छुटटियों का सदुपयोग पर निबंध |Essay on Utilization of Leisure Time in Hindi!

किसी ने सत्य ही कहा है कि ”परिवर्तन में ही वास्तविक आनंद होता है ।” मनुष्य जब एक ही कार्य को लगातार करता रहता है तो कुछ समय बाद उसकी ऊर्जा का ह्रास होना प्रारंभ हो जाता है ।

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कार्य की एकरसता के कारण उसके जीवन में नीरसता घर कर लेती है । इन स्थितियों में छुट्‌टी का दिन उसके लिए बहुत महत्वुपूर्ण हो जाता है क्योंकि इससे उसके शरीर और मस्तिष्क दोनों को ही आराम मिलता है तथा मन-मस्तिष्क में एक नवीन स्कूर्ति व नवचेतना का संचार होता है ।

मनुष्य विभिन्न अवसरों व समय के अनुसार लघु एवं दीर्घकालीन छुट्‌टियों का आनंद लेता है । सप्ताह में एक दिन होने वाला अनिवार्य अवकाश लघुकालीन होता है तथा किसी पर्व व स्वेच्छा से कई दिनों तक लिया गया अवकाश दीर्घकालीन अवकाश होता है । छात्रों के लिए परीक्षा के पश्चात् होने वाला ग्रीष्मावकाश दीर्घ अवकाश होता है ।

छुट्‌टियों अथवा अवकाश का उपयोग सभी लोग अपनी-अपनी सुविधाओं के अनुसार करते हैं । सप्ताह में एक दिन का होने वाला अवकाश प्राय: उस सप्ताह के अन्य दिनों में कार्य करने से उत्पन्न नीरसता को समाप्त करता है । इस दिन वे सभी कार्य किए जाते हैं जो अन्य दिनों की व्यस्तता के फलस्वरूप नहीं हो पाते ।

कुछ लोग इसे अपने परिवार के साथ व्यतीत करना पसंद करते हैं वहीं अन्य लोग इस दिन के समय को अपने अन्य आवश्यक कार्यों के साथ ही मनोरंजन अथवा परिजनों से मिलने आदि का रखते हैं । कुछ छात्र सप्ताह के छूटे अपने कार्यो को पूरा करके स्वयं को अन्य छात्रों के साथ चलने हेतु तैयार करते हैं ।

दीर्घकालीन छुट्‌टियाँ भी मनुष्य के लिए अनेक रूपों में उपयोगी होती हैं । वे इन छुट्‌टियों के मध्य पड़ने वाले त्योहारों का भरपूर आनंद उठाते हैं । त्योहार लोगों में धार्मिक भावना के साथ ही साथ परस्पर मेल व भाईचारा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

राष्ट्र को एकसूत्र में पिरोए रखने में इन त्योहारों की अहम् भूमिका है । लंबी छुट्‌टियों में कुछ लोग अपने घर की साज-सज्जा पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो कुछ लोग बागवानी आदि पर ध्यान देते हैं । बाग-बगीचे लगाना आज के समय में एक सामाजिक कार्य है जिससे प्राकृतिक सौंदर्य में बढ़ोतरी होती है, साथ-साथ प्रदूषित वायु भी स्वच्छ होती है ।

कुछ लोग छुट्‌टियों में देशाटन अथवा किसी ऐतिहासिक व मनोरंजक स्थल पर घूमने हेतु जाते हैं । देशाटन से मनुष्य को दूसरे स्थानों पर रहने वाले लोगों के

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रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा आदि की जानकारी मिलती है । इसके अतिरिक्त परिवर्तन से उसके मन-मस्तिष्क में एक नई स्कूर्ति व नवचेतना जागृत होती है । देशाटन से बच्चों के मस्तिष्क पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है ।

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छुट्‌टियों में कई विद्‌यालयों के अध्यापक अपने छात्रों को किसी ऐतिहासिक स्थल, चिड़ियाघर, संग्रहालय, अथवा किसी पुस्तक व शिक्षा मेले आदि में ले जाते हैं जिससे उन्हें इसके संदर्भ में जानकारी प्राप्त हो सके । इसके अतिरिक्त कुछ विद्‌यालय ‘सेवा कैंप’ लगाने हेतु छात्रों को प्रोत्साहित करते है जिसमें छात्रगण स्वेच्छा से सामाजिक कार्यों में श्रम व ज्ञान का दान करते हैं ।

वे लोगों को स्वच्छता की जानकारी देते हैं तथा निर्धन बच्चों को शिक्षा प्रदान कर ज्ञान ज्योति फैलाते हैं । इससे छात्रों में सेवा का भाव जागृत होता है । राष्ट्रपिता बापू के अनुसार भी छुट्‌टियों का सबसे अच्छा उपयोग यह है कि इस समय को लोग समाज व राष्ट्र की सेवा में समर्पित करें ।

आज के महानगरीय जीवन की व्यस्तताएँ व्यक्तियों को निरंतर कार्य करते रहने के कारण तनाव व थकान से भर देती हैं । ऐसे में छुट्टियाँ बहुत आवश्यक हो जाती हैं क्योंकि यही एकमात्र साधन है जो यहाँ के लोगों को कुछ राहत दे सकता है । लोग इच्छित ढंग से जीवन जीकर स्वयं को तनाव-मुक्त कर सकते हैं ।

निस्संदेह छुट्टियाँ सभी के लिए अनिवार्य हैं । छुट्टियों में मनुष्य अपनी सामान्य दिनचर्या से हटकर वह कार्य कर सकता है जिससे उसका आत्मविकास संभव है । देशाटन आदि से उसे नए-नए स्थलों व लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।

उसके मन-मस्तिष्क मे नवीन चेतना व स्कूर्ति को संचार होता है जिससे उसकी कार्य-क्षमता अन्य लोगों की तुलना मैं बहुत बढ़ जाती है । अत: छुट्‌टियाँ चाहे दीर्घावधि की हों अथवा अल्पावधि की, इनकी उपयोगिता हमेशा बनी रहेगी ।

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