समाज की आर्थिक परिस्थिति निर्भर करती है, लेकिन वे भी इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ रहे है कि समान आर्थिक स्थितियों के होते हुए भी विभिन्न कालों की उपलब्धियों और मतों में अंतर क्यों दृष्टिगत होता है । इसलिए मार्क्सवादी इतिहासकारों की विशेषता, तथ्यपरक इतिहास की प्रस्तुति है ।

आधुनिक इतिहासकार आर्नाल्ड टॉयम्बी के अनुसार समाज में उत्पन्न चुनौती के प्रति स्वीकारात्मक सक्रियता की कमी के कारण ही उन्नति में विराम की अवस्था पैदा होती है । इनका विचार है कि समाज में विकास की अवस्था निरन्तर प्रवाहित होनी चाहिए, यदि वह इसमें असफल रहती है, तो इसका अर्थ यह है कि वह अपने दायित्वों को उचित ढंग से नहीं निभा रही है ।

इतिहास लेखन के प्रति नैतिकतावादी दृष्टिकोण भी पूर्णत: उचित नहीं है । यह ऐतिहासिक तथ्यों को दुर्बोध रूप में प्रकट करती है, जिससे उसका स्पष्ट रूप अंकित नही हो पाता । इतिहासकार को प्रत्येक समाज तथा सभ्यता का तत्कालीन परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में अध्ययन करना चाहिए और वर्तमान काल की परिस्थिति और अपने अनुभवजन्य सत्यों की प्रस्तुति करनी चाहिए ।

ADVERTISEMENTS:

ADVERTISEMENTS:

उसे तथ्यों का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन नहीं करना चाहिए । मिस्री साम्राज्य के पतन की तुलना फ्रांस या रूस की क्रांति से करना तर्कसंगत नहीं है । क्योंकि अलग-अलग परिस्थितियों के कारण ये घटनाएं घटी थीं । उसे दो विभिन्न संदर्भो की घटनाओं का वर्णन एक ही प्रकार की शब्दावली में करना अनुचित है ।

गहन अध्ययन और निरंतर विश्लेषण के माध्यम से ही इतिहास में किसी घटना विशेष की कल्पना करने की क्षमता उत्पन्न होती हैं । उच्च मूल्यों से संबंधित सामान्य घटनाएं आज के समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं, इसलिए इतिहासकारों को अपने दृष्टिकोण को विस्तृत करना चाहिए ।

कुछ तथ्यों का समीक्षात्मक अध्ययन करना चाहिए जैसे एक सभ्यता के बाद दूसरी सभ्यता का विकास के प्रमुख कारण क्या थे । इससे उसमें तथा इतिहास के पाठकों में अपने अतीत के प्रति गौरव की भावना का प्रसार होगा ।

ऐतिहासिक अनुसंधान की प्रक्रिया के दौरान इतिहासकार और जीवनीकार को प्रत्येक समाज और सभ्यता की विशिष्टताओं का अलग से वर्णन करना चाहिए और मानव जाति की संचित परम्परा को स्पष्ट करना चाहिए । मानव की आज की उपलब्धियों की जड़ें प्राचीन समाज में किस रूप में विद्यमान थीं इसका विश्लेषण भी इतिहासकार को करना चाहिए ।

ADVERTISEMENTS:

इतिहासकार तथा जीवनीकारों के प्रतिपादनों पर ही इतिहास निर्भर करता है, इसलिए उनका उद्देश्य प्राचीन इतिहास का परिशुद्ध वर्णन और वर्तमान परिस्थितियों की सार्थकता के विश्लेषण से युक्त इतिहास की प्रस्तुति होना चाहिए ।